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राहत पैकेज की चौथी किस्त: टूटे-फूटे और चू रहे फ्लास्क में फीकी चाय! 

‘जो घोषणाएं की गईं वे नीतिगत फैसले थे, पहले से जारी प्रोजेक्ट्स के बारे में एक बार फिर से घोषणा की गई है। सरकार की ओर से निजी संस्थाओं को सहायता दिए जाने की भी पेशकश की गई है, बशर्ते वे अपनी ओर से पूंजी निवेश की पहल करें। जबकि अर्थशास्त्र की बेसिक जानकारी रखने वाले को पता है कि किसी भी सुस्त अर्थव्यवस्था में, जब मांग धीमी पड़ चुकी हो, निजी व्यवसायों की ओर से पूंजी निवेश नहीं किया जायेगा।’

 
nirmala

20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज के हिस्से के रूप में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 16 मई को “पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में” सरकार द्वारा की गई पहल की “चौथी किस्त” की घोषणा की। पिछली तीन “किश्तों” के विपरीत इस चौथी किस्त की घोषणा में किसी भी प्रकार के ऋणों की घोषणा, ऋण माफ़ी या क़र्ज़ की गारंटी की कोई योजना शामिल नहीं थी। ये सभी घोषणाएं नीतिगत फैसलों से संबंधित थीं, जिसमें आठ क्षेत्रों खनन, कोयला, मिनरल, नागरिक उड्डयन, रक्षा उत्पादन, बिजली, परमाणु उर्जा और अंतरिक्ष के क्षेत्रों में ढांचागत सुधारों को लेकर जिक्र था।

कीनेसियन सिद्धांत के अनुसार अर्थशास्त्र में यदि चीजों को सरल शब्दों में रखें, तो मंदी के दौर में सरकार की ओर से आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज की पेशकश स्वाभाविक है। इसमें सरकार की ओर से ज़्यादा से ज़्यादा ख़र्च किया जाता है ताकि मांग में लगातार चल रही कमी को दूर किया जा सके, ताकि निजी उपभोग में आई कमी और निवेश के अभाव की खाई को पाटा जा सके। 2007-08 में आई वैश्विक वित्तीय संकट के दौर में भी दुनिया भर की कई सरकारों ने इसी सिद्धांत का अनुपालन किया था।

आज भारत में आर्थिक स्थिति बेहद ख़़राब हो गई है। सरकार की ओर से बिना किसी योजना के लॉकडाउन थोपे जाने की वजह से अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है।

ऐसे समय में सरकार को चाहिए था कि मांग में वृद्धि करने के लिए वह श्रम बहुल बुनियादी ढांचे वाली परियोजनाओं पर भारी मात्रा में निवेश की घोषणा करती। लेकिन मौजूदा सरकार आज तक इसी काम को तो अंजाम दे पाने में असफल रही है। शायद इसी वजह से मोदी सरकार ने उपायों की घोषणा करते वक्त प्रोत्साहन पैकेज शब्द को इस्तेमाल में नहीं लाया है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसका संबंध अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने से है।

चौथी किस्त में जो घोषणाएं की गईं उनमें मुख्य विशेषताएं थीं:

1. कोयला क्षेत्र में व्यावसायिक खनन की शुरुआत करना

2. कोयला क्षेत्र में विविध अवसरों पर पहल

3. कोयला क्षेत्र में उदारीकृत शासन व्यवस्था

4. खनिज क्षेत्र में निजी निवेश और नीतिगत सुधारों को प्रोत्साहन देने की पहल

5. प्रतिरक्षा उत्पादन के क्षेत्र में आत्म निर्भरता को बढ़ावा देना

6. रक्षा उत्पादन क्षेत्र में नीतिगत सुधारों की शुरुआत

7. नागरिक उड्डयन क्षेत्र में कुशल एयरस्पेस प्रबंधन

8. पीपीपी के माध्यम से और अधिक विश्व स्तरीय हवाई अड्डों का निर्माण कार्य

9. विमानों के रख-रखाव, रिपेयर और ओवरहालिंग (एमआरओ) के क्षेत्र में भारत को इसका वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करने का लक्ष्य

