ख़बरों के आगे-पीछे: मणिपुर के बाद त्रिपुरा में अंदरूनी कलह ने बढ़ाई भाजपा की मुश्किल!
पूर्वोत्तर के राज्यों में भाजपा का अंदरुनी संकट गहरा रहा है। पहले मणिपुर और फिर त्रिपुरा में पार्टी नेताओं के बीच शुरू हुई कलह आलाकमान के लिए सिरदर्द बनती जा रही है। गौरतलब है कि मणिपुर में पिछले दिनों मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के खिलाफ विधायकों ने मुहिम छेड़ी और चार विधायकों ने अपने सरकारी पदों से इस्तीफा दे दिया। इन चारों विधायकों ने मुख्यमंत्री बदलने की मांग को लेकर दिल्ली की यात्रा भी की। इसी बीच कुकी, मैतेई और नगा विवाद के बीच 10 कुकी विधायकों ने दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मिल कर मुख्यमंत्री की शिकायत की है। मणिपुर का यह विवाद चल ही रहा है कि त्रिपुरा में संकट शुरू हो गया है। त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद बिप्लब देब ने बाहरी नेताओं के खिलाफ अभियान छेड़ा है। उन्होंने कहा है कि बाहरी ताकतों की वजह से पार्टी को नुकसान हो रहा है। हालांकि मुख्यमंत्री मानिक साहा ने कहा है कि पार्टी में किसी तरह का विवाद नहीं है लेकिन सबको स्थिति का अंदाजा है। सबको पता है कि बाहरी नेता बता कर बिप्लब देब ने मुख्यमंत्री साहा पर ही निशाना साधा है। गौरतलब है कि साहा छह-सात साल पहले ही कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए थे। बिप्लब देब को हटा कर पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था और इस साल चुनाव के बाद भी उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाया गया। मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री का यह विवाद पार्टी आलाकमान के लिए भी चिंता का सबब बना हुआ है।
अखिलेश डरे हुए हैं या चूक रहे हैं?
ऐसा लग रहा है कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के राजनीतिक खतरे को या तो समझ नहीं रहे है या फिर वे भी बसपा सुप्रीमो मायावती की तरह किसी गैर राजनीतिक कारण से उस खतरे का मुकाबला करने से कतरा रहे है। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को लगभग पूरा मुस्लिम वोट मिला था। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एमआईएम को सिर्फ आधा फीसदी वोट मिला। लेकिन हाल में हुए नगर निकाय चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने कमाल का प्रदर्शन किया। अलग-अलग निकायों में एमआईएम के 75 पार्षद जीते। सबसे कमाल का चुनाव मेरठ में मेयर का हुआ, जहां ओवैसी की उम्मीदवार एक लाख 28 हज़ार वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहीं। वहीं सपा की उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रही। पांच नगरपालिका परिषद में अध्यक्ष का चुनाव एमआईएम जीती है। एक तरफ मुस्लिम वोटों में ओवैसी की ऐसी सेंधमारी है और दूसरी ओर अखिलेश यादव विपक्ष के साथ एकता दिखाने का मौका चूक रहे हैं। वे बेंगलुरू में सिद्धरमैया और शिवकुमार के शपथ समारोह में शामिल नहीं हुए। उनको समझना होगा कि अगर वे उत्तर प्रदेश में बड़ा गठबंधन बना कर यह नहीं जता पाते हैं कि उनके नेतृत्व वाला गठबंधन भाजपा को चुनौती दे सकता है तो तय माने कि मुस्लिम वोट टूट कर ओवैसी के साथ जाएगा। बिहार विधानसभा में ओवैसी के पांच विधायक जीते थे। इनमें से चार को तोड़ कर राजद ने अपने साथ कर लिया। राजद, जदयू, कांग्रेस सब मिल कर यह मैसेज दे रहे है कि भाजपा से असल में वे लड़ रहे हैं। इसका मकसद नौजवानों को ओवैसी के साथ जाने से रोकना भी है। लेकिन अखिलेश उत्तर प्रदेश में ऐसा नहीं कर पा रहे हैं।
मोदी अजमेर से करेंगे चुनाव अभियान की शुरुआत
केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने पर भाजपा एक महीने तक जश्न मनाएगी। पूरे एक महीने तक भाजपा देश में मोदी सरकार के कामकाज का प्रचार करेगी। इसकी शुरुआत 31 मई को राजस्थान के अजमेर में प्रधानमंत्री मोदी की रैली से होगी। इस रैली में आसपास के राज्यों से भी लोगों की भीड़ जुटाई जाएगी। गौरतलब है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश सहित पांच राज्यों में छह महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं और उसके छह महीने बाद लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं। सो, प्रधानमंत्री की यह रैली एक तरह से भाजपा के चुनावी अभियान की शुरुआत होगी। बताया जा रहा है कि इस एक महीने के दौरान राजस्थान के अलावा चुनाव वाले बाकी राज्यों में भी प्रधानमंत्री की रैलियां हो सकती हैं। कर्नाटक में मिली करारी हार से भाजपा अभी बैकफुट पर है और उसके कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी असर हुआ है। मोदी की रैलियों के ज़रिए उनमें जोश भरने की कोशिश की जाएगी। इस सिलसिले में पार्टी के दूसरे नेता पूरे देश में 50 से ज़्यादा रैलियां करेंगे और केंद्र सरकार की उपलब्धियों का प्रचार करेंगे। मंत्रालयों के हिसाब से उपलब्धियों की सूची बनाई जा रही है। सरकारी पोर्टल 'माई गांव' के मुख्य कार्यकारी अधिकारी आकाश त्रिपाठी ने सभी मंत्रालयों को चिट्ठी लिख कर उनसे उनकी योजनाओं की प्रगति रिपोर्ट मांगी है। उन योजनाओं पर अमल से क्या बदलाव हुआ और लोगों को क्या फायदे हुए, इसकी भी रिपोर्ट बनाई जा रही है।
केजरीवाल पर वक़्त का सितम
सक्रिय राजनीति में आने से पहले अरविंद केजरीवाल और उनके साथी जब अन्ना हजारे को अपने कंधे पर बैठा कर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन कर रहे थे तो उस दौरान वे कांग्रेस और उसके तमाम सहयोगी दलों के नेताओं को परिवारवादी और भ्रष्ट बताते थे। इस सिलसिले में उन्होंने सोनिया गांधी समेत कांग्रेस के दूसरे नेताओं, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद, शरद पवार, करुणानिधि, फारुख अब्दुल्ला, शिबू सोरेन, उद्धव ठाकरे आदि नेताओं को परिवारवादी और भ्रष्ट बताया था। यह सिलसिला उन्होंने आम आदमी पार्टी बना कर दिल्ली में अपनी सरकार बना लेने के बाद भी जारी रखा। उनका दावा था कि वे देश में एक नई राजनीति शुरू करने और पहले से स्थापित राजनीतिक दलों को राजनीति सिखाने के लिए राजनीति में आए हैं। इतना ही नहीं, अपने आप को कट्टर ईमानदार बताते हुए वे खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकल्प भी बताने लगे थे। यह सब करते हुए उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि जिन नेताओं को वे परिवारवादी, भ्रष्ट, चोर, लुटेरा आदि बता रहे हैं, एक दिन मदद के लिए उन्हीं की शरण में जाना पड़ेगा। भ्रष्टाचार के आरोप में उनके दो मंत्रियों के जेल जाने, खुद उनके अपने सरकारी बंगले की सजावट पर 45 करोड़ रुपए खर्च होने का मामला उजागर होने और दिल्ली सरकार में अधिकारियों की नियुक्ति व तबादले का अधिकार केंद्र सरकार द्वारा छीन लिए जाने के बाद अब केजरीवाल को उन्हीं सारे नेताओं या उनके परिवारजनों के दरवाजे पर दस्तक देकर मदद की गुहार लगानी पड़ रही है।
भारत जोड़ो यात्रा वाले राज्यों में चुनाव
कर्नाटक के चुनाव नतीजों से कांग्रेस में काफी उत्साह है। पार्टी नेताओं के अलावा कई राजनीतिक विश्लेषकों ने भी इस बात पर जोर दिया है कि कर्नाटक में जिन इलाकों से राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा निकली वहां कांग्रेस को बहुत फायदा हुआ। इस सिलसिले में एक आंकड़ा भी आया कि जिन क्षेत्रों से यात्रा गुज़री वहां की 66 फीसदी सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई। सो, अब कांग्रेस के नेता इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर बहुत उत्साहित है। इस साल पांच राज्यों- तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में चुनाव होने वाले हैं। इनमें से तीन बड़े राज्यों- तेलंगाना, राजस्थान और मध्य प्रदेश से राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा गुज़री है। कांग्रेस इन तीनों राज्यों में कर्नाटक जैसे नतीजों की उम्मीद कर रही है। इन तीनों राज्यों में राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के क्रम में बहुत समय बिताया था और पार्टी नेता भी उनके साथ चले थे। राहुल का आम लोगों से जुड़ाव भी दिखा था। इसलिए कहा जा रहा है कि कांग्रेस उसी हिसाब से इन राज्यों की चुनावी रणनीति बना रही है। इस सिलसिले में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने 24 मई को चुनाव वाले राज्यों के नेताओं को दिल्ली बुला कर उनके साथ बैठक भी की है। बताया जा रहा है कि राहुल ने अपनी यात्रा में जो मुद्दे उठाए थे उनको केंद्र में रख कर इन तीन राज्यों की चुनावी रणनीति बनेगी।
