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एमसीडी उपचुनाव: वेतन में हो रही देरी के मद्देनज़र नगरपालिका कर्मचारियों की सारी उम्मीद मतदाताओं पर टिकी

रविवार, 28 फरवरी को होने वाले उप-चुनावों को अगले साल होने वाले नगर निगम के चुनावों के लिए “सेमी-फाइनल” के तौर पर देखा जा रहा है। 
एमसीडी उपचुनाव
फाइल फोटो

आगामी एमसीडी उपचुनावों के मद्देनजर अपने-अपने राजनीतिक दलों के लिए वोट जुटाने की कवायद में राजनीतिक नेताओं के नेतृत्व में पिछले कुछ दिनों से निकाले जा रहे रोड-शो ने राष्ट्रीय राजधानी की गलियों को सजा रखा है। 28 फरवरी को होने वाले मतदान के दिन के लिए भारतीय जनता पार्टी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच में, दो वार्डों की पांच रिक्त सीटों-उत्तरी एमसीडी के रोहिणी और शालीमार बाग़ और पूर्वी एमसीडी के त्रिलोकपुरी, कल्याणपुरी और चौहान बांगर के लिए मतदान होने जा रहा है।

आगामी उप-चुनावों को अगले वर्ष होने वाले नगर निगम चुनावों के लिए “सेमी-फाइनल” के तौर पर देखा जा रहा है। दिल्ली में कुल 272 वार्डों सहित तीन नगर निगम निकाय उत्तरी, दक्षिणी और पूर्वी दिल्ली हैं, और ये सभी 2012 से भाजपा के अधीन हैं।

खबरों के मुताबिक़ भाजपा जहाँ अपने सांगठनिक कौशल पर ध्यान केन्द्रित कर रही है, वहीं इसकी मुख्य प्रतिद्वंदी आम आदमी पार्टी, जिसके नियंत्रण में दिल्ली सरकार है, ने अपनी जीत दर्ज करने की उम्मीद को सत्ता-विरोधी लहर पर टिका राखी है।

बहरहाल चाहे जो भी हो, लेकिन कुछ ऐसे मुद्दे भी हैं जिनकी वजह से पिछले कुछ वर्षों से दिल्ली में एमसीडी का काम-काज बुरी तरह से प्रभावित हो रखा है, जिनसे मतदान के रुझान को प्रभावित करने की उम्मीद की जा सकती है। उनमें से सर्वप्रमुख नगर निगम के कर्मचारियों को वेतन के वितरण में लंबे समय से चली आ रही देरी है। 

पिछले महीने ही तकरीबन 35 कर्मचारी संघों ने जिसमें नगर निकायों के पेंशनरों सहित सभी वर्गों से सम्बद्ध अध्यापकों, इंजीनियरों, नर्सों और सफाई कर्मचारियों ने लंबे समय से झेल रहे अपनी लंबित वेतन से जुड़ी समस्याओं के कारण “स्थाई समाधान” की मांग के साथ हड़ताल पर चले गए थे। 

उनका आरोप था कि मासिक भुगतान में जो दो से चार महीनों की सामान्य देरी चली आ रही थी, उसमें पिछले वर्ष कोविड-19 महामारी के चलते कुछ मामलों में सात महीनों तक की देरी हो रही है – जिसकी वजह से कर्मचारियों को मजबूरी वश अपने कर्तव्यों के निर्वहन से अनुपस्थित होना पड़ रहा है।

उनकी शिकायतों के इतिहास के बारे में पता लगाने के लिए 2012 से वापस जाकर तलाशा जा सकता है, जब दिल्ली में तत्कालीन एमसीडी को राष्ट्रीय राजधानी में तब की मौजूदा कांग्रेस सरकार द्वारा तीन हिस्सों में विभाजित कर दिया गया था। इसके साथ-साथ एक केंद्र शासित प्रदेश होने के नाते, दिल्ली का प्रशासनिक ढांचा अपने आप में अनूठा है, जहाँ नगर निकायों को केंद्र के नियंत्रण में रखा गया है।

इसने एक चुनौती खड़ी कर दी है, विशेष तौर पर जब से दिल्ली में आप सत्ता पर काबिज हुई है। इसके परिणामस्वरूप मोटे तौर पर यह मुद्दा जिसे दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस वर्ष जनवरी में “राजनीतिक कीचड़ोतस्व” नाम दिया था, तक ही सीमित रह गया है।

