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ग्राउंड रिपोर्ट: ‘पापा टॉफी लेकर आएंगे......’ लखनऊ के सीवर लाइन में जान गँवाने वालों के परिवार की कहानी

बीते 29 मार्च को लखनऊ के सहादतगंज के गुलाब नगर बस्ती से खबर आती है कि सीवर लाईन की सफाई के लिए मैनहोल में उतरे दो सफाई कर्मियों की ज़हरीली गैस के चपेट में आने से मौत हो गई। उनके परिवार से न्यूजक्लिक ने की बातचीत की है…
sewer worker
हादसे वाले दिन की फोटो सीवर टैंक से सफाई कर्मी को बाहर निकालते लोग, फोटो सौजन्य: दैनिक जागरण

लखनऊ, राजाजीपुरम के ई ब्लॉक स्थित सब्जी मंडी में बसी सीवर पंप, झोपडपट्टी बस्ती की यही पहचान है कि वह बड़े गंदे नाले के इर्द गिर्द बसी है जिसे हैदर कनाल नाला कहा जाता है। इस बस्ती के अधिकांश पुरुष और महिलाएँ सफाई कर्मी हैं। दूसरों की गंदगी को साफ कर वातावरण को स्वच्छ बनाने वाले ये सफाई कर्मी खुद गंदगी के अंबार में रहकर दिन काट रहे हैं। न पक्का शौचालय न बिजली न पानी की व्यवस्था, बस किसी तरह जीवन कट रहा है। सरकारी पानी की टंकी है भी तो वह भी बस्ती के बाहर मुख्य सड़क के एक किनारे पर लगा दी गई है। इनके घरों के सामने से बहने वाले बदबूदार गंदे नाले का पानी बरसात में जब इनके छोटे-छोटे घरों में घुस कर तबाही मचाता है तो इनके समक्ष जीवन जीने का संकट पैदा हो जाता है। इसी बस्ती के रहने वाले थे करन और पूरन।

हैदर कनाल नाले के इर्द गिर्द बसी सफाई कर्मियों की बस्ती

पेशे से सफाई कर्मी करन और पूरन रिश्ते में मामा भांजा थे। करन महज बीस और पूरन बमुश्किल 30 साल के थे। दोनों पहली बार सीवर टैंक में उतरे थे और उसी दिन अपने जीवन से हाथ धो बैठे। 

करन और पूरन का शोकाकुल परिवार

बीते 29 मार्च को लखनऊ के सहादतगंज के गुलाब नगर बस्ती से खबर आती है कि सीवर लाईन की सफाई के लिए मैनहोल में उतरे दो सफाई कर्मियों की ज़हरीली गैस के चपेट में आने से मौत हो गई  और एक सफाई कर्मी बुरी तरह घायल हो गया। ये तीनों शूएज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के संविदा कर्मचारी थे। जानकारी के मुताबिक क्षेत्र में सीवर लाइन चोक होने की शिकायत जलकल विभाग को मिली थी और उसे साफ करने का जिम्मा शूएज कंपनी को मिला था। कंपनी पिछले तीन सालों से सीवर सफाई का काम कर रही है। जैसा कि हमेशा होता आया है, उस दिन भी वही हुआ  बिना सुरक्षा उपकरण के इन सफाई कर्मियों को मैनहोल में उतार दिया गया जिसका खामियजा उन्हें अपनी जान देकर चुकाना पड़ा। 