कर्नाटक में कांग्रेस के सामने नई चुनौती
कर्नाटक में कांग्रेस अच्छे खासे बहुमत के साथ सत्ता में तो आ गई है लेकिन अब लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र उसके सामने जातियों का संतुलन साधने की नई चुनौती पैदा हो गई है। पहले कहा जा रहा था कि कांग्रेस तीन उप-मुख्यमंत्री बनाएगी। इससे सभी जातियों का बराबर प्रतिनिधित्व हो जाएगा। लेकिन सिर्फ एक उप-मुख्यमंत्री बनाने का फैसला हुआ, क्योंकि डीके शिवकुमार ने यह शर्त रख दी थी कि वे उप-मुख्यमंत्री का पद तभी संभालेंगे, जब वे अकेले उप-मुख्यमंत्री बनेंगे। इस प्रकार पिछड़े वर्ग के सिद्धरमैया मुख्यमंत्री और वोक्कालिगा समुदाय के शिवकुमार उप-मुख्यमंत्री बने। इसलिए पिछड़ा वर्ग और वोक्कालिगा के अलावा बाकी जातियों का संतुलन बनाना कांग्रेस के लिए चुनौती बन गया है। अगर तीन उप-मुख्यमंत्री बनते तो शिवकुमार के अलावा एक लिंगायत और एक नायक या वाल्मिकी समुदाय का नेता उप-मुख्यमंत्री बन सकता था। गौरतलब है कि इस बार कांग्रेस की टिकट पर बड़ी संख्या में लिंगायत विधायक जीते हैं। कांग्रेस को उन्हें सरकार में पर्याप्त प्रतिनिधित्व देना होगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो समुदाय का वोट भाजपा की ओर लौटने में ज़्यादा समय नहीं लगेगा। लोकसभा चुनाव तक लिंगायत समुदाय को खुश रखने के लिए ज़रूरी होगा कि भाजपा से आए दोनों बड़े लिंगायत नेताओं- जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी को अच्छी जगह मिले। शेट्टार, विधानसभा का चुनाव हार गए है। फिर भी कांग्रेस को उनका ध्यान रखना होगा। दलित और मुस्लिम समुदाय को भी सरकार में अच्छी जगह देनी होगी। इसलिए मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री का फैसला कर लेने के बाद भी कांग्रेस की चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं बल्कि नई चुनौती पैदा हो गई है।
कर्नाटक के नतीजों से पवार की उम्मीदें बढ़ीं
एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार बेंगलुरू में सिद्धरमैया और डीके शिवकुमार के शपथ समारोह में शामिल हुए थे। उस समारोह से लौट कर पवार ने अपनी पार्टी के नेताओं के साथ बैठक करने के साथ ही महा विकास अघाड़ी की दूसरी पार्टियों के नेताओं से भी बातचीत की है। बताया जा रहा है कि कर्नाटक के नतीजों और शपथ समारोह में लोगों के उत्साह से महाराष्ट्र में शरद पवार की उम्मीदें बहुत बढ़ी हैं। उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं को बताया कि शपथ समारोह में एक लाख लोग जुटे थे, जिसमें ज़्यादा संख्या युवाओं की थी। उनका कहना है कि अगर कामगार और किसान एक साथ रहते हैं तो भाजपा को हराया जा सकता है। वे इस मसले पर महा विकास अघाड़ी की रणनीति बना रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि कर्नाटक के नतीजों को सबसे बेहतर तरीके से कहीं दोहराया जा सकता है तो वह महाराष्ट्र है। इसीलिए महा विकास अघाड़ी में शामिल पार्टियों के बीच सीटों के बंटवारे पर भी बातचीत शुरू हो गई है। तीनों पार्टियों- एनसीपी, कांग्रेस और शिव सेना के उद्धव ठाकरे गुट की वज्रमूठ रैली अलग-अलग जिलों में हो रही है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग जुट रहे हैं। शरद पवार को अपने रणनीतिक कौशल का इस्तेमाल करके तीनों पार्टियों के बीच सीटों का तालमेल कराना है और यह सुनिश्चित कराना है कि शिव सेना उद्धव ठाकरे को चेहरा प्रोजेक्ट करके लड़ने की ज़िद न करे। इस मामले में भी वे कर्नाटक मॉडल को पेश कर सकते हैं।
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