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लखनऊ : एक महीने से ज़्यादा से डटा है घंटाघर, उजरियांव, धरने की पहली शाम से आज तक का सफ़र

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के विरोध में घंटाघर और उजरियांव में चल रहे प्रदर्शन को एक महीने से ज़्यादा हो गया है। आइए देखते हैं इस एक महीने से भी ज़्यादा समय में आंदोलनकारियों ने क्या-क्या मुश्किलें झेलीं और शासन-प्रशासन ने क्या-क्या दमन-उत्पीड़न किया।
CAA Protest

दिल्ली के शाहीन बाग़ के धरने को जहां दो महीने से ज़्यादा हो गए हैं, वहीं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के विरोध में घंटाघर (हुसैनाबाद ) और उजरियांव (गोमतीनगर) में चल रहे प्रदर्शन को एक महीने से ज़्यादा हो गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तमाम धमकी-चेतावनियां और पुलिस-प्रशासन का तमाम दबाव भी प्रदर्शन को ख़त्म नहीं करा सका है। दबाव बनाने के लिए कई प्रदर्शनकारियों को जेल भी भेजा गया और सैकड़ों के विरुद्ध मुक़दमे भी दर्ज हुए हैं। लेकिन प्रदर्शनकारी महिलाएँ (सीएए) वापस होने की घोषणा से पहले पीछे हटने पर राज़ी नहीं है।

आइए देखते हैं इस एक महीने से भी ज़्यादा समय में आंदोलनकारियों ने क्या-क्या मुश्किलें झेलीं और शासन-प्रशासन ने क्या-क्या दमन-उत्पीड़न किया।

धरने की पहली शाम

हुसैनाबाद क्षेत्र में पुराने लखनऊ घंटाघर पर (सीएए) के विरुद्ध शुरू हुए प्रदर्शन को 17 फ़रवरी एक महीना पूरा हो गया। यहां 17 जनवरी को करीब 15 -20 महिलाओं ने दोपहर करीब 3 बजे प्रदर्शन शुरू किया था। उस समय स्थानीय पुलिस ने इसको ख़त्म करने की हर संभव कोशिश की थी। पुलिस पर आरोप हैं सख्त सर्दी की रात में जब तापमान 7-8 डिग्री था, उसने  प्रदर्शनकारियों के कम्बल और खाने की सामग्री ज़ब्त कर ली और आग जलाने की लकड़ियों पर पानी डाल दिया।धरने के पहली रात को घंटाघर की बिजली भी काट दी गई, लेकिन मोमबत्ती और मोबाइल टॉर्च की रोशनी में रात भर धरना चलता रहा। इसके अलावा प्रशासन ने आस पास के सभी शौचालयों में भी ताला डलवा दिया।

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प्रदर्शन का दूसरा दिन

दूसरे दिन 18 जनवरी की सुबह घंटाघर और पूरे हुसैनाबाद क्षेत्र को पुलिस ने चारों तरफ़ से घेर लिया। इसके बावजूद सीएए के विरोध में प्रदर्शन करने आने वाली महिलाओं का सिलसिला नहीं रुका। पुलिस ने धरना स्थल पर पुरुषों के आने पर पाबन्दी लगा दी। गाड़ी स्वामियों ने आरोप लगाया कि पार्किंग स्थल पर खड़ी गाड़ियों और सभी दस्तावेज़ होने के बावजूद पुलिस ने घंटाघर पर उनकी गाड़ियों के चालान किये। इसके अलावा वहाँ पर मौजूद लोगों को कई बार खदेड़ा भी गया। कई लोगो को हिरासत में भी लिया गया, लेकिन पुलिस ने इस हिरासत के बारे में मीडिया से बात करने से इंकार कर दिया था। इसी बीच राजधानी में प्रशासन द्वारा धारा 144 भी लगा दी गई।

गणतंत्र दिवस से पहले कार्रवाई

पुलिस ने 25 जनवरी सुबह 11 बजे घंटाघर से समाजवादी पार्टी की छात्र नेता पूजा शुक्ला समेत 6 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया था। पुलिस ने पूजा शुक्ला को जेल भी भेज दिया। पुलिस पर प्रदर्शनकारी महिलाओ ने अभद्र भाषा में बातचीत करने का आरोप लगाया और कहा कि उनको अधिकारियों द्वारा मारने-पीटने और जेल भेजने की धमकियां भी दी गई। घंटाघर पर नागरिकता संशोधन क़ानून के विरुद्ध धरना दे रही उज़्मा परवीन ने आरोप लगा कि पुलिस ने उनसे अभद्र भाषा में बात की और उनके आठ महीने के बच्चे को छीन लेने की धमकी दी।

