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मध्य प्रदेश: क्या आदिवासी सिर्फ़ वोट बैंक बनकर रह गए हैं, उनकी सुरक्षा कौन करेगा?
गुना में आदिवासी महिला को जिंदा जलाने की कोशिश राज्य में आदिवासियों के हाल को बयां करती है। मध्य प्रदेश आदिवासियों के साथ अत्याचार के मामलें में देश में नंबर एक पर है और ये बीते तीन साल से पहले पायदान पर ही बना हुआ है।
सोनिया यादव
05 Jul 2022
tribal woman

मध्य प्रदेश एक बार फिर आदिवासी शोषण-उत्पीड़न की खबर को लेकर सुर्खियों में है। यहां आदिवासी समुदाय प्रदेश की आबादी का करीब 22 प्रतिशत हैं और सभी राजनीतिक पार्टियों के बीच आदिवासियों के वोट हासिल करने की होड़ लगी रहती है। बावजूद इसके आदिवासियों पर सबसे ज्यादा अत्याचार के मामले यहीं देखने को मिल रहे हैं। हाल ही में शनिवार, 2 जुलाई को प्रदेश के गुना में सहरिया आदिवासी महिला रामप्यारी बाई को एक ज़मीन विवाद में जिंदा जलाने की कोशिश की गई। आरोप है कि दबंगों ने महिला पर डीज़ल डाल कर आग लगा दी। दावा किया जा रहा है कि आग लगाने के दौरान आरोपियों ने महिला का वीडियो भी बनाया, जो पिछले दो दिनों से वायरल है। इस मामले में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) ने गुना के जिलाधिकारी को नोटिस जारी कर सात दिनों के भीतर कार्रवाई का ब्यौरा मांगा है।

बता दें कि मध्य प्रदेश आदिवासियों के साथ अत्याचार के मामलें में देश में नंबर एक पर है और ये बीते तीन साल से पहले पायदान पर ही बना हुआ है। इस साल के आंकड़े बताते हैं कि यह संख्या पिछले साल से लगभग 20 प्रतिशत अधिक है। यही नहीं गुना के जिस क्षेत्र में दबंगों ने आदिवासी महिला को कथित तौर पर जलाने की कोशिश की है, वहां आदिवासियों के साथ इस तरह की घटना पहली बार नहीं हुई है। यहां आदिवासियों का शोषण आम बात है। इससे पहले साल 2020 में इसी ज़िले में एक मज़दूर को कथित तौर पर महज़ पाँच हज़ार रुपये की उधारी नहीं चुका पाने की वजह से केरोसिन डालकर ज़िंदा जला दिया गया था। स्थानीय ग़ैर-सरकारी संगठन के लोग इसे बंधुआ मज़दूरी का मामला बताया था लेकिन सरकार इसे उधारी का मामला बताती रही।

क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक गुना जिले में रहने वाली रामप्यारी सहरिया पर जमीन के विवाद को लेकर कुछ लोगों ने उनके खेत में हमला कर दिया और उनके शरीर पर डीजल छिड़क कर आग लगा दी। उसके बाद हमलावरों ने दर्द से कराहती रामप्यारी का वीडियो बनाकर उसे खेत में जली हुई अवस्था में छोड़ कर भाग गए। इसके बाद लगभग 80 प्रतिशत जल चुकी रामप्यारी को उनके पति अर्जुन सहरिया ज़िला अस्पताल लाए, जहाँ से उन्हें भोपाल रेफर कर दिया गया। अभी महिला कुछ भी बयान देने की स्थिति में नहीं है।

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक अर्जुन, जब अपने खेत जा रहे थे, तब वहां आरोपी प्रताप, हनुमत, श्याम किरार और उनकी पत्नियां टैक्टर से भाग रहे थे जबकि उनकी पत्नी खेत में जली हालात में मिलीं। अर्जुन ने बताया कि रामप्यारी के सारे कपड़े जल चुके थे।

अर्जुन की माने तो विवाद की असली वजह छह बीघा ज़मीन है। कहा जा रहा है कि इस पर दबंगों ने कब्ज़ा कर लिया था। स्थानीय प्रशासन ने मई महीने में इस मामले पर फ़ैसला करते हुए ज़मीन पर अर्जुन को कब्ज़ा दिलवा दिया था। दरअसल, अर्जुन सहरिया को यह ज़मीन दिग्विजय सिंह सरकार के समय सरकारी योजना के तहत आवंटित हुई थी लेकिन उन्हें इसका मालिकाना हक़ नहीं मिल पाया था। अभियुक्तों के परिवार का इस खेत पर लंबे समय से कब्ज़ा था।

बंधुआ मुक्ति मोर्चा, गुना के ज़िला संयोजक नरेंद्र भदौरिया के हवाले से बीबीसी ने लिखा है कि इस गाँव की आबादी लगभग 600 लोगों की है। इसमें आदिवासी ज़्यादा है लेकिन कम होते हुए भी धाकड़ और किरार जाति के लोगों का दबदबा है। उनका कहना है कि इस क्षेत्र में ऐसे सैकड़ों मामले मिल जाएंगे जिसमें ज़मीन आदिवासियों के नाम है लेकिन कब्ज़ा दबंगों का है।

