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मोदी का ‘सिख प्रेम’, मुसलमानों के ख़िलाफ़ सिखों को उपयोग करने का पुराना एजेंडा है!

नामवर सिख चिंतक और सीनियर पत्रकार जसपाल सिंह सिद्धू का विचार है, “दिल्ली के लाल किले में गुरु तेग बहादुर जी के 400वें प्रकाशपर्व मनाने का मोदी सरकार का मुख्य कारण, भाजपा के शासन में चल रहे मुस्लिम विरोधी वृतांत को और मजबूत करना है।
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फाइल फोटो।

इन दिनों देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार अपने-आप को सिखों की बड़ी हमदर्द के तौर पर पेश करने में लगे हुए हैं। इसी के तहत मोदी ने सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर जी के 400वें प्रकाश पर्व (जन्मदिन) पर 21 अप्रैल को लाल किले में आयोजित विशेष कार्यक्रम में संबोधन किया, यादगारी सिक्का और टिकट जारी किए। यह कार्यक्रम केन्द्र सरकार और दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा मिल कर आयोजित गया था। इसी तरह गत 29 अप्रैल को प्रधानमंत्री ने अपने निवास पर एक सिख प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की जिसमें ज़्यादा प्रवासी भारतीय सिख थे। इस सिख प्रतिनिधिमंडल को सम्बोधित करते हुए मोदी ने कहा, “सिख समुदाय के योगदान के बिना भारत का इतिहास पूरा न होता और न ही हिन्दुस्तान पूरा होता। सिख परम्परा ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की सबसे अच्छी मिसाल है।” अपने संबोधन में मोदी ने प्रवासी भारतीय सिखों को ‘भारत के राष्ट्रदूत’ कहा। 

लाल रंग की पगड़ी बांधे हुए प्रधानमंत्री ने अपने 15 मिनट के भाषण में सिख भाईचारे से अपनी निजी साँझ जोड़ने की कोशिश करते हुए कहा कि गुरुद्वारों में जाना, सेवा में समय देना, लंगर छकना और सिख परिवारों में रहना यह उनके जीवन का स्वाभाविक हिस्सा है। जहाँ भारत के मीडिया ने इस खबर को प्रमुखता से जगह दी वहीं कई सिख विद्वान मोदी के इस `सिख प्रेम’ को शक की नजर से देखते हैं और मोदी, भाजपा और आरएसएस के पुराने सिख विरोधी किरदार को भी याद करवाते हैं 

नामवर सिख चिन्तक और सीनियर पत्रकार जसपाल सिंह सिद्धू का विचार है, “दिल्ली के लाल किले में गुरु तेग बहादुर जी के 400वें प्रकाशपर्व मनाने का मोदी सरकार का मुख्य कारण भाजपा के शासन में चल रहे मुस्लिम विरोधी वृतांत को और मजबूत करना है। इसी जगह से मुगल शासक औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर जी को शहीद करने का हुक्म दिया था। मोदी सरकार सिख अल्पसंख्यक समुदाय को ऐसा करके मुस्लिम समुदाय के विरोध में खड़ा करना चाहती है। रही बात मोदी को उनकी रिहायश पर मिलने वाले सिख लोगों की उन लोगों की सिख समाज में कोई खास जगह नहीं है।’’ 

जिस दिन गुरु तेग बहादुर जी का प्रकाशपर्व लाल किले में मनाया जा रहा था उसी दिन कुछ भाजपाई सोच वाले पगड़ीधारी नौजवान अपने हाथों में तख्तियां लेकर खड़े दिखाई दिए, जिन पर लिखा हुआ था, “औरंगजेब ने हमारे गुरु को शहीद किया पर देश में अभी भी औरंगजेब और उसकी औलादों के नाम पर शहरों के नाम क्यों हैं?” यह विचार भगवा पार्टी के मुस्लिम नामों वाले इलाकों और जगहों को बदलने वाले विचार की हिमायत करता है। देश के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व उपचेयरमैन और सिख राजनीति की गहरी समझ रखने वाले प्रो. बावा सिंह बताते हैं, “आर.एस.एस और भाजपा की सोच अल्पसंख्यक विरोधी है। जहाँ वे मुस्लिम धर्म को अपना प्रमुख दुश्मन मानते हैं वहीं सिख धर्म को वे वैचारधारिक तौर पर खत्म करना चाहते हैं। इसलिए कभी वे सिख धर्म को हिन्दू धर्म का हिस्सा बताते हैं तो कभी सिख गुरु साहिबान द्वारा मानवता के लिए की गई कुरबानियों और लड़ी लडाईयों को मुस्लिम विरोधी होने के तौर पर पेश करते हैं। असल में सिखों व मुसलमानों की नज़दीकी हिंन्दुत्ववादी सरकार को परेशान कर रही है, क्योंकि पूरे मुल्क में पंजाब से ही कश्मीरियों के हक में बड़े स्तर पर आवाज़ बुलंद हुई थी। जब सी.ए.ए वाला मुद्दा उठा था तब भी सिख भाईचारा मुस्लिम के साथ खड़ा था। विदेशों में भी पंजाबियों व सिखों द्वारा मोदी की विदेशी यात्राओं का विरोध किया जाता है। 

