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बिहार की लचर स्वास्थ्य व्यवस्थाः मुंगेर सदर अस्पताल से 50 लाख की दवाईयां सड़ी-गली हालत में मिली

मुंगेर के सदर अस्पताल में एक्सपायर दवाईयों को लेकर घोर लापरवाही सामने आई है, जहां अस्पताल परिसर के बगल में स्थित स्टोर रूम में करीब 50 लाख रूपये से अधिक की कीमत की दवा फेंकी हुई पाई गई है, जो सड़ी-गली हालत में थी।
Bihar Medicine
Image courtesy : DB

बिहार की चिकित्सा व्यवस्था की समय-समय पर पोल खुलती रहती है। सरकारी अस्पतालों में लापरवाही, इलाज के अभाव में मरीजों का भटकना और समय पर इलाज न मिलने से मौत जैसे मामले अक्सर सामने आते रहते हैं। इसी क्रम में मुंगेर के सदर अस्पताल में एक्सपायर दवाईयों की एक घोर लापरवाही सामने आई है जहां अस्पताल परिसर के बगल में स्थित स्टोर रूम में करीब 50 लाख रूपये से अधिक की कीमत की दवा फेंकी हुई पाई गई है जो सड़ी गली हालत में थी।

स्टोर रूम तोड़ने पर हुआ खुलासा

ये मामला उस वक्त सामने जब सदर अस्पताल के परिसर को विस्तार के लिए इसे तोड़ा जा रहा था। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक मुंगेर सदर अस्पताल को 100 बेड वाला अत्याधुनिक अस्पताल बनाने का काम किया जा रहा है। इसी के चलते बगल के ढ़ांचे को तोड़ा गया था, जहां लाखों की एक्सपायरी दवाईयां मिली। ज्ञात हो कि अस्पताल के विस्तार के कार्य का उद्घाटन पिछले महीने मुंगेर के सांसद राजीव रंजन सिंह, पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी, मुंगेर विधायक प्रणव कुमार ने संयुक्त रूप से किया था। निर्माण कार्य के लिए सदर अस्पताल परिसर में चयनित भूमि को खाली करने के लिए पांच से अधिक पुराने भवन को तोड़ा जाना था। मुख्य अस्पताल परिसर के बगल में बने स्टोर रूम को तोड़ा गया, तो स्टोर भवन के ही कहीं पांच कमरों में हजारों सलाइन की एक्सपायर बोतलें मिली। साथ ही इसमें एक हजार से अधिक परिवार नियोजन की अंतरा सुई, एक हजार से अधिक कॉपर टी की स्टिक मिली है जो अगले वर्ष यानी 2023 में एक्सपायरी होने वाली है। ये सारी दवाईयां पानी में भीगने के चलते ख़राब हो गई थीं। स्टोर रूम के पांचों कमरे में कई जीवन रक्षक दवाईयां भी थीं। इसमें वर्ष 2021 में एक्सपायर हो चुकी ओआरएस के पैकेट, टैलमिसारटन टेबलेट, ज़ोसाइन मरहम, कफ सिरप पाई गई हैं।

जांच के बाद दोषियों पर कार्रवाई

ये मामला सामने आने के बाद सिविल सर्जन डॉ. हरेंद्र कुमार आलोक ने न्यूज़क्लिक से कहा कि जो दवा बच जाती थी, उन्हीं में से ये दवाईयां हैं। ऐसे तो कुछ दवा एक्सपायर होती है। जहां स्टोर किया गया था वह पूरी बिल्डिंग ही टूट रही है। उसे हटा कर दूसरी जगहों पर रखा जा रहा है। जो एक्सपायर दवाईयां हैं उसके लिए एक कमिटी बनाकर डिस्पोजल कराया जाएगा। ये दवा काफी पहले की है। कुछ दवाईयां धीरे-धीरे बच जाती हैं, उन्हीं में से ये होगी। इसकी जांच की जाएगी और जो भी दोषी पाया जाएगा उस पर कार्रवाई की जाएगी।

मेडिकल व्यवस्था की घोर लापरवाही

मुंगेर अस्पताल में दवाईयों को लेकर हुई लापरवाही के मामले बोलते हुए सीपीआइएमएल नेता कुमार परवेज ने कहा कि, "ये सरकार और मेडिकल व्यवस्था की घोर लापरवाही है। एक तरफ गरीब लोग इलाज के अभाव में मर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ लाखों की दवा एक्सपायर हो जा रही है जिसका कोई संज्ञान लेने वाला नहीं है। इस मामले की जांच होनी चाहिए कि आखिर इतनी बड़ी मात्रा में दवा आखिर एक्सपायर कैसी हुई और जरूरतमंदों को क्यों नहीं मिल पाई। जो दोषी है उस पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।"

उन्होंने कहा कि, "प्रदेश भर सरकारी अस्पतालों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। नीतीश कुमार ने अस्पतालों का इंफ्रास्ट्रक्चर जरूर विकसित किया है, लेकिन वहां इलाज के लिए चिकित्सकों की कमी है। ग्रामीण अस्पतालों की स्थिति और बदतर है। ग्रामीण इलाकों में महिला चिकित्सकों का घोर अभाव है जिसके चलते महिलाएं अपनी समस्याओं को पुरूष चिकित्सकों से नहीं बता पाती हैं।

अस्पतालों में नर्स की भी भारी कमी है। अस्पतालों में एक तरफ जहां एक्स रे और जांच मशीनों की कमी है, वहीं दूसरी तरफ जिन अस्पतालों में ये मशीनें हैं वहां ये धूल फांक रही है। कहीं कहीं तो इन मशीनों को चलाने के टेक्निकल स्टाफ का अभाव है।"

