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MP: सरकार वनाधिकार लागू करने में विफल, वन मंत्री ने आदिवासियों पर लगाए अवैध वन कटाई के गंभीर आरोप

मध्य प्रदेश में (वन) मंत्री विजय शाह बेशक आदिवासियों को ही वन कटाई के लिए दोषी ठहरा रहे हैं लेकिन विरोधाभासी पहलू यह है कि बुरहानपुर में उनकी इस टिप्पणी के ठीक एक दिन पहले, हजारों आदिवासियों ने जागृत आदिवासी दलित संगठन के नेतृत्व में जिले में अवैध कटाई रोकने और वनाधिकार के लंबित मामलों का समाधान नहीं होने के विरोध में कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन किया।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। 

"भले, वनाधिकार दावों की जांच और एफआरए के क्रियान्वयन में तेजी के आश्वासन पर आदिवासियों ने अपना विरोध प्रदर्शन समाप्त कर दिया हो लेकिन अफ़सोस की बात है कि वन अधिकार 2006 को लागू करने में विफल मध्य प्रदेश सरकार के (वन) मंत्री ही आदिवासियों पर अवैध वन कटाई और वन भूमि को क़ब्ज़ा करने का आरोप लगा रहे हैं। आदिवासियों पर अवैध वन कटाई के आरोप गंभीर हैं।"

मध्य प्रदेश में (वन) मंत्री विजय शाह बेशक आदिवासियों को ही वन कटाई के लिए दोषी ठहरा रहे हैं लेकिन विरोधाभासी पहलू यह है कि बुरहानपुर में उनकी इस टिप्पणी के ठीक एक दिन पहले, हजारों आदिवासियों ने जागृत आदिवासी दलित संगठन के नेतृत्व में जिले में अवैध कटाई रोकने और वनाधिकार के लंबित मामलों का समाधान नहीं होने के विरोध में कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन किया। मुख्यमंत्री के नाम दिए ज्ञापन में अवैध कटाई में कथित तौर पर लोगों को उकसाने वाले नाकेदारों और पुलिस कर्मियों की जांच की मांग की।

खैर, नागरिक अधिकार समूह जागृत आदिवासी दलित संगठन (जेएडीएस) के बैनर तले विरोध प्रदर्शन कर रहे मध्य प्रदेश के बुरहानपुर के हजारों आदिवासी, जिन्होंने नेपानगर तहसील कार्यालय पर कब्जा कर लिया था, अपनी मांगों के पूरा होने पर घर लौट आए हैं। जीत के गीतों और नारों के बीच, विजयी आदिवासियों ने दो दिवसीय विरोध प्रदर्शन को समाप्त कर दिया। आदिवासियों की मुख्य मांग वनाधिकार दावों को ग्राम सभा के माध्यम से सत्यापित करने और गलत तरीके से (processed) संसाधित किए गए दावों को वापस करने की थी। एक अन्य मांग यह थी कि जिन लोगों को, गलत तरीके से, मध्यप्रदेश वनमित्र पोर्टल पर अपना दावा दर्ज करने का मौका नहीं दिया गया था, उनके दावे कानून के अनुसार पंजीकृत हों। विशेष रूप से एफआरए के कार्यान्वयन पर अड़े आदिवासियों का कहना था कि एफआरए कार्यान्वयन को रोकने तथा वन डायवर्जन को और अधिक आसान बनाने के लिए ही, जानबूझकर, वन संरक्षण नियम 2022 में नए बदलाव किए गए हैं।

पहले के एक विरोध प्रदर्शन के दौरान, 24 जनवरी को, हजारों आदिवासियों ने मांग की थी कि जिला प्रशासन तुरंत एफआरए लागू करना शुरू करें। अन्यथा लगातार विरोध शुरू करने की चेतावनी दी थी। यही नहीं, संगठन ने चेताया था कि वन अधिकार दावों के सत्यापन की प्रक्रिया पूरी होने से पहले, परियोजनाओं और कंपनियों के बीच सैद्धांतिक रूप से समझौता करने वाले वन संरक्षण नियमों में बदलाव किया जाना ग्राम सभा के अधिकारों का हनन है। यही नहीं, इससे साफ है कि सरकार की मंशा भी एफआरए के कार्यान्वयन को लटकाने की है ताकि वनों का डायवर्जन और भी आसान हो जाए।

