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NDTV प्रकरण: चंद अमीरों के पास इतना पैसा है कि वो धीरे-धीरे सब कब्ज़ा लेंगे

पिछले कई सालों की ऑक्सफेम की रिपोर्ट बताती है देश के अमीर 1 प्रतिशत लोगों के पास देश की आधी से अधिक सम्पति है। अगर ऐसी स्थिति है तो सोचियेगा कि क्या-क्या हो सकता है?
NDTV

कहा जाता है कि टीवी की दुनिया में भाजपा की नीतियों की थोड़ी-बहुत कहीं आलोचना होती है तो वह NDTV है। विपक्ष को टीवी की दुनिया में थोड़ी बहुत कहीं जगह मिलता है तो वह NDTV है। सबसे बड़ी बात इसी NDTV के जरिये मौजूदा वक्त में देश में पत्रकारिता के सबसे मजबूत स्तंभ रवीश कुमार की आवाज पूरी दुनिया में सुनी जाती है। इसलिए NDTV के बिकने-ख़रीदने की ख़बरें बेचैन करती हैं। यह बिकवाली उन चर्चाओं के केंद्र में हैं जो यह मानती है कि भाजपा हर उस आवाज को खत्म कर देने की राह पर है, जहां से सच से बोला जाता है।

23 अगस्त 2022 की शाम अडानी ग्रुप ने एलान किया कि वह अपनी सब्सिडयरी कंपनी ( यानी सहायक कंपनी जिसका मालिकाना हक पैरेंट कंपनी यानी गौतम अडानी ग्रुप के पास होगा) के जरिये NDTV की 29.18 प्रतिशत की हिस्सेदारी खरीदने जा रहे हैं। साथ में अडानी ग्रुप ने यह भी कहा है कि वह बेस प्राइस 294 रुपए पर NDTV के 26 प्रतिशत शेयरों के लिए ओपन ऑफर दे रही है। आसान शब्दों में कहा जाए तो कम से कम 294 रुपए से ऊपर जितने पर भी NDTV के 26 प्रतिशत शेयर मिलेंगे, उन्हें वह एकमुश्त खरीद लेगी। अगर अडानी ग्रुप ऐसा करता है तो वह NDTV के तकरीबन 55 प्रतिशत शेयरों की मालिक होगा। एक लाइन में कहा जाए तो अंतिम फैसला लेने का हक़ अडानी ग्रुप का हो जाएगा। फिर होगा वही जो अडानी ग्रुप चाहेगा।

इस पर NDTV के फाउंडर प्रमोटर का बयान आया कि यह कदम बिना उनसे सलाह मशविरा के उठाया गया है। उन्हें पता भी नहीं चला और यह कदम उठा लिया गया। स्वतंत्र पत्रकारिता का काम जारी रहेगा। अब आप पूछेंगे कि यह कैसे मुमकिन है? ऐसा कैसे हो सकता है? बिना बातचीत के यह कैसे संभव है? तो आधुनिक दुनिया में यह बिलकुल मुमकिन है। NDTV के मालिकाना हक की अब तक की पूरी कहानी इस तरह है :

अडानी ग्रुप की सब्सिडयरी कम्पनी अडानी मीडिया ग्रुप है। अडानी ग्रुप की तरफ से मीडिया के क्षेत्र में काम करने के लिए यह कंपनी अभी हाल में ही बाजार में आयी है। जरा सोचकर देखिये अगर ऐसा नियम होता कि वैसी कंपनियां जो कई क्षेत्रों में काम करती हैं, वे मीडिया कम्पनी नहीं चला सकती है या अगर ऐसा भी नियम होता कि वैसी कंपनियां जो कई क्षेत्रों में काम करती हैं - वैसी कंपनियां मीडिया कंपनी में हिस्सेदारी रख सकती हैं मगर मालिकाना हक नहीं। तो क्या होता?

अगर ऐसा होता तो अकूत पैसा रखने वाली कंपनी मीडिया को पूरी तरह से नहीं खरीद पाती। लेकिन इस तरह का नियम नहीं है. मीडिया के जानकारों की तरफ से मीडिया की आजादी बचाने के लिए इस तरह की नियम की कई बार पेशकश की गयी है। कई बार यह कहा गया है कि शिकारी कॉर्पोरेट से बचाने के लिए सरकार ऐसे नियम बनाये मगर अब तक ऐसा नहीं हुआ है।

इसका परिणाम यह निकला की अडानी ग्रुप की AMG कंपनी ने विश्वप्रधान कमर्शियल लिमिटेड कंपनी के 100 फीसदी शेयर खरीद लिए, जिसके पास NDTV के तकरीबन 29 प्रतिशत शेयर बिना पूछे बेचने का अधिकार था। अब आप पूछेंगे कि यह बिना पूछे क्यों?

तो इसका किस्सा यह है कि NDTV के फाउंडर और प्रमोटर के साथ राधिका रॉय और प्रणय रॉय के पास NDTV का तकरीबन 61.47 फीसदी शेयर था। इन लोगों ने विश्वप्रधान कमर्शियल लिमिटेड से इस बात पर 403.85 करोड़ का कर्ज लिया कि अगर कर्ज नहीं चुकाया गया तो वह जब मर्जी तब राधिका रॉय और प्रणय रॉय के 29.18 प्रतिशत शेयर ले सकते हैं। यही हुआ है विश्वप्रधान कमर्शियल लिमिटेड ने इसी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए अपने सारे शेयर अडानी ग्रुप को बेच डाले हैं। इसी से अडानी ग्रुप की सब्सिडयरी कपंनी NDTV के तकरीबन 29.18 प्रतिशत शेयर पर कब्ज़ा कर लेगी। यहाँ एक और बात समझिये कि विश्वप्रधान कमर्शियल लिमिटेड 2008 में बनी थी। यह बताती है कि इसका कामकाज मैनेजमेंट और कंल्टेंसी का है। मगर हकीकत यह है कि 14 साल हो गए मगर इसके पास कोई स्थाई सम्पति नहीं है। इस कंपनी को पैसा देने वाली कपनी रिलाइंस इंडस्ट्री है।

कहने का मतलब यह है कि बहुत लम्बे समय से NDTV का मालिकना हक़ कॉर्पोरेट के हाथों में चला गया था। मगर फिर भी क़ानूनी तौर पर राधिका रॉय और प्रणय रॉय के पास इतने शेयर थे कि NDTV के डिसीजन मेकिंग भूमिका में वे सबसे ऊपर खड़े थे। अब यह सब कुछ बदल जायेगा। अडानी ग्रुप की अडानी मीडिया लिमिटेड NDTV को सँभालने जा रही है। AMG मीडिया लिमिटेड के CEO और देश के जाने माने बिजनेस पत्रकार रह चुके संजय पुगलिया ने कहा है कि NDTV की पहुंच बहुत दूर तक है। इसके जरिये वह न्यूज़ के क्षेत्र में अपने सपने को साकार कर सकते हैं। अब आप खुद समझिये कि उनक सपना क्या है?

इस पूरी कहानी की जड़ को समझिये। पिछले कई सालों की ऑक्सफेम की रिपोर्ट बताती है देश के अमीर 1 प्रतिशत लोगों के पास देश की आधी से अधिक सम्पति है। अगर ऐसी स्थिति है तो सोचियेगा कि क्या-क्या हो सकता है? पूंजीपति और नेता मिलाकर क्या क्या-क्या कर सकते है? तकरीबन 700 करोड़ की मीडिया कपंनी खरीदना तो उनके लिए बहुत आसान है।

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