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महाराष्ट्र: कोराडी पावर प्रोजेक्ट पर फंसी सरकार! क्यों हो रहा भारी विरोध?

पावर प्लांट के कारण कोराडी क्षेत्र में भूजल दूषित हो गया है। पिछले काफी समय से यहां के लोगों में त्वचा और फेफड़ों से संबंधित बीमारियों के बढ़ने के प्रकरण सामान्य हो गए हैं।
Koradi Power Project
नागपुर से 15 किलोमीटर दूर कोराडी में विदर्भ की चार में से एक ताप बिजली इकाई स्थापित है। फोटो साभार: महाराष्ट्र राज्य विद्युत विभाग l

देश के दस सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल महाराष्ट्र के नागपुर स्थित कोराडी पहले ही ताप विद्युत परियोजनाओं के चलते पर्यावरण के संकट से जूझ रहा है, ऐसे में सरकार के दो नए पावर प्रोजेक्ट ने यहां के रहवासियों की मुसीबत बढ़ा दी है, लिहाजा स्थानीय लोग नए प्रोजेक्ट का भारी विरोध कर रहे हैं। लोगों के विरोध को देखते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी तक ने प्रोजेक्ट नहीं लगाने की मांग का समर्थन किया है। लेकिन, इस पूरे प्रकरण में विदर्भ से आने वाले बीजेपी के नेता और राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस मौन हैं।

बता दें कि कोराडी में बिजली संयंत्र ने पहले ही कृषि क्षेत्र को बंजर बना दिया है। यहां के आसपास के इलाके का भूजल दूषित हो गया है और इससे न केवल मनुष्य बल्कि पशु-पक्षी भी प्रभावित हुए हैं। अब यदि नई इकाइयां शुरू होती हैं तो इससे नागरिकों के स्वास्थ्य पर और बुरा प्रभाव पड़ेगा। दो नई इकाइयां प्रदूषण में इजाफा करेंगी। इसलिए नागरिकों और पर्यावरणविदों ने यह निर्णय लिया है कि वे सरकार के इस कदम के खिलाफ जाएंगे और यह सवाल भी पूछेंगे कि वह अन्य जगहों से बिजली इकाइयों को रद्द करके नागपुर में लाने के लिए जोर क्यों दे रही है।

वहीं, राज्य के परली, चंद्रपुर और भुसावल में बिजली परियोजनाओं से जुड़ी कुछ इकाइयों को बंद करने का निर्णय सरकार ने लिया है। लेकिन, कोराडी में 660 मेगावाट की दो इकाइयां प्रस्तावित हैं। यह भी बड़ी वजह है कि कोराडी में इन प्रस्तावित परियोजनाओं को लेकर स्थानीय लोग, पर्यावरणविद् और नागरिक समूह एक साथ आ गए हैं।

क्यों बढ़ गया विरोध?

कोराडी अंचल में उपजाऊ जमीन पर खेतबाड़ी होती रही है, लेकिन यहां पावर प्रोजेक्ट स्थापित होने के बाद से बड़े पैमाने पर खेती की जमीन खराब हो गई है। वजह है कि यह पावर प्रोजेक्ट ताप आधारित है और इस तरह की इकाई में कोयला का अत्यधिक इस्तेमाल होने से उससे उड़ने वाली राख बड़े इलाके की जमीन पर फैलती जा रही है। लिहाजा, यहां कई किसानों की खेतीबाड़ी प्रभावित हुई है।

दूसरा, इस पावर प्रोजेक्ट के चलते यहां का भूजल भी दूषित होने से यह इस्तेमाल लायक नहीं रह गया है। पिछले काफी समय से यहां के लोगों में त्वचा और फेफड़ों से संबंधित बीमारियों के बढ़ने के प्रकरण सामान्य हो गए हैं। इस ताप आधारित बिजली परियोजना से न केवल आम लोग बल्कि यहां के पालतू मवेशी और अन्य जानवरों के लिए संकट गहराया है।

इसी प्रकार, वायु प्रदूषण के मामले में नागपुर देश के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में गिना जा रहा है। इसलिए, कहा जा रहा है कि नई इकाइयां शुरू होने पर यहां का जनजीवन बुरी तरह से प्रभावित हो जाएगा। जाहिर है कि नई इकाइयां शुरू हुईं तो वे यहां प्रदूषण के स्तर को और ज्यादा बढ़ा देंगी।

जनसुनवाई को लेकर क्यों आपत्ति?

