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NDPS कानून और आर्यन खान: क्या सच? क्या झूठ?

अगर कोई केवल नशे का आदी है तो NDPS कानून जेल नहीं बल्कि रिहैबिलिटेशन सेंटर भेजने की बात करता है।
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*अगर केवल शाब्दिक अर्थ देखा जाए तो नारकोटिक्स का अर्थ वैसे पदार्थों के सेवन से है जिनकी वजह से नींद आ जाती है। दर्द से मुक्ति मिल जाती है। साइकोट्रोपिक का अर्थ उन पदार्थों से है जो दिमाग की सामान्य रासायनिक प्रतिक्रिया में फेर बदल कर दिमाग से आदतन मिलने वाले निर्देशों को बदल देते हैं।

*जब भारत में कानून के जरिए हस्तक्षेप की शुरुआत हुई तब नशीले पदार्थ को रेगुलेट करने के लिए द ओपियम एक्ट 1857 का कानून बना। बाद में जाकर डेंजरस ड्रग्स एक्ट, 1930 बना। नशीले पदार्थों से जुड़े भारत के सभी कानूनों को खत्म कर भारत की संसद ने साल 1985 में नारकोटिक्स ड्रग्स साइकॉट्रॉपिक सब्सटेंसस, 1985 पारित किया। तब से लेकर अब तक इसी कानून के जरिए भारत में नशीले पदार्थों को नियंत्रित और विनियमित किया जा रहा है।

*नशीले पदार्थों के रोकथाम और नियंत्रण से जुड़े वैश्विक सम्मेलनों और संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मेलनों के तर्ज पर भारत का एनडीपीएस कानून 1985 बना है।

*मोटे तौर पर देखा जाए तो इस कानून का मकसद है कि उस कारोबार को खत्म करने की कोशिश की जाए जिसकी वजह से नशीले पदार्थों का जखीरा एक हाथ से दूसरे हाथ में पहुंचता रहता है। ताकि नशीले पदार्थ का सेवन करने वाले उपभोक्ताओं को नशीले पदार्थ के उपभोग से बचा लिया जाए।

*नशीले पदार्थ के कारोबार का खात्मा इस पर निर्भर है कि जिस फसल से नशीले पदार्थ का कच्चा माल मिलता है उसे खत्म किया जाए। इसके साथ उस पूरे नेटवर्क पर हमला किया जाए जिसके जरिए नशीले पदार्थ का कारोबार होता रहता है। नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले लोगों को नशीले पदार्थ से बचाने का मतलब यह है कि नशे की उनकी आदत से उन्हें छुटकारा दिलवा दिया जाए। इसलिए यह कानून उन लोगों के लिए है जो नशीले पदार्थों के सेवन के आदी हो चुके हैं उन्हें सजा देने की बजाय रिहैबिलिटेशन सेंटर भेजकर सुधारने की वकालत करता है।

*इस कानून की धारा 8 सबसे महत्वपूर्ण धारा है। जिसमें केंद्र सरकार द्वारा नशीले पदार्थ के अंतर्गत आने वाले पौधों और उसके उत्पादों पर प्रतिबंध का जिक्र किया गया है। ये क़ानून कोका( कोकेन), कैनाबिस(भांग) और पोस्त(अफीम) वह पौधें है, जिनकी खेती, परिवहन, आयात, निर्यात, संग्रह, क्रय, विक्रय, उत्पादन, कब्ज़ा, उपभोग, कारोबार पर यह कानून प्रतिबंध लगाता है।

*इस कानून के तहत केंद्र सरकार को अधिकार मिलता है कि वह नशीले पदार्थों की सूची बनाए। यह भी बताए कि कौन सा नशीला पदार्थ कितनी मात्रा में इलाज और वैज्ञानिक मकसद के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। इस तरह से अगर नशीले पदार्थों का इस्तेमाल केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित इलाज और वैज्ञानिक मकसद के लिए हो रहा है तो इस कानून के तहत किसी भी तरह की कानूनी कार्यवाही या सजा का प्रावधान नहीं है। लेकिन अगर नशीले पदार्थ का इस्तेमाल नशे के लिए किया जा रहा है तो यह कानून नशीले पदार्थ की मात्रा के आधार पर सजा का प्रावधान तय करता है।

*किसी भी तरह की नशीले पदार्थ की जब्ती पर दोषी के लिए सजा का प्रावधान है। लेकिन यह सजा का प्रावधान अलग-अलग नशीले पदार्थों की अलग-अलग मात्रा के आधार पर तय होता है। इस कानून के तहत मात्रा के आधार पर नशीले पदार्थों की तीन कैटेगरी बनाई गई हैं। पहली स्मॉल क्वांटिटी, लैस दैन कमर्शियल क्वांटिटी और कमर्शियल क्वांटिटी।

