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इलेक्ट्रानिक मीडिया के नियमन की ज़रूरत: सुप्रीम कोर्ट

सुदर्शन टीवी मसले पर सुनवाई करते हुए इलेक्ट्रानिक मीडिया को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट काफ़ी चिंतित नज़र आया लेकिन हैरतअंगेज़ तौर पर केंद्र सरकार के वकील सालिसीटर जनरल पत्रकार और पत्रकारिता की स्वतंत्रता की सर्वोच्चता की दुहाई देते नज़र आए।
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नयी दिल्ली: यह काफ़ी दिलचस्प है कि सुप्रीम कोर्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ख़ासकर न्यूज़ चैनलों के रवैये को लेकर चिंतत हो लेकिन केंद्र सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पत्रकारिता की दुहाई दे। उसकी वकालत करे।

ऐसा ही कुछ आज सुदर्शन टीवी मसले के विवादित कार्यक्रम बिंदास बोल को लेकर हो रही सुनवाई के दौरान हुआ।

सुप्रीम कोर्ट महसूस करता है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के नियमन की जरूरत है क्योंकि अधिकांश चैनल सिर्फ टीआरपी की दौड़ में लगे हैं और यह ज्यादा सनसनीखेज की ओर जा रहा है। दूसरी ओर, केन्द्र ने पत्रकारिता की स्वतंत्रता की हिमायत करते हुये न्यायालय से कहा कि प्रेस को नियंत्रित करना किसी भी लोकतंत्र के लिये घातक होगा।

न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने स्पष्ट किया कि वह मीडिया पर सेन्सरशिप लगाने का सुझाव नहीं दे रहा है लेकिन मीडिया में किसी न किसी तरह का स्वत: नियंत्रण होना चाहिए।

पीठ ने टिप्पणी की कि इंटरनेट को नियमित करना मुश्किल है लेकिन अब इलेक्ट्रानिक मीडिया का नियमन करने की आवश्यकता है।

न्यायालय ने सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम बिन्दास बोलके प्रोमो को लेकर उठे सवालों पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। इस प्रोमो में दावा किया गया है कि बिन्दास बोलकार्यक्रम में सरकारी नौकरियों में मुस्लमानों की कथित घुसपैठ की साजिश का पर्दाफाश किया जायेगा।

शीर्ष अदालत ने कहा कि मीडिया में किसी न किसी तरह के स्वत: नियंत्रण की आश्यकता है लेकिन सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि पत्रकार की स्वतत्रंता सर्वोच्च है।

मेहता ने कहा, ‘‘किसी भी लोकतंत्र के लिये प्रेस को नियंत्रित करना घातक होगा।’’

शीर्ष अदालत ने इस कार्यक्रम की दो कड़ियों के प्रसारण पर रोक लगाते हुये कहा, ‘‘इस समय, पहली नजर में ऐसा लगता है कि यह कार्यक्रम मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने वाला है।’’ यह कार्यक्रम प्रशासनिक सेवाओं में मुस्लिम समुदाय के सदस्यों की कथित घुसपैठ के बारे में है।

वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से मामले की सुनवाई करते हुये न्यायालय ने टिप्पणी की, ‘‘ अधिकांश टीवी सिर्फ टीआरपी की दौड़ में लगे हुये हैं।’’

मेहता ने कहा कि कई बार आरोपियों को अपना पक्ष रखने के लिये भी कुछ चैनलों का इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने कहा कि यह देखने की भी आवश्यकता है कि क्या किसी अभियुक्त को अपना बचाव पेश करने के लिये यह मंच दिया जा सकता है।

पीठ ने कहा कि हम यह नहीं कह रहे कि राज्य ऐसे दिशा निर्देश थोपेंगे क्योंकि यह तो संविधान के अनुच्छेद 19 में प्रदत्त बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के लिये अभिशाप हो जायेगा।

पीठ ने कहा, ‘‘प्रिंट मीडिया की तुलना में इलेक्ट्रानिक मीडिया ज्यादा ताकतवर हो गया है और प्रसारण से पहले प्रतिबंध के पक्षधर नहीं रहे हैं।’’