10. बिजली क्षेत्र में टैरिफ नीति में सुधार, केंद्र शासित प्रदेशों में बिजली वितरण का निजीकरण

11. सामाजिक क्षेत्र में व्यवहार्यता गैप अनुदान स्कीम में सुधार के ज़रिए निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देना

12. अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी भागीदारी को बढ़ावा देना

13. परमाणु उर्जा क्षेत्र में सुधारों की पहल

 

सबसे पहले 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज में से कोयला क्षेत्र में व्यावसायिक खनन की घोषणा की गई ताकि ठप पड़ी हुई अर्थव्यवस्था के प्रश्न को निपटाने के उपायों के रूप में इसे घोषित किया जाए! इस “सुधार” के तहत कोयले या अन्य खनिजों के खनन संबंधी कार्यों में बिना किसी पूर्व अनुभव के भी दुनिया भर की कंपनियों को नीलामी की प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है और नीलामी प्रक्रिया में बिना किसी पात्रता के मानदंडों पूरा किए बिना भी शामिल होने की छूट दे दी गई है।

असल में इस घोषणा का संबंध पीएम की ओर से घोषित आर्थिक पैकेज से कोई लेना-देना नहीं है। वास्तव में देखें तो संसद ने इस वर्ष (12 मार्च को) ही संसद के बजट सत्र में खनिज कानून (संशोधन) विधेयक, 2020 को पारित कर दिया था। वित्त मंत्री की ओर से की गई घोषणा उस विधेयक की कॉपी-पेस्ट से ज़्यादा कुछ भी नहीं है।

आख़िरकार यह 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज के उपायों के रूप में कैसे हो सकता है?

कोयला क्षेत्र में विविध अवसर कोल गैसीफिकेशन/लिक्वफैक्शन को कवर करता है; निजी कोयला ब्लॉकों में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 50,000 करोड़ रुपये, जिसमें 18,000 करोड़ रूपये तक का निवेश खदानों से रेलवे ट्रैक तक कोयले को मशीनीकृत हस्तांतरण (कन्वेयर बेल्ट) शामिल है। सरकार की कोयले के लिक्वफैक्शन की योजना भी कोई नई नहीं है। इस संबंध में आवंटन के लिए दिशा-निर्देश छह साल पहले ही सितंबर 2014 में जारी कर दिए गए थे।

कोयला मंत्रालय की ऑनलाइन कोयला प्रोजेक्ट्स की निगरानी करने वाले पोर्टल में 309 स्वीकृत ढांचागत विकास के लिए हज़ारों करोड़ रुपयों के विकास कार्यों का उल्लेख है, जिसमें खदानों से कोयले का यंत्रीकृत हस्तांतरण शामिल है।

पहले से जारी विकासात्मक कार्यों के बारे में सरकार क्यों दावा कर रही है कि अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज के तहत ये एक नई पहल की गई है?

कोयला क्षेत्र में उदारीकृत काल एक अन्य मुद्दा है जिसे वित्त मंत्री द्वारा उठाया गया है। खनन कानून (संशोधन) अध्यादेश, 2020 को 10 जनवरी 2020 को भारत के राष्ट्रपति की ओर से सार्वजनिक तौर पर लागू कर दिया गया था। और ठीक उसी दिन क़ानून एवं न्याय मंत्रालय के विधायी विभाग ने भारत के राजपत्र में इस संबंध में अध्यादेश प्रकाशित कर दिया था। मार्च में संसद के बजट सत्र के दौरान दोनों सदनों में यह विधेयक पारित हो चुका है और 13 मार्च से खनिज क़ानून (संशोधन) अधिनियम, 2020 लागू हो चुका है। इस अधिनियम का उद्देश्य कोयला क्षेत्र का उदारीकरण करना था। इस संशोधन के ज़रिए कोयला ब्लॉक की नीलामी में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भागीदारी को अनुमति प्रदान कर दी गई थी और कई अन्य परिवर्तनों के साथ, खनन किए गए कोयले पर अंतिम उपयोग संबंधी प्रतिबंधों को हटा दिया गया था।