पूर्व राज्यपाल और धर्मगुरु पर मुक़दमा

लखनऊ में सीएए-एनआरसी और एनपीआर में प्रदर्शन में शामिल होने वाले पूर्व राज्यपाल डॉ. अज़ीज़ क़ुरैशी पर भी मुक़दमा लिखा गया है। हालांकि अपने पर मुक़दमा लिखे जाने के बाद डॉ अज़ीज़ कुरैशी ने न्यूज़क्लिक से कहा था कि पुलिस अगर चाहे तो उनको गिरफ्तार कर सकती है, लेकिन वह ज़मानत कराने या मुक़दमा ख़त्म करने के लिए अदालत नहीं जाएंगे।ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के वरिष्ठ उपाध्यक्ष मौलाना डॉ. कल्बे सादिक़ (80) के 24 जनवरी को घंटा घर जाकर वहां प्रदर्शन कर रही महिलाओं के समर्थन के ऐलान के बाद उनके पुत्र डॉ. कल्बे सिब्तैन "नूरी "और 10 अन्य लोगों के विरुद्ध 25 जनवरी को मुक़दमा दर्ज कर दिया गया। डॉ. कल्बे सादिक़ ने महिलाओं से कहा था कि वह अपना आंदोलन गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से डरे बिना जारी रखें। मौलाना ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा बोली जा रही भाषा की भी निंदा की थी। डॉ. कल्बे सिब्तैन "नूरी " ने भी 23 जनवरी को घंटाघर जा कर महिलाओ के समर्थन का एलान किया था

गणतंत्र दिवस समारोह

गणतंत्र दिवस के अवसर पर लखनऊ के ऐतिहासिक घंटाघर पर अभूतपूर्व जनसैलाब सुबह से ही मौजूद था। घंटाघर के मैदान में सुबह प्रदर्शनकारियों द्वारा झंडा रोहण और राष्ट्रगान गाया गया। चारों तरफ़ तिरंगे ही तिरंगे थे। प्रदर्शनकारी जिसमें पुरुष भी शामिल थे, हाथों में तिरंगे उठाए हुए “आज़ादी” के नारे लगा रहे थे। इस के अलावा राष्ट्रगान के बाद प्रदर्शनकारियों द्वारा  “नागरिकता संशोधन क़ानून वापस लो” के नारे भी लगाए गये। गणतंत्र दिवस पर घंटाघर को स्वतंत्र संग्राम सेनानियों महात्मा गाँधी, चंद्रशेखर आज़ाद, और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की तस्वीरों से सजाया गया था। धरना स्थल पर कवियों , समाज सेवी और हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई धर्मगुरुओं ने भी आकर प्रदर्शनकारी महिलाओं से मुलाक़ात कर उनका समर्थन दिया। इस मौके पर प्रदर्शनकारियों द्वारा ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों को फूल भी दिए गए।

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“घंटाघर चलो अभियान”- गिरफ़्तारी-मुक़दमे

एक बार फिर 9 फ़रवरी को घंटाघर पर “घंटाघर चलो अभियान” के लिए बड़ी संख्या में भीड़ जमा हुई , जिसमे लखनऊ के प्रदेश के दूसरे हिस्सों और राजधानी दिल्ली से भी प्रदर्शनकारी आये थे। “घंटाघर चलो अभियान” में शामिल होने आये लोगों पर पुलिस ने 9 फ़रवरी की शाम से कार्रवाई शुरू कर दी। बहुजन मुस्लिम महासभा के उपाध्यक्ष मोहम्मद ताहिर को पुलिस ने सबसे पहले प्रदर्शनस्थल से गिरफ़्तार कर लिया। उसके बाद 21 प्रदर्शनकारियों पर मुक़दमा दर्ज किया गया। इनमें ज़्यादातर महिलाएँ हैं। जिन पर मुक़दमा दर्ज हुआ उन में नसरीन जावेद, उज़्मा परवीन, शबीह फ़ात्मा, अब्दुल्लाह, स्वैव (रिहाई मंच ), नाहिद अक़ील, रुखसाना ज़िया, हाजरा, इरम, नताशा, सय्यद ज़रीन, सना, अकरम नक़वी, अल हुदा, दानिश हलीम, पी सी कुरील (राष्ट्रीय भागीदारी आंदोलन) , फहीम सिद्दीक़ी, मुर्तुज़ा अली, मोहम्मद एहतेशाम , मोहम्मद अकरम और सदफ़ जाफ़र हैं। उल्लेखनीय हैं कि इनमें से कई पर पहले से भी प्रदर्शन करने के लिए मुक़दमे दर्ज हुए थे।

सदफ़ जाफ़र को 19 दिसंबर को प्रदर्शन के बाद गिरफ्तार किया गया था और फ़िलहाल वह ज़मानत पर रिहा बहार हैं। इस बीच प्रसिद्ध उर्दू शायर मुनव्वर राना की पुत्रियों सुमैया राना और फौज़िया राना पर भी ठाकुरगंज पुलिस ने मुक़दमा दर्ज कर लिया।

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प्रदर्शन में शामिल न होने की हिदायत

लखनऊ ज़िला प्रशासन द्वारा नागरिक समाज से जुड़े 10 लोगों को नोटिस जारी कर उन्हें घंटा घर न जाने की हिदायत दी। यह नोटिस लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व उपकुलपति और साझी दुनिया की सचिव प्रो. रूप रेखा वर्मा, रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शोएब, मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित संदीप पाण्डे, आईपीएस दारापुरी (रिटाइर्ड), मौलाना सैफ़ अब्बास और मौलाना डॉ  कल्बे सिब्तैन “नूरी” आदि को दिए गए। याद रहे की हाल में ही संदीप पांडे को (सीएए) के विरुद्ध पर्चे बाटने और पैदल यात्रा से रोकने के लिए लखनऊ पुलिस ने हिरासत में ले लिया था।