भाजपा और संघ की कोशिश सिखों की धार्मिक संस्थायों पर अपनी जकड़ बनाना भी है। वह अपने हिंदुत्वी और मुस्लिम विरोधी एजेंडे में सिख भाईचारे को शामिल करना चाहते हैं। संघी सरकार ने सिखों में एक छोटा-सा ऐसा टोला पैदा किया है जो मुस्लिम समुदाय के विरूद्ध नफरत भरा प्रचार करता है। भले ही संघी सोच पर चलने वाला यह टोला अभी बहुत कमजोर है, पर सांझीवालता और गुरुओं की सोच को मानने वाले हर सिख को इस तरह के लोगों से सचेत होना पड़ेगा।”

याद रहे कि पंजाब के विधान सभा चुनाव से पहले ही भाजपा ने कई सिख चहरों को पार्टी में शामिल करवाया था। उनमें से ज्यादा अकाली दल और पंथक पृष्ठभूमि वाले थे। इनमें दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के पूर्व अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा (जो भाजपा-अकाली दल गठबंधन के समय भाजपा के निशान पर विधानसभा चुनाव लड़े और जीते भी थे), दमदमी टकसाल के नेता प्रो. सरचाँद सिंह और स्वर्गीय गुरचरन सिंह टोहरा के परिवारिक मेंबर शामिल हैं। करीब 2-4 साल से भाजपा ने पंजाब के ग्रामीण इलाकों में अपना आधार मज़बूत करने के लिए सिख चेहरों को (खासकर जट्ट सिखों को) पार्टी में शामिल करना शुरू किया है। करीब दो साल पहले तो भाजपा सरकार ने सिखों के कई मसले जैसे 84 के कत्लेआम का इंसाफ, सज़ा पूरी कर चुके सिख कैदियों की रिहाई और विदेशों में बस रहे सिखों के नाम ‘ब्लैक लिस्ट’ से हटाने के ऐलान और वायदे किये थे पर मामले अभी भी उसी तरह लटक रहे हैं।

प्रो. बावा सिंह आगे कहते हैं, “21 अप्रैल को लाल किले में हुए कार्यक्रम में और 29 अप्रैल को अपने निवास पर सिख डैलीगेट्स को संबोधित होते हुए मोदी ने अपने भाषण में तथाकथित राष्ट्रवाद और भगवा तड़का लगाया। प्रधानमंत्री ने अपने भाषणों में ‘मां भारती’, ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ जैसे शब्दों का ज़िक्र किया। गुरु तेग बहादुर जी की मानवता के लिए की गई कुर्बानी को भारतीय राष्ट्र के लिए किये बलिदान के तौर पर पेश किया जब कि उस समय भारतीय राष्ट्र की आधुनिक धारणा अस्तित्व में ही नहीं आई थी। भाजपा के अन्य नेताओं ने भी इस दिन अपने अलग-अलग जगह किये भाषणों में गुरु जी की अद्भुत कुर्बानी को ‘हिन्दू धर्म को बचाने’ तक सीमित कर दिया। 

29 अप्रैल को मोदी अपने भाषण में सिख परम्परा को अपनी ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ वाली सोच से जोड़ देते हैं। हैरानी की बात है कि वहां डेलीगेट में शामिल किसी व्यक्ति ने मोदी की इन बातों पर सवाल खड़े नहीं किये !” कनाडा में रहने वाले पंजाबी मूल के पत्रकार गुरप्रीत सिंह का कहना है, “मोदी सरकार सिखों के साथ झूठा अपनापन जताकर प्रवासी सिखों में अपनी साख बनाना चाहती है क्योंकि दुनिया के कोने-कोने में बसने वाले सिखों का अपने देशों में अच्छा रुतबा है और उनके सहारे मोदी सरकार दुनिया में अपनी उदार छवि बनाना चाहती है।

प्रवासी सिखों में भी कुछ इस तरह के लोग हैं जो अपने आप को प्रवासी सिखों के नेता समझते हैं और उनके सुर भारतीय दूतावास और भारत की मौजूदा सरकार से मिलते हैं। इसमें इन तथाकथित सिख नेताओं के अपने स्वार्थ हैं। इसकी एक उदारण यह है कि 2017 में जब भारतीय पत्रकार राना अय्यूब कनाडा यात्रा पर आईं तो सरी के ऐतिहासिक गरुद्वारे में भारतीय अधिकारियों के दबाव के चलते उन्हें बोलने नहीं दिया गया। दलील यह दी गई कि राना अय्यूब का भाषण आपसी भाईचारे और सद्भावना के लिए खतरा होगा। जबकि इसी गुरुद्वारे में 2015 में नरेन्द्र मोदी का जोर-शोर से स्वागत किया गया था।”

