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रसोई गैस के फिर बढ़े दाम, ‘उज्ज्वला’ से मिले महिलाओं के सम्मान का अब क्या होगा?

सरकारी तेल कंपनियों ने आज यानी 1 मार्च को फिर सभी कैटेगिरी के गैस सिलेंडर की कीमतों में बढ़ोतरी की है। बीते महीने फरवरी में घरेलू एलपीजी सिलेंडर के दाम 3 बार बढ़ाए गए थे। इस साल के शुरुआती दो महीनों में ही अभी अब तक बिना सब्सिडी वाला सिलेंडर 125 रुपये महंगा हुआ है। 
रसोई गैस

“महिलाओं को मिला सम्मान, स्वच्छ ईंधन बेहतर जीवन”

उज्ज्वला योजना के पोस्टर पर महिलाओं के लिए लिखी ये बातें अब सिर्फ पोस्टर के कागज तक ही सिमट कर रह गई हैं। गैस सिलेंडर को महिलाओं के सम्मान से जोड़ने वाली मोदी सरकार अब इसकी बढ़ती कीमतों पर मौन साधे हुए है। बीजेपी की तेर-तरार नेता स्मृति ईरानी जो यूपीए सरकार के दौरान इन मसलों को लेकर काफी सक्रिय रही थीं और गैस सिलेंडर लेकर धरने पर भी बैठती थीं अब उन्होंने महिला एवं बाल विकास मंत्री बनने के बाद अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली है।

आपको बता दें कि सरकारी तेल कंपनियों ने आज यानी 1 मार्च को फिर गैस सिलेंडर की कीमतों में बढ़ोतरी की है। यह बढ़ोतरी सभी कैटेगिरी के सिलेंडर में की गई है। बीते महीने फरवरी में घरेलू एलपीजी सिलेंडर के दाम 3 बार बढ़ाए गए थे। इस साल के शुरुआती दो महीनों में ही अभी अब तक बिना सब्सिडी वाला सिलेंडर 125 रुपये महंगा हुआ है। हालांकि बावजूद इसके सरकार लोगों को अच्छे दिन का सपना दिखाने में मस्त है।

ख़बरों के मुताबिक,  घरेलू गैस सिलेंडर की कीमत में 25 रुपये की बढ़ोतरी की गई है जबकि कमर्शियल गैस सिलेंडर की कीमतों में 19 रुपये का इजाफा हुआ है। बढ़ी हुई कीमत के साथ बिना सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर का दाम नई दिल्ली में 819 रुपये हो गया है। वहीं, कोलकाता में 845.50 रुपये और चेन्नई में 835 रुपये हो गया है।

19 किलो वाले कमर्शियल गैस सिलेंडर की कीमत दिल्ली में अब 1,614 रुपये है। पहले इसकी कीमत 1,523.50 रुपये थी। वहीं, मुंबई में अब इस गैस सिलेंडर की कीमत 1,563.50 रुपये, चेन्नई में 1,730.50 रुपये और कोलकाता में 1,681.50 रुपये हो गई है।

मीडिया में आई खबरों के मुताबिक 14.2 किलोग्राम के जिस सिलेंडर का दाम 1 जनवरी को 694 रुपये था अब वो 819 रुपये है।

खास बात ये है कि सब्सिडी और बिना सब्सिडी वाले दोनों सिलेंडरों के दाम बढ़े हैं। जिसके बाद आम आदमी और खासकर उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों की मुश्किलें ज्यादा बढ़ गई हैं। यानी सरकार ने गैस चूल्ला तो थमा दिया लेकिन सिलेंडर की कीमतें बढ़ाकर उसमें जलने वाली आग बुझा दी।

फिलहाल ‘उज्ज्वला योजना’ एक ऐसा पेड़ बनकर रह गई है जिसकी सिंचाई क्रियान्वयन के साथ ही सरकार करना भूल गई और अब सिर्फ पत्तों के दम पर इसकी वाहवाई की जा रही है, फल कब लगेंगे इस पेड़ पर, किसी को नहीं पता। एक अच्छी योजना की शुरुआत राजनीति की भेंट चढ़ गई। जिसके नाम पर चुनावों में वोट मांगा गया, नारे लगाए गए लेकिन बात अगर ज़मीनी हक़ीकत की हो तो तमाम दावे फुस्स ही नज़र आते हैं।

