Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

मथुरा : अब शाही ईदगाह का सर्वे? क्या है पूरा विवाद?

श्रीकृष्ण जन्मभूमि से सटा शाही ईदगाह एक बार फिर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है, परिसर में अब सर्वे की नौबत आ गई है।
shahi Idgah

विकास की फूटी नाव पर सवार भारत की जनता को हर बार मुख्य मुद्दों से दूर ले जाकर सामाजिक अंधकार में धकेल दिया जाता है, कभी बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद में भगवान ढूंढने लगे जाते हैं, तो कभी जघन्य अपराधों की दुनिया से दो अलग-अलग धर्मों वाले मामले को निकालकर लव जिहाद की संज्ञा दे दी जाती है| कहने का अर्थ ये है कि आम जनता जैसे ही अपनी परेशानियों को पहचानने के क़रीब होती है, हमारी सरकारें उन्हें ऐसे धार्मिक धागे में बांध देती हैं, जिसे खोल पाना मुश्किल ही हो जाता है।

अब मथुरा में ऐसा ही एक नया शिगूफा ढूंढकर निकाल लाया गया है जिसे याद करने के लिए इस लाइन पर गौर कीजिए :

‘अयोध्या तो बस झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है’

अयोध्या में मंदिर तो बन गया लेकिन राम का नहीं योगी आदित्यनाथ का। वहीं काशी में भी मामला कोर्ट में ही है, हालांकि अब मथुरा में बनी शाही ईदगाह के सर्वे को लेकर सुनवाई के लिए माहौल तैयार किया जा रहा है। इस मामले पर वैसे तो फैसला 2 जनवरी 2023 यानी सोमवार को ही आ जाना था, लेकिन एक वरिष्ठ वकील की मौत के कारण मामले को मंगलवार के लिए टाल दिया  गया।

भले ही मामले में सुनवाई न हुई हो, लेकिन मुस्लिम पक्ष की ओर से विचार के लिए आवेदन ज़रूर कर दिया गया है। इसमें कोर्ट के सर्वे से जुड़े आदेश पर दोबारा विचार करने की प्रार्थना होगी। फिलहाल यहां पर ये जान लेना ज़रूरी है कि कोर्ट ने सर्वे की रिपोर्ट 20 जनवरी तक देने का आदेश दिया है| मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पास बनी शाही ईदगाह मस्ज़िद पर विवाद वैसे तो सैकड़ों वर्षों पुराना है, लेकिन इसमें सर्वे के लिए माहौल तब तैयार हुआ जब पिछले साल 8 दिसंबर को हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने इसके लिए आवेदन दिया। सिविल जज सीनियर डिविज़नल थर्ड ने 22 दिसंबर को फैसला सुनाते हुए आदेश दिया कि कोर्ट अमीन इस मामले में रिपोर्ट सौंपे। इस आदेश के बाद कोर्ट में विंटर वेकेशन हो गए।

शाही ईदगाह के सर्वे को लेकर अगर दोनों पक्षों की दलीलों पर नज़र डालें तो...

हिंदू पक्ष कहता है कि इस मसले पर 1832 से 1968 के बीच 9 केस कोर्ट में चले, सभी में हिंदू पक्ष जीता। यहां मंदिर से मस्जिद की ओर दरवाज़ा और हिंदू प्रतीक चिह्न मौजूद हैं।

हिंदू पक्ष शाही ईदगाह मस्ज़िद को लेकर दावा करता है कि औरंगज़ेब ने काशी और मथुरा में मंदिर तुड़वाकर मस्जिद बनवा दी| हिंदू पक्ष के अनुसार औरंगजेब ने 1669 में काशी में विश्वनाथ मंदिर तुड़वाया था और 1670 में मथुरा में भगवा केशवदेव का मंदिर तोड़ने का फरमान जारी किया था, इसके बाद काशी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद बना दी गई।

जबकि मुस्लिम पक्ष के तर्क हैं कि ईदगाह में कोई भी हिंदू प्रतीक चिह्न नहीं है। ये ईरानी-मुगल कला से बनी है।

क्या है मथुरा शाही ईदगाह का मामला?

