सरकारी आवास खाली करने का फ़रमान मिलने पर कलाकार सकते में, कहा- प्रताड़ित और अपमानित महसूस कर रहे हैं
दिल्ली: पद्मश्री से सम्मानित भारती शिवाजी सहित कई प्रतिष्ठित कलाकारों को सरकार ने दिल्ली में आवंटित सरकारी मकान खाली करने का नोटिस भेजा है। ऐसे में कलाकारों ने सोमवार को कहा कि सरकार के इस रवैये से वे ‘प्रताड़ित’, ‘अपमानित’ और ‘दुखी’ महसूस कर रहे हैं।
आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय ने इस साल अक्टूबर में कलाकारों, नर्तकों और संगीतकारों सहित कुल 27 प्रतिष्ठित कलाकारों को नोटिस जारी कर उन्हें दिल्ली में आवंटित सरकारी आवास 31 दिसंबर तक खाली करने को कहा था। साथ ही कहा था कि ऐसा नहीं करने पर सार्वजनिक परिसर (अवैध कब्जा धारकों से संपत्ति मुक्त करना) कानून के तहत सारे आवासों को खाली कराने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
जिन अन्य कलाकारों को आवास खाली करने का नोटिस दिया गया है, उनमें जतिन दास, पंडित भजन सपोरी, पंडित बिरजू महाराज, रीता गांगुली और उस्ताद एफ. वसीफुद्दीन डागर शामिल हैं।
मोहिनीअट्टम नृत्यांगना भारती शिवाजी का कहना है कि ‘‘वह सकते में हैं’’ और उन्होंने अभी तय नहीं किया है कि क्या करना है।एशियन विलेज में आवंटित आवास में रह रहीं शिवाजी का कहना है, ‘‘यह प्रताड़ना है। मेरे पास कोई और जमीन या संस्थान नहीं है, मैं अपना सारा सृजनात्मक काम घर से ही करती हूं। लेकिन ऐसा लगता है कि सत्ता के लिए पारंपरिक कलाओं का कोई मोल नहीं है।’’
उन्होंने कहा कि पारंपरिक कलाओं का संरक्षण करने के लिए कठिन परिश्रम कर रहे कलाकारों को सरकार कम से कम आवास देने का काम तो कर ही सकती है।
कई कलाकारों ने अपने वर्तमान आवासीय स्थिति को ‘अवैध’’ बताए जाने पर आपत्ति जतायी है।
कुचिपुड़ी नर्तक गुरु जयराम राव की पत्नी और कुचिपुड़ी नृत्यांगना वनाश्री राव का कहना है कि इस शब्द से ऐसा लगता है कि उन्होंने मकान पर ‘अवैध’ कब्जा किया हुआ था। मकान वनाश्री के नाम पर आवंटित है।
उन्होंने बताया कि मकान आवंटित होने के पहले तीन साल के बाद उन्हें वहां रहने की अनुमति दी गई, लेकिन 2014 के बाद से वह सरकारी नियमों के तहत मकान का किराया देती हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘2018 में, सरकार ने पिछले चार साल का कुछ 8-9 लाख रुपये का बकाया किराया का नोटिस भेजा था। हम उसका भुगतान भी कर रहे हैं, कभी 60 हजार तो कभी एक लाख रुपये करके, क्योंकि एक साथ इतना पैसा होना संभव नहीं है।’’
वनाश्री ने कहा, ‘‘सबकुछ करने के बावजूद हमारे साथ अतिक्रमण करने वालों की तरह व्यवहार किया जा रहा है। हमने अतिक्रमण नहीं किया है।’’
भारतीय नृत्य इतिहासकार सुनील कोठारी भी राव के विचारों से सहमत हैं। उनका कहना है, ‘‘मैं पद्मश्री और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हूं। मैंने भारतीय शास्त्रीय नृत्य और अन्य सहयोगी कलाओं पर कई पुस्तकें लिखी हैं और तमाम समितियों का सदस्य रहा हूं और मेरी सरकार बदले में मुझे यह दे रही है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘88 साल की उम्र में मुझे ‘गेट आउट’ (बाहर निकलो) का नोटिस भेजा रहा है, मैं अपमानित महसूस कर रहा हूं। मुझे उस जगह से निकाला जा रहा है, जो पिछले 20 साल से मेरा घर है।’’