*गांजा का 1 किलो स्मॉल क्वांटिटी के भीतर आता है और 20 किलो कमर्शियल क्वांटिटी के भीतर लेकिन वहीं चरस का महज सौ ग्राम स्मॉल क्वांटिटी के भीतर आता है तो 1 किलो कमर्शियल क्वांटिटी के भीतर। कोकेन का महज 5 ग्राम मिल गया तो स्मॉल क्वांटिटी के भीतर रखा जाएगा और 1 किलो मिल गया तो कमर्शियल क्वांटिटी के भीतर।

*अगर कोई नशीला पदार्थ स्मॉल क्वांटिटी में मिलेगा तो उसके लिए 1 साल की सजा हो सकती है या ₹10 हजार का जुर्माना लग सकता है। अगर कोई नशीला पदार्थ लेस दैन कमर्शियल क्वांटिटी मिलेगा तो उसके लिए दस वर्ष तक का जेल या ₹1 लाख तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।अगर कोई नशीला पदार्थ कमर्शियल क्वांटिटी के लिए निर्धारित मात्रा के भीतर आएगा तो उसके लिए 20 साल की सजा या ₹2 लाख तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

*इसका मतलब यह है कि अगर किसी के पास से 5 ग्राम हीरोइन मिल रही है तो वह स्मॉल क्वांटिटी के कैटेगरी के भीतर आएगी, जिस पर 1 साल की सजा या ₹10 हजार का जुर्माना लगाया जा सकता है।

*अगर यह साबित होता है कि जिसके पास से स्मॉल क्वांटिटी में नशीली पदार्थ मिल रही है वह केवल उसका उपभोग करता है। उसे केवल अपने सेवन के लिए इस्तेमाल करता है ना कि नशीले पदार्थ का कारोबारी है तो उसे सजा नहीं दी जाएगी। बल्कि उसे रिहैबिलिटेशन सेंटर में भेजा जाएगा। सरकार की तरफ से उसकी आदत छुड़वाने की पूरी कोशिश की जाएगी। आर्यन खान के मामले में यहीं पर प्रताड़ना की बात उठाई जा रही है।

*कानून के जानकार कह रहे हैं कि आर्यन खान के पास से नशीले पदार्थ की जब्ती नहीं हुई बल्कि उनके दोस्तों से जब्ती हुई। वह भी कमर्शियल क्वांटिटी में नहीं थी बल्कि स्मॉल क्वांटिटी में थी। अब तक यह भी नहीं साबित हो पाया है कि आर्यन खान ने नशीले पदार्थ का कंजप्शन किया भी था या नहीं? फिर भी उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। एनडीपीएस कानून कहता है कि अगर किसी तरह का नशीला पदार्थ 'पर्सनल पोजेशन' कैटेगरी का है और जिससे नशीला पदार्थ मिला है वह केवल उसका सेवन और उपभोग करता है तो उसे रिहैबिलिटेशन सेंटर भेजा जाना चाहिए ना कि उसे प्रताड़ित किया जाना चाहिए।

*व्हाट्सएप चैट के आधार पर Conscious Possession यानी सचेत स्वामित्व का आरोप लगाकर अभियोजन पक्ष का आरोप है कि आर्यन उनके संपर्क में था जो प्रतिबंधित ड्रग्स का धंधा करते हैं। इसलिए साज़िश में शामिल होने का मामला बनता है। कानून के जानकार कहते है कि व्हाट्सएप चैट के आधार पर यह साबित करना कि कोई व्यक्ति ड्रग्स का स्वामित्व रखता है या नहीं यह बिल्कुल नामुमकिन काम है। इस तरह के साक्ष्य कई तरह के संदेहों से घिरे होते हैं। ऐसे साक्ष्यों से स्पष्ट तौर पर दोष साबित नहीं हो पाता है। सचेत स्वामित्व का मतलब है कि जिससे ड्रग्स की जब्ती हुई हो उसे जानकारी हो कि उसके पास ड्रग्स है। केवल व्हाट्सएप चैट के आधार पर इसे साबित करना बहुत मुश्किल है। तब तो और अधिक मुश्किल जब आरोपी ( आर्यन खान) के पास से ड्रग्स की जब्ती ना हुई हो।

व्हाट्सएप चैट के आधार पर एनसीबी के आरोप मीडिया में चल रहे थे। लेकिन एनसीबी ने व्हाट्सएप चैट को मुंबई हाईकोर्ट के सामने साक्ष्य और रिकॉर्ड के तौर पर पेश नहीं किया। इसका क्या मतलब है? क्या इसका यह मतलब बनता है कि मशहूर मुस्लिम व्यक्ति को सामने रखकर , उसके ऊपर अंतरराष्ट्रीय स्तर की अपराधियों के साथ गठजोड़ के आरोप लगाकर मीडिया के जरिए वह काम करवाया जाए जिसके जरिए समाज में खतरनाक किस्म का हिंदू मुस्लिम ध्रुवीकरण होता है?

