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उत्तराखंड की सियासत और 'उमेश फैक्टर' : एक बार फिर मची हलचल

पहाड़ी राज्य उत्तराखंड हर समय प्राकृतिक भू-स्खलन से घिरा रहता है, लेकिन इस राज्य में एक 'उमेश कुमार फैक्टर' भी है, जो यहां की राजनीति में उथल-पुथल मचाता रहता है। एक बार फिर इसी फैक्टर ने यहां हलचल बढ़ा दी है।
pushkar singh dhami
पुष्कर सिंह धामी के साथ निर्दलीय विधायक उमेश कुमार, उमेश मौजूदा सरकार के साथ नज़दीकी बढ़ाने के लिए जाने जाते रहे हैं।

स्टिंग ऑपेरशन के लिए पहचाने जाने वाले उमेश कुमार के नाम से उत्तराखंड की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। उत्तराखंड सरकार ने उन पर चल रहे राजद्रोह के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) वापस लेने की अर्जी डाली। 48 घंटे के भीतर सरकार इस फैसले से पलट गई और एसएलपी को यथावत रखने का फैसला लिया।

पुष्कर सिंह धामी की अगुआई वाली सरकार से नजदीकी बढ़ाने वाले उमेश कुमार ने सरकार के इस बदले फैसले के बाद अपना रवैया भी बदल दिया। उन्होंने कभी पुष्कर सिंह धामी के लिए अपनी सीट छोड़ने की पेशकश की थी। अब धामी सरकार को चुनौती दी है कि वे सुप्रीम कोर्ट में अपनी एड़ी-चोटी का दम लगाकर उनके खिलाफ लड़ें। अब उत्तरखंड के सियासी मैदान में एक उमेश कुमार के खिलाफ तीन मुख्यमंत्री (दो पूर्व मुख्यमंत्री) हो गए हैं। पुष्कर सिंह धामी, त्रिवेंद्र सिंह रावत और हरीश रावत।

पत्रकार रह चुके और स्टिंग ऑपरेशन के लिए पहचाने जाने वाले उमेश कुमार अब हरिद्वार की खानपुर विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक हैं।

19 नवंबर को एसएलपी वापस लेने का फ़ैसला पलटने के लिए लिखा गया पत्र।

क्या है पूरा मामला

त्रिवेंद्र सिंह रावत की अगुआई वाली उत्तराखंड सरकार के समय 2018 मेंउमेश कुमार पर सरकार को ब्लैकमेल करने और गिराने के आरोप में राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया। वर्ष 2020 में नैनीताल हाईकोर्ट में इस मामले पर सुनवाई हुई। राजद्रोह की एफआईआर निरस्त करते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने त्रिवेंद्र सिंह रावत की तरफ से लगाए गए आरोपों का स्वत संज्ञान लेते हुए सीबीआई जांच के आदेश दिए। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट में तीन एसएलपी दाखिल की गई। राजद्रोह का केस दर्ज कराने वाले हरेंद्र सिंह रावत, तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ये एसएलपी दाखिल कीं। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी।

इस मामले में नया मोड़ 2022 में आया। उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल उत्तराखंड सरकार बनाम उमेश कुमार शर्मा और अन्य मामले में सरकार की तरफ से दायर एसएलपी वापस लेने का फ़ैसला लिया। इस संबंध में पत्र 26 सितंबर को लिखा जा चुका था। 18 अक्टूबर को राज्य सरकार ने एसएलपी वापस लेने की अर्जी लगाई थी। अपनी ही पार्टी की सरकार का यह फैसला त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए चुभने वाला था। वहीं उमेश कुमार के लिए बड़ी राहत की खबर थी।

सरकार की ओर से कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट में दो एसएलपी पहले से चल रही हैं। इस एसएलपी को लेकर सरकार को अधिवक्ताओं पर मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है।

सरकार के इस फैसले से तिलमिलाए त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दिल्ली आलाकमान तक अपनी बात पहुंचायी। हालांकि इससे पहले अपनी ही सरकार पर भ्रष्टाचार बढ़ने के आरोप लगाकर वे दिल्ली के नेताओं को नाराज भी कर चुके थे।

