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मोदी जी!, मन की बात छोड़िये, किसानों से सीधी बात कीजिये न!

पूरी दुनिया किसानों के आंदोलन के बारे में बात कर रही है लेकिन देश के प्रधानमंत्री मोटिवेशनल स्पीकर बने हुए हैं। रेडियो पर एकतरफा ज्ञान की गंगा बहा रहे हैं।
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भारत के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। वो एक किस्म के बहुरुपिये और अव्वल दर्ज़े के जादूगर हैं। वो शब्दों के भ्रमजाल से मुद्दों को भटका देते हैं। इस बार की मन की बात में उन्होंने कहा कि नये कृषि कानूनों के बारे में अफवाह फैलाई जा रही है और किसान को पूरी जानकारी नहीं है। वो बातों घुमा-फिराकर कहते हैं ताकि भागने के लिये चोर दरवाज़ा बचा रहे।

उन्होंने इस बार मन की बात में न्यूज़ीलैंड, कनाडा से लेकर पोलैंड तक की बात की लेकिन देश की राजधानी यानी दिल्ली में बैठे किसानों का ज़िक्र तक नहीं किया। पूरी दुनिया किसानों के आंदोलन के बारे में बात कर रही है लेकिन देश के प्रधानमंत्री मोटिवेशनल स्पीकर बने हुए हैं। रेडियो पर एकतरफा ज्ञान की गंगा बहा रहे हैं। उन्होंने घुमाकर लेकिन साफ-साफ कह दिया है कि नये कृषि कानून ऐतिहासिक हैं और किसानों को भ्रम में डाला जा रहा है,किसानों को सही जानकारी नहीं है। उन्होंने  मन की बात में कहा –

“भारत की कृषि में नये आयाम जुड़ रहे हैं। पिछले समय हुए कृषि सुधारों ने किसानों के लिये नई संभावनाओं के द्वार भी खोले हैं। काफी विचार-विमर्श के बाद भारत की संसद ने कृषि सुधारों को कानूनी स्वरूप दिया। इनसे न सिर्फ किसानों के अनेक बंधन समाप्त हुए हैं बल्कि उन्हें नये अधिकार भी मिले हैं, नये अवसर भी मिले हैं। इन अधिकारों ने बहुत ही कम समय में किसानों की परेशानियों को कम करना शुरू कर दिया है। ”

महाराष्ट्र के किसान जितेंद्र को मक्का फसल का बकाया मिलने का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा-

“क्षेत्र कोई भी हो, हर तरह के भ्रम और अफवाहों से दूर, सही जानकारी हर व्यक्ति के लिए बहुत बड़ा संबल होती है। ”

मतलब वही पुराना नैरेटिव कि किसान अफवाहों के शिकार हैं। मोदी जी किसानों को सुनने और समझने की बजाय किसानों को ही खेती के बारे में ज्ञान बांट रहे हैं। कानूनों को “सुधार” कहकर भाषा का खेल रच रहे हैं। वो भी उस मौके पर जब दिल्ली को चारों तरफ से किसानों ने घेर लिया है और सरकार के गले में छुछुंदर फंस गया है। अगर किसानों को सही जानकारी नहीं है तो नरेंद्र मोदी खुद जाकर सही-सही जानकारी क्यों नहीं दे देते। बहुत दूर भी नहीं जाना है बल्कि अब तो लाखों किसान दिल्ली में ही आये हुए हैं। मन की बात के एकतरफा प्रोपगेंडा में घुमा-फिराकर क्यों बात करनी पड़ रही है। मोदी जी जाइये बात कीजिये ना।

एक तरफ मोदी जी कह रहे हैं कि किसानों को सही जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा था कि किसान कहीं भी जाकर अपनी फसल बेच सकता हैं। दूसरी तरफ हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने ट्वीट किया है कि राजस्थान का बाजरा हरियाणा में बिकने नहीं दिया जाएगा। इस
लिंक पर क्लिक करके आप ट्वीट देख सकते हैं। मतलब सड़कों को खोदने वाले मुख्यमंत्री अपनी ही सरकार और पार्टी के बनाए हुए नैरेटिव की भी धज्जियां उड़ा रहे हैं।