वित्त मंत्री ने इसकी व्याख्या नहीं की कि किस प्रकार से यह आर्थिक पैकेज का हिस्सा बन गया।

खनिज क्षेत्र में निजी निवेश और नीतिगत सुधारों को बढ़ावा देने की पहल को मीडिया ब्रीफिंग के दौरान अगला मुद्दा बनाया गया था। जबकि खनिज नीलामी नियमों को जुलाई 2015 में ही संशोधित कर दिया गया था और इस वर्ष मार्च में दो बार (पहला और दूसरा संशोधन) के साथ इसमें अतिरिक्त संशोधन किए गए थे। राष्ट्रीय खनिज नीति, 2008 को बदल दिया गया और 2019 में एक नई नीति पेश की गई थी। वित्त मंत्री ने जो कुछ भी कहा है कि सरकार यह करने जा रही है, वह तो पहले ही किया जा चुका था।

मीडिया ब्रीफिंग में वित्त मंत्री ने कहा कि नीलामी के लिए 500 नए खनन ब्लॉक खोले जाएंगे। जबकि खनन मंत्रालय की वेबसाइट कहती है कि 2015-16 से 2019-20 के बीच कुल नीलाम हुए ब्लॉकों की संख्या मात्र 70 थी, जिसमें (27 लाइमस्टोन, 24 लौह अयस्क, 6 बॉक्साइट, 4 सोने, 3 ग्रेफाइट, 3 मैंगनीज, 2 कॉपर और 1हीरे) की खदाने आवंटित की गईं थीं। इसमें यह भी दर्शाया गया है कि अगले 50 वर्षों में सरकार को इन 70 खानों से कुल 2.02 लाख करोड़ रुपये की आय प्राप्त होने की संभावना है।

यदि सरकार पिछले पांच वर्षों में मात्र 70 खानों की नीलामी कर पाई है तो 500 खदानों की नीलामी में उसे कितना वक्त लगने वाला है? इसका अनुमान कोई भी स्वयं लगा सकता है। और सुदूर भविष्य को ध्यान में रखकर बनाई गई इस लंबी प्रक्रिया से वर्तमान में अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने वाले आर्थिक पैकेज का आखिर क्या संबंध है?

कोयला और खनिज क्षेत्रों के बाद वित्त मंत्री ने रक्षा विनिर्माण क्षेत्र के बारे में अपनी बातों को रखा। उन्होंने इस संबंध में बताया कि ऑटोमैटिक रूट के तहत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा को इस क्षेत्र में 49% से बढ़ाकर 74% किया जाएगा। उन्होंने आगे कहा कि अनुबंध प्रबंधन की सहायता के लिए एक प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट (पीएमयू) बनाया जाएगा जिससे कि हथियारों/प्लेटफार्मों के जनरल स्टाफ क्वालिटेटिव रिक्वायरमेंट्स (जीएसक्यूआर) की एक यथार्थवादी सेटिंग और जीर्णोद्धार परीक्षण और टेस्टिंग प्रक्रियाओं को अंजाम दिया जा सकेगा।

मेक इन इंडिया नीति के तहत 2016 में रक्षा क्षेत्र में एफडीआई को 100% तक बढ़ा दिया गया था, हालांकि इसे आटोमेटिक रूट के तहत लागू किया गया था। उस दौरान इसकी सीमा 26% तक थी जिसे बढाकर 49% तक कर दिया गया था। 49% से ऊपर के निवेश के लिए निवेशकों को सरकारी प्रक्रिया से गुज़रने की आवश्यकता पड़ती है। तब इस बारे में कहा गया था कि इसकी लिमिट 49% तक ही सीमित करके इसलिए रखी गई है क्योंकि यह क्षेत्र राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित है और विदेशी कंपनियों को रक्षा विनिर्माण और संयुक्त उद्यमों में सारी ताक़त दे देना कोई बुद्धिमत्ता नहीं होगी और इस हिस्सेदारी में नियंत्रण भारतीय साझेदार का ही बने रहना चाहिए।

