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ढाई दशक में सबसे बड़ा है टिड्डियों का हमला, किसानों को भारी नुकसान

राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश समेत भारत के कई राज्य इस वक्त टिड्डियों के हमले की मार झेल रहे हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक त्रिलोचन महापात्र के अनुसार टिड्डी दलों ने करीब 40 हजार हेक्टेयर जमीन पर हमला किया है।
Locust attack
Image courtesy: Economic Times

दिल्ली: राजस्थान और मध्य प्रदेश में आतंक मचाने के बाद टिड्डियों का दल बुधवार को उत्तर प्रदेश के झांसी पहुंच गया और यह अब महाराष्ट्र के रामटेक शहर की ओर भी बढ़ सकता है। यह पिछले करीब ढाई दशक में टिड्डी दल का सबसे बुरा हमला है।

सामान्य तौर पर टिड्डी दल के प्रकोप से अछूता रहने वाले पंजाब में भी इस बार इनके हमले की आशंका है। फरीदाबाद स्थित टिड्डी चेतावनी संगठन (एलडब्ल्यूओ) के एक अधिकारी ने कहा, ‘यह कोई नयी समस्या नहीं है और लंबे समय से हम इसका सामना कर रहे हैं। इस साल टिड्डी दल का प्रकोप 26 साल में सबसे भयावह है।’

केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार राजस्थान के 21 जिले, मध्य प्रदेश के 18 जिले, गुजरात के दो जिले और पंजाब के एक जिले में अब तक टिड्डी दल पर काबू पाने के लिए कदम उठाये गये हैं। राजस्थान के कृषि विभाग ने जयपुर जिले में टिड्डियों को नियंत्रित करने के लिये कीटनाशक के छिड़काव के लिये एक ड्रोन की मदद ली है। जयपुर जिले के चौमू के पास सामोद में ड्रोन का उपयोग किया गया।

कृषि विभाग के आयुक्त ओमप्रकाश ने बताया, ‘हमने किराये पर लिये गये ड्रोन का उपयोग करना शुरू किया है और आने वाले कुछ दिनों की आवश्यकतानुसार और ड्रोन इस्तेमाल किए जाने की संभावना है।’

एलडब्ल्यूओ के अधिकारी ने कहा कि टिड्डी के प्रकोप को रोकने के समन्वित प्रयास किये जा रहे हैं। इससे पहले टिड्डी दल का प्रकोप राजस्थान और गुजरात तक था। लेकिन टिड्डियों को पर्याप्त भोजन नहीं मिलने की वजह से वे जोरदार हवाओं की मदद से दूसरे इलाकों की ओर बढ़ रहे हैं।

एक टिड्डी दल बुधवार को झांसी जिले में पहुंचा। झांसी मंडल के कृषि उप निदेशक कमल कटियार ने बताया कि जालौन की सीमा के नजदीक झांसी की गरौठा तहसील के स्किल गांव के पास शाम करीब साढ़े चार बजे टिड्डियों का एक दल पहुंचा और उसे भगाने की कोशिश की जा रही है। इस बीच लखनऊ में जारी एक सरकारी बयान के अनुसार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने टिड्डी दल पर नियंत्रण करने के लिए प्रदेश के सीमावर्ती जनपदों जैसे झांसी, ललितपुर, आगरा, मथुरा, शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, हमीरपुर, महोबा, बांदा, चित्रकूट, जालौन, इटावा एवं कानपुर देहात आदि जिलों में विशेष सतर्कता बरतने के निर्देश दिए हैं।

कटियार ने बताया कि यह दल लगभग एक किलोमीटर के इलाके में फैला हुआ है। टिड्डियों के हमले की आशंका के मद्देनजर दमकल वाहनों को पहले से ही तैयार किया गया था। उन्होंने बताया कि इन कीटों को भगाने के लिये कीटनाशकों का गहन छिड़काव किया जा रहा है। साथ ही वाहनों पर डीजे तथा अन्य ध्वनि विस्तारक यंत्रों को लगाकर शोर किया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि झांसी के समथर थाना क्षेत्र के दतावली गांव के पास भी टिड्डियों का एक छोटा दल देखा गया। उसे भी भगाने के प्रयास किये जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि बुधवार दोपहर बाद तक टिड्डियों का समूह झांसी की सीमा से सटे मध्य प्रदेश के दतिया जिले में था और हवा के रुख के हिसाब से उसके झांसी में प्रवेश करने की आशंका पहले से ही थी।