हड़ताल पर जाने के बावजूद इसका कोई “स्थायी समाधान” हासिल नहीं हो पाया है, जिसे कुछ महीनों का भुगतान प्राप्त कर लेने के बाद वापस ले लिया गया था। 

कर्मचारियों ने अब अपनी निगाहें इस उम्मीद से आम जनता के मत और चुनाव पर टिका राखी है  कि शायद इसके जरिये कोई समाधान निकले। वहीं  उनमें से एक हिस्से को खेद है कि उनका यह संघर्ष जारी रहने वाला है, भले ही कोई भी पार्टी जीते।

उप-चुनावों के नतीजों से उम्मीद की जाती है कि 2022 नगर निगम चुनावों के नतीजों पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ने जा रहा है।

एमसीडी अध्यापक संघ के महासचिव राम निवास सोलंकी का इस बारे में कहना था “लोगों को उस पार्टी को वोट करना चाहिए जो एमसीडी की प्रशासनिक कामकाज को सुचारू रूप से चलाने का वादा करती हो। आखिरकार अगर उसमें सुधार होता है तो यह आम जनता ही है जिसे इस सबका लाभ मिलने वाला है।” दिल्ली में जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र, प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, सड़कों की सफाई, कचरा प्रबंधन सहित अन्य कार्य निगमों के दायरे में आते हैं।

सोलंकी ने आगे बताया कि प्राथमिक विद्यालयों के अध्यापकों, विशेषकर उत्तरी एमसीडी के अध्यापकों को अभी तक अक्टूबर तक का ही वेतन हासिल हो सका है। सोलंकी अफ़सोस जताते हुए कहते हैं “वे दावा करते हैं कि फण्ड की कमी के चलते ऐसा हो रहा है। आप और भाजपा दोनों ही एक दूसरे पर आरोप मढ़ते हैं।” उन्होंने बताया कि कर्मचारियों की मांग अब वास्तव में इन तीनों एमसीडी क्षेत्रों के एकीकरण पर केन्द्रित होती जा रही है।

कॉन्ट्रैक्ट इंजीनियर्स एसोसिएशन, एमसीडी के हितेश गांधी ने कहा “आप और भाजपा के बीच की इस लड़ाई की वजह से वेतन में हो रही इस लगातार देरी से कर्मचारी बेहद हैरान-परेशान हैं। हम इसके जल्द से जल्द खत्म होने की उम्मीद करते हैं क्योंकि हमें लगता है हम इन दोनों पार्टियों के बीच में फंस कर रह गए हैं। अब यह जनता पर निर्भर है कि वह सोच-समझकर फैसला ले कि किसे चुना जाए।”

हिन्दू राव नर्सेज यूनियन की महामंत्री इंदुमति ने न्यूज़क्लिक से अपनी बातचीत में बताया कि इस बात से शायद ही कोई फर्क पड़ता है कि कौन सी पार्टी निगम पर राज करती है, क्योंकि उनका मानना है कि कर्मचारियों को हर हाल में अपने संघर्ष को जारी रखना होगा। उनका कहना था “वेतन में होने वाली देरी ही एकमात्र मुद्दा नहीं है। एमसीडी में नौकरियों में कार्यबल के अभाव के कारण मौजूदा कर्मचारियों को काम का जबर्दस्त दबाव का भी सामना करना पड़ रहा है।” उत्तरी एमसीडी के दायरे में आने वाले हिन्दू राव अस्पताल के उदाहरण का हवाला देते हुए इन्दुमति ने दावा किया कि अस्पताल में नर्सिंग कर्मचारियों के कुल 144 स्वीकृत पदों में से सिर्फ 14 नर्सिंग कर्मचारी ही कार्यरत हैं। 

उप-चुनावों को लेकर उनका कहना था “ये कर्मचारी ही हैं जो असल में जनता को विभिन्न सेवाएं मुहैया कराते हैं। जनता को किसे वोट करना है इसका निर्णय लेने से पहले  उन्हें हमारे मुद्दों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए।”

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

MCD Bypolls: Salary Delays in Mind, Civic Employees Pin Hope on Voters

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