दुनिया भर में अपने ‘पंखा कलेक्शन’ के लिए मशहूर पेंटर जतिन दास का कहना है कि ‘अपराधी’ की तरह व्यवहार किए जाने से वह ‘अपमानित’ महसूस कर रहे हैं।
उनका कहना है, ‘‘मैं यह सोचकर शर्मिंदा महसूस कर रहा हूं कि अपने काम और देश को 16 साल का समय देने के बाद भी अगर मैंने मकान खाली नहीं किया तो सड़क पर आ जाऊंगा।’’
शहर में उनके अपने मकान क्यों नहीं है, यह समझाते हुए दास, शिवाजी और राव ने कहा कि उन्हें जो पैसे मिलते हैं, वे सृजन के काम में लग जाते हैं।
अगले महीने 80 साल के हो रहे दास का कहना है, ‘‘मैं कोई व्यावसायिक कलाकार नहीं हूं। मैं कला के व्यापार में नहीं हूं। मेरी पेंटिग से जो भी कमाई होती है, उसे मैं अपनी अगली पेंटिंग बनाने का सामान जुटाने में लगा देता हूं।’’
सभी कलाकारों ने नोटिस भेजे जाने के टाइमिंग को लेकर नाराज़गी और चिंता जाहिर की। कलाकारों का कहना है कि वे सभी लोग 65 साल की उम्र से अधिक है। इस कोरोना महामारी के समय में बिना कोई विकल्प दिए उनसे उनका शेलटर छीनना, जो पूरी तरह अनुचित है।
वनाश्री राव ने कहा, ‘महामारी के समय प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि पूरे देश के मकान मालिकों को अपने किरायेदारों को घर से नहीं निकालना चाहिए और किराया भी कम करना चाहिए, लेकिन वह खुद हमारे साथ इस तरह का व्यवहार कर रही है।’
कलाकारों ने इस असंवेदनशीलता को लेकर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा है। 14 अक्टूबर को भेजे गए पत्र में कलाकारों ने उनसे इस मामले पर ध्यान देने और कलाकार समुदाय का समर्थन करने का आग्रह किया है।
पत्र में कहा गया है, ‘हम अपने भविष्य की सुरक्षा और पेशेवर काम को लेकर भी चिंतित हैं। ’
पत्र में कहा गया है कि, ‘कई बार सरकार और हमारा देश हमें ‘दिग्गज’ और ‘सांस्कृतिक राजदूत’ कहते हैं, तो हमें लगता है कि हमारी सरकार खासकर संस्कृति मंत्रालय को हमारे विस्तार (रहने के समय) की तुरंत सिफारिश करनी चाहिए।’
ऐसा ही पत्र संस्कृति मंत्री, संस्कृति सचिव और अन्य अधिकारियों को भी भेजा गया है, लेकिन कहीं से कोई जवाब नहीं आया है।
नृत्य इतिहासकार सुनील कोठारी कहते है कि , ‘संस्कृति मंत्री हमसे मिलना नहीं चाहते हैं। मैं अपने आवास का किराया दे रहा हूं, जो साल 2014 से 15 हजार रुपये महीना है। मैंने शादी नहीं की है। मै अकेला रहता हूं, लेकिन मेरे पास हजारों किताबें हैं, मुझे कहा जाना चाहिए?’
उन्होंने कहा, अगर उन्हें ये जगह चाहिए तो उन्हें कम से कम हमें एक अलग आवास देना चाहिए। लेकिन सरकार को शयद इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है, सरकार ने अपने हाथ खड़े कर दिए है। संस्कृति मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने साफतौर पर कहा कि वो कुछ नहीं कर सकते है जो कर सकते थे वो कर चुके है।
आप सोचिए जिस पर देश को नाज़ होना चाहिए हम उनसे उनका घर भी छीन रहे है, जो कलाकर के हैसियत से तो छोड़िए इस माहमारी में घोर गैरमानवीय भी है।
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)
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