बाल कल्याण समिति का नोटिस

नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के विरुद्ध घंटाघर और उजरियांव पर  प्रदर्शन कर रहे लोगों को उत्तर प्रदेश सरकार की बाल कल्याण समिति ने 29 जनवरी को एक नोटिस देकर चेतावनी दी है कि वे अपने बच्चों को तत्काल प्रभाव से धरनास्थल से हटायें अन्यथा उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी। प्रदर्शनकारी महिलाओं ने इसको पूरी तरह नज़रअंदाज़ किया और कहा कि बच्चों के बहाने धरने को ख़त्म करने की कोशिश की जा रही है। घंटाघर पर चले प्रदर्शन में शामिल बच्चों और उनके माता-पिता का कहना है कि बच्चे लगातार स्कूल भी जा रहे हैं और पढ़ाई करने बाद धरने में भी शामिल होने आते हैं। बता दें घंटाघर में बच्चों के लिए लाइब्रेरी भी बनाई गई है, जिसमें बच्चे आ कर किताबें पढ़ते हैं, गाने गाते हैं और पेंटिंग भी करते हैं।

उजरियांव का धरना

प्रशासन की सख्ती और दबाव के बावजूद उजरियांव (गोमतीनगर ) में भी सीएए- एनआरसी और एनपीआर के विरुद्ध में धरना जारी है। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि उज़रियांव में 19 जनवरी को जब शाम 6 बजे धरना शुरू हुआ उस वक़्त धरना ख़त्म कराने के लिए पुलिस ने महिलाओं के साथ अभद्रता की थी। उस समय वहाँ केवल 50 महिलाएं थी।

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पुलिस पर आरोप

पुलिस पर यह आरोप है की उजरियांव में भी पहले दिन घंटाघर की ही तरह धरना स्थल पर पुलिस आ गई और धरने पर बैठी हुई महिलाओं को धमकाते हुए कहा कि आप लोग यहां धरना नहीं कर सकती हैं। यह कहते हुए पुलिस धरने स्थल पर लगे टेंट, कम्बल, दरी, कुर्सियाँ ,पोस्टर आदि को थाने उठा ले गई। अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की वरिष्ठ सदस्य मधु गर्ग के अनुसार उज़रियांव में धरना दे रही महिलाओं के विरुद्ध भी पुलिस द्वारा सख़्त  कार्रवाई की गई। धरना स्थल पर रखी हुई कुर्सियों को फेंक दिया गया और खानपान की सामग्री को पुलिस ने सड़क पर घूम रहे आवारा पशुओं को खिला दिया।

जेल भरो- असहयोग आंदोलन की धमकी

हालांकि महिलाओ का अब कहना है की अगर केंद्र सरकार सीएए-एनआरसी और एनपीआर वापस नहीं लेती है तो इनका पूर्णतया बहिष्कार किया जायेगा। धरने का एक महीना होने पर महिलाओं का कहना है कि संविधान बचाने के लिए जेल भरो से लेकर, असहयोग आंदोलन तक के रास्ते अपनाए जा सकते हैं। घंटाघर, उजरियांव में बैठी हुई महिलाओं समेत दूर-दराज से आयी महिलाओं ने इस कानून के खिलाफ जमकर हल्ला बोला और संकल्प लिया है कि वो भी अपने गांव, कस्बा, शहर में घंटाघर, शाहीन बाग़ बनाएंगी।

उजरियांव में प्रदर्शन में शामिल महिलाओं के अनुसार जेएनयू पूर्व छात्र अध्यक्ष एन साई बालाजी, वरिष्ठ पत्रकार किरण सिंह, बाँसुरी वादक अशुकान्त सिन्हा, रणधीर सिंह सुमन, सृजन आदियोग, सुप्रिया ग्रुप, अजय सिंह, हरजीत सिंह, ओपी सिन्हा, मानवाधिकार कार्यकर्ता रविश आलम, मुजतबा छात्र अलीगढ़ विश्वविद्यालय और कहानीकार फरज़ाना मेहंदी आदि भी धरना स्थल पर आये और आंदोलन को समर्थन देने का वादा किया।

आज एक महीने से अधिक हो गया है लेकिन प्रशासन की सख्ती कम नहीं हुई है। लखनऊ में दिन का तापमान अब 26-27 डिग्री है , लेकिन पुलिस धरना स्थलों पर तंबू नहीं लगाने दे रही है। अब महिलाएँ छाता लगा कर धरने पर बैठती हैं। लेकिन प्रदर्शनकारी महिलाओ का कहना है प्रशासन जितना भी दबाव बना ले , लेकिन धरना उस समय ही ख़त्म होगा जब सरकार संशोधित नागरिता क़ानून वापस लेने की घोषणा कर देगी।

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