19 नवंबर को उत्तराखंड शासन की तरफ से दोबारा पत्र भेजा गया। इस पत्र में एसएलपी वापस लेने के फैसले को जनहित में निरस्त करने की बात लिखी गई।

त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ आए हरीश रावत

पार्टी भले ही अलग-अलग हो लेकिन उमेश कुमार ने त्रिवेंद्र सिंह रावत और हरीश रावत दोनों को ही राजनीति में गहरे जख्म दिए हैं।

एसएलपी वापस लेने के फैसले पर हरीश रावत ने फेसबुक पर प्रतिक्रिया दी। 20नवंबर को उन्होंने पोस्ट किया “उत्तराखंड छोटा राज्य है, अस्थिरता जल्दी भी आती है और यदि उस राज्य में पत्रकारिता की आड़ में ब्लैकमेलर राजनीतिक संरक्षण पाएंगे तो इस राज्य का भगवान मालिक है। 3-3, 4-4 मुख्यमंत्री को प्रकट रूप से ब्लैकमेलर अपने चंगुल में ला चुके हैं, कुछ और भी होंगे जो ब्लैकमेलिंग का शिकार हुए होंगे, नाम सामने ना हो या कुछ लोग ऐसे भी होंगे जो ऐसे लोगों को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हों। राज्य को ऐसे लोगों को पहचानने की जरूरत है। हमने कुछ गलतियां की हैं तो हमें दंड उत्तराखंड देगा। मगर जो महज ब्लैकमेलिंग के लिए उत्तराखंड में आए हैं और अपार अकूत धन अर्जित कर रहे हैं उनका शिकार कोई भी हो ब्लैकमेलिंग का, मैं उस व्यक्ति के साथ खड़ा रहूंगा”।

2016 में उमेश कुमार के स्टिंग ऑपरेशन में हार्स ट्रेडिंग करते सुने गए हरीश रावत ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ इस पोस्ट में सहानुभूति जताई थी।

त्रिवेंद्र के प्रति सहानुभूति जताते हुए हरीश रावत की फेसबुक पोस्ट

उमेश कुमार की चुनौती

धामी सरकार के एसएलपी वापस लेने के यूटर्न ने निर्दलीय विधायक उमेश कुमार को आहत किया है। अपने फेसबुक पेज पर उन्होंने एक के बाद एक कई पोस्ट कीं। एक पोस्ट में वह लिखते हैं “सरकार कान खोलकर सुन लो,डरते हम किसी से हैं नहीं, सरकार आप भ्रष्टाचारियों के साथ खड़े हो...”।

वहीं हरीश रावत के लिए उन्होंने वीडियो साझा किया है, जिसमें वह कह रहे हैं “हरीश रावत ब्लैकमेलिंग की बात कर रहे हैं, अगर आपने कोई गलत काम नहीं किया तो मैं कैसे ब्लैकमेल कर दूंगा”। वह दावा करते हैं कि उन्होंने हरीश रावत को कभी ब्लैकमेल नहीं किया है।

पुष्कर सिंह धामी और उमेश कुमार

निर्दलीय विधायक चुने जाने के बाद से ही उमेश कुमार पुष्कर सिंह धामी सरकार के साथ अपनी नज़दीकी बढ़ाते नज़र आए। विधानसभा चुनाव हार जाने पर धामी के चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने अपनी सीट की पेशकश भी की थी। त्रिवेंद्र सिंह रावत से जुड़ी एसएलपी वापस लेने का फैसला कर धामी सरकार ने त्रिवेंद्र को झटका तो दिया ही लेकिन उमेश शर्मा के प्रति अपनी नजदीकी भी दर्शायी।

उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा माहरा दसौनी कहती हैं “मुख्यमंत्री धामी की सरकार ने बिना होमवर्क के एसएलपी वापस लेने का फैसला लिया और फिर अपने ही फैसले से यूटर्न ले लिया। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जिस तथाकथित पत्रकार को जेल के अंदर डाला था, वर्तमान मुख्यमंत्री उनके कहने पर चल रहे हैं। मुख्यमंत्री धामी को इस्तीफा देना चाहिए, उनमें निर्णय लेने की क्षमता नहीं है”।

गरिमा कहती हैं “राज्य सरकार की तरफ से कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री धामी इस मामले से अनभिज्ञ थे। उन्हें एसएलपी वापस लेने की जानकारी नहीं थी। अधिकारियों ने उन्हें भ्रमित किया। इतने बड़े हाईप्रोफाइल केस से मुख्यमंत्री का अनभिज्ञ होना, उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है”।

एसएलपी वापस न लेने के फैसले के बाद उमेश कुमार की प्रतिक्रिया

उत्तराखंड की राजनीति में उमेश

वरिष्ठ पत्रकार दिनेश जुयाल कहते हैं “उमेश कुमार सरकारें गिराने वाले शख्स हैं या सरकारों की कुर्सी हिलाते रहते हैं। वे स्टिंग मीडिया के लिए जाने जाते रहे हैं और सरकारें स्टिंग मीडिया के दबाव में हैं। यानी आपकी कोई कच्ची पोल है जिसके चलते आप डरे हुए हैं। उमेश यहां के राजनेताओं के लिए चुनौती बने हुए हैं और नेता उनसे डरते हैं। ब्यूरोक्रेट भी सहमते हैं। मंत्रियों-मुख्यमंत्रियों को असहज करने वाले उमेश कुमार को किसने बनाया है। इसके पीछे यहां की राजनीति और राजनेता ज़िम्मेदार हैं”।

राजनीतिक विश्लेषक योगेश भट्ट कहते हैं “अपनी ही पार्टी की सरकार अगर त्रिवेंद्र सिंह रावत को सपोर्ट करने से पीछे हट जाती है तो ये स्पष्ट तौर पर राजनीतिक खेमेबंदी है। इस सब पर मुख्यमंत्री धामी ने कोई सफाई भी नहीं दी। जबकि इस सबसे आहत होकर और बेचैनी में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने धामी सरकार के ऊपर भ्रष्टाचार बढ़ने जैसे आरोप लगाए। मुख्यमंत्रियों की कुर्सी डगमगाने वाले उमेश कुमार को आखिर इसी पॉलिटिकल सिस्टम ने बनाया है”।

धामी सरकार पर त्रिवेंद्र-तीरथ के बयान

भाजपा के पिछले कार्यकाल में सत्ता की चाबी त्रिवेंद्र और फिर तीरथ सिंह रावत के हाथ से निकलकर पुष्कर सिंह धामी के हाथ चली आई। विधानसभा चुनावों में भी भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने इस युवा चेहरे को आगे बढ़ाया। धामी सरकार को अभी एक साल भी नहीं हुआ है लेकिन त्रिवेंद्र सिंह खेमे से उनकी टकराहट की खबरें आने लगी हैं।

त्रिवेंद्र सिंह रावत के औद्योगिक सलाहकार रहे केएस पंवार से जुड़ी एक कंपनी का नाम मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े एक मामले में सामने आया। इस कंपनी पर पहले भी वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लग चुके थे। इस मामले की जांच शुरू की गई है। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस मामले में कहा कि इस कंपनी की पहले भी जांच की जा चुकी है और क्लीन चिट दी जा चुकी है। उन्होंने राज्य में भर्ती घोटाला और नौकरियों में धांधली का मुद्दा भी उठाया।

वहीं पूर्व मुख्यमंत्री और गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत ने कहा कि उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद उत्तराखंड में कमीशनखोरी ज़ीरो होनी चाहिए थी लेकिन अब यह और ज्यादा हो गई है।

दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के बयानों ने धामी सरकार को असहज किया। भाजपा के अंदरुनी घमासान को सतह पर ला दिया। जबकि उमेश कुमार के खिलाफ एसएलएपी मामला ने इस असहजता को और अधिक गहरा कर दिया।

(देहरादून स्थित वर्षा सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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