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उत्तराखंड सरकार का एक साल: क्या जनता की उम्मीदों पर खरी उतरी धामी सरकार?

उत्तराखंड सरकार के एक साल के कार्यकाल में परीक्षा भर्ती में धांधली, बेरोजगारों पर लाठीचार्ज, अंकिता भंडारी हत्याकांड, कानून व्यवस्था और जोशीमठ भू-धंसाव जैसे मुद्दे छाए रहे।
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अपनी आजीविका के लिए घरों की सफाई करने वाली मैना देवी की रसोई का खर्च साल दर साल बढ़ता जा रहा है। करीब 15 साल पहले टिहरी का अपना पुश्तैनी गांव छोड़कर वह परिवार समेत देहरादून आकर बस गई थीं। यह पूछने पर कि राज्य सरकार का एक साल का कार्यकाल कैसा लग रहा है?

वह बिफरती हुई कहती हैं, “भाजपा ने हमको मुफ्त रसोई गैस सिलेंडर देने का वादा किया और सिलेंडर की कीमत इतनी ज्यादा बढ़ा दी कि जो सिलेंडर पहले सिलेंडर 700-800 रुपए में मिलता था अब 1150 रुपए हो गया है। इससे तो अच्छा था कि ये मुफ्त सिलेंडर न देते लेकिन कीमत न बढाते।” मैना देवी नमक, तेल, आटा से लेकर साबुन व रोजमर्रा की जरूरत के अन्य सामान का बीते दो-तीन वर्षों में बढ़ी कीमत का हवाला देती हैं। बिजली-पानी के दरों में इजाफा उनकी चिंता की लकीरों को और गहरा कर देता है।

उत्तराखंड सरकार मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में एक वर्ष का कार्यकाल पूरा कर रही है। राज्य में भाजपा की सरकार का ये छठा साल है। सरकार का एक वर्ष पूरा होने पर 'एक साल नई मिसाल' का नारा दिया गया है।

लेकिन इस एक साल में क्या-क्या नई मिसाल बनी?

पर्चा लीक और लाठीचार्ज

पौड़ी  के श्रीनगर में एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष और छात्रों के मुद्दों पर मुखर अंकित उछोली कहते हैं “राज्य में भर्ती परीक्षा के पेपर लगातार लीक हो रहे हैं। कई परीक्षाएं निरस्त कर दी गई। इन मामलों के उठने के बाद ये उम्मीद की जा रही थी कि सरकार सावधानी बरत रही होगी। लेकिन उस सावधानी के बाद भी पेपर लीक हो रहा है। इसका मतलब सरकार की व्यवस्था में ही गड़बड़ है।”

अंकित कहते हैं कि सरकार ने नकल विरोधी कानून बनाया और पहला मुकदमा उस व्यक्ति पर किया जिसने बताया कि नकल हो रही है। तो क्या सरकार की मंशा नकल रोकने की है या जो लोग नकल की शिकायत कर रहे हैं, उन्हें डराने की है।

इस साल फरवरी में देहरादून में बेरोजगार युवाओं पर लाठीचार्ज का मुद्दा प्रदेश के इतिहास में दर्ज हो गया। अंकित कहते हैं “अगर युवा देहरादून की सड़कों पर नहीं निकलते, रात को धरने पर नहीं बैठते तो उत्तराखंड पुलिस भर्ती समेत जिन परीक्षाओं के नतीजे आनन-फानन में जारी किए गए, वे महीनों बाद खुलते। अगर ये आंदोलन नहीं होता तो नकल विरोधी कानून भी नहीं आता। किसी घटना के होने के बाद जब लोग सड़कों पर उतर कर विरोध कर रहे हैं, तब पुलिस-प्रशासन हरकत में आ रही है। हमारा भरोसा टूट रहा है।”

 भर्ती परीक्षाओं में पेपर लीक के सवाल पर सीपीआई-एमएल के गढ़वाल सचिव इंद्रेश मैखुरी कहते हैं कि बार-बार पेपर लीक होने पर सरकार ने उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की जगह समूह ‘ग’ स्तर की परीक्षाओं का जिम्मा लोक सेवा आयोग को दे दिया। आयोग ने पटवारी भर्ती की जो पहली परीक्षा कराई उसका भी पर्चा लीक हो गया।

 इंद्रेश कहते हैं “इस एक साल में ऐसा लगा कि राज्य में कानून व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो गई है। अंकिता भंडारी हत्याकांड, जगदीश हत्याकांड, उत्तरकाशी में दलित बच्ची के साथ बलात्कार की घटनाओं के साथ राज्य की कानून व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खडे रहे।”

गैरसैंण में विधानसभा सत्र के दौरान अंकिता भंडारी हत्याकांड की सीबीआई जांच और हत्यारों को कड़ी सजा दिलवाने को लेकर उत्तराखण्ड महिला कांग्रेस कमेटी का प्रदर्शन

अंकिता भंडारी हत्याकांड और महिलाओं की स्थिति

सितंबर-2022 में पौडी के यमकेश्वर ब्लॉक में वनंतरा रिसॉर्ट की रिसेप्शनिस्ट अंकिता भंडारी की हत्या और नहर में शव मिलने के बाद राज्यभर में इस मामले पर विरोध प्रदर्शन हुए। आरोपियों के रिसोर्ट पर बुलडोजर चलाने और हत्याकांड में आने वाले वीवीआईपी के नाम का खुलासा न होने पर पुलिस और राज्य सरकार की मंशा पर सवाल उठाए गए। अंकिता के परिजन मामले की सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। ये मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है।

