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गुजरात चुनाव से पहले जिग्नेश की घेराबंदी के मायने

चुनावों से ठीक कुछ महीनों पहले ही कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। पार्टी के गुजरात के कार्यकारी अध्यक्ष जिग्नेश मेवाणी को 6 महीने की सज़ा सुना दी गई है।
Jignesh Mevani

इसी साल के आखिर में गुजरात विधानसभा के चुनाव होने हैं, और भाजपा, कांग्रेस से ज्यादा आम आदमी पार्टी की सक्रियता वहां दिखाई पड़ रही है। पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल गुजरात की गलियां छान रहे हैं, और सरकार बनने पर यहां भी दिल्ली मॉडल लागू करने की बात कर रहे हैं। शायद यही कारण है कि भाजपा सीधे तौर पर गुजरात के अंदर आम आदमी पार्टी को न घेरकर केजरीवाल को दिल्ली में ही घेरने की कोशिश कर रही है।

लेकिन केजरीवाल और आम आदमी पार्टी से ज्यादा भाजपा की चिंता कांग्रेस है, क्योंकि पिछले चुनाव में भी कांग्रेस ने भाजपा को 100 सीटों के अंदर ही रोक दिया था, और फिर इस बार राहुल गांधी भारत जोड़ों यात्रा के ज़रिए महंगाई, बेरज़ोगारी, गरीबी जैसे मुद्दों पर हल्ला बोल किए हुए हैं। दूसरी ओर राज्य के अंदर पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जिग्नेश मेवाणी भी भाजपा के लिए परेशानी का विषय बने हुए है। क्योंकि वो सीधे तौर पर राज्य के दलितों, पटेलों और कहीं हद तक ब्राह्मण वोटों पर असर कर सकते हैं।

शायद यही कारण है भाजपा पिछले कई महीनों से जिग्नेश मेवाणी को टारगेट कर रही है। इसी बीच कुछ ही महीनों में जिग्नेश मेवाणी को दूसरी बार सज़ा सुनाई गई है। जिग्नेश को साल 2016 में दंगे भड़काने और भीड़ इकट्ठा करने जैसे मामलों में 6 महीने की सज़ा सुनाई गई है। जिग्नेश के साथ इस मामले में 19 लोगों को सज़ा सुनाई गई है। हालांकि जिग्नेश की सज़ा को 17 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दिया गया है, ताकि वे आगे अपील कर सकें।

इससे पहले भी जिग्नेश मेवाणी को असम की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था और करीब सात दिनों बाद उन्हें रिहाई मिली थीं।

समझा जा रहा है कि भाजपा ने चुनावों से पहले विपक्ष के सक्रिय नेताओं के ख़िलाफ अपना धर-पकड़ अभियान शुरु कर दिया है। कहने का मतलब ये है कि पिछली बार की तरह भाजपा इस बार के चुनावों में किसी भी तरह की कोई ढील छोड़ना नहीं चाहती है।

सिर्फ जिग्नेश मेवाणी की ही बात करें, तो वो दलितों के बड़े नेता माने जाते हैं। पिछला विधानसभा चुनाव उन्होेंने निर्दलीय ही लड़ा था और जीत हासिल की थी। हालांकि इस जीत में भी कई पार्टियों और संगठनों के समर्थन का योगदान था। कांग्रेस भी इनमें से एक थी। और अब तो जिग्नेश बाक़ायदा कांग्रेस के साथ आ गए हैं। गुजरात का बड़ा राजनीतिक समीकरण दलितों के पक्ष में ही झुका हुआ है। यही कारण है कि भाजपा जिग्नेश मेवाणी को समय-समय पर चेताने की कोशिश कर रही है।

हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि प्रदेश की 6 करोड़ जनता में 52 फीसदी आबादी पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की है, और पिछड़ा वर्ग में शामिल 146 से ज्यादा जातियां और उपजातियां ही तय करती हैं कि राज्य की सत्ता किसके हाथ होगी। माना जाता है कि राज्य में सबसे प्रभावी पाटीदार बिरादरी यानी कि पटेल समुदाय की हिस्सेदारी 16 फीसदी है, जिसे राज्य में सबसे ताकतवर जाति माना जाता है। लगभग 16 प्रतिशत संख्या क्षत्रिय वर्ग की और दलितों की संख्या मात्र 7 फीसदी ही है। इस राज्य में सबसे कम सवर्णों की संख्या है।

अगर हम किसी भी राज्य में जातीय समीकरण सिमटने की बात करें, तो अक्सर देखा जाता है कि पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं का ज्यादा झुकाओं सवर्णों से इतर ही होता है। फिर उनपर भी अगर कुछ मुद्दे हावी हो जाएं तो इनका एकतरफा होने का चांस 50 प्रतिशत से ज्यादा हो जाता है। यानी ये समीकरण अगर भाजपा के खिलाफ चले गए और कांग्रेस के युवा नेता जिग्नेश मेवाणी अगर मुद्दों को जनता तक पहुंचाने में सफल हो गए तो भाजपा के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है। शायद ये भी एक बड़ा कारण है जिग्नेश मेवाणी पर लगातार कानून हमलों का।

हालांकि ऐसे कानूनी हमलों के अलावा भी भाजपा अपना दूसरा खेल, खेल रही हैं, पाटीदार मतदाताओं को जुटाने के लिए हार्दिक पटेल को पहले ही कांग्रेस खेमे से तोड़ चुकी है। पाटीदार समाज के नेताओं की बात करें तो सरदार बल्लभ भाई पटेल से लेकर केशुभाई पटेल, चिमनभाई पटेल, आनंदीबेन पटेल जैसे नाम गुजरात की राजनीति में बड़े चेहरे हैं। वहीं युवा हार्दिक पटेल भी इसी पाटीदार बिरादरी से आते हैं। यही कारण है कि विधानसभा चुनाव 2022 से ठीक एक साल पहले भाजपा ने पाटीदार नेता भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया। वहीं अब बड़े नेता हार्दिक पटेल को भी अपने खेमे में शामिल कर लिया है।

आपको बता दें कि जब कुछ महीनों पहले जिग्नेश मेवाणी को गिरफ्तार किया गया था, तब उन्होंने कहा था कि प्रदेश के 45 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं। राज्य के अधिकांश इलाकों में पीने के पानी की किल्लत है। कॉर्पोरेट लूट चल रही है। इन चीज़ों के खिलाफ बोलने के कारण ही टारगेट किया जा रहा है।

ख़ैर... भाजपा इन मुद्दों से दूर अपनी अलग जातीय राजनीति गढ़ने में लगी है। लेकिन इस बार उसे कांग्रेस के साथ-साथ आम आदमी पार्टी का भी सामना करना पड़ेगा। अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी लगातार गुजरात के शहरी इलाकों में भाजपा के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। केजरीवाल और उनकी पार्टी को कम इसलिए नहीं आंका जा सकता है क्योंकि पिछले दिनों वो पंजाब में चुनाव जीत चुके हैं।

ऐसे में भाजपा से ज्यादा कांग्रेस को इस पार्टी से डर होगा। दूसरी ओर अब जिग्नेश मेवाणी पर कार्रवाई के बाद तो कांग्रेस ने नई रणनीति बनाने में जुट गई होगी।

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