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कोझिकोड हवाई दुर्घटना: ‘पायलट की ग़लती’ वाली कहानी की आड़ में परेशान कर देने वाले मुद्दों को नहीं छिपाया जा सकता

नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत एएआईबी की तरफ़ से की जा रही जांच का मक़सद हवाई अड्डे या एयरलाइन व्यवहार्यता (Viability), राजनीतिक दबाव या निहित स्वार्थों की रक्षा नहीं, बल्कि दीर्घकालिक सुरक्षा की चिंता होना चाहिए।
कोझिकोड हवाई दुर्घटना
फोटो साभार: द इंडियन एक्सप्रेस

दुबई में फ़ंसे भारतीयों को भारत ला रहा एयर इंडिया एक्सप्रेस ‘वंदे भारत’ फ़्लाइट IX 1134 7 अगस्त, 2020 को बारिश की स्थिति में कोझीकोड के पास कालीपुर स्थित कालीकट अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर दुखद रूप से दुर्घटनाग्रस्त हो गया।

737 एनजी एयरक्राफ़्ट टेबलटॉप रनवे (ऐसा रनवे,जो अमूमन पहाड़ी या पठारी जगहों पर बनाया जाता है) के सीमा क्षेत्र से बाहर जाते हुए सीमा की दीवार से टकराकर, किनारे पर फिसल गया और 35 फीट से ज़्यादा नीचे गिरकर बीच से दो हिस्सों में टूट गया। इसके अगले हिस्से को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा और इसी हिस्से में ज़्यादातर मौतें भी हुईं। जिस वक्त यह लेख लिखा जा रहा है, उस समय तक पायलट और सह-पायलट,दोनों सहित 18 लोगों की मौत हो चुकी है, और कुल 190 यात्रियों और चालक दल में से तक़रीबन 149 लोगों को अलग-अलग स्तर की चोटें लगी हैं, जिन्हें कोझीकोड और आसपास के शहरों के 13 अस्पतालों में भर्ती करा दिया गया है।

2012 में गठित वायु दुर्घटना जांच बोर्ड (AAIB) ने अपनी जांच-पड़ताल शुरू कर दी है और जानकारी के लिहाज से अहम ब्लैक बॉक्स या फ़्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) को बरामद कर लिया गया है। जैसे ही रनवे का मलबा साफ़ कर दिया गया, वैसे ही केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री, हरदीप पुरी, और नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) के शीर्ष अधिकारी कोझीकोड के दौरे पर आ गये।

मीडिया तो इस दुर्घटना के संभावित कारणों को लेकर लगाये जाने वाली अटकलों से अटा-पड़ा है और कालीकट हवाई अड्डे पर अपर्याप्त व्यवस्था को लेकर तरह-तरह की ऐसी-ऐसी कहानियां गढ़ी जा रही हैं,जिनमें से कुछ सही हैं और कुछ ग़लत हैं। एक वरिष्ठ सुरक्षा विशेषज्ञ, और 2010 में हुई टेबलटॉप मैंगलोर हवाई अड्डे पर हुई दुर्घटना की जांच टीम का हिस्सा रहे जाने माने विमान चालक, मोहन रंगनाथन भी घटनास्थल पर पहुंचे और उन्होंने कहा कालीकट हवाई दुर्घटना उन हवाई अड्डा प्राधिकरण, डीजीसी और नागरिक उड्डयन मंत्रालय की तरफ़ से हुई चूक की वजह से हुई "कोई दुर्घटना नहीं, बल्कि हत्या है", जो मैंगलोर दुर्घटना के बाद अनुशंसित सुरक्षा उपायों को लागू करने में नाकाम रहे हैं।

सभी प्राधिकरण 'पायलट की ग़लती' की कहानी गढ़ रहे हैं

मंत्री पुरी ने कोझीकोड में मीडिया के साथ कुछ तात्कालिक जानकारियां साझा की, साथ ही साथ उन्होंने सभी तरह के अटकलों से बाज आने और जांच के नतीजे का इतज़ार करने की अपील की। हालांकि, इस कालीकट अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को संचालित करने के लिए ज़िम्मेदार, डीजीसीए, और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) को चुनिंदा सूचनाओं को प्रेस को जारी करने से ख़ुद मंत्री ही नहीं रोक पाये।