उल्लेखनीय है कि गत 22 एवं 24 मई को टिड्डियों के एक बड़े समूह ने झांसी जिले के कुछ इलाकों पर हमला किया था, लेकिन पहले से ही सतर्क प्रशासन एवं ग्रामीणों की मदद से आधे से अधिक टिड्डियों को मार डाला गया था।

टिड्डियों का दल चार दिन पहले महाराष्ट्र के नागपुर जिले में कटोल और परसियोनी में घुसा था। इस दल के रामटेक शहर की ओर बढ़ने की संभावना जतायी जा रही है। कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बुधवार को यह जानकारी दी। टिड्डियों का 17 किलोमीटर के इलाके में फैला दल पहले नागपुर जिले के कटोल के फेत्री, खानगांव के खेतों में घुसा। फिर शनिवार-रविवार रात वर्धा जिले के आश्ती ताल्लुका पहुंचा जहां कुछ इलाकों में संतरे और सब्जियों की फसलों को नुकसान पहुंचाया और फिर सोमवार रात को परसियोनी तहसील की ओर बढ़ गया।

कृषि विभाग के मंडलीय संयुक्त निदेशक रवि भोसले ने बताया कि अधिकारी बुधवार सुबह मौके पर पहुंच गए थे और टिड्डी दल की गतिविधि पर नजर रखना शुरू कर दिया है।

पंजाब में भी टिड्डी दल के प्रकोप का ख़तरा है। कृषि निदेशक स्वतंत्र कुमार ऐरी ने कहा, ‘पूरे पंजाब में अलर्ट जारी किया गया है।’ उन्होंने कहा कि प्रत्येक जिले में नियंत्रण कक्ष बनाये गये हैं और किसानों से किसी भी तरह की टिड्डी दल संबंधी गतिविधि की जानकारी देने को कहा गया है। जनवरी में पंजाब के फजिल्का और मुक्तसर जिलों में कुछ गांवों में टिड्डी दल देखे गये थे लेकिन तब उन पर प्रभावी तरीके से काबू पा लिया गया। मौजूदा हमला पिछले महीने शुरू हुआ जब पाकिस्तानी की तरफ से टिड्डी दल राजस्थान आया और अन्य पश्चिमी राज्यों में फैल गया।

कितने नुकसान की आशंका?

इस बीच केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि यह हमला बहुत गलत समय पर हुआ है जब देश पहले ही एक महामारी से जूझ रहा है। पर्यावरण मंत्रालय में महानिरीक्षक (वन्यजीव) सौमित्र दासगुप्ता ने कहा कि यह रेगिस्तानी टिड्डी है जिसने बड़ी संख्या में भारत में हमला बोला है और इसके हमले से फसलों को नुकसान हो सकता है।

उन्होंने कहा, ‘टिड्डी दल का भारत में आना सामान्य घटनाक्रम है लेकिन इस बार यह हमला बड़ा है।’ उन्होंने कहा कि इसमें बड़े टिड्डे हैं, मुख्य रूप से ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के हैं जिनमें उड़ने की अधिक क्षमता है और बड़े झुंडों में चलते हैं जिससे फसलों को बड़ा नुकसान होता है।

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, इस समय राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में टिड्डी दलों का प्रकोप है। सबसे बुरी तरह राजस्थान प्रभावित हुआ है। मंत्रालय के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि टिड्डी दलों का प्रकोप पूर्व की ओर बढ़ रहा है जिससे खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा बढ़ सकता है।

वहीं, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक त्रिलोचन महापात्र के अनुसार टिड्डी दलों ने करीब 40 हजार हेक्टेयर जमीन पर हमला किया है। लेकिन गेहूं, दलहन और तिलहन जैसी रबी की फसलों पर ज्यादा असर नहीं पड़ा है क्योंकि इनमें से अधिकतर की अब तक कटाई हो चुकी है।

उन्होंने कहा, ‘अब पूरा ध्यान जून-जुलाई में मानसून आने से पहले प्रकोप रोकने पर है जब टिड्डियों में प्रजनन हो सकता है। अगर इसे नहीं रोका जा सका तो खरीफ की फसलों को खतरा हो सकता है।’