पिछले डीपीआईआईटी डेटा (डिपार्टमेंट ऑफ़ प्रमोशन ऑफ़ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड) द्वारा प्रकाशन के अनुसार 2016 में किए गए नीतिगत बदलावों के बाद से भारत के एफडीआई अंतर्प्रवाह में कुछ ख़ास बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। 2017, 2018 और 2019 में जनवरी से सितंबर के बीच के कैलेंडर वर्ष में एफडीआई अंतर्प्रवाह क्रमशः 0.29 मिलियन रुपये, 156.74 मिलियन रुपये और 107.35 मिलियन रुपये था। एफडीआई की सीमा को बढ़ाकर 100% कर दिए जाने से कितना निवेश बढेगा, इसे देखना अभी शेष है। इसके साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न कैसे अब कोई मुद्दा नहीं रह गया है, यह एक रहस्य बना हुआ है।

पीएमयू की सेटिंग जीएसक्यूआर की यथार्थवादी सेटिंग और ट्रायल /टेस्टिंग की प्रक्रियाओं की सुधार के काम का अर्थव्यवस्था की गिरावट को रोकने या इसे पुनर्जीवित करने से कोई लेना-देना नहीं है। यहां तक कि एफडीआई सीमा बढ़ाने से भी निकट भविष्य में अर्थव्यवस्था को कोई राहत नहीं मिलने जा रही है। इस संबंध में अभी भी कई क़दम उठाए जाने बाकी हैं। ऐसे में फिर क्यों वित्त मंत्री ने अपनी घोषणा में इसे अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के उपाय के रूप में गिनाया है यह एक अगला रहस्य है!

वित्त मंत्री ने सरकार की ओर से नागरिक उड्डयन क्षेत्र में लिए किए जाने वाले विभिन्न उपायों के बारे में भी बताया, जिसके बारे में सरकार योजना बना रही है। इस क्षेत्र में जो एकमात्र बड़ी घोषणा की गई, वह थी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) द्वारा नियंत्रित हवाई अड्डों के निजीकरण का मुद्दा।

मार्च 2019 में न्यूज़क्लिक ने एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें बताया गया था कि किस प्रकार से मोदी सरकार क़ानून का उल्लंघन कर रही है। इस संबंध में उसने अपने ख़ुद के कुछ मंत्रालयों और विभागों की सलाह को अनदेखा कर दिया था, ताकि हाल ही में अपग्रेड किए गए छह हवाई अड्डों को भविष्य में उनके संचालन और विकास के लिए निजी कंपनियों को अनुमति दी जा सके। मानदंडों में किए गए इन बदलावों ने अडानी समूह को इस क्षेत्र में एक नया प्रवेशक बना दिया है, जिसने अहमदाबाद, गुवाहाटी, जयपुर, लखनऊ, मंगलुरु और तिरुवनंतपुरम में हवाई अड्डों के विकास के लिए जारी सभी छह निलामियों को हथिया लिया है। बाद में केरल सरकार की ओर से और असम में एक्टिविस्ट के एक समूह ने इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अदालतों का दरवाज़ा खटखटाया और केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाए। यहां तक कि राजस्थान सरकार ने भी इस विषय में अपनी कुछ चिंताएं ज़ाहिर की थीं। इन वजहों को देखते हुए अडानी समूह, जिसने एक साल से अधिक समय से इस नीलामी को हासिल कर रखा था उसे छह में से तीन हवाईअड्डे का ही काम सौंपा जा सका है।

