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जम्मू-कश्मीर के लोकप्रिय नेता युसूफ़ तारीगामी की तीन दिवसीय बिहार यात्रा

युसूफ तारीगामी की तीन दिवसीय यात्रा पर पटना, समस्तीपुर और बेगसुराय में जनसभा का आयोजन किया गया। युसूफ तारीगामी ने अपने भाषण में कहा कि हमारी देशभक्ति की बार-बार परीक्षा न ली जाये। हमारा चेहरा इतना खराब नहीं जितना बनाया गया।
Yusuf Tarigami

जम्मू-कश्मीर के लोकप्रिय नेता और  कुलगाम (कश्मीर) विधानसभा क्षेत्र से चार बार विधायक रहे युसुफ तारीगामी अपने तीन दिनों के राजनीतिक यात्रा पर बिहार आये। इस दौरान उन्होंने भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) द्वारा पटना, समस्तीपुर और  बेगुसराय में आयोजित सभाओं को संबोधित किया। इन तीनों शहरों में कश्मीर के आवाज समझे जाने वाले युसुफ तारीगामी को सुनने बड़ी संख्या में वाम कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ताओं के अलावा आम नागरिक भी बड़ी संख्या में मौजूद थे।  

सबसे पहले 12 सितंबर के दिन आई. एम. ए हॉल पटना में इनकी सभा आयोजन हुआ। इस सभा में कार्यक्रम का विषय था "साम्प्रदायिक फासीवादी  चुनौती  एवं जनप्रतिरोध". इस सभा को संबोधित करते हुए युसूफ तारीगामी ने कहा कि यहां के लोगों ने कुछ ऐसा किया है, कुछ कदम  यहां के लीडरों और बड़े ओहदों पर रहने वाले लोगों ने उठाये कि वह बिहार के साथ -साथ पूरे देश के लिए बड़े काम के चीज है। कश्मीर में कहा जाता है ' कदम बढ़ाओ ' उसी तरह बिहार ने जो कदम बढ़ाया है, उसका हम सम्मान करते हैं। बिहार ने अँधेरे में प्रकाश की किरण दिखाई है। बिहार से जो राजनीतिक दिशा मिली है, वह केन्द्रीय सत्ता के परिवर्तन का रास्ता प्रशस्त करेगी।"

इसके बाद युसूफ तारीगामी ने राज्य जम्मू कश्मीर के लोगों के बारे में मुख्यधारा की मीडिया में बनाई गई छवि के बारे में बताया "हमारा चेहरा इतना खराब नहीं, जितना बनाया गया है या बनाया जा रहा है। हम भी आप ही की तरह हैं। अपने साथ जगह दीजिये बस यही कहने आया हूं। हमारी यह बदकिस्मती है कि हमसे बार- बार पूछा जाता है कि तुम कौन हो? एक बार पूछा जाता, दो बार पूछा जाता,तीन बार पूछा जाता तो कोई बात थी लेकिन हमसे सुबह-शाम पूछा जाता है की तुम कौन हो? इससे हमें जो तकलीफ होती है, उसका अंदाजा आप जैसे दानिशवर जरूर लगा सकते हैँ. ज़ब बार -बार  हमें इम्तेयहान देना पड़े तो इससे शक पैदा होता है, नाराजगी पैदा होती है। ये शक और ये नाराजगी किसी के लिए  ठीक नहीं है। हमारे पुरखों ने रहनुमाओं ने सपने देखे थे आजादी के समय. आज मेरे देश में नफ़रत की लकीरें नहीं बल्कि नफ़रत की दीवारें ख़डी की जा रही हैं हमारे  हिंदुस्तान के लोगों ने घुटने नहीं टेके। 1947 में मुल्क का केवल विभाजन ही नहीं बल्कि लोगों का  कत्लेआम किया गया। "

1927 में हरि सिंह ने क़ानून बनाकर लोगों को जमीन खरीदने से रोका

कश्मीर  के इतिहास के अनछुए पहलुओं से परिचित कराते हुए युसफ तारीगामी ने उपस्थित जनसमूह को कहा, "जब वहाँ के शासक हरि सिंह भारत के साथ जुड़ने के लिये तैयार नहीं थे, उस समय जम्मू-कश्मीर की आवाम ने जिन्ना के द्विराष्ट्र के सिद्धांत को खारिज करते हुए भारत के साथ अपने को जोड़ने का निर्णय लिया। भाजपा सरकार  कश्मीर की विशेष स्थिति के खिलाफ जहर फैलाकर 370 और 35 ए धारा को खत्म कर वाह-वाही लूटने का काम कर रही है। जबकि यही विशेष स्थिति हिमाचल प्रदेश, उत्तर-पूर्व के राज्यों सहित अन्य प्रांतों को प्राप्त है। उन्होंने राजा हरि सिंह द्वारा 1927 में पारित कानून, जिसके अन्तर्गत बाहरी लोग कश्मीर की जमीन नहीं खरीद सकते हैं के बारे में बताते हुये कहा कि उस कानून को वहाँ के राजपूत राजा और पंडितों ने मिलकर बनाया था।"