अभी तक इन मृतकों के परिवार को प्रशासन और कंपनी की ओर से कितना मुआवजा मिल पाया, दोषियों के खिलाफ़ क्या कार्रवाई हुई, परिवार क्या चाहता है, और सबसे अहम बात, अब जबकि इन परिवारों के कमाने वाले नहीं रहे तो इनके जीवनयापन का संकट कैसे हल होगा, आदि इन सवालों के साथ यह रिपोर्टर इनके परिवारों से मिलने इनकी बस्ती पहुँची। मृतकों के परिवार के अलावा जब अन्य परिवारों से इस भयवाह घटना के बारे में बातचीत हुई तो सब आक्रोशित तो थे लेकिन इस सच को भी खुलकर स्वीकार  किया कि उनका जीवन जिस जोखिम पर टिका है, भूख और मुफ़लिसी के आगे उस जोखिम के कोई मायने नहीं रह जाते यानी रोजगार के अभाव में अगर कभी सीवर टैक में उतरने का काम   मिला तो उसमें उतरना उनकी मजबूरी है।

इत्तिफ़ाक़ से बस्ती के बाहर ही हमें पूरन की पत्नी संजना मिल गई, जो किसी जरूरी काम से बैंक जा रही थी। जब हमने बताया कि हम मीडिया से हैं और करन, पूरन के घर जाना चाहते हैं, उनके परिवार से मिलने आये हैं तो संजना भावुक हो उठी। उसने बताया कि पूरन उनके ही पति थे और करन रिश्ते में उनके भांजे लगते हैं। संजना ने बताया कि घर में  तीन छोटे छोटे बच्चों को छोड़ कर वह एक काम से बैंक जा रही थी लेकिन अब हमारे आने के कारण उसने कुछ देर बाद जाने का निर्णय लिया। आंखों में आंसू भरकर वह बोली पहले ये सब काम पति करते थे लेकिन अब उसे सब सीखना होगा बच्चों के भी भविष्य का सवाल है। 

‌पहले हम पहुँचे करन के घर। पिता घर में मौजूद नहीं थे। वह जल संस्थान में संविदा कर्मी हैं। करन की माँ संगीता अपने घर के बाहर बैठी थीं कुछ रिश्तेदार और बस्ती के लोग उनके आस पास मौजूद थे जो गुमशुम बैठी संगीता को ढाँढस बंधाने की कोशिश कर रहे थे। ज़ाहिर है जिसने जवान बेटा खोया हो उसके लिए ढाँढस का कोई भी शब्द अथाह वेदना के आगे बौना है। मन में यह दुविधा ज़रुर थी कि पता नहीं वह बात करेंगी भी या नहीं, वह जिस मानसिक हालात से गुजर रही हैं ऐसे में वह कितना बोलने, बताने की स्थिति में होंगी, लेकिन मेरी इस दुविधा को विराम देते है हुए संगीता बात करने को राजी हो गई। चार बहन भाइयों में दूसरे नंबर का था करन। करन से बड़ी एक बहन है और दो छोटे भाई। करन के पिताजी भी सफाई कर्मी हैं। करन की माँ संगीता ने बताया कि सातवीं तक की पढ़ाई करने के बाद करन घर की कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते जल्दी ही काम धंधे में लग गया। वह और पढ़ता लेकिन घर की जिम्मेवारी के आगे पढ़ाई बंद करनी पड़ी। संगीता के मुताबिक उनके बेटे करन की सफाई कर्मी के तौर पर स्वेज कंपनी में पहली नौकरी थी और उस दिन वह पहली बार सीवर टैंक में उतरा था।

संगीता भरे गले से कहती हैं ऐसी घटना भी हो सकती है अगर उसे जरा भी अंदेशा होता तो अपने बच्चे को जाने ही नहीं देती। "अब परिवार की सरकार और कंपनी से क्या माँग है" इस सवाल पर पहले तो वह चुप हो जाती हैं, फिर खुद को संभालते हुए वह कहती हैं सरकार और कंपनी की तरफ से दस दस लाख का मुआवजा मिला है और घर के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की बात भी सरकार ने कही है, हालांकि नौकरी कब तक मिलेगी यह अभी कुछ निश्चित नहीं, लेकिन उनको तब तक सुकून नहीं मिलेगा।