हालांकि कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अभी रबी फसलों की कटाई और थ्रैशिंग तो कर ली गई है लेकिन जिन क्षेत्रों में हरे चारे के लिए ज्वार, बाजरा तथा सब्जी और मूंग आदि बोई हुई है, वहां टिड्डी दलों से होने वाले नुकसान से बचने के लिए किसानों को कीटनाशक रसायनों का इस्तेमाल करना पड़ेगा। एक अनुमान के मुताबिक सर्वाधिक प्रभावित तीन राज्यों में ही 8,000 करोड़ की मूंग दाल और बहुत सारी अन्य फसलों के नुकसान होने का खतरा है।

गौरतलब है कि इससे पहले वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान सिर्फ राजस्थान और गुजरात के कुछ हिस्सों में ही टिड्डियों के हमले के कारण करीब दो लाख हेक्टेयर फसल बर्बाद हुई थी।

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा 13 मार्च 2020 को राज्यसभा में पेश किए गए लिखित जवाब के मुताबिक 2019-20 के दौरान राजस्थान में 179,584 हेक्टेयर फसल बर्बाद हुई थी। वहीं, इस दौरान गुजरात में कुल 19,313 हेक्टेयर फसलों को नुकसान पहुंचा था।

केंद्रीय कृषि मंत्रालय के टिड्डी नियंत्रण एवं अनुसंधान विभाग के मुताबिक टिड्डियों द्वारा की गई क्षति और नुकसान का दायरा बहुत बड़ा है, क्योंकि इनकी बहुत अधिक खाने की क्षमता के कारण भुखमरी तक की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

विभाग के मुताबिक, ‘औसत रूप से एक छोटा टिड्डी का झुंड एक दिन में इतना खाना खा जाता है जितना दस हाथी, 25 ऊंट या 2500 व्यक्ति खा सकते हैं। टिड्डियां पत्ते, फूल, फल, बीज, तने और उगते हुए पौधों को खाकर नुकसान पहुंचाती हैं और जब ये समूह में पेड़ों पर बैठती हैं तो इनके भार से पेड़ तक टूट जाते हैं।’

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के मुताबिक एक वर्ग किलोमीटर में फैले टिड्डियों का झुंड एक दिन में 35,000 लोगों के बराबर खाना खा सकता है। एक टिड्डी एक दिन में अपने वजन के बराबर यानी कि लगभग दो ग्राम भोजन खा सकता है।

गौरतलब है कि इसके पहले सबसे खतरनाक हमला सितंबर-अक्टूबर 1993 में हुआ था। इस बार का हमला उससे भी भयावह है। हालांकि वर्ष 1993 में अक्टूबर में उनका प्रकोप समाप्त हो गया था, जबकि इस बार वे एक साल से ज्यादा तक आतंक फैलाती रहीं।

जलवायु परिवर्तन और कोरोना संक्रमण से बढ़ी तबाही

टिड्डियों का संकट केवल भारत या दक्षिण एशिया का नहीं है बल्कि यह दुनिया के 60 देशों में फैली समस्या है जो मूल रूप से अफ्रीका और एशिया महाद्वीप में हैं। अपने हमले के चरम पर हों तो यह 60 देशों में बिखरे दुनिया के 20% हिस्से पर कब्जा कर लेती हैं। इनसे दुनिया की 10% आबादी की रोजी रोटी बर्बाद हो सकती है।

असल में टिड्डियां हर साल ईरान और पाकिस्तान से भारत पहुंचती है। जहां भारत में ये टिड्डियां एक बार मॉनसून के वक्त ब्रीडिंग करती हैं वहीं ईरान और पाकिस्तान में ये दो बार अक्टूबर और मार्च के महीनों में होता है। मार्च में इन दोनों ही देशों में प्रजनन रोकने के लिए दवा का छिड़काव किया जाता है लेकिन इस बार कोरोना संकट से घिरे ईरान और पाकिस्तान में यह छिड़काव नहीं हुआ और भारत में दिख रहे टिड्डियों के हमले के पीछे यह एक बड़ा कारण है।

इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन की नई रिपोर्ट बताती है कि मुफीद जलवायु का फायदा उठाकर टिड्डियां अब अपनी सामान्य क्षमता से 400 गुना तक प्रजनन करने लगी हैं। यह बेहद चिंताजनक है क्योंकि भारत उन देशों में है जहां जलवायु परिवर्तन का असर सबसे अधिक दिख रहा है।

पर्यावरण विशेषज्ञों का भी दावा है कि टिड्डी दल दरअसल जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न स्थितियों का नतीजा हैं। साथ ही उन्होंने इन कीटों का प्रकोप जुलाई की शुरुआत तक बरकरार रहने की आशंका जाहिर की है।