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘मैं यह नहीं कह रहा कि राज्य को इलेक्ट्रानिक मीडिया को नियंत्रित करना चाहिए लेकिन इसके लिये किसी न किसी तरह का स्वत: नियंत्रण होना चाहिए।’’ साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया, ‘‘हम इस समय सोशल मीडिया की नहीं बल्कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के बारे में बात कर रहे हैं।’’

मेहता ने कहा कि किसी न किसी तरह का स्वत: नियंत्रण होना चाहिए लेकिन पत्रकार की आजादी बनाये रखी जानी चाहिए।

इस पर न्यायमूर्ति जोसेफ ने सालिसीटर जनरल से कहा,‘‘मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि कोई भी स्वतंत्रता पूरी तरह निर्बाध नहीं हैं।’’

मेहता ने पीठ से कहा कि कुछ साल पहले कुछ चैनल हिन्दू आतंकवाद, हिन्दू आतंकवादकह रहे थे।

पीठ ने कहा, ‘‘हम इलेक्ट्रानिक मीडिया के बारे में बात कर रहे है क्योकि आज लोग भले ही अखबार नहीं पढ़े लेकिन इलेक्ट्रानिक मीडिया जरूर देखते हैं।’’ पीठ ने कहा, ‘‘समाचार पत्र पढ़ने में हो सकता है मनोरंजन नहीं हो लेकिन इलेक्ट्रानिक मीडिया में कुछ मनोरंजन भी है।’’

पीठ ने कुछ मीडिया हाउस द्वारा की जा रही आपराधिक मामलों की तफतीश का भी जिक्र किया।

पीठ ने कहा, ‘जब पत्रकार काम करते हैं तो उन्हें निष्पक्ष टिप्पणी के साथ काम करने की आवश्यकता है। आपराधिक मामलों की जांच देखिये, मीडिया अक्सर जांच के एक ही हिस्से को केन्द्रित करता है।’’

पीठ ने न्यूज ब्राडकास्टर्स एसोसिएशन के वकील से सवाल किया, ‘‘आप कर क्या रहे हैं? हम आपसे जानना चाहते हैं कि लेटर हेड के अलावा भी क्या आपका कोई अस्तित्व है। मीडिया में जब अपराध की समानांतर तफतीश होती है और प्रतिष्ठा तार तार की जा रही होती है , तो आप क्या करते हैं?’’

पीठ ने कहा कि कुछ चीजों को नियंत्रित करने के लिये कानून को सभी कुछ नियंत्रित नहीं करना है।

न्यायालय ने सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम बिन्दास बोलकी दो कड़ियों के प्रसारण पर लगाई रोक

उच्चतम न्यायालय ने सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम बिन्दास बोलकी दो कड़ियों के प्रसारण पर मंगलवार को रोक लगा दी। इन कड़ियों का प्रसारण आज और कल होना था। न्यायालय ने कहा कि पहली नजर में ये मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने वाले प्रतीत होते हैं।

शीर्ष अदालत ने इस कार्यक्रम की दो कड़ियों के प्रसारण पर रोक लगाते हुये कहा, ‘‘इस समय, पहली नजर में ऐसा लगता है कि यह कार्यक्रम मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने वाला है।’’ यह कार्यक्रम प्रशासनिक सेवाओं में मुस्लिम समुदाय के सदस्यों की कथित घुसपैठ के बारे में है।

न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की तीन सदस्यीय पीठ ने इस कार्यक्रम के प्रसारण को लेकर व्यक्त की गयी शिकायतों पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया और मामले को 17 सितंबर के लिये सूचीबद्ध कर दिया।

पीठ ने याचिका पर सुनवाई के दौरान सुझाव दिया कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के स्व नियमन में मदद के लिये एक समिति गठित की जा सकती है।

पीठ ने कहा, ‘‘हमारी राय है कि हम पांच प्रबुद्ध नागरिकों की एक समिति गठित कर सकते हैं जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिये कतिपय मानक तैयार करेगी। हम राजनीतिक विभाजनकारी प्रकृति की नहीं चाहते और हमें ऐसे सदस्य चाहिये, जिनकी प्रतिष्ठा हो।’’