जब तक दोषी को कड़ी सजा नहीं मिल जाये। कंपनी के सुपरवाईजर पर मुकदमा दर्ज करने की बात पर वह कहती हैं जब करन और पूरन मैनहोल में जहरीली गैस की चपेट में आने पर तड़प रहे थे तो ड्यूटी पर तैनात सुपरवाईजर वहाँ से भाग गया।

करन के मामा राजेन्द्र बताते हैं कि जब करन और पूरन को निकालने के लिए कोई आगे नहीं आया और सुपरवाईजर भी भाग गया तो वहाँ मौजूद तीसरा सफाई कर्मी अपनी जान की बाज़ी लगाकर मैनहोल में उतर गया, उसकी जिंदगी भी बड़ी मुश्किल से बचाई गई। राजेन्द्र कहते हैं भागकर सुपरवाईजर सीधे हॉस्पिटल में तबीयत खराब का बहाना बना भर्ती हो गया और यहाँ हमारे लोग तड़पते हुए अपनी जान से हाथ धो बैठे। अपने गुस्से को ज़ाहिर करते हुए राजेन्द्र कहते हैं सफाई कर्मचारियों की हालत बिगड़ने पर तीनों को निकालने या किसी को मदद के लिए बुलाने का प्रयास ही नहीं किया गया। वे अब बारी थी पूरन के घर जाने की। फ़िलहाल मृतक पूरन की पत्नी संजना की भी अभी मानसिक हालत ठीक नहीं। संजना के तीन बच्चे हैं बड़ी बेटी पूर्वा 9 साल की है, बेटा विवेक 7 और छोटी बेटी आलिया केवल 3 साल की है।

संजना इनके भविष्य को लेकर बेहद चिंतित है। संजना के बच्चे स्कूल नहीं जाते, इस पर वह कहती है हमारे आस पास कोई सरकारी स्कूल नहीं हमारे क्षेत्र से बहुत दूर है, इतनी दूर छोटे छोटे बच्चों को कैसे भेज दें इसलिए बस्ती के अधिकांश बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। लेकिन अब संजना पढ़ाने को तैयार है। वह कहती है पढ़ लिख जाएंगे तो कोई दूसरा काम धंधा कर लेंगे कम से कम इतना जोखिमभरा काम तो नहीं करना पड़ेगा। वह कहती हैं अगर नगर निगम से पति की छँटनी नहीं होती तो आज वह जिंदा होता। पूरन करीब पाँच सालों से नगर निगम में ठेके पर सफाई कर्मी थे। संजना बताती है पहले उसके पति केवल झाड़ू लगाने का काम करते थे लेकिन काम से हटाए जाने के बाद घर की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चली थी कि भूखों मरने की नौबत आ गई थी। आंसू पोछते हुए वह कहती है पेट की आग बहुत खराब होती है मैडम जी हम दोनों एक टाईम खा कर गुजारा कर लेते लेकिन छोटे छोटे बच्चों को कैसे भूखा रखते इसलिए उनके पति ने उस काम के लिए हाँ बोल दी जिसमें जिंदगी का खतरा था। पूरन पहली बार सीवर टैंक में उतरने का काम कर रहे थे। अपनी छोटी बेटी की तरफ देखकर कहती है इसे तो पता भी नहीं कि इसके पापा अब नहीं रहे, बेटी सोचती है पापा काम पर गए हैं और जल्दी ही वापस आ जाएंगे। आलिया हमें बड़ी अचरज भरी नजरों से देख रही थी उसे समझ नहीं आ रहा था कि हमसे बात करते करते आखिर उसकी माँ क्यों रोने लगती है, हाँ वो मासूम इतना ज़रुर कहती है कि उसके पापा उसके लिए टॉफी लेकर आयेंगे, आलिया के इन शब्दों ने दिल पर गहरा घाव कर दिया।