उत्तराखंड कांग्रेस की प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी महिलाओं और युवाओं के मुद्दे पर उत्तराखंड सरकार को विफल करार देती हैं। वह कहती हैं कि महिलाओं के प्रति हिंसा-उत्पीड़न की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक भी राज्य में महिलाओं से अपराध के मामले बढ़े हैं। राज्य सरकार उन्हें रोक पाने में विफल रही है।

पिछले साल आई एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड में महिलाओं से अपराध के मामले 36 % और बलात्कार के मामले 30% तक बढ़े हैं।

गरिमा कहती हैं “एक तरफ सरकार बेटी बचाओ बेटी पढाओ का नारा देती है। वहीं इस साल उत्तराखंड सरकार ने बेटियों के लिए चलाई जा रही नंदा गौरा योजना का बजट आधा कर दिया है। पिछले साल 500 करोड़ का बजट था, इस साल 282.50 करोड़ है। कांग्रेस की सरकार के समय इस योजना के तहत पहाड़ की बेटियों की पढाई और शादी के समय 51-51 हजार रुपए (कुल एक लाख दो हजार रुपए) दिए जाते थे। लेकिन भाजपा सरकार ने दोनों योजनाओं का एकीकरण कर कुल राशि बी 51 हजार कर दी। योजना से जुड़े नियम इतने पेचीदा हैं कि इसके लिए आवेदन करने वाले प्रार्थना पत्रों की संख्या में 80% तक गिरावट आई है।”

गरिमा कहती हैं कि राज्य सरकार भू-माफिया, खनन माफिया और शराब माफिया पर बिलकुल अंकुश नहीं लगा पा रही है। राज्य में शराब तो सस्ती हो रही है लेकिन पानी-बिजली-राशन महंगा हो रहा है।

दलित समाज

दलित मुद्दों पर कार्य करने वाले टिहरी के जबर सिंह कहते हैं कि महिलाओं और दलितों के मुद्दे पर पुलिस प्रशासन का रवैया बहुत खराब है। दलितों के मामलों में मुकदमे दर्ज करना बड़ी चुनौती हो गई है।

5-6 साल से कुछ केस ट्रायल पर चल रहे हैं लेकिन कोई सजा नहीं है। वह अल्मोड़ा में सवर्ण युवती से विवाह करने वाले जगदीश हत्याकांड और उत्तरकाशी में दलित लड़की से बलात्कार मामले का उदाहरण देते हैं। कुछ अन्य मामलों के उदाहरण से जबर कहते हैं कि दलितों के मामलों में पीड़ित परिवार पर केस वापस लेने का दबाव बनाया जाता है। जबरन समझौता कराया जाता है।

21 मार्च 2023 को जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के आंदोलन के तहत तहसील में धरने का 76वां दिन। भू-धंसाव प्रभावित जोशीमठ के लिए विस्थापन पुनर्वास नीति घोषित करने समेत अन्य मांगों को लेकर लगातार धरना जारी है।

जोशीमठ और पर्यावरण से जुड़े मुद्दे

अक्टूबर 2021 की भारी बरसात के बाद से ही जोशीमठ में भू-धंसाव की घटनाएं शुरू हो गई थीं। लोगों के घरों और खेतों में चौडी होती दरारें और विशेषज्ञों से जांच की मांग को लेकर जोशीमठ के लोग डेढ़ साल तक प्रदर्शन करते रहे। आरोप है कि स्थानीय प्रशासन से लेकर राज्य सरकार तक ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया। इस वर्ष की शुरुआत में जब शहर की सड़कों से पानी के स्रोत फूटने लगे और समूचा मीडिया जोशीमठ पहुंच गया, सरकार हरकत में आई।

वामपंथी नेता इंद्रेश मैखुरी कहते हैं कि पर्यावरण से जुड़े सवालों और जोशीमठ के मुद्दे पर सरकार ने लगातार जो ढीलापन दिखाया, वह एक तरह से आपराधिक किस्म की लापरवाही है। जिस तरह से पुष्कर सिंह धामी का प्रचार-प्रसार किया गया, चुनाव हारने के बाद भी उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया, उस रूप में उनकी कोई ठोस उपलब्धि दिखाई नहीं देती। पुरानी विफलताएं और मुद्दे अपनी जगह कायम हैं। इसमें नये अध्याय ही जुड़े हैं।

गलतियों से सबक

वहीं भाजपा नेता और पूर्व प्रवक्ता रविंद्र जुगरान कहते हैं कि जनहित से जुड़े मुद्दों पर सरकार के पास जो भी सुझाव आए, उस पर अमल किया गया। अंकिता भंडारी मामले में नियमानुसार पुलिस कार्रवाई, एसआईटी गठन समेत सारे जरूरी कदम उठाए गए। आरोपी पकडे गए, जेल गए, उन पर कानून के मुताबिक कार्रवाई हुई।

 वह आगे कहते हैं, देहरादून में बेरोजगारों पर लाठीचार्ज न होता तो अच्छा होता। बहुत बड़ी तादाद में भीड़ इकट्ठा हुई और बेकाबू हो गई। हमने राज्य आंदोलन की बडी-बडी रैलियां और धरने प्रदर्शन देखे हैं। भीड जुटाना आसान है लेकिन उसे नियंत्रित कर पाना कठिन।

 जोशीमठ मामले को लेकर जुगरान कहते हैं कि “जोशीमठ में सरकार से जो भी बेहतर संभव हुआ, सरकार ने किया। कमियां हमेशा रहती हैं। हमें उनसे सीखना है। अपनी गलतियों से सबक लेना है।”

नकल विरोधी कानून और जबरन धर्मांतरण पर सख्ती को राज्य सरकार अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश करती है। लेकिन महंगाई, रोजगार और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर राज्य सरकार को जन आकांक्षाओं पर खरा उतरना होगा।

(देहरादून से स्वतंत्र पत्रकार वर्षा सिंह)

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