नागरिक उड्डयन मंत्रालय के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने इस लेखक और वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता को बताया है कि नीलामी के दूसरे दौर में इस बार सरकार पीपीपी की बैठक में अधिकारियों द्वारा रखे गए सुझावों के साथ ही आगे बढ़ेगी। आगे से इस संबंध में विवादों से बचने के लिए किसी एक कंपनी को दो से अधिक हवाई अड्डों का आवंटन नहीं किया जाएगा।

जब दिल्ली और मुंबई हवाई अड्डों का निजीकरण क़रीब 14 वर्ष पूर्व में किया गया था, तब रियायतकर्ता को यह लीज 30 साल की अवधि के लिए आवंटित की गई थी। जबकि अंतिम पट्टे की अवधि का क़रार मोदी सरकार ने बढाकर 50 वर्षों का कर दिया है। एएआई के साथ राजस्व को साझा करने वाले मॉडल के बजाय, यह नया मॉडल प्रति यात्री शुल्क पर आधारित है। एएआई कर्मचारियों की विभिन्न यूनियनों ने अनुबंधों की शर्तों पर कई सवाल उठाए हैं और आरोप लगाए हैं कि इसे निजी पार्टियों को लाभ पहुंचाने के लिए तैयार किया गया था और इससे एएआई को घाटा होगा और जो घाटा अंततः सरकार को ही होने जा रहा है। देश के विभिन्न हिस्सों के कई उच्च न्यायालयों में उनकी ओर से मुक़दमें दायर किए गए हैं और ये केस अभी भी चल रहे हैं।

इस परिदृश्य में किस प्रकार से नीलामी के इन नए समूहों को आगे बढाया जाता है, इसे देखना अभी बाकी है। विशेषकर एक ऐसे दौर में जब अर्थव्यवस्था की हालत वास्तव में बेहद ख़राब है और पिछली नीलामी के बाद से हवाई यात्रियों की साल-दर-साल संख्या में काफी गिरावट देखने को मिली है।

नागरिक उड्डयन के लिए एक कुशल वायु क्षेत्र प्रबंधन के संबंध में जिन क़़दमों को उठाने की घोषणा वित्त मंत्री ने की है, उन्हें एक साल पहले ही तैयार किया जा चुका था।

पहले की घोषणाओं की तरह ही इस कोशिश को भी वर्तमान या तत्काल भविष्य में अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए आर्थिक पैकेज के हिस्से के तौर पर नहीं गिनाया जा सकता है।

बिजली क्षेत्र के संदर्भ में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से जो भी घोषणाएं की गई हैं वे सभी नीतिगत फ़ैसले हैं, जो किसी भी तरह से आर्थिक पैकेज से संबद्ध नहीं हैं। इस सेक्टर से संबंधित एकमात्र बड़ी घोषणा केंद्र शासित राज्यों में डिस्कॉम के निजीकरण को लेकर की गई है।

वित्त मंत्री की ओर से वायबिलिटी गैप फंडिंग (वीजीएफ) की भी घोषणा की गई है, जिसमें सामाजिक अधिसंरचनात्मक विकास परियोजनाओं में 30% की सीमा तय की गई है। इस क़वायद के लिए 8,100 करोड़ रुपये के बजट का उल्लेख किया गया है जो कि फिर से एक पुरानी पहल को ही दोहराया गया है। इस वर्ष के अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा था: “मौजूदा हर एक ज़िला अस्पताल में पीपीपी प्रणाली के तहत एक मेडिकल कॉलेज को संलग्न करने के कार्य को प्रस्तावित किया जाता है। वे राज्य जो मेडिकल कॉलेज के लिए अस्पताल परिसर पूरी तरह से अनुमति देंगे और रियायती दरों पर ज़मीन मुहैय्या कराने के लिए तैयार हैं, उन्हें वायबिलिटी गैप फंडिंग प्राप्त हो सकेगी। योजना के विवरणों पर भविष्य में काम किया जाएगा।”

अब इसे ध्यान में रखे जाने की ज़रूरत है क्योंकि आज महामारी के बीच में जब सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली भारी संख्या में रोगियों के दबाव से चरमरा चुकी है, वहीँ निजी अस्पताल साधारण जांच तक के लिए मरीज़ों को पैसों के मामले में बुरी तरह निचोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे में मोदी सरकार सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में अधिक निवेश करने के लिए राज्यों को मदद पहुंचाने के बजाय, मौजूदा सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को निजी कंपनियों को सौंपना चाहती है और इतना ही नहीं बल्कि ऊपर से वीजीएफ तक की पेशकश की जा रही है!