भाजपा और संघ के सिख विरोधी अतीत की कई मिसालें मिल जाती हैं चाहे ‘पंजाबी सूबा’ आंदोलन के समय की भूमिका हो, चाहे अमृतसर में दरबार साहब के नजदीक बीड़ी, गुटखा और तंबाकू की दुकानें खोलने की मांग करने वाले संगठनों को सहयोग देने की बात हो, दरबार साहब का मॉडल तोड़ने वाले बीजेपी के राज्य स्तरीय नेता हरबंस लाल खन्ना की बात हो, ऑपरेशन ब्लू स्टार के लिए तत्कालीन सरकार पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी के दबाव डालने की बात हो या फिर 1984 के सिख कत्लेआम में भाजपा और संघ की भूमिका की बात हो; पर सवाल यह है कि जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने आप को सिखों के सच्चे हमदर्द बता रहे हैं उनकी परख भी तो होनी चाहिए कि वे सिखों के कितने सच्चे हमदर्द हैं?

अपने आप को सिख हितैषी कहने वाले मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए सालों से गुजरात के कच्छ और भुज इलाके में बसे सिख किसानों की जमीनें छीनने वाला बिल लेकर आए। जब सरकार हाई कोर्ट से हार गई तो वह मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गए। गुजरात में बसने वाले पंजाबी किसानों के नेता सुरेन्द्र सिंह भुल्लर के अनुसार, “अब बीजेपी के स्थानीय नेता हमारे साथ गुंडागर्दी करते हैं, हमें धक्के देकर यहां से निकालना चाहते हैं। असल में मोदी केवल मुसलमानों के ही नहीं बल्कि तमाम अल्पसंख्यकों के विरोधी हैं।”

भुल्लर आगे बताते है, “गुजरात के ज्यादातर सिख बीजेपी को ही वोट डालते आ रहे थे. हमें उम्मीद थी कि मोदी हमारे हितों की बात करेंगे लेकिन उन्होंने हमें बेजमीन करके अपना असली चेहरा हमें दिखाया है. हमारे इलाके में 20,000 के करीब सिख वोट हैं. जब हम 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में अपना मुद्दा मोदी के पास लेकर गए तो उन्होंने हमें साफ कह दिया कि मुझे आप लोगों के वोटों की जरूरत नहीं है और अगर तुम्हें ज्यादा समस्या है तो खेती करनी छोड़ दो. उस समय बीजेपी के उम्मीदवार बलो भाई सानी भी सिखों से वोट मांगने नहीं आए”

गुजरात के मुख्यमंत्री होते हुए मोदी ने पहले सिख प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के बहाने सिख समुदाय की बेइज्जती की है। आरोप है कि एक संदर्भ में मोदी ने मनमोहन सिंह को ‘शिखंडी’ कहा तो दूसरी बार डॉ. सिंह पर “बारह बजने वाला” व्यंग्य किया था जिसका सिख तबके में कड़ा विरोध हुआ था। सरकारी दस्तावेज में मौजूदा मोदी सरकार आज भी ‘सिख आतंकवाद’ शब्द का प्रयोग कर रही है। 

मई 2019 में कारवां में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, “आतंक को मिलने वाले वित्तपोषण पर स्थाई फोकस समूह” का “उद्देश्य इस्लामिक और सिख आतंकवाद पर काम करना है।” मोदी सरकार ने जिन नानाजी देशमुख को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया है उन्होंने अपने एक लेख ‘मोमेंट ऑफ सोल सर्चिंग’ में दरबार साहब में की गई फौजी कार्रवाई के लिए इंदिरा गांधी की प्रशंसा की थी और 1984 के सिख कत्लेआम को यह कहकर सही ठहराया था कि यह सिख नेताओं की गलतियों का परिणाम है। बीजेपी के कई नेता सरेआम सिखों के बारे में विवादास्पद बयान देते रहे हैं। करीब 3 साल पहले हरियाणा सरकार के मंत्री अनिल विज ने भी सिख समुदाय को गालियां दी थीं।

किसान आंदोलन के समय मोदी सरकार के मंत्रियों समेत भाजपा, संघ के नेता मोदी समर्थक शख्सीयतों और गोदी मीडिया ने पंजाब के सिख किसानों को खालिस्तानी कह कर बदनाम किया और उन पर भद्दी टिप्पणीयाँ कीं। मोदी ने इसपर कभी ज़ुबान तक नहीं खोली। इसी साल जनवरी में जब मोदी की ‘सुरक्षा में चूक’ का मुद्दा बनाया गया तो इसे पंजाब के लोगों ने मोदी और उनकी सरकार द्वारा पंजाबियों और सिख किसानों की छवि को बदनाम करने के रूप में देखा।

भाजपा और संघ का अतीत सिखों के दोस्त के रूप में बिलकुल सामने नहीं आता। संघ सिख धर्म की आजाद हस्ती को हमेशा नकारता रहा है और इसे हिन्दू धर्म का हिस्सा मानता रहा है। दरअसल मोदी का ‘सिख प्रेम’ एक ऐसा राजनीतिक जुमला है जिसकी आड़ में वह बीजेपी और संघ के सिख विरोधी इतिहास को छिपाना चाहते हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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