प्रस्तावित ताप बिजली परियोजनाओं का पर्यावरणीय संबंधी प्रभावों आकलन किया जा चुका है जिसके विरोध में सवाल उठ ही रहे हैं कि परियोजना से जुड़े अधिकारियों ने परियोजना को शीघ्र शुरू करने के उद्देश्य से जनसुनवाई आयोजित करने का निर्णय भी लिया है। यह जनसुनवाई परियोजना की प्रक्रिया को हरी झंडी देने के क्रम में महत्त्वपूर्ण मानी जा रही है, जो कि परियोजना कार्यालय परिसर में 29 मई, 2023 को दोपहर 12.30 बजे आयोजित होनी है।

इस आयोजन को लेकर स्थानीय लोग कह रहे हैं कि जनसुनवाई के मामले में अधिकारी इतनी हड़बड़ी दिखा रहे हैं। इस जनसुनवाई को ऐसे समय आयोजित किया जा रहा है जब गर्मी अपने चरम पर है। इसलिए स्थानीय लोग पूछ रहे हैं कि इतनी गर्मी में जनसुनवाई क्यों, जबकि शहर का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक जा चुका है।

वहीं, दूसरा सवाल यह है कि इस जनसुनवाई में परियोजना के दस किलोमीटर के दायरे तक आने वाले नागरिकों को ही क्यों बुलाया गया है, जबकि इस परियोजना से इससे कहीं बड़ा क्षेत्र प्रभावित हो सकता है। फिर यह जनसुनवाई कहीं भी हो सकती है और किसी भी समय पर हो सकती है तो तारीख, समय और स्थान को लेकर अधिकारी उनसे संवाद क्यों नहीं कर रहे हैं। इसी तरह, कुछ लोगों को इस बात पर भी आपत्ति है कि परियोजना के कार्यालय परिसर में जनसुनवाई क्यों की जाती है। अच्छा हो अधिकारी लोगों के बीच पहुंच कर जनसुनवाई आयोजित करें। ऐसी ही कुछ और शिकायतें मिल रही हैं। लिहाजा, जनसुनवाई महज औपचारिकता बनकर रह जाएगी इस आशंका से स्थानीय स्तर पर इस जनसुनवाई को रद्द करने की मांग बढ़ती जा रही है।

क्या है राजनीतिक रुख?

इस परियोजना से पीड़ित लोगों के प्रतिनिधि राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से मिल चुके हैं। ये दोनों नेता विदर्भ और खास तौर से नागपुर की राजनीति में दखल रखते हैं। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की ओर से इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। वहीं, परियोजना विरोधियों को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। उन्होंने इस मामले में राज्य के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री तक स्थानीय लोगों की आपत्ति को रखने का वादा किया है। नितिन गडकरी ने परियोजना विरोधियों को यह सुझाव दिया है कि ताप बिजली इकाइयों को रद्द करने की बजाय नागपुर क्षेत्र के अन्य स्थानों पर स्थापित करने को लेकर विचार किया जाना चाहिए। लेकिन, दूसरी तरफ इस परियोजना के विरोधियों ने यह तय किया है कि वे ऐसी इकाई नागपुर जिले में स्थापित नहीं होने देंगे।

दूसरी तरफ, ताप बिजली इकाई से राख के निपटान के संबंध में पर्यावरण नियमों की अवहेलना के कारण खसाला में राख बांध फट चुका है। इससे राख उस नदी में फैल गई जो नागपुर शहर को पानी की आपूर्ति करती है। वहीं, राख से सने पानी के कारण कम से कम दो साल तक इस इलाके में खेती बाधित रही। महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कोराडी में बिजली संयंत्र के कारण होने वाले प्रदूषण के संबंध में महाराष्ट्र राज्य विद्युत विभाग को कई नोटिस जारी किए हैं। इसके लिए जुर्माना भी लगाया गया है, लेकिन स्थितियां सुधरती हुई नहीं दिख रही हैं। बोर्ड ने विभाग को 660 मेगावाट की तीन इकाइयों साफ रखने के लिए गैस डिसल्फराइजिंग प्लांट' स्थापित करने के निर्देश दिए हैं। हालांकि, यह निर्देश आज तक लागू नहीं हुए हैं।

पावर प्लांट के कारण कोराडी क्षेत्र में भूजल दूषित हो गया है। तीन साल पहले असर, मंथन और सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट जैसी संस्थाओं ने कोराडी इलाके के गांवों में सर्वे किया था। गर्मी, सर्दी और मानसून तीनों मौसमों में क्षेत्र के भूजल की जांच प्रयोगशाला के अंदर की गई थी। जांच रिपोर्ट बताती है कि 18 गांवों के भूजल में आर्सेनिक, सेलेनियम, लेड, मैंगनीज, लिथियम, कॉपर, मरकरी, एल्युमिनियम और लिथियम जैसे तत्व बड़ी मात्रा में पाए गए हैं।

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