गौरतलब है कि जब से किसान आंदोलन शुरु हुआ है प्रधानमंत्री जी के मुंह से एक शब्द तक नहीं निकला है। हर बात पर, बात-बेबात बोलने वाले, माइक और कैमरा देखते ही लपक लेने वाले नरेंद्र मोदी ने किसान आंदोलन पर मुंह में दही जमा ली। असल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सीधे और प्रत्यक्ष संवाद से डरते हैं। उनका दूसरा कार्यकाल चल रहा है, आज तक कोई प्रेस कांफ्रेस नहीं की। जो इंटरव्यू दिये वो प्रायोजित दिये। ये पहले सी ही सुनिश्चित कर लिया जाता है कि बातें दायरे में हो। वैसे तो वो चिठ्टी भी लिखते हैं, ट्वीट भी करते हैं, वर्चुअल संवाद भी करते हैं, मन की बात भी करते हैं लेकिन सीधे प्रत्यक्ष तौर पर आंखों में आंखें डालकर बात करने से डरते हैं। सवालों से डरते हैं। सबके सामने खुलेआम एक्सपोज़ होने से डरते हैं। अगर प्रधानमंत्री इतने आत्मविश्वास के साथ कह रहे हैं कि जो किसान आंदोलन में आये हैं वो अफवाहों के शिकार हैं और उन्हें सही जानकारी नहीं है तो किसानों के सामने जाकर कृषि कानूनों पर बात क्यों नहीं करते। एकतरफा और प्रायोजित प्रोपगेंडा क्यों? आपके पास तो कम्यूनिकेशन की ही नहीं बल्कि प्रोपगेंडा की भी असंख्य ऐजेंसियां हैं किसानों को सही जानकारी क्यों नहीं दे पा रहे? असल बात है कि आपके शब्दों का मायाजाल, ट्रोल आर्मी की कॉन्स्परेसी थ्योरी और फेक वायरल मैसेज़ छू हो चुके हैं। अपने ही वीडियो पर डिस्लाइक की संख्या को देखिये और होश में आइये। आपका सम्महोन टूट चुका है।

असल में हम सब जानते हैं कि सरकार बात करने से इतना डरी हुई है कि सड़कें खोद डाली, फौज-फर्राट लगा दिया, मतलब जो ये कर सकते थे सब किया ताकि किसान दिल्ली ना पहुंचे। ऐसा डर क्यों? क्योंकि चोरी पकड़ी जा चुकी है। मंदिर-मस्जिद अब काम नहीं आ रहा। किसानों को खालिस्तानी और देशद्रोही कहते हैं तो लोग उल्टा आंधभक्तों को ही गारिया देते हैं। फेक नैरेटिव और प्रोपगेंडा टिक नहीं पा रहा। क्योंकि सामने जीते-जागते किसान खड़े हैं। ये लड़ाई वर्चुअल नहीं है, प्रत्यक्ष है। वर्चुअल दुनिया के शेर मिट्टी हो चुके हैं।

ये किसान आंदोलन मात्र कृषि कानूनों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसने नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और सम्मोहन को भी एक्सपोज़ कर दिया है। नरेंद्र मोदी की लीलाएं अब फुर्र हो रही हैं। वर्चुअल लड़ाई लड़ने वाली आइटी सेल कॉंन्स्पिरेसी थ्योरी का सहारा लेकर आंदोलनों और कार्यकर्ताओं को निशाना बनाती रही हैं। शाहीन बाग को बदनाम किया गया, बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं को अर्बन नक्सल कहा गया, जेएनयू को देशद्रोही कहा गया, टुकड़े-टुकड़े गैंग कहा गया। इसी तर्ज़ पर किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिये भी ऐसी ही कोशिशें हो रही हैं। किसानों को खालिस्तानी बताया जा रहा है, उन्हें देशद्रोही कहा जा रहा है। लेकिन अबकि बार आइटी सेल को मुंह के बल गिरना पड़ रहा है। क्योंकि सब फैसले वर्चुअल नहीं होते। ये लड़ाई ठोस धरातल पर वास्तविक है। जहां किसान सीना ऊंचा किये खड़े हैं और वर्चुअल दुनिया के तुर्रमखां ज़मीन पर ओंधे पड़े हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते रहते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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