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म.प्र. उपचुनाव: बीजेपी समर्थक किसान भी अब कृषि और मॉडल मंडी कानूनों का विरोध कर रहे हैं !

कांग्रेस ने वादा किया है कि केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में पारित तीन कृषि कानूनों को वह लागू नहीं करेगी और इसके साथ ही वह राज्य में बीजेपी सरकार द्वारा पेश किये गए मॉडल मंडी अधिनियम 2020 को रद्द कर देगी।
Mp

भोपाल: 3 नवम्बर को मध्य प्रदेश में होने जा रहे उपचुनावों में किसानों के बीच में कृषि ऋण माफ़ी और केंद्र के तीन कृषि कानूनों को लेकर जारी असंतोष की वजह से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस का चुनावी गणित की पूरी तरह से उलट पुलट हो जाने की संभावना बनी हुई है।

ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के कई किसान कांग्रेस के “आधे-अधूरे” कृषि ऋण माफ़ी योजना से नाराज चल रहे हैं। कांग्रेस पार्टी ने दावा किया है कि 15 महीनों के अपने शासनकाल में इसकी सरकार को मिले कुल 55 लाख आवेदनों में से 26 लाख किसानों के कृषि ऋणों को माफ़ कर दिया गया था।

भिण्ड जिले के 50 वर्षीय राज सिंह भदौरिया जिन्होंने 32,000 रुपयों का कर्ज लिया था और जिनके पास 35 एकड़ खेती योग्य जमीन है का कहना है कि “उन्होंने इस बात का वादा किया था कि सरकार गठन के 10 दिनों के भीतर ही वे कृषि ऋणों को माफ़ कर देंगे, लेकिन 15 महीनों तक सत्ता में बने रहने के बावजूद कांग्रेस ऐसा कर पाने में विफल रही।”

वहीँ कुछ किसान जिन्होंने पिछली दफा बीजेपी के पक्ष में वोट किया था, ने संसद द्वारा लाये गए तीन कृषि कानूनों का विरोध किया। इन तीन बिलों के पारित होने से ठेके पर खेती का काम, कृषि मंडी से बाहर फसलों की बिक्री और खरीद एवं फसलों के असीमित भंडारण का रास्ता खुल गया है।

संजय शर्मा जो कि भिण्ड के महाराजपुर गाँव के रहने वाले हैं और उनके पास खेती लायक 30 एकड़ जमीन है, ने कहा “हालाँकि मैं बीजेपी का पक्का समर्थक हूँ लेकिन हाल ही में पारित कानून हमारे लिए किसी काले कानून से कम नहीं हैं।” वे आगे कहते हैं “यदि इस बिल से हमारी आय पर आँच आती है तो हम इसका पुरजोर विरोध करेंगे।”

महाराजपुर के कई अन्य निवासियों एवं आसपास के गाँवों के लोग भी नए कृषि कानूनों के विरोध में हैं। किसान नेता शिवकुमार शर्मा के नेतृत्व में राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ (आरकेएमएम) ने हाल ही में राज्य के उन जिलों में जहाँ पर चुनाव संपन्न होने जा रहे हैं, में नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों के बीच में जागरूकता पैदा करने के लिए पूरे सप्ताह भर विरोध प्रदर्शन आयोजित किया था। 

इसके साथ ही साथ आरकेएमएम ने किसानों के लिए हिंदी में 24 पेज की एक पुस्तिका जिसका शीर्षक ‘3 कृषि कानून-किसानों के मौत का फरमान ’ है को भी प्रकाशित किया है। शर्मा कहते हैं “भिंड, मुरैना और ग्वालियर इलाकों में हम लोग सप्ताह भर से इस अभियान को चला रहे हैं और जन-जागरूकता पैदा करने के लिए इस क्षेत्र की सभी प्रमुख मण्डियों का दौरा कर चुके हैं। इस अभियान को हमने लाउडस्पीकर और पैदल चलकर पूरा किया है।”

 “चूँकि राज्य के किसान हरियाणा और पंजाब के किसानों की तरह पढ़े लिखे नहीं हैं इसलिए हम उन्हें सिर्फ उन कानूनों के बारे में बता रहे हैं जो संसद में पारित किये गए हैं। सामान्य समझ रखने वाले हर किसान ने इसका विरोध किया है” वे कहते हैं।

बीजेपी, कांग्रेस के वायदे 

28 सीटों पर होने वाले उप-चुनावों में किसानों के वोटों को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस एक बार फिर से कृषि ऋण माफ़ी स्कीम को लाने का वायदा कर रही है। इसके तहत वह दो लाख रूपये के कम के कृषि ऋणों को माफ़ करने का वादा कर रही है।

पार्टी ने इस बात का भी वायदा किया है कि हाल ही में केंद्र सरकार ने जिन तीन कृषि कानूनों को पारित किया है वह उसे राज्य में नहीं लागू करेगी और इसके साथ ही वह राज्य में बीजेपी सरकार द्वारा पेश किये गए मॉडल मंडी अधिनियम, 2020 को भी रद्द करने का काम करेगी।

इसके साथ ही कांग्रेस ने इस बात का भी वादा किया है कि पंजाब की तरह यहाँ पर भी कृषि उपज की खरीद पर न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम मूल्य पर खरीद के खिलाफ वह सख्त कानून बनाएगी।

वहीँ बीजेपी ने जो कि कांग्रेस के 26 लाख लोगों के कृषि ऋणों को माफ़ किये जाने के दावे को लेकर विधानसभा में सरकार द्वारा इस तथ्य की पुष्टि किये जाने के बाद से बैक फुट पर आ गई थी, के द्वारा राज्य के 77 लाख किसानों को प्रतिवर्ष 4,000 रूपये देने का वादा कर रही है, जिन्हें प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) योजना के तहत नामांकित किया गया है।

बीजेपी इस योजना को मुख्यमंत्री किसान सम्मान निधि (एमकेएसएन) का नाम दे रही है।

इस बारे में एन.के. उपाध्याय ने, जो कि राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ से भी जुड़े हुए हैं, ने कहा “हमें जबर्दस्त प्रतिक्रिया मिल रही है, जो उपचुनावों को प्रभावित कर सकता है।”

हालाँकि आरएसएस के किसान मोर्चे, भारतीय किसान संघ का दावा है कि कृषि कानूनों का किसानों पर कोई असर नहीं पड़ने जा रहा है। संगठन का कहना है कि उसे इन कानूनों में चिंता करने लायक कुछ भी नहीं देखने को मिला है। 

बीकेएस के राज्य प्रमुख रामभरोस बसोटिया कहते हैं “नए कानूनों से किसानों को कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ने जा रहा है। लेकिन यदि उन्हें ऐसी कोई भी गंभीर बात नजर आती है तो भले ही किसी की भी सरकार सत्ता में हो, वे इसके खिलाफ आन्दोलन खड़ा करने से नहीं चूकेंगे।”

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