वीजीएफ के उल्लेख का अवसर बजट में एक बार और तब किया गया था जब वित्त मंत्री ने कहा था कि सरकार निजी कंपनियों को उन ज़िलों में आयुर्वेदिक अस्पतालों को स्थापित करने के लिए मदद पहुंचाएगी, जहां वर्तमान में ऐसे अस्पताल उपलब्ध नहीं हैं।

अगला मुद्दा अंतरिक्ष कार्यक्रमों में निजी भागीदारी को अनुमति प्रदान करने से संबंधित था। इसमें निजी क्षेत्र के लोगों को भविष्य की परियोजनाओं के लिए इसरो की सुविधाओं का उपभोग करने की अनुमति दी जाएगी। हालिया आर्थिक पैकेज का इससे क्या लेना-देना है? वित्त मंत्री की ओर से इस बारे में अधिक खुलासा नहीं किया गया।

परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में सुधार: वित्त मंत्री ने बताया है कि कैंसर और अन्य बीमारियों में किफायती उपचार के माध्यम से मानवता के कल्याण हेतु चिकित्सा आइसोटोप के उत्पादन के लिए शोध रिएक्टर को पीपीपी की तर्ज पर स्थापित किया जाएगा।

यह एक स्वतंत्र इकाई है जिसे परमाणु ऊर्जा विभाग के भीतर बोर्ड ऑफ़ रेडिएशन एंड आइसोटोप टेक्नोलॉजी (BRIT) के नाम से जाना जाता है। इसका कार्य "स्वास्थ्य, कृषि, अनुसंधान और उद्योग के क्षेत्र में प्रयोग में लाने के लिए रेडिएशन और आइसोटोप पर आधारित उत्पाद और सेवाएं प्रदान करना है।"

जब एक अच्छा सरकारी संस्थान पहले से मौजूद है, तो सरकार पीपीपी मॉडल को इस्तेमाल में लाकर किसी नए संस्थान तैयार करना क्यों चाहती है? और आख़़िरकार यह आर्थिक पैकेज से कैसे जुड़ा है?

जैसा कि इस लेख की शुरुआत में ही उल्लेख कर दिया गया था कि किसी अर्थव्यवस्था में तेज़ी लाने को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार की ओर से आर्थिक पैकेज में भारी मात्रा में तत्काल ख़र्च किये जाने की आवश्यकता होती है। इस किस्त में जो भी घोषणाएं की गईं हैं वे या तो नीतिगत फैसले थे, या मौजूदा परियोजनाओं के बारे में थे, पहले से मौजूद योजनाओं की दोबारा से घोषणा की गई और सरकार की ओर से निजी संस्थाओं को समर्थन देने की योजना, यदि वे अपना पैसा निवेश करते हैं। आर्थिक विषयों पर मामूली जानकारी के हिसाब से देखें तो जब अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ रही हो और मांग में लगातार कमी देखी जा रही हो तो ऐसे में निजी व्यवसायों से पूंजी निवेश की उम्मीद बेमानी साबित होगी।

नीतिगत फैसले 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज का हिस्सा कैसे बन गए, इस बारे में किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो जब सरकार ही निवेश के लिए तैयार नहीं है तो मात्र इन घोषणाओं के ज़रिए ही कैसे अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित किये जाने की आस लगाईं जा रही है?

रवि नायर स्वतंत्र पत्रकार हैं। ट्विटर पर उनसे @t_d_h_nair पर संपर्क किया जा सकता है।

 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।

https://www.newsclick.in/Modi-Government-Nirmala-Sitharaman-Economic-Reforms-Privatisation

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