दावा किया जाता है कि इस पूरे विवाद की कहानी 1670 से शुरू हुई, जब मुगल शासक औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान कहे जाने वाले क्षेत्र को ध्वस्त करने का फरमान जारी किया। जिस मंदिर को ध्वस्त किया गया उसे 1618 में बुंदेल राजा यानी ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने 33 लाख मुद्राओं में बनवाया था।

वहीं एक ख़बर के मुताबिक मुगल दरबार में आने वाले इटालियन यात्री निकोलस मनुची ने अपनी किताब 'मुगलों का इतिहास' में बताया है कि कैसे रमज़ान के महीने में श्रीकृष्ण जन्मस्थान को ध्वस्त किया गया और वहां ईदगाह मस्जिद बनाने का फरमान जारी हुआ।

कहा जाता है कि मुगलों का राज होने की वजह से यहां हिंदुओं के आने पर रोक लगा दी गई, नतीजा ये हुआ कि 1770 में गोवर्धन में मुगलों और मराठाओं के बीच जंग हुई जिसमें मराठाओं की जीत हुई, इसके बाद वहीं पर मराठाओं ने फिर से मंदिर का निर्माण किया।

अब 13.37 एकड़ ज़मीन का है विवाद !

कहा जाता है कि मराठाओं ने ईदगाह मस्जिद के पास ही 13.37 एकड़ ज़मीन पर भगवान केशवदेव यानी श्रीकृष्ण का मंदिर बनवाया, लेकिन धीरे-धीरे ये मंदिर भी जर्जर होता चला गया, कुछ सालों बाद आए भूकंप में मंदिर ध्वस्त हो गया और ज़मीन टीले में बदल गई, फिर 1803 में अंग्रेज़ मथुरा आए और 1815 में उन्होंने कटरा केशवदेव की ज़मीन को नीलाम कर दिया, इसी जगह पर भगवान केशवदेव का मंदिर था। बनारस के राजा पटनीमल ने इस ज़मीन को खरीदा।  

1920 और 1930 के दशक में ज़मीन खरीद को लेकर विवाद शुरू हो गया। मुस्लिम पक्ष ने दावा किया कि अंग्रेज़ों ने जो ज़मीन बेची, उसमें कुछ हिस्सा ईदगाह मस्जिद का भी था।

फरवरी 1944 में उद्योगपति जुगल किशोर बिरला ने राजा पटनीमल के वारिसों से ये ज़मीन साढ़े 13 हज़ार रुपये में खरीद ली, आज़ादी के बाद 1951 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट बना और ये 13.37 एकड़ जमीन कृष्ण मंदिर के लिए इस ट्रस्ट को सौंप दी गई।

हालांकि इतिहास के पन्नों में लिखी मथुरा ज़मीन की इन बातों में अधिकतर महज़ दावे हैं, कि ज़मीन को कैसे ख़रीदा व बेचा गया और यहां क्या हुआ करता था और क्या तोड़ा गया !

समझौते से हुआ विवाद का जन्म

उद्योगपतियों द्वारा दिए गए चंदे के पैसों से साल 1953 के अक्टूबर से 1958 तक राम कृष्ण जन्मभूमि मंदिर का निर्माण चला और इसे शाही ईदगाह से बिल्कुल सटाकर बनाया गया। इसके बाद साल 1958 में श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संस्थान नाम की एक संस्था का गठन हुआ, हालांकि कानूनी तौर पर इस संस्था का 13.37 एकड़ ज़मीन पर हक नहीं है।

12 अक्टूबर 1968 का दिन एक महत्वपूर्ण दिन था, जब श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्ज़िद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक ऐतिहासिक समझौता किया, इसमें तय हुआ कि 13.37 एकड़ ज़मीन पर मंदिर और मस्ज़िद दोनों बने रहेंगे। हालांकि श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट आज भी इस समझौते को धोखा बताता है।

फिलहाल आपको बता दें कि मौजूदा वक्त में 13.37 एकड़ ज़मीन में 10.9 एकड़ ज़मीन का हिस्सा श्रीकृष्ण जन्मस्थान के पास है जबकि बचा हुआ 2.5 एकड़ शाही ईदगाह के पास।

‘धर्म एक निजी सोच और संपत्ति है’ इस बात को चिल्ला कर इनकार किया जा सकता है, हालांकि वास्तविकता यही है और जब वास्तविकता यही है तो निजी  चीज़ों पर बहस करना और मुद्दे बनाना जनता को मूर्ख बनाने जैसा है।

जिसका सीधा सा कारण यही है कि कैसे अपनी राजनीतिक नाकामियों को छुपाया जा सके और फिर से सत्ता में अपनी जगह बनाई जा सके। क्योंकि ज्ञानवापी से लेकर अयोध्या तक जब-जब ऐसे मामले सामने आए हैं, तब-तब देशभर की नज़रें उन्हीं पर टिका दी जाती हैं, एक बार फिर जब देश आर्थिक मंदी, महंगाई, बेरोज़गारी, दलितों के शोषण जैसी कुरीतियों का दंश झेल रहा है, और चुनाव की घड़ियां भी नज़दीक आ गई हैं, तब फिर से मथुरा जैसे धार्मिक मुद्दों को हवा देकर खुद को स्थापित करने की कोशिश की जा रही है।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest