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सुप्रीम कोर्ट में याचिकाः ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे सांप्रदायिक शांति-सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश और उपासना स्थल कानून का उल्लंघन है

ज्ञानवापी मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा है कि मस्जिद परिसर के सर्वे के लिए बनारस के सीनियर सिविल जज का आदेश सांप्रदायिक शांति और सद्भाव को बिगाड़ने का एक प्रयास और उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 का खुलेआम उल्लंघन है।
Gyanvapi

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में कुछ हिंदू भक्तों की याचिका पर ज्ञानवापी मस्जिद में पिछले तीन दिनों तक चले अदालती सर्वे पर अंजुमन इंतेज़ामिया मासाजिद प्रबंधन समिति ने सुप्रीम कोर्ट में कड़ी आपत्ति जताई है। कमेटी ने बनारस के सीनियर सिविल जज के सर्वेक्षण आदेश को चुनौती देते हुए इसे सांप्रदायिक सौहार्द-शांति व्यवस्था को बिगाड़ने का प्रयास और उपासना स्थल अधिनियम का उल्लंघन करार दिया है।

ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में सर्वेक्षण के लिए वाराणसी कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की है। ज्ञानवापी में मंदिर के क्या प्रतीक हैं, श्रृंगार गौरी और अन्य विग्रह की क्या स्थिति है यह सब जांचने के लिए बनारस के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार की अदालत ने तीन सदस्यीय एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति की थी। सोमवार को सर्वे और फोटोग्राफी का काम पूरा हो गया। सीनियर सिविल जज की अदालत में मंगलवार को सर्वे रिपोर्ट रखी जानी है।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना की अगुआई वाली पीठ ने 13 मई 2022 को ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे की सुनवाई के लिए इस मामले को जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के हवाले किया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए अभी तक कोई तिथि तय नहीं की है। मौजूदा विवाद उस जमीन से संबंधित है जहां ज्ञानवापी मस्जिद मौजूद है। यह मामला साल 1991 से अदालतों में विचाराधीन है। साल 1991 में काशी विश्वनाथ के भक्तों ने यह आरोप लगाते हुए एक याचिका दायर की थी कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह औरंगजेब ने भगवान विश्वेश्वर के मंदिर को तोड़ने के बाद किया था।

साल 2021 में वाराणसी के सीनियर सिविल जज  के कोर्ट में एक और मुकदमा महिला शिव भक्तों और उपासकों ने दायर किया, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद क्षेत्र के विग्रहों के अलावा श्रृंगार गौरी की पूजा की इजाजत मांगी गई। हिंदू भक्तों और अंजुमन इंतेज़ामिया मासाजिद  कमेटी की दलीलों पर वाराणसी के सिविल कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट में कई आदेश पारित होने के बाद यह चर्चित मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। फिलहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद का पुरातात्विक सर्वे कराने के मामले में रोक लगा रखी है।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का आदेश

सुप्रीम कोर्ट में चुनौती क्यों?

अंजुमन इंतेज़ामिया मसाजिद प्रबंधन समिति ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में तर्क किया है कि हाईकोर्ट सर्वे की मांग करने वाले प्रतिवादियों की नीयत को भांपने में विफल रहा। ज्ञानवापी मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा है कि मस्जिद परिसर के सर्वे के लिए बनारस के सीनियर सिविल जज का आदेश सांप्रदायिक शांति और सद्भाव को बिगाड़ने का एक प्रयास और उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 का खुलेआम उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने इंगित किया है कि 1991 के एएसआई निरीक्षण के निर्देश में पारित आदेश 08 अप्रैल 2021 को चुनौती पर विचार करते हुए, हाईकोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ ने 9 सितंबर 2021 को निरीक्षण आदेश और 1991 में आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी। उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के प्रावधानों के जरिए वाद पर रोक लगाई है।

उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं के आवेदन पर इस मामले में आगे बढ़ने से पहले उपासना अधिनियम पर गौर किया जाना चाहिए था। वादी की अपील खारिज किए जाने से पहले उसे अदालत को सुनना चाहिए था। वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार ने 18 अप्रैल 2021 और इससे पहले 05 और 08 अप्रैल 2022 को सर्वे का आदेश पारित किया था। तीनों ही आदेश उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर के और उपासना स्थल अधिनियम की के खिलाफ व एकपक्षीय हैं।

सुप्रीम कोर्ट में यह भी कहा गया है कि बनारस के सीनियर सिविल जज का 18 अगस्त 2021 का यह आदेश भी पक्षीय था जिसमें संपत्ति का स्थानीय निरीक्षण करने के लिए एक एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति के लिए आवेदन की अनुमति दी गई थी। पांच अप्रैल 2022 के आदेश में एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति के लिए मस्जिद प्रबंधन की आपत्तियों को गलत ढंग से खारिज किया गया और आठ अप्रैल 2022 के आदेश में एडवोकेट अजय कुमार मिश्रा को एडवोकेट कमिश्नर के रूप में नियुक्त करने का निर्देश दिया गया। तीनों आदेशों पर मौजूदा याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी, जहां अनाक्षेपित आदेश पारित किया गया।

क़ानून का दुरुपयोग

अंजुमन इंतेज़ामिया मसाजिद प्रबंधन कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में जो वाद पेश किया है उसमें यह भी कहा गया है कि हिन्दू भक्तों द्वारा साल 2021 में जो वाद दायर किया गया है वह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन कमेटी ने मौजूदा विशेष अनुमति याचिका में साल 2021 के वाद में कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग उठा चुकी है। साल 1991 के मूल वाद में, एएसआई द्वारा विवादित परिसर के सर्वेक्षण के लिए एक आवेदन दायर किया गया था, जिसे बाद में न्यायालय ने अनुमति दी थी। इस आदेश को हाईकोर्ट की समन्वय पीठ ने आदेश 09 सितंबर 2021 को मूल वाद के आदेश के अलावा आगे की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग को खारिज कर दिया था। यह सर्वविदित कानून है कि अदालत सिर्फ उन्हीं मामलों में एडवोकेट कमिश्नर के जरिए सर्वे कराती है जहां कोर्ट निष्कर्ष पर पहुंचने में असमर्थ होता है।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि हाईकोर्ट को यह समझना चाहिए था कि यह एक स्थापित कानून है कि अदालत द्वारा स्थानीय निरीक्षण या कमीशन केवल उन मामलों में किया जाता है जहां पक्षकारों के नेतृत्व में साक्ष्य के आधार पर न्यायालय किसी निष्कर्ष पर पहुंचने में सक्षम नहीं है अथवा जब अदालत को लगता है कि साक्ष्य में कुछ स्पष्ट नहीं है। ऐसी स्थिति में स्थल निरीक्षण या कमीशन बनाकर स्थिति की पड़ताल कराई जाती है। इसे कोई भी पक्ष अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि स्थानीय निरीक्षण के लिए एडवोकेट कमिश्नर को वादी के सुझाए गए विकल्प के आधार पर नियुक्त नहीं किया जा सकता था। बनारस के सिविल कोर्ट के आठ अप्रैल 2022 के आदेश का हवाला देते हुए अंजुमन इंतेज़ामिया मासाजिद प्रबंधन कमेटी ने तर्क दिया है कि बनारस की सिविल कोर्ट वादी की सुझाई गई पसंद पर एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त नहीं कर सकती थी। कोर्ट ने संपत्ति के स्थानीय निरीक्षण के लिए एडवोकेट अजय कुमार मिश्रा को नियुक्त किया था, जिन्हें विशेष रूप से वर्तमान प्रतिवादियों ने दिसंबर 2021 में दायर एक आवेदन के माध्यम से मांगा गया था। ऐसे में सिविल कोर्ट का निर्णय एकतरफा है।  

प्रासंगिक आदेशों के विवरण के साथ विवाद से संबंधित अहम घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा गया है कि साल 1991 का मूल वाद-स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर और अन्य द्वारा 15 अक्टूबर 1991 को सिविल जज वाराणसी की अदालत में अंजुमन इंतेज़ामिया मसाजिद को प्रतिवादी के बनाया गया था। इस वाद में यह घोषित करने के लिए एक डिक्री की मांग की थी कि विवादित भूमि पर संरचना भगवान विश्वेश्वर के भक्तों की संपत्ति थी। हिंदुओं को इसे पूजा स्थल के रूप में इस्तेमाल करने का पूरा अधिकार है। इसके अलावा यह भी तर्क दिया गया था कि प्रतिवादियों के पास किसी भी प्रकार का कोई अधिकार, टाइटल या हित नहीं है और पूरे मुस्लिम समुदाय को भूमि पर कब्जा करने का कोई अधिकार नहीं है। वादी का मामला यह था कि विवादित स्थान स्वयंभू भगवान विशेश्वर का निवास है और उसे अन्य धर्मों के लिए पूजा स्थल नहीं बनाया जा सकता है।

अंजुमन इंतेज़ामिया मासाजिद कमेटी द्वारा दायर एक याचिका में साल 1998 में एक अंतरिम आदेश पारित किया गया था, जिसमें विवादित विवाद की सुनवाई पर अंतरिम रोक लगा दी गई थी। साल 1991 के वाद के बारे में आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी गई थी। चार फरवरी 2020 को वाराणसी की एक ट्रायल कोर्ट ने 1991 में दायर मूल वाद की सुनवाई करते हुए इस विवाद की सुनवाई जारी रखने का फैसला किया कि एशियन रिसर्फेसिंग ऑफ रोड एजेंसी प्राइवेट लिमिटेड और अन्य बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो-2018 (16) एससीसी  299 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में रोक का आदेश हट गया था। हाईकोर्ट मे जस्टिस अजय भनोट की पीठ ने 26 फरवरी 2020 के एक आदेश में विवाद की सुनवाई आगे बढ़ाने के निचली अदालत के फैसले पर रोक लगा दी थी।

हाईकोर्ट का फैसला सुरक्षित

एएसआई द्वारा परिसर के सर्वेक्षण की मांग वाले आवेदन और साल 1991 के वाद के सुनवाई योग्य होने को चुनौती देने वाली याचिका सहित कोर्ट के समक्ष लंबित मुद्दे से संबंधित सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की गई, जिसका फैसला आना बाकी है। इस फैसले को 15 मार्च 2021 को सुरक्षित रखा गया था। हाईकोर्ट अपना फैसला सुना पाता, इससे पहले ही सिविल जज ने एएसआई द्वारा निरीक्षण से राहत देने वाले हिंदू भक्तों के आवेदन को स्वीकार कर लिया। यह निर्देश दिया गया कि पुरातात्विक सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य यह पता लगाना होगा कि विवादित स्थल पर वर्तमान में जो धार्मिक ढांचा खड़ा है, वह मिलाने, परिवर्तन या बढ़ाया गया है अथवा किसी तरह की संरचना की ओवरलैपिंग है या फिर किसी अन्य की धार्मिक संरचना है। क्या विवादित स्थल पर विवादित मस्जिद के निर्माण या मिलाने या उसमें जोड़े जाने से पहले कभी हिंदू समुदाय से संबंधित कोई मंदिर मौजूद था?