स्थानीय पत्रकार अविनाश सिंह के मुताबिक मध्य प्रदेश की यह घटना प्रदेश में आदिवासियों के हाल की जमीनी हक़ीकत बयां करती है। यहां पहले भी दबंग इस तरह की घटनाओं को अंजाम देते रहे है और प्रशासन एक तरह से उनका बचाव ही करता ही नज़र आया है।

अविनाश न्यूज़क्लिक को बताते हैं कि जिस सहरिया समुदाय से रामप्यारी आती हैं, वो जनजाति राज्य की सबसे पिछड़ी जनजातियों में आती है। यहां बंधुआ मज़दूरी भी आमतौर पर देखी जाती है, लेकिन प्रशासन नही मानता है कि ज़िला में बंधुआ मज़दूरी है। हर चुनाव से पहले सरकार और राजनीतिक दल इस समुदाय के लिए तरह-तरह के वादे करते हैं लेकिन इनकी स्थिति में बहुत अंतर नहीं आया है। तमाम वादों और दावों से उलट यहां ना सिर्फ आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं, बल्कि प्रदेश में इस तरह के मामलों का अदालतों में लंबित रहना भी बढ़ता जा रहा है।

क्या कहते हैं आंकड़ें?

वैसे तो देशभर में आदिवासियों पर अत्याचार के मामले बढ़ते जा रहे हैं। लेकिन मध्य प्रदेश इस मामले में फिलहाल सबसे आगे है। यहां 2020 में इस तरह के मामले 30 प्रतिशत बढ़ गए। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अपराध के अलग से आंकड़े इकठ्ठा करता है और ब्यूरो की रिपोर्टें दिखाती हैं कि इस तरह के मामलों में कोई कमी नहीं आ रही है।

एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में देश में अनुसूचित जनजाति के लोगों के साथ अत्याचार के 8,272 मामले दर्ज किए गए, जो 2019 के मुताबिक 9.3 प्रतिशत का उछाल है। इन मामलों में सबसे आगे रहा मध्य प्रदेश जहां कुल मामलों में से 29 प्रतिशत मामले (2,401) दर्ज किए गए।

किसने क्या कहा?

अब इस मामले को लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है। ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस ने इस मामलें में बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा है कि आख़िर कब तक यह बर्बरता चलती रहेगी। ट्वीट के ज़रिये पार्टी ने कहा, "आप इस मामले पर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं।"

पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आरोप लगाया कि शिवराज सिंह चौहान सरकार में आदिवासियों पर अत्याचार रुकने का नाम नहीं ले रहा है। उन्होंने ट्विटर पर सवाल पूछा कि आख़िर आदिवासी समुदाय कब सुरक्षित होगा।

मध्य प्रदेश की कांग्रेस इकाई ने भी राज्य की शिवराज सरकार पर हमला बोलते हुए गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के इस्तीफे की मांग की है। पार्टी ने कहा कि राज्य की सरकार आदिवासियों पर होने वाले अत्याचारों को रोकने में नाकाम रही है, इसलिए गृहमंत्री को अपना पद छोड़ देना चाहिए।

राहुल गांधी ने भी घटना को लेकर ट्वीट किया है। उन्होंने लिखा है कि न आदिवासी, न दलित, न महिला, न युवा, न किसान, न जवान, प्रधानमंत्री को अपने पूंजीपति 'मित्रों' के फ़ायदे के आगे किसी का दर्द नहीं दिखता।

उधर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने भी इस घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए शिवराज सिंह चौहान सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। पार्टी के राज्य सचिव जसविंदर सिंह ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि यह घटना प्रशासन और दबंगों की मिलीभगत का परिणाम है। यदि समय रहते दबंगों से मिलने वाली धमकियों और शिकायतों को गंभीरता से लेकर पुलिस ने कार्यवाही की होती तो इस घटना से बचा जा सकता था।

माकपा ने आदिवासी महिला को जलाने लिए बीजेपी सरकार के आदिवासी विरोधी रवैये और पुलिस प्रशासन को जिम्मेदार बताया। इसके अलावा पार्टी ने हत्यारों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने, पीड़ित आदिवासी परिवार को एक करोड़ मुआवजा और ज़मीन पर कब्जा दिलाने के साथ ही पूर्णसुरक्षा की मांग की है।

गौरतलब है कि इस घटना के तुरंत बाद मध्यप्रदेश के ही एक और आदिवासी बहुल इलाके देवास ज़िले से एक अन्य वीडियो सामने आया। इसमें भीड़ एक महिला के गले में जूते की माला डालकर उसका जुलूस निकाल रही है, उसे गालियां दे रही है और कई सारे पुरुष मिलकर चौराहे पर उस अकेली महिला को पीट रहे हैं। फिलहाल इस पूरे वाक्ये पर भी शिवराज सरकार सवालों के घरे में है। लेकिन असली सवाल उन वादों का है जो हर बार इन आदिवासियों से वोट के नाम पर किया जाता है और उसके बाद इनकी सुध लेने वाला भी कोई नहीं होता।

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Shivraj Singh Chouhan

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