मंत्री ने कहा कि सभी सुरक्षा उपाय लागू हैं और "हम" हवाई अड्डे को जैसे-तैसे संचालित करने की अनुमति नहीं दे सकते। डीजीसीए ने कहा कि सभी सुरक्षा उपाय किये गये थे, एएआई-कालीकट ने भी इसी बात को दोहराया, दोनों ही बार-बार पायलटों के पहली लैंडिंग के नाकाम होने की बात करते रहे और उन्होंने कहा कि अपनी दूसरी कोशिश में इन पायलटों ने रनवे से 1 किमी या 3,000 फीट से ज़्यादा नीचे एकदम सही उतरे, लेकिन ख़ास तौर पर बारिश की स्थिति में उनके लिए ब्रेक लगाने के लिए बहुत कम जगह बची थी।

हर एक एजेंसी साफ़ तौर पर ख़ुद को पायलटों की ग़लती की आड़ में छुपा रही है, ये सभी उन पायलटों को दोष देने वाली एक कहानी बड़ी ही बारीक़ी से गढ़ रही हैं, जबकि दुर्भाग्य से वे पायलट ख़ुद का बचाव करने के लिए अब इस दुनिया में नहीं हैं। बोइंग के डाउनलोड किये गये डेटा के साथ-साथ एफ़डीआर और सीवीआर बेशक इस दुर्घटना और इसके लिए ज़िम्मेदार घटकों के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारियां सामने ला पायेंगे।

तात्कालिक परिस्थितियां चाह जो भी हों, लेकिन भारत में,ख़ास तौर पर कालीकट, मैंगलोर, शिमला, कुल्लू, लेंगपुई (मिज़ोरम) और प्योंग (सिक्किम) जैसे टेबलटॉप हवाई अड्डों पर उड्डयन सुरक्षा के कई मसले बने हुए हैं। इन मसलों पर रौशनी डालना ज़रूरी है ताकि सामान्य अल्पकालिक प्रतिक्रियायें दोहराये नहीं जायें और दीर्घकालिक समाधान सामने आ पाये।

दुर्घटना

सबसे पहले तथ्य

कालीकट हवाई अड्डे के रनवे को 2017 में 2,450 मीटर (8,038 फीट) तक विस्तृत किया गया था, जिस पर चौड़े आकार वाले विमान को उतरने की अनुमति थी, और जिस पर इस तरह की अनुमति 2015 के बाद से नहीं थी। तब से बोइंग 777 और यहां तक कि 747 जंबो जेट्स भी वहां सुरक्षित रूप से उतरते रहे हैं। रनवे को तरक़ीबन 100 मीटर छोटा करते हुए दोनों छोरों पर RESA (रनवे एंड सेफ़्टी एरिया) को पहले के 90 मीटर से बढ़ाकर 240 मीटर तक कर दिया गया था।

डीजीसीए की तरफ़ से 2017 में एएआई-कालीकट को सख़्त चेतावनी देने के बाद इस रनवे के घर्षण की नियमित रूप से निगरानी की जा रही थी और रनवे से रबर के अवशेषों को हटाने के लिए एक मशीन हाल ही में चेन्नई से मंगवायी गयी थी। इसलिए, कालीकट हवाई अड्डा और नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA), जिसे इसे लागू किये जाने को सुनिश्चित करना था, इन्होंने वास्तव में मैंगलोर दुर्घटना के बाद सभी सिफ़ारिशों पर अच्छा काम तो किया था, लेकिन ये अच्छा काम उन्होंने 6-8 साल बाद 2017 और 2019 के बीच किया था, इससे पहले नहीं। इसे सिर्फ़ सौभाग्य ही कहा जा सकता है कि इस अवधि के दौरान यहां कोई दुर्घटना नहीं हुई।

पायलटों ने हवाई यातायात नियंत्रक से दृश्यता (visibility), बारिश और हवाओं से जुड़ी सूचना के मिलने के बाद रनवे 28 पर उतरने के पहले प्रयास को छोड़ दिया था। ये सूचनायें ख़राब परिस्थितियों को दर्शा रही थीं, जिन्हें उन्होंने 200 फ़ीट के निर्णय ऊंचाई (Decision Height-यानी जहां से परिस्थितियों का स्पष्ट अनुमान लगाया जाता है) पर या उससे पहले नोट कर लिया था। इसके बाद उन्होंने चारों ओर चक्कर लगाये और रनवे के दूसरी तरफ़ रनवे संख्या 10  पर विमान को उतरने की कोशिश की, जिसे नीचे की ओर ढलान के चलते जोखिम भरा माना जाता है, और बूट के लिए हवा का बहाव अनुकूल है। कॉकपिट के भीतर पायलट और हवाई यातायात नियंत्रक (ATC) के बीच होने वाली बातचीत और अन्य प्रासंगिक जानकारियां एफ़डीआर और सीवीआर डेटा से ही मिल सकेंगी।