ताजा दो दिवसीय प्रदर्शन 7 फरवरी से शुरू हुआ और जिसमें भी एफआरए कार्यान्वयन की "विफलताओं" पर सवाल उठाये गए। जेएडीएस ने कहा कि बुरहानपुर जिले में पिछले 4-5 वर्षों में लोगों को झूठे मामलों में फंसाने, जबरन बेदखल करने का प्रयास करने, अवैध गोलीबारी का सामना करने के साथ एफआरए उल्लंघन के कई मामले देखे गए हैं।

कहा आज भी, वन विभाग आदिवासी किसानों को "अतिक्रमणकर्ता" के रूप में बुलाना जारी रखता है और उन्हें अपराधी बनाता है, अपने स्वयं के खेतों में ट्रैक्टर, थ्रेशिंग मशीन का उपयोग करने के लिए पैसे वसूलता है। जबकि जिले में वन कर्मचारियों की मिलीभगत के परिणामस्वरूप अवैध कटाई की अभूतपूर्व घटनाएं देखी गई हैं, जो अवैध रूप से वनों की कटाई करने वालों को जमीन के टुकड़े "बेचने" के बदले में रिश्वत ले रहे हैं, जिस सबका बुरहानपुर आदिवासी लगातार विरोध कर रहे हैं। 

ऐसे में मध्य प्रदेश के वन मंत्री कुंवर विजय शाह का बुरहानपुर में वनों की कटाई के लिए आदिवासियों को दोषी ठहराया जाना गंभीर है और परस्पर विरोधाभास को दर्शाता है। वन मंत्री के अनुसार ‘अपने ही लोग जंगलों का नुकसान’ कर रहे हैं। खास है कि पिछले कई महीनों से बुरहानपुर जिले की नेपानगर तहसील के नवरा, सिवाल और बकड़ी सहित कई गांवों में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई हो रही है जिसको लेकर वनाधिकारियों और ग्रामीणों के बीच झड़प भी हुई है। दूसरा, वन मंत्री की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब उनकी पार्टी सत्तारूढ़ बीजेपी, मध्य प्रदेश सहित कई चुनावी राज्यों में आदिवासियों की पहुंच बढ़ा रही है।

हरसूद से 7 बार के बीजेपी विधायक अश्वत्थामा शिव महापुराण कथा में भाग लेने के लिए बुरहानपुर में थे। इस दौरान उन्होंने पहली बार वन कटाई को लेकर खुलकर बयान दिया। विजय शाह ने कहा, “क्या आप चाहते हैं कि हम अपने ही लोगों पर बंदूक तानें? आप चाहते हैं कि हम भारत के आदिवासियों को गोली मार दें। हम ऐसा नहीं चाहते हैं और ऐसा कभी नहीं होना चाहिए।”

बुरहानपुर में पेड़ों की कटाई की शिकायतों पर बोलते हुए शाह ने कहा, “लोग विदेशों से यहां पेड़ काटने नहीं आ रहे हैं। जमीन के लालच में अपने ही लोग जंगल को नुकसान पहुंचा रहे हैं। जंगल पर कब्जा करने की कोशिश को जब कोई रोकने की कोशिश करता है तो वे मारने या मरने पर उतारु हो जाते हैं। ऐसे में हमें भी लोगों के सपोर्ट की जरूरत है।”

उन्होंने आगे कहा, “मुझे बताओ, हम कहां गलत हो रहे हैं? वे (आदिवासी) पत्थरबाजी कर रहे हैं। वे गोलियां चला रहे हैं। उन्होंने एक बार हमारी बंदूकें लूट लीं। हम उन्हें मजबूती के साथ वापस लाएं। मुझे उम्मीद नहीं है लेकिन अगर कुछ बड़ा होता है तो मीडिया और समाज सरकार को जवाबदेह ठहराएंगे।” यह तक कि उन्होंने आदिवासियों से कहा कि सरकार की सहनशीलता की परीक्षा मत लीजिए। लोकतंत्र में सुरक्षा और रक्षा हमारी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि “बंदूक के बल पर जंगलों की रक्षा करने का विषय” उनकी समझ से परे था, बंदूक के बल पर देश की रक्षा की जाती है।

विजय शाह ने कहा, “मैं सिर्फ लोगों और मीडिया को अपनी चिंता के बारे में बता रहा हूं कि जंगल काटे जा रहे हैं और हमारे अपने लोग उन्हें काट रहे हैं। उन्हें बचाने की जरूरत है लेकिन हम उन पर बंदूक नहीं उठा सकते, हमें बीच का रास्ता निकालना होगा।”