लेकिन एक वक्त के लिए हम मान भी लें कि आर्यन खान के पास ड्रग्स का स्वामित्व था फिर भी उनकी जगह जेल नहीं बल्कि रिहैबिलिटेशन सेंटर होनी चाहिए।

*इस कानून की धारा 31A के अंतर्गत एक बार दोषी ठहराए जाने के बाद फिर से वही अपराध करने पर सजा की मात्रा डेढ़ गुना बढ़ाई जा सकती है। यह भी हो सकता है की सजा के तौर पर मृत्यु दंड की सजा भी सुना दी जाए। कई मामलों में ऐसा हो चुका है।

*इस कानून की धारा 37 के मुताबिक बिना मजिस्ट्रेट का वारंट लिए भी पुलिस किसी आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है। पुलिस के पास अधिकार नहीं होगा कि वह मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना किसी को जमानत दे दे। यानी इस कानून के अंतर्गत आने वाला कोई भी कृत्य संज्ञेय और गैर जमानती होगा।

*मजिस्ट्रेट दो कर शर्तों के पूरा होने के बाद ही किसी को जमानत दे सकता है। पहला आरोपी यह सिद्ध करे कि वह निर्दोष है। दूसरा, आरोपी यह माने कि आगे से ऐसा कोई काम नहीं करेगा जो एनडीपीएस एक्ट के तहत अपराध की श्रेणी में आता हो।

- * मान्यता यह है कि जमानत देने के लिए उदारवादी शर्ते रखीं जाएँ। जमानत देने के लिए बहुत कठोर शर्तों का पालन न किया जाए। लेकिन एनडीपीएस कानून में कठोर शर्तों का पालन किया जाता है। सामान्य कानूनी सिद्धांत यह है कि जब तक आरोपी दोषी नहीं है तब तक वह निर्दोष है। लेकिन एनडीपीएस कानून इस आधार पर चलता है कि जब तक आरोपी निर्दोष न साबित हो जाए तब तक उसे दोषी ही समझा जाए। इसलिए एनडीपीएस एक्ट के तहत जमानत मिल पाना कठिन होता है।

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*किसी व्यक्ति को इस कानून के तहत गिरफ्तार करने वाली पुलिस को अपने वरिष्ठ अधिकारी को डीटेल्ड रिपोर्ट देनी पड़ेगी। जिसमें उन सारी बातों का जिक्र किया जाए जिसकी वजह से किसी को गिरफ्तार किया जा रहा है। यह प्रावधान इसलिए रखा गया है ताकि नागरिकों के अधिकारों का बेवजह उल्लंघन ना हो। इसी आधार पर कानूनी जानकार कह रहे हैं कि आर्यन खान के मामले में एनसीबी ने आर्यन खान का डिटेल्ड मेडिकल टेस्ट भी नहीं करवाया। डिटेल्ड मेडिकल रिपोर्ट नहीं है। फिर भी केवल व्हाट्सएप चैट के आधार पर जमानत देने से रोका जा रहा है। यह कानूनी प्रक्रियाओं के खिलाफ जाता है।

*इस कानून की धारा 50 के अंतर्गत तलाशी के लिए कुछ शर्तें रखी गयी हैं। इस धारा का मकसद भी फ़र्ज़ी मुकदमे से लोगों को सुरक्षित करना है। हमने कई फिल्मों में देखा है कि पुलिस वाले किसी की गाड़ी में ड्रग्स रखकर उसे गिरफ्तार कर लेते हैं। इस तरह के फर्जी मुकदमों से बचने के लिए इस कानून का आरोपी अगर चाहे तो यह कह सकता है कि मजिस्ट्रेट के सामने उसकी तलाशी ली जाए।

*कानूनी मामलों के जानकार प्रोफेसर फैजान मुस्तफा कहते हैं कि आर्यन खान के मामले में कई जगह यह साबित होता है कि मामला कानूनी प्रक्रियाओं के संगत नहीं चल रहा है। कानूनी प्रक्रियाएं प्रताड़ना की तरह इस्तेमाल की जा रही हैं। एनडीपीएस कानून में कितनी मात्रा में नशीले पदार्थ की जब्ती की गई? इसका बहुत अधिक महत्व होता है। अगर मामला व्यक्तिगत उपभोग और सेवन का बन रहा है तो सजा नहीं बल्कि मानवीय नजरिया अपनाते हुए आरोपी को रिहैबिलिटेशन सेंटर भेजना चाहिए। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के मुताबिक सारा मामला व्हाट्सएप चैट के आधार पर बन रहा है। मुंबई हाई कोर्ट में एनसीबी की तरफ से व्हाट्सएप चैट का रिकॉर्ड भी नहीं पेश किया गया। जबकि सारी षड्यंत्रकारी बातें इसी व्हाट्सएप सेट के आधार पर एनसीबी पेश कर रही है। अगर यह इतना अधिक महत्वपूर्ण है तो इसे कोर्ट के सामने पेश किया जाना चाहिए।

*फिर भी अगर मान लेते हैं कि व्हाट्सएप चैट के आधार पर ही केस बन रहा है तो आर्यन खान इस साक्ष्य में किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं कर सकते। इसलिए सबूतों को नष्ट करने के संदेह के आधार पर उन्हें बेल नहीं देना उचित नहीं लगता। यह मामला अगर मुंबई हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जाता है तो संभव है कि आर्यन खान को जमानत मिले।

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