याचिकाकर्ता के वकील ने इस कार्यक्रम के प्रसारण पर अंतरिम रोक लगाने सहित कई राहत मांगी थी। इस कार्यक्रम के प्रोमो में दावा किया गया था कि चैनल सरकारी नौकरियों में मुस्लिम समुदाय की घुसपैठ की कथित साजिश का पर्दाफाश करेगा।

पीठ ने इस मामले में आगे सुनवाई की जरूरत पर जोर देते हुये कहा कि कल्याणकारी सिद्धांतों की रक्षा करना न्यायालय का कर्तव्य है।

पीठ ने केबल टीवी नियमों का हवाला दिया और कहा कि मानहानिकारक, मिथ्या और अर्द्धसत्य दिखाना और व्यंग्यात्मकचीजें नहीं दिखाई जानी चाहिए।

पीठ ने कहा कि याचिका लंबित रहने के दौरान चैनल को इस विषय पर किसी दूसरे नाम से भी कार्यक्रम प्रसारित करने से रोका जा रहा है।

सुदर्शन टीवी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने दलील दी कि चैनल इसे राष्ट्रीय सुरक्षा में खोज परक खबर मानता है और इसकी 10 कड़ियां हैं। दीवान ने कहा, ‘‘अगर चैनल इस कार्यक्रम में कुछ गलत करेगा तो इसके नतीजों के लिये पूरी व्यवस्था है लेकिन मैं महसूस करता हूं कि इसमें प्रसारण नियमों से भटकाव नहीं है।’’

इस मामले में शीर्ष अदालत के पहले के आदेश का जिक्र करते हुये दीवान ने दलील दी कि यह सही कहा गया था कि कार्यक्रम पर प्रसारण से पूर्व कोई प्रतिबंध नहीं हो सकता है।

पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘‘हम परसों बैठेंगे और इस दौरान आप आज की कड़ी का प्रसारण मत कीजिये।’’

दीवान ने इसका विरोध किया ओर कहा, ‘‘यह विदेशी फंडिंग का मामला है और मैं यह कहना चाहूंगा कि अगर प्रसारण रोका गया तो मैं प्रेस की स्वतंत्रता का सवाल उठाऊंगा।’’

पीठ ने टिप्पणी की कि इंटरनेट को नियमित करना मुश्किल है लेकिन अब इलेक्ट्रानिक मीडिया का नियमन करने की आवश्यकता है। अधिकांश टीवी सिर्फ टीआरपी की दौड़ में लगे हुये हैं।’’

पीठ ने कार्यक्रम पर सवाल उठाते हुये कहा कि मीडिया में भी थोड़ा बहुत आत्म नियंत्रण होना चाहिए। पीठ ने कहा, ‘‘ इस कार्यक्रम को देखिये, यह कितना उन्माद पैदा करने वाला कार्यक्रम है कि एक समुदाय प्रशासनिक सेवाओं में जगह बना रहा है।

पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘आप देखिये, इस कार्यक्रम का विषय कितना आक्षेप लगाने वाला है कि मुस्लिम ने सेवाओं में घुसपैठ कर ली है और यह बिना किसी तथ्यात्मक आधार के यूपीएससी की परीक्षाओं को संदेह के घेरे में लाता है।’’

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप चौधरी ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने मामला सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के पास भेजा था लेकिन मंत्रालय ने कोई तर्कसंगत आदेश पारित नहीं किया।

उन्होंने कहा कि मंत्रालय ने दूसरे पक्ष को सुना ही नहीं और कार्यक्रम के प्रसारण की अनुमति दे दी। मंत्रालय ने चैनल के इस बयान पर भरोसा किया कि वह प्रसारण के नियमों का पालन करेगा।

शीर्ष अदालत ने 28 अगस्त को सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम बिन्दास बोलपर प्रसारण से पहले ही प्रतिबंध लगाने से इंकार कर दिया था। चैनल के इस कार्यक्रम के प्रोमो में दावा किया गया था कि वह सरकारी सेवा में मुसलमानों की घुसपैठ की साजिश को बेनकाब करने जा रहा है। उच्च न्यायालय ने 11 सितंबर को इस कार्यक्रम की कड़ियों के प्रसारण पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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