नीति आयोग ने दावों की पोल खोल दी

परवेज ने कहा कि "सरकार उचित तरीके से चिकित्सक, नर्स आदि की समय पर भर्ती नहीं करती है। आशाकर्मियों की बात करें तो उन्हें समय पर मानदेय नहीं दिया जाता है और जो दिया जाता है वह भी कामगारों से बदतर है। यहां पूरी व्यवस्था ही चौपट है। अस्थायी तौर पर बहाली की जाती है। पिछले साल आई नीति आयोग की रिपोर्ट ने नीतीश कुमार के तमाम दावों की पोल खोल दी है। इसमें बिहार को सबसे नीचले पायदान पर दिखाया गया है। यह किसी से छिपा नहीं है कि बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है। यहां निजी अस्पताल और क्लिनिक तेजी से बढ़ रहे हैं। कोरोना काल में देखें तो यहां काफी बुरा हाल था। पीएमसीएच जैसे राज्य के बड़े अस्पतालों की स्थिति बेहद चिंताजनक बनी हुई थी। दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन को लेकर हुई परेशानी को पूरी दुनिया ने देख ही लिया है। यहां के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय पूरी तरह विफल साबित हुए हैं। इनको हटाने की मांग लगातार होती रही है, लेकिन नीतीश कुमार लगातार इनको बचाते रहे हैं। नीतीश सरकार का पूरा फोकस है कि अस्पताल के नाम पर बिल्डिंग बना लिया जाए और अखबारों में इसकी चर्चा हो जाए।"

बता दें कि बिहार में आए दिन चिकित्सा व्यवस्था के हर एक स्तर पर लापरवाही सामने आती रही है, इसमें चाहे इलाज के अभाव में मरीजों की मौत का मामला हो या समय पर एंबुलेंस न मिलने या अस्पतालों से मरीजों के ले जाने के लिए प्रशासन की ओर से एंबुलेंस न दिए जाने, डॉक्टरों और नर्सों की कमी के मामले सामने आते रहे हैं।

इमर्जेंसी वार्ड में कर्मचारियों ने की थी अनदेखी

बीते साल नवंबर महीने में बिहार शरीफ सदर अस्पताल में मरिजों के इलाज में लापरवाही की बात सामने आई थी। सदर अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में किसी ने सड़क पर पड़े एक बीमार बुजुर्ग को इलाज के लिए भर्ती कराया था लेकिन अस्पताल का कोई कर्मचारी उस बुजुर्ग को देखने तक नहीं गया था। उस वृद्ध को जिस बेड पर भर्ती कराया था वह दो दिनों तक उसी बेड पर कराहते रहे और बाद में उनकी मौत हो गयी थी।

गर्भवती महिला की इलाज के अभाव में हुई थी मौत

पिछले साल ही अगस्त महीने बिहार के गोपालगंज जिले के कुचायकोट सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में इलाज के अभाव में गर्भवती महिला की मौत हो गई थी। परिजनों ने कहा था कि प्रसव पीड़ा होने पर उन्होंने प्रसूता को कुचायकोट सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया था, लेकिन वहां डॉक्टर ड्यूटी पर नहीं थे, जिसके चलते उनका समय पर इलाज नहीं हो सका और मौत हो गई। इतना ही नहीं जब परिजन आक्रोशित हुए तो अस्पताल के सुरक्षा गार्ड ने परिजनों से मारपीट कर उन्हें वहां से भगा दिया था। परिजनों का कहना था कि सरकारी एंबुलेंस को बुलाने के लिए 102 पर कई बार फोन भी किया था, लेकिन एंबुलेंस की सुविधा नहीं मिली थी।

ज्ञात हो कि बिहार में इस तरह की लापरवाही के मामले निरंतर आते रहते हैं। उपर्युक्त घटना महज एक बानगी है। चिकित्सकों के पद खालीबीते वर्ष डीडब्ल्यू ने सरकारी आंकड़ों के हवाले से लिखा कि प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में चिकित्सकों के 5674, शहरी क्षेत्रों में 2874 तथा दुर्गम इलाकों में 220 पद खाली पड़े हैं। जबकि शहरी, ग्रामीण व दुर्गम इलाकों में क्रमश: 4418, 6944 व 283 कुल सृजित पद हैं। वहीं पटना हाईकोर्ट को सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार राज्य के सरकारी अस्पतालों में विभिन्न स्तर के 91921 पदों में से लगभग आधे से अधिक 46256 पद रिक्त हैं। इनमें विशेषज्ञ चिकित्सकों के चार हजार तथा सामान्य चिकित्सकों के तीन हजार से ज्यादा पद खाली पड़े हैं।

डब्लूएचओ के मानकों के अनुसार प्रति एक हजार की आबादी पर एक चिकित्सक होना चाहिए, लेकिन बिहार में 28 हजार से अधिक लोगों पर एक डॉक्टर है। आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 1899 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) हैं। इनमें महज 439 केंद्र पर ही चार एमबीबीएस चिकित्सक तैनात हैं, जबकि तीन डॉक्टरों के साथ 41, दो के साथ 56 तथा एक चिकित्सक के साथ 1363 पीएचसी पर काम हो रहा है।

इलाज के लिए प्रदेश से बाहर जाते लोग

बिहार में एम्स और आइजीआइएमएस जैसे कई बड़े अस्पताल होने के बावजूद इलाज के लिए लोगों को आज भी बिहार से बाहर का रुख करना पड़ रहा हैं। यहां से अधिकांश लोग इलाज के लिए दिल्ली जाते हैं और उत्तरी बिहार के लोग नेपाल चले जाते हैं।

ज्ञात हो कि वर्ष 2017 में तत्कालीन स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने एक बयान में कहा था कि कि बिहार के लोग छोटी-छोटी बीमारियों के लिए दिल्ली पहुंच जाते हैं।

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