जलवायु परिवर्तन विषय पर काम करने वाले प्रमुख संगठन 'क्लाइमेट ट्रेंड्स' की मुख्य अधिशासी अधिकारी आरती खोसला के मुताबिक टिड्डियों के झुंड पैदा होने का जलवायु परिवर्तन से सीधा संबंध है।

उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन की वजह से करीब 5 महीने पहले पूर्वी अफ्रीका में अत्यधिक बारिश हुई थी। इसके कारण उपयुक्त माहौल मिलने से बहुत भारी मात्रा में टिड्डियों का विकास हुआ। उसके बाद वे झुंड वहां से 150 से 200 किलोमीटर रोजाना का सफर तय करते हुए दक्षिणी ईरान और फिर दक्षिण पश्चिमी पाकिस्तान पहुंचे। वहां भी उन्हें अनियमित मौसमी परिस्थितियों के कारण प्रजनन के लिए उपयुक्त माहौल मिला जिससे उनकी तादाद और बढ़ गई। वे अब भारत की तरफ रुख कर चुकी हैं। कम से कम जुलाई की शुरुआत तक टिड्डियों का प्रकोप जारी रहने की प्रबल आशंका है।

आरती ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र के खाद्य संगठन एफएओ का मानना है कि देश में जून से बारिश का मौसम शुरू होने के बाद टिड्डियों के हमले और तेज होंगे। संयुक्त राष्ट्र ने भी चेतावनी दी है कि इस वर्ष भारत के किसानों को टिड्डियों के झुंड रूपी मुसीबत का सामना करना पड़ेगा। यह भारत में खाद्य सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा है।

उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन ने मौसम के हालात को मौजूदा प्रकोप के अनुकूल बना दिया है। चरम और असामान्य मौसम के साथ पिछले साल एक शक्तिशाली चक्रवात के कारण दुनिया के अनेक स्थानों पर नमी पैदा हुई है जो टिड्डियों के विकास के लिए अनुकूल माहौल बनाती हैं।

पर्यावरण वैज्ञानिक डॉक्टर सीमा जावेद ने बताया कि टिड्डे गीली स्थितियों में पनपते हैं और इनका प्रकोप अक्सर बाढ़ और चक्रवात के बाद आता है।

उन्होंने कहा कि टिड्डियां एक ही वंश का हिस्सा होती हैं लेकिन अत्यधिक मात्रा में पैदा होने पर उनका व्यवहार और रूप बदलता है। इसे फेज़ चेंज कहा जाता है। ऐसा होने पर टिड्डे अकेले नहीं बल्कि झुंड बनाकर काम करते हैं, जिससे वे बहुत बड़े क्षेत्र पर हावी हो जाते हैं। यही स्थिति चिंता का कारण बनती है।

इस बीच, भारत कृषक समाज के अध्यक्ष अजयवीर जाखड़ ने कहा कि केंद्र सरकार को टिड्डी दल के प्रकोप के प्रबंधन के बारे में महज अलर्ट जारी करने और सलाह देने से ज्यादा कुछ करना पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि तेजी से बढ़ते प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों के हवाई छिड़काव की व्यवस्था करनी होगी लेकिन राज्यों में इसके लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है।

कृषि एवं व्यापार नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने कहा कि टिड्डी दलों का हमला बेहद गंभीर है और भविष्य में हालात और भी मुश्किल हो जाएंगे। टिड्डी दल पांच राज्यों राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र तक पहुंच गए हैं। टिड्डियों के कारण सूखे से भी बदतर हालात पैदा हो सकते हैं।

उन्होंने कहा कि इस साल बेमौसम बारिश और बढ़ी हुई चक्रवातीय गतिविधियों की वजह से अनुकूल जलवायु परिस्थितियां उत्पन्न हुई हैं और टिड्डे सामान्य से 400 गुना ज्यादा प्रजनन कर रहे हैं।

शर्मा ने कहा कि यह आपातकालीन स्थिति है लिहाजा इसमें वैसे ही उपायों की भी जरूरत है। यह रेगिस्तानी टिड्डे न सिर्फ भारत के खाद्य उत्पादन पर गंभीर असर डालेंगे बल्कि कोविड-19 के कारण लागू लॉकडाउन की पहले से ही मार सहन कर रहे किसानों पर दोहरी मुसीबत आन पड़ेगी।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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