 देश में सबसे पहले भूमि सुधार जम्मू -कश्मीर में होने संबंधी तथ्य से अवगत कराते हुए युसूफ तारीगामी ने कहा " सबसे पहले भूमि सुधार कश्मीर में ही हुआ और वहाँ किसी भी जमींदार को मुआवजा नहीं दिया गया और रैयतों के कर्ज माफ कर दिये गये। "उन्होंने 1947 में भारत के बंटवारे के समय पंजाब, बंगाल में हुए नरसंहारों की चर्चा करते हुए कहा  "उस समय पूरे कश्मीर में एक भी और कहीं  भी हिंसा नहीं हुई।"

युसूफ तारीगामी ने  महात्मा गाँधी के कथन का हवाला देते हुए कहा कि ‘‘मैं हिन्दुस्तान को कश्मीर की संस्कृति के रूप में गढ़ने का हामी हूँ. ’’उन्होंने भावुक शब्दों में तमाम बिहार वासियों से अपील करते हुए कहा  "आप हमें अपने से अलग न समझें। हमारी देश भक्ति की बार-बार परीक्षा न ली जाय।"

उन्होंने कश्मीर की भौगोलिक स्थिति एवं अन्तर्राष्ट्रीय शक्तियों के खेल को समझने का भी आह्वान करते हुए कहा " कश्मीर की विशेष स्थिति को समझिये। यह किसी सामान्य भारतीय राज्य की तरह नहीं है। एक ओर पाकिस्तान है, दूसरी ओर चीन है, फिर अफगानिस्तान है, साथ में सेंट्रल रिपब्लिकन राज्य हैं। इन भगौलिक स्थितियों के कारण कश्मीर की  स्थिति जटिल है तथा इसे गंभीरता से देखने की जरूरत है।"

अंत में उन्होंने  विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि महंगाई, बेरोजगारी, बढ़ते सामाजिक जुल्म, महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा, बलात्कारियों को सम्मानित करने जैसी घिनौनी हरकत से उबी हुई जनता संघर्षों के लिए मैदान में उतर रही है।

इसके बाद 13 सितम्बर को समस्तीपुर में इनकी सभा हुई। समस्तीपुर के आजाद नगर मुहल्ला स्थित विवाह भवन में आयोजित सभा को युसूफ तारीगामी ने  संबोधित करते हुए  कहा " भाजपा और आर.एस. एस  द्वारा देश के संघीय  राजनीति तथा  धर्मनिरपेक्ष और जनतान्त्रिक शक्तियों को कमजोर कर  कारपोरेटपक्षी  और साम्प्रदायिक माहौल बनाकर देश को विभाजित  करने की कोशिश कर रही है।"

युसूफ तारीगामी ने आम जन जीवन के मसलों को भी उठाते हुए कहा " वर्तमान सरकार देश को बढ़ती महंगाई, सामाजिक जुल्म, महिलाओं के खिलाफ  बढ़ती हिंसा, बलात्कारियों को सम्मानित करने जैसी घिनौनी  हरकत, संघर्षरत और आंदोलनकारी  जनता पर दबा कर रखने की कोशिश की जा रही है। "

14 सितम्बर को युसूफ तारीगामी बिहार के लेनिनग्राद कहे जाने वाले शहर बेगूसराय में थे। बेगूसराय के पूर्व  माकपा विधायक राजेन्द्र प्रसाद सिंह की अध्यक्षता में शुरू हुए विशाल सभा  को सम्बोधित करते हुए  कामरेड युसुफ तारीगामी सम्मेलन ने कहा  "असीम त्याग , कुर्बानी और सभी धर्म एवं जाति के लोगों की संकल्पित एकता के बल पर हमने ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी पाई लेकिन आजादी के लड़ाई के दौरान ही अंग्रेजों ने हमारी एकता कमजोर करने के लिए हममें से ही कुछ लोगों का पीठ सहलाकर साम्प्रदायिकता का बीजारोपण कर दिया। आज वही लोग वीर कहला रहे हैं जिन्होंने माफीनामा लिख लिखकर अंग्रेजों को स्वामी भक्ति का वचन दिया था। जिनके वैचारिक पूर्वजों का राष्ट्रीय आंदोलन में कोई भुमिका नहीं वही राष्ट्रवाद की ऐसी भयानक शिक्षा दे रहे हैं कि सत्ता और सरकार की नीतियां भले ही जनविरोधी हो उसका विरोध करना राष्ट्रद्रोह है।"