सवाल है कि क्या एटीसी ने विमान को उसकी ज़्यादा ऊंचाई और शायद ज़्यादा रफ़्तार को लेकर कोई चेतावनी दी थी? क्या रनवे 10 पर श्रेणी-I का इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम (ILS) ठीक से काम कर रहा था? क्या सुरक्षित लैंडिंग ज़ोन को रनवे पर साफ़ तौर पर चिह्नित किया गया था? कुछ जानकारों का यह भी सवाल है कि क्या रनवे के बीचोबीच रोशनी थी? पायलट एक और उड़ान की पहल कैसे नहीं कर पाये? क्या पायलट थके हुए थे और तनावग्रस्त थे, जैसा कि वंदे भारत फ़्लाइट के कई पायलटों की अपनी लंबी उड़ान के दौरान आराम नहीं करने की शिकायत रही है?

इसकी वजह चाहे जो भी हो, मगर लगता है कि विमान सुरक्षित क्षेत्र के पीछे 1 किमी से ज़्यादा की दूरी पर अच्छी तरह से उतरा था। इसके बाद विमान रनवे की सीमा से बाहर चला जाता है, गीले रनवे के चलते पर्याप्त रूप से ब्रेक लगाने में असमर्थ हो जाता है, और टेबल टॉप के किनारे पर फ़िसल जाता है।

लंबी अवधि के समाधान

पहला और बड़ा सवाल तो यही है कि जांच के लिए कौन सी एजेंसी वास्तव में ज़िम्मेदार है, और क्या सही में इसके स्वतंत्र होने पर भरोसा किया जा सकता है? हितों के टकराव के कारण इस लेखक सहित अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन या आईसीएओ जैसी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों की तरफ़ से डीजीसीए से दुर्घटना की जांच को स्थानांतरित करने लेकर लगातार मांग किये जाने के बाद विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (AAIB) की स्थापना 2012 में की गयी थी, क्योंकि डीडीसीए भी निरीक्षण और समाशोधन एजेंसी (Inspection and clearance agency) ही है।

लेकिन, एएआईबी को भी "नागरिक उड्डयन मंत्रालय" के तहत ही "स्थापित" किया गया है, इसकी वेबसाइट भी इस मंत्रालय के बारे में जानकारी देती है, और दुर्घटना के बारे में जारी सभी बयान डीजीसीए या मंत्रालय से ही आ रहे हैं, और जब जांच रिपोर्ट आये, तो मुमकिन है कि वह रिपोर्ट भी वहीं से जारी की जाये।

समस्या यहीं बनी हुई है कि नागरिक उड्डयन मंत्रालय, डीजीसीए, एएआई, एयर इंडिया और एएआईबी सभी सरकारी एजेंसियां हैं और एएआईबी की तरफ़ से अन्य सभी सरकारी एजेंसियों के हितों की रक्षा करने की संभावनायें हैं।

माना जाता है कि भारत में स्वतंत्र प्राधिकरणों की स्वायत्तता की कमी वास्तव में लम्बे समय से है। मौजूदा सरकार के तहत राजनीतिक कार्यपालिका का लागू वर्चस्व चरम पर पहुंच गया है, और ऐसे में नागरिक उड्डयन मंत्रालय से कोझिकोड हवाई दुर्घटना की जांच और इसके बाद की गतिविधियों के नियंत्रण और संचालन की उम्मीद की सकती है।

कुछ सतही टिप्पणियों के साथ इस दुर्घटना की ज़िम्मेदारी पायलटों के पाले में डाले जाने की आशंका है, जैसा कि भारत में ज़्यादातर हवाई दुर्घटनाओं की जांच में होता रहा है। पहली बात तो यह है कि वैधानिक प्रावधानों सहित एएआईबी की पूर्ण स्वायत्तता को सुनिश्चित करने वाले उपाय बेहद ज़रूरी हैं।

दूसरा, 2010 की मंगलौर दुर्घटना के बाद की गयी सिफ़ारिशों में एक अहम सिफ़ारिश रनवे के दोनों सिरों पर इंजीनियर्ड मटीरियल अरेस्टर सिस्टम (EMAS) का इंतज़ाम  करना था। असल में इंजीनियर्ड मटीरियल अरेस्टर सिस्टम (EMAS) नाशवान कंक्रीट और अन्य सामग्रियों की ऐसी परतें होती हैं, जो नियंत्रण से बाहर चलने जाने के बाद विमान की ऊर्जा को अवशोषित कर लेते हैं, जल्दी से इसे किसी पड़ाव तक लाने के लिए उसकी रफ़्तार को धीमा कर देते हैं, जिससे विमान, यात्रियों या उस पर लदे माल को कम से कम नुकसान होता है।

