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MCD चुनाव: निगम अस्पताल पूर्णिमा सेठी का बुरा हाल, ज़रूरी सेवाओं को तरसते लोग

अस्पताल का बेसमेंट पानी में डूबा हुआ है तो इसके पहले गेट के बगल में ही कूड़ा घर है, जिसकी दुर्गंध आपको यहां से भागने को मजबूर कर देगी। इस मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल में फ़िलहाल सिर्फ़ ओपीडी की सुविधा उपलब्ध है।
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दिल्ली के नगर निगम चुनाव से स्वास्थ्य का जरूरी मुद्दा लगभग गायब है। बीते विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी जहां अपने मोहल्ला क्लीनिक को अपनी कामयाबी की मिसाल के तौर पेश कर रही थी, वो इस बार के एमसीडी चुनावों में बीजेपी से निगम अस्पतालों के हाल को लेकर कुछ सवाल तो जरूर पूछ रही है, लेकिन ये उसका भी मुख्य मुद्दा नहीं है। हालांकि दिल्ली में एमसीडी अस्पतालों का हाल किसी से छिपा नहीं है, आए दिन इसके कर्मचारियों की हड़ताल और जर्जर बिल्डिंग के किसी हिस्से के गिरने की खबरें सुर्खियों में रहती हैं।

निगम चुनाव 2022 के मद्देनजर न्यूज़क्लिक की टीम ने दौरा किया दक्षिणी दिल्ली के इकलौते निगम अस्पताल डॉक्टर पूर्णिमा सेठी मल्टीस्पेशलिटी कालका जी का और जानकारी ली यहां उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं और इलाज़ की।

इस अस्पताल को बने हुए अभी कुछ ही साल हुए हैं, हालांकि इसकी जर्जर हालत आपको गेट के अंदर घुसते ही समझ आने लगती है, टूटी खिड़कियां-दरवाजे, धूल जमी हुई रजिस्ट्रेशन की डेस्क, आस-पास गंदगी का अंबार इस अस्पताल की खस्ता हालत की तस्वीर आपके सामने बखूबी रखता है। अस्पताल का बेसमेंट पानी में डूबा हुआ है तो इसके पहले गेट के बगल में ही कूड़ा घर है, जहां भारी मात्रा में गीला और सूखा दोनों तरह का कूड़ा देखा जा सकता है। इसके अलावा इसकी दुर्गंध आपको यहां से भागने को मजबूर कर देगी।

मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल में सिर्फ़ ओपीडी की सुविधा

इस मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल में केवल सोमवार से शनिवार तक ओपीडी की सुविधा उपलब्ध है, इसके अलावा यहां कोई इमरजेंसी, सर्जरी या जांच की कोई व्यवस्था नहीं है। गेट पर आपको डायलिसिस का बड़ा सा बोर्ड देखने को मिल जाएगा लेकिन यहां इलाज कराने वालों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि यहां डॉयलिसिस भी ठीक से नहीं होता और उनसे पैसे भी अलग से लिए जाते हैं। इसके अलावा अस्पताल में दवाइयां भी कभी-कभार ही मिलती हैं, अधिकतर दवाइयां रोगियों को बाहर से ही लेनी पड़ती हैं।

इस अस्पताल के पास में ही एक छोटी दुकान लगाने वाले सुरेश बताते हैं कि 2015 में इस अस्पताल का उद्घाटन पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने किया था। शुरुआत में कहा गया कि ये 100 बिस्तरों का अस्पताल होगा, यहां ओपीडी के साथ ही अन्य जरूरी जांच जैसे एक्स-रे, डायलिसिस, डेंगू-मलेरिया, रक्त, यूरिन टेस्ट ये सब भी होगा, जिससे करीब 10 लाख से ज्यादा लोगों को फायदा मिलेगा लेकिन उद्घाटन के बाद से आजतक ये अस्पताल कभी पूरा खुला ही नहीं और न ही किसी को ये सब सुविधाएं मिलीं। अस्पताल जो थोड़ा-बहुत चालू हुआ, वो साल भर बाद ही हुआ।

अस्पताल केवल भगवान भरोसे चल रहा है!

हमने अस्पताल में काम करने वाले कुछ लोगों से बातचीत की, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ये अस्पताल केवल भगवान भरोसे ही चल रहा है, यहां खांसी, बुखार के अलावा कोई खास इलाज आपको नहीं मिलेगा। डॉक्टर भी कभी दो-चार रहते हैं, तो कभी आठ-दस। यहां आने वालों को मुफ्त दवाइयां देने का प्रावधान है, लेकिन जब स्टाक में ही दवाइयां नहीं होंगी तो उन्हें कैसे दवाइयां दी जा सकती हैं। अस्पताल के दोनों ओर की गंदगी का सुध लेने वाला तक कोई नहीं है यहां।

यहां बुखार से पीड़ित एक व्यक्ति ने बताया कि वो बीते एक हफ्ते से बीमार हैं, लेकिन यहां कई बार चक्कर लगाने के बाद भी आज उनका नंबर आया है। वो कहते हैं कि ओपीडी सुबह 9-10 बजे के बाद खुलती है और फिर दोपहर में 12-1 तक बंद भी हो जाती है, ऐसे में जिसका नंबर लग गया, बस उसी का इलाज हो पाता है। ज्यादातर लोग यहां मेडिकल स्टाफ से सेटिंग कर अपना नंबर लगवा लेते हैं, जिसके चलते आम लोगों को घंटों लाइन में लगने के बाद भी कुछ नहीं मिलता।

आरोप-प्रत्यारोप के बीच बुनियादी सुविधाओं से दूर आम लोग

गौरतलब है कि हाल ही में आम आदमी पार्टी की विधायक आतिशी ने इस अस्पताल को लेकर सत्ता पक्ष पर पर आरोप लगाते हुए कहाथा कि कालका जी में बन रहा पूर्णिमा सेठी अस्पताल एमसीडी में बीजेपी के पिछले 15 साल के भ्रष्टाचार और कुशासन का एक नया और बड़ा प्रतीक बन गया है, जिसका काम अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। साल 2005 में एमसीडी ने 100 बेड के इस मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल को बनाने की शुरुआत की थी। इसके निर्माण पर कुल 6 करोड़ 70 लाख रुपये खर्च होने थे, लेकिन आज 2022 में भी यह अस्पताल बनकर तैयार नहीं हो पाया है, जबकि इस पर एमसीडी अब तक 35 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। हालांकि एमसीडी भी इसके जवाब में दिल्ली की आप सरकार पर समय से फंड न देने का पलटवार कर चुकी है। एक बयान में निगम ने कहा था कि इसके निर्माण का खर्च 20 करोड़ रुपये रखा गया था लेकिन तमाम कारणों से विलंब होने बाद 52 करोड़ रुपए संशोधित किया गया है। दिल्ली सरकार को मेडिकल (प्लान) मद के 13 करोड़ रुपये अभी भी चुकाने हैं।

हालांकि आरोप-प्रत्यारोप के बीच इस अस्पताल के खस्ताहाल होने की वजह से एक बड़ी आबादी स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधाओं से दूर है। एमसीडी भले ही मौजूदा दिल्ली की आप सरकार पर अपनी नाकामी का ठिकरा फोड़ ले, लेकिन एक सच्चाई ये भी है कि दिल्ली में आप की सरकार आठ सालों से है और एमसीडी में बीजेपी 15 सालों से, ऐसे में उस पर सवाल तो उठना लाज़मी है।

एमसीडी अस्पतालों की ख़राब व्यवस्था पर दिल्ली हाईकोर्ट का ध्यान दिलाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अशोक अग्रवाल ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में बताया कि नगर निगम का सालाना बजट 15000 करोड़ रुपये का है जिसमें 1500 करोड़ रुपये जनस्वास्थ्य के लिए आवंटित किए गए है। ऐसे में फंड की कमी एक मसला है लेकिन निगम के संदर्भ में बड़ा मुद्दा भ्रष्टाचार और ख़राब प्रशासन का है।” अस्पतालों की ख़राब व्यवस्था को सुधारने के दो रास्ते हैं। सरकारों के प्रतिनिधि आम तौर पर निजीकरण की बात करते हैं। ये आम रोगियों के लिए एक विपदा की तरह होगा। हमने कई उदाहरण देखे हैं जहां अस्पताल धन्ना सेठों की निजी मिल्कियत बन गए। अब दूसरा विकल्प नज़दीकी सरकार को प्रशासन सौंपने का है। इस अस्पताल के संदर्भ में एक पहल केंद्र सरकार को गई थी जहां इसे सफ़दरजंग अस्पताल को सौंपा जाना था लेकिन बात नहीं बनी। यदि अस्पतालों को दिल्ली सरकार के तहत सौंपा जाता है तो प्रशासन में सुधार की थोड़ी उम्मीद की जा सकती है।”

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