युसूफ तारीगामी ने आगे बताया " केंद्र की लगभग सभी सरकारें किसान, मजदूरों और आमजन की हितकारी नीतियों को मुस्तैदी से लागू करने में नाकामयाब रही है लेकिन 2014 से सरकार की नीतियां तेजी से कॉरपोरेट पक्षी तो हुई ही हैं, दर्दनाक बात यह है कि समाजिक समरसता, एकता, और सहिष्णुता पर हमले तेज हुए हैं। भाजपा सरकार साम्प्रदायिक तानाशाही नीतियों को इसलिए लागू करना चाहती है कि सामाजिक और धार्मिक रूप से जनता को बांटकर देश की संपदा को आसानी से कॉरपोरेट के हवाले कर सके और आमजन पर शोषण का दर बिना किसी व्यापक विरोध का बढ़ा सकें। भाजपा सरकार सबका विकास, सबके साथ नारे के साथ सत्ता में आई लेकिन क्या दलितों के साथ, किसानों के साथ, बेरोजगारों के रोजगार के साथ यह सरकार है ? हमें 370 को खत्म करने के वक्त कहा गया था कि अब सब ठीक हो जाएगा रोजगार मिलेगा लेकिन नहीं मिला हम पूछना चाहते हैं क्या बेगूसराय के युवा को रोजगार मिला ? शिक्षा और स्वास्थ्य की व्यवस्था उन्नत हुई ? इस सरकार ने 7 लाख करोड़ रुपए पूंजीपतियों का कर्जा माफ कर दिया है। यह महज एक अलफाज नहीं है वरन हम सभी इसे नंगी आंखों से देख भी रहे हैं और भुगत भी रहे हैं।"

अगर कश्मीर में सबकुछ सही है तो 2018 के बाद से वहां एसेंबली क्यों नहीं है?

युसूफ तारीगामी ने यहां भी कश्मीर की इतिहास की चर्चा करते हुए  कहा "केन्द्रीय सत्ता कश्मीर की जमीन को इन्हीं देशी - विदेशी पूंजीपतियों के हवाले करने के नियत से काम कर रही है । इसी कारण और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की भावना अपने पक्ष में करने के लिए  वहां से अनुच्छेद 370 और 35 ए को खत्म कर दिया गया जबकि ऐसी विशेष स्थिति अनुच्छेद 371-ए  के तहत हिमाचल प्रदेश और उत्तर पूर्व के अन्य प्रांतों को अभी भी प्राप्त है । केन्द्र सरकार कहती है कश्मीर में सबकुछ शांत और सही चल रहा है । जबकि मौजूदा समय में वहां खामोशी जरूर है लेकिन भय के कारण । जनता में बड़े पैमाने पर नाराज़गी बढ़ रही है।अगर वहां सबकुछ सही है तो 2018 के बाद से वहां एसेंबली क्यों नहीं है?   गवर्नर रूल क्यों है ? गवर्नर रूल में भी कश्मीरी पंडितों को पुनर्वासित क्यों नहीं किया जा रहा है ? आतंकी घटनाएं अभी भी क्यों हो रही है? कश्मीर का अवाम तो दिलोजान से हिन्दुस्तान के साथ जुड़े थे अब सरकार कश्मीरी और कश्मीरियत का दमन करके सिर्फ कश्मीर की जमीन चाहेगी  तो खामोशी ही हो सकती है अमन नहीं।आखिर कितनी बार हमसे हमारी देशभक्ति की परिक्षा ली जाएगी।"

उन्होंने यह भी कहा  "आज अहले वतन में मुख्य मुद्दा रोजी, रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, वास-निवास और भूमि सुधार की है। जरूरत मंहगाई, भ्रष्टाचार, अपराध , सामाजिक हिंसा, महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा, बलात्कारियों को सम्मानित करने जैसी घिनौनी हरकत और निजीकरण के माध्यम से देश की संपदा के लूट के खिलाफ एकताबद्ध संघर्ष की है। धर्म और जाति के संघर्ष का नहीं। इन्हीं रास्ते पर जनसंघर्षों को आगे बढ़ाते हुए हम अपनी आजादी को और अपने गौरवशाली इतिहास को , जनतंत्र को तथा संविधान को महफूज रख सकते हैं। पिछले साल एकताबद्ध ऐतिहासिक किसान आंदोलन ने यह सबक हम सबों को सिखाया है।"

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