इंजीनियर्ड मटीरियल अरेस्टर सिस्टम (EMAS) को आदर्श रूप से तक़रीबन 120-180 मीटर तक होना चाहिए।

भारत के ज़्यादातर सैन्य हवाई अड्डों पर यह ईएमएएस पहले से ही मौजूद हैं। अमेरिकी हवाई अड्डों पर तो ये अनिवार्य हैं, जिनमें से अनेक हवाई अड्डों के लिए संघीय विमानन प्रशासन भुगतान कर रहा है, और उम्मीद की जा रही है कि अन्तर्राष्ट्रीय नागर विमानन संगठन (ICAO) जल्द ही इस सिलसिले में वैश्विक स्तर पर आधिकारिक घोषणायें कर सकती है।

पता चला है कि इसके शुरू करने और रखरखाव पर लगने वाली उच्च लागत के चलते एएआई कालीकट अब तक ईएमएएस को स्थापित करने से इंकार करता रहा है। यूएस और यूरोपीय संघ में हुए विस्तृत अध्ययनों ने इस तरह के होने वाले संभावित दुर्घटनाओं को देखते हुए ईएमएएस की इस उच्च लागत को सुरक्षा के लिहाज से कहीं ज़्यादा फ़ायदेमंद बताया है। क्या जान-माल और विमान पर आने वाली आफ़त के मुक़ाबले इस उच्च लागत को वास्तव में सुरक्षा के लिहाज से क्या आड़े आना चाहिए? भारत में कम से कम सभी टैबलटॉप रनवे पर ईएमएएस स्थापित करने को लेकर जल्द से जल्द कार्रवाई की जानी चाहिए।

स्थानीय निवासियों के विरोध के चलते कालीकट हवाई अड्डे पर अतिरिक्त रनवे की लंबाई का अनुशंसित मुद्दा काफ़ी समय से अटका हुआ है, एएआई को केरल सरकार की मदद से इस मामले का समाधान निकालना चाहिए। विभिन्न केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के बीच इन लागतों को साझा किये जाने का कोई रास्ता भी निकाला जाना चाहिए।

तीसरा, टेबलटॉप रनवे को लेकर एक समस्या है, जिस पर बहुत कम ध्यान दिया गया है, और वह यह है कि इन इलाक़ों के हवाई अड्डे पर वाहन की आवाजाही तो आसान है, लेकिन सतह के नीचे की स्थिति बहुत ख़राब है। करीपुर के इस क्षेत्र में भी दुर्घटनाग्रस्त विमान तक पहुंचने और बचाव कार्य शुरू करने के लिए स्थानीय लोग पहले पहुंचे थे, हवाई अड्डे के सीमित फ़ायर टेंडर और बचाव कर्मी भी आगे आए, लेकिन मौके पर स्थानीय दमकल और अन्य लोग बहुत बाद में आ पाये। हवाई अड्डे की परिधि तक पहुंचने के लिए आग और बचाव दल जल्द से जल्द घटनास्थल पर पहुंच पाये, इसके लिए शीघ्र ही सड़कों का निर्माण किया जाना चाहिए। आपातकालीन अन्य गतिविधियों को सक्षम किये जाने वाले उपायों की भी समीक्षा की जानी चाहिए।

चौथा, डीजीसीए को कोहरे की चेतावनी की तर्ज पर ही बरसात के दौरान भारत के सभी टेबलटॉप रनवे पर लैंडिंग की शर्तों के सिलसिले में एटीसी और एयरलाइंस को भी नये दिशानिर्देश जारी करने चाहिए। मौजूदा दुर्घटना में इस तरह के दिशानिर्देश समुचित रूप से थे, अच्छे वैकल्पिक हवाई अड्डे के तौर पर कन्नूर और कोच्चि हवाई अड्डे भी इस हवाई अड्डे के बिल्कुल क़रीब थे, और विमान को उन हवाई अड्डों की ओर मोड़ा जा सकता था।

मार्गदर्शक और निर्णय लेने वाला कारक तो असल में वास्तविक सुरक्षा को होना चाहिए, न कि हवाई अड्डे या एयरलाइन व्यवहार्यता, राजनीतिक दबाव या निहित स्वार्थों की रक्षा करने जैसे कारकों को होना चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि एएआईबी अपना रूटीन कार्य करता रहेगा और सही मायने में नागरिक उड्डयन सुरक्षा का स्वतंत्र संरक्षक बनेगा।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

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