ज्ञानवापी मस्जिद कमेटी ने आठ अप्रैल के आदेश को हाईकोर्ट में एक आवेदन के माध्यम से चुनौती दी थी। उस समय कोविड की दूसरी महामारी की लहर चल रही थी, जिसके चलते आवेदन नहीं लिया जा सका। इसलिए उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतेज़ामिया मसाजिद कमेटी ने दो संशोधन दायर किए थे। बाद में हाईकोर्ट में एक और याचिका दायर की गई जिसमें वाराणसी के जिला न्यायाधीश को निर्णय लेने और संशोधनों पर निर्णय लेने का निर्देश देने की मांग की गई थी। साथ ही सिविल जज द्वारा पारित आदेश दिनांक 08 अप्रैल 2021 को रद्द करने के लिए एक संशोधन आवेदन भी दायर किया गया था। हाईकोर्ट ने अपने आदेश नौ सितंबर 2021 के माध्यम से मूल वाद पर आगे की कार्यवाही पर रोक लगाते हुए संशोधन आवेदन की अनुमति दी। हाईकोर्ट ने कहा था कि चूंकि निचली अदालत को पूरी जानकारी थी,  हाईकोर्ट द्वारा निर्णय पहले ही सुरक्षित रखा जा चुका है, इसलिए उसे आगे नहीं बढ़ना चाहिए था। साथ ही निरीक्षण के लिए आवेदन का फैसला करना चाहिए था। सिविल कोर्ट ने उसी अधिवक्ता को कोर्ट कमिश्नर नियुक्त कर दिया जिसका नाम प्रतिवादियों ने अपने आवेदन में सुझाया था।

मस्जिद कमेटी की अपत्तियां

याचिकाकर्ता ज्ञानवापी मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में दी गई अर्जी में तमाम आपत्तियां उठाते हुए वाद को उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के प्रावधानों के मुताबिक खारिज करने की मांग की है। साथ ही यह भी कहा है कि बनारस के सिविल कोर्ट ने याचिकाकर्ता की आपत्तियों को विधि विरुद्ध तरीके से खारिज किया है। इसके पश्चात वाद के विरुद्ध याचिकाकर्ता के आवेदन को लंबित रखते हुए तीन कोर्ट कमिश्नरों की नियुक्ति का आदेश पारित कर दिया गया। 8 अप्रैल 2022 को सिविल कोर्ट ने उसी अधिवक्ता अजय कुमार मिश्रा को कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया जिनका नाम वादी ने मस्जिद के निरीक्षण के सुझाया था। अंजुमन इंतेज़ामिया मासाजिद कमेटी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता हुज़ेफ़ा अहमदी,  फ़ुजैल अहमद अय्यूबी, निज़ामुद्दीन पाशा, इबाद मुश्ताक के अलावा कनिष्क प्रसाद कर रहे हैं।

ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे के दौरान कई सियासी दलों और हिन्दूधर्मावलंबियों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने अदालत के आदेश के बाद बयान दिया, “यह कानून का खुला उल्लंघन है। मसाजिद कमेटी और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल सकती है। मैंने एक बाबरी मस्जिद खो दी है और दूसरी मस्जिद नहीं खोना चाहता। योगी सरकार को उन लोगों के खिलाफ तुरंत केस दर्ज करना चाहिए जो धार्मिक स्थलों की प्रकृति को बदलने की कोशिश करते हैं। अगर अदालत उन्हें दोषी पाती है तो उन्हें तीन साल की जेल हो सकती है।”

दूसरी ओर, न्यायालय के आदेश का जूना अखाड़ा के वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरि ने स्वागत किया है। साथ ही मदरसों में राष्ट्रगान अनिवार्य करने के सरकार के निर्णय की भी सराहना करते हुए कहा है, “नफरत अलगाव की बात करने वाला धर्म का मार्ग नहीं हो सकता। सिविल कोर्ट के फैसले का स्वागत होना चाहिए। हम जब सत्य की राह पर चलेंगे तभी देश में शांति सद्भाव कायम हो सकता है। हिंदू और मुसलमान दोनों समुदायों को इसी देश के अंदर रहना है। ऐसे में सद्भाव और भाईचारा ही धर्म की राह दिखाता है।

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