संजना कहती है सरकार ने सरकारी नौकरी देने की बात कही है, अगर मिल जाती है तो अपने बच्चों का भविष्य सुधारने के लिए वह नौकरी करेगी। वह कहती है कि वह बिलकुल नहीं चाहती कि उनका बेटा भी ऐसा काम करे। इसी बस्ती के रहने वाले अन्य सफाई कर्मी  करन कुमार, रिंकी और गुड़िया से मुलाकात हुई ये सभी नगर निगम में ठेके पर सफाई कर्मचारी हैं। गुड़िया के पति भी सफाई कर्मी हैं।

वह कहती है हम रोज कमाने वाले रोज खाने वाले लोग हैं, नौकरी जाने का खतरा हमेशा बना रहता है और अगर नौकरी चली गई तो उनके जैसा अनपढ़ गरीब इंसान आखिर क्या करेगा। तन ढकने और पेट भरने के लिए गंदे नाले से लेकर गैस चेंबर में भी उतरना पड़े तो  उतरेंगे वहीं बेहद कम उम्र के करन कुमार कहते हैं यदि कभी ठेकेदार द्वारा हमें मैनहोल में उतरने का काम सौंप दिया गया तो हम न कह ही नहीं सकते या तो हमें नौकरी से हाथ पड़ेगा या सीवर टैंक में उतरना पड़ेगा इसके अलावा उनके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं। हाँ लेकिन करन कहता है अपने लिए सुरक्षा उपकरण की माँग तो जरूर करेंगे।

इस बस्ती से लगभग दौ सौ मीटर की दूरी पर उन तीसरे सफाई कर्मी कैलाश का घर है जिन्हें गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया था। कैलाश के भी घर जाना हुआ। घर जाने पर पता चला कि कंपनी के लोग आये थे जो कैलाश को अपने साथ ले गए। कैलाश के छोटे भाई राजन से मुलाकात हुई। राजन ने बताया कि उनके भाई अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुए अभी भी ज्यादा चल फिर नहीं पाते। राजन के मुताबिक एक लाख का मुआवजा देने की बात कंपनी ने कही थी लेकिन अभी पचास हजार ही मिला है। क्या अब उनके भाई यह काम फिर करना चाहेंगे, तो इस पर राजन कहते हैं बेरोजगारी की वजह से भाई करना भी चाहेंगे तो माँ करने नहीं देंगी। वह कहते हैं इस घटना के बाद से माँ बुरी तरह डर गई है और अब उन्होंने इस काम को न करने की बात कही है।

पीड़ित परिवारों से मिलकर वापसी के क्रम में रोहित और अनिल, दो सफाई कर्मियों से मुलाकात हुई जो इलाके में एक घर के सामने  सीवर टैंक के आस पास कुछ काम कर रहे थे। ये सफाई कर्मी उसी कंपनी के लिए काम करते थे जिसके लिए करन, पूरन और कैलाश करते थे। काम की मजबूरी उन्हें हमारे सामने खुलकर बोलने नहीं दे रही थी लेकिन कहते हैं न जब पीड़ा अनंत हो जाये तो जुबाँ को रोक पाना मुश्किल हो जाता है। अपने साथियों की दर्दनाक मौत को ये भूल नहीं पा रहे।

अनिल कहते हैं आज भी हमें बिना सुरक्षा उपकरण के सीवर टैंक में उतार दिया जाता है जो नहीं होना चाहिए। वे कहते हैं हमें भी हमारी जिंदगी की सुरक्षा की गारंटी चाहिए।

(स्टोरी लिखे जाने तक, मिली जानकारी के मुताबिक पुलिस द्वारा  सुपरवाईजर अमित कुमार सिंह को गिरफ्तार कर केस दर्ज कर लिया गया है, इस बाबत प्रभारी निरीक्षक, सआदात गंज बृजेश कुमार यादव के मुताबिक सुपरवाईजर के अलावा शूएज कंपनी के अन्य सदस्यों के खिलाफ़ भी मुकदमा दर्ज कर लिया गया है।) 

(लेखिका स्वतन्त्र पत्रकार हैं)

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