उधर, आदिवासियों का कहना है कि वन विभाग के कर्मचारी ही अवैध वन कटाई करवा रहे है और फिर आदिवासियों को आरोपी बनाकर जेल भेज रहे हैं। आदिवासियों का आरोप है कि 10 हजार से ज्यादा वनाधिकार के मामले लंबित हैं। वहीं मध्य प्रदेश सरकार मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के बजाय जंगलों को निजी हाथों में बेचने के लिए कानून पास कर रही है।

मध्य प्रदेश में आदिवासी वोट बैंक कितना महत्वपूर्ण और कौन है विजय शाह

मध्य प्रदेश में आदिवासी कुल आबादी का 21 प्रतिशत हैं। इसलिए राज्य में किसी भी पार्टी का सत्ता पर काबिज होने के लिए आदिवासी वोट अहम है। भाजपा ने 2018 के विधानसभा चुनावों में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से सिर्फ 16 सीटें जीतीं थी। जबकि 2013 में उसने उन सीटों में से 31 पर जीत हासिल की थी।

यह महसूस करते हुए कि आदिवासी वोट मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में चुनावी संभावनाओं के लिए महत्वपूर्ण हैं, भाजपा ने कई कदमों की घोषणा की जैसे अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत विस्तार (पेसा) अधिनियम को लागू करना, आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती को पूरे देश में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मना रही है और गोंड स्वतंत्रता सेनानियों शंकर शाह और रघुनाथ शाह के नाम पर एक संग्रहालय बनाया जा रहा है। इसके अलावा, 2021 में पार्टी ने भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम गोंड रानी कमलापति के नाम पर रखा है।

हालांकि, राज्य के एक भाजपा सांसद ने कहा कि “चुनाव के समय आदिवासियों को दोष देना मामले को और भी बदतर बना सकता है, भले ही टिप्पणी चिंता से की गई हो। आदिवासी जिनके पास सीमित संसाधन हैं उन्हें मजबूत करना समय की आवश्यकता है, न कि उन पर आरोप लगाना।” वहीं, कुंवर विजय शाह, जिन्होंने 1990 से हरसूद विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है, मध्य प्रदेश में भाजपा का एक प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से की थी और सभी भाजपा सरकारों के कार्यकाल के दौरान मंत्रिपरिषद का हिस्सा रहे हैं। मंत्री के रूप में उनका पहला कार्यकाल 2004 में उमा भारती प्रशासन के दौरान शुरू हुआ था. शाह के भाई संजय भी विधायक हैं और उनकी पत्नी नगरपालिका अध्यक्ष रह चुकी हैं। मध्य प्रदेश बीजेपी के सूत्रों के मुताबिक अब वह अपने बेटे के लिए टिकट की तलाश में हैं।

शाह का विवादों से पुराना रिश्ता

यह पहली बार नहीं है जब विजय शाह आदिवासियों पर वनों की कटाई का आरोप लगाकर सुर्खियां बटोर रहे हैं। विवादित बयानों से उनका पुराना रिश्ता है। पिछले साल सितंबर में मुख्यमंत्री के जन सेवा अभियान में भाग लेने के दौरान, शाह ने आयुष्मान भारत योजना शुरू करने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की प्रशंसा करते हुए पिछले प्रधानमंत्रियों का अपमान किया था। साथ ही उन्होंने कहा था कि देश को आजादी मिले पचहत्तर साल हो गए हैं लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले नेता हैं जो गरीबों के जीवन में सुधार कर रहे हैं। उनसे पहले सभी प्रधानमंत्री घोड़ा, घड़ा और हाथी छाप थे। उनमें से किसी ने भी गरीबों की परवाह नहीं की। हाल ही में कांग्रेस पार्टी की भारत जोड़ो यात्रा और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पर शाह की टिप्पणी वायरल हुई थी। लेकिन आदिवासियों पर अवैध वन कटाई के आरोप गंभीर हैं। इस मामले में उनका बयान तथ्यों से मेल नहीं खाता है।

ऐसे में यह अफ़सोस की बात है कि वन अधिकार 2006 को लागू करने में विफल सरकार के मंत्री आदिवासियों पर वन भूमि को क़ब्ज़ा करने का आरोप लगाते हैं।

साभार : सबरंग 

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