उत्तर प्रदेश के जिस बलिया जिले से मोदी सरकार ने इस योजना को लॉन्च किया आज उसी बलिया की महिलाएं फिर से चूल्ले पर खाना बनाने को मज़बूर है। कारण है दूसरे सिलेंडर का महंगा होना। जिसे रिफिल कराने का 'आर्थिक साहस' किसी में नहीं है। यानी उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन तो मिल गया लेकिन ग्रामीण गरीब और मजदूरों की रोजाना की कमाई लगभग 100-150 रुपये होती है ऐसे में तकरीबन 800 रुपये का सिलेंडर भराने की हिम्मत कौन करेगा।

बलिया के एक छोटे से गांव रामपुर की एक महिला ललिता देवी बताती हैं कि उज्ज्वला योजना उनके जीवन में बहुत खुशी और उजाला लेकर आई थी। परिवार के सभी लोग बहुत खुश थे। लेकिन अब चूल्ला बस ऐसे ही रखा है, हमें बहुत जल्दी समझ आ गया कि ये हम जैसे लोगों के बस की बात नहीं है।

ललिता की बेटी, जो सरकारी स्कूल में कक्षा 7 में पढ़ती है, उसने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, “दो बारी सिलेंडर भरवाया था लेकिन अब जब घर में खाने को पैसा नहीं है तो चूल्ला कौन भरवाए। मज़दूरी में 100-200 रुपये मिलते हैं, वो भी रोज़ काम नहीं मिलता। ऐसे में सिलेंडर हज़ार रुपये का कौन भरवाए। हमारे लिए लकड़ी ही ठीक है, ई सब गैस-चूल्ला अमीरों की चीज़ है।”

एक अन्य गांव तालिबपुर की कलावती देवी के अनुसार “चूल्ला दिखाने को हो गया है, हम लोग इसी में खुश हैं। रोज़-रोज़ इसपर 8-10 लोगों का खाना बनाएंगे तो खाएंगे क्या। खेती की कमाई से जो मिलता है, उससे पेट ही नहीं भरता तो सिलेंडर कहां से भरवाएं।”

इस सवाल पर की क्या उन्हें पता है कि अब गैस सिलेंडर कितना महंगा हो गया है, अधिकतर महिलाओं का जवाब नहीं है। वो कहती हैं कि उन्हें बस इतना पता है कि सरकार बार-बार दाम बढ़ा रही है, लेकिन क्यों ये नहीं जानती वो। हालांकि कई महिलाएं गैस-चूल्हे को लेकर अपनी परेशानियां इसलिए भी नहीं बताना चाहती क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं सरकार को उनके बारे में पता लगने पर ये सब उनसे वापस न ले लिया जाए।

विपक्ष क्या कह रहा है?

रसोई गैस की बढ़ती कीमतों पर कांग्रेस सांसद और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर तंज कसा है। राहुल गांधी ने ट्वीट कर लिखा कि एलपीजी सिलेंडर के दाम फिर बढ़ गए। अब जनता के लिए मोदी सरकार के तीन ही विकल्प हैं, जो हैं - व्यवसाय बंद कर दो, चूल्हा फूंकों और जुमले खाओ।

नई दुनिया की खबर के मुताबिक वर्ष 2016 से 2018 के बीच योजना के तहत गरीब परिवार की महिलाओं को गैस कनेक्शन दिए गए थे, लेकिन सिलेंडर के दाम अधिक होने के कारण सिर्फ 10 फीसद उपभोक्ता ही अब सिलेंडर भरवाने आते हैं, उसमें भी अधिकांश लोग तो चार से छह महीने में एक बार गैस सिलेंडर के लिए आते हैं।

गौरतलब है कि क्रिसिल की साल 2015 में आई रिपोर्ट में ये बात सामने आई की भारत में 1,00,000 महिलाओं की मौत चूल्हे के धुएं के कारण हो जाती है जो 1100 सिगरेट के बराबर होता है। सरकार ने क्रिसिल को ही ये जिम्मा सौंपा था की वो उन कारणों का पता लगाए, जिससे महिलाएं गैस चूल्हे की पहुंच से बाहर हैं लेकिन क्रिसिल की पूरी रिपोर्ट आती उससे पहले ही सरकार ने आनन फानन में इस योजना को चुनावी लाभ के लिए लांच कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 मई 2016 को उत्तर प्रदेश के बलिया से इस योजना शुभारंभ किया। इसका फायदा बीजेपी को उत्तर प्रदेश के चुनाव में मिला भी। एक लंबे समय के बाद पार्टी सत्ता पर काबिज़ होने में कामयाब हो गई।

इस योजना को ग्रामीण क्षेत्र की बीपीएलधारी महिलाओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर लाया गया, ताकि खाना बनाने के दौरान वो धुएं से परेशान न हों। 2018-19 के बजट में इस योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर कर रहीं करीब आठ करोड़ महिलाओं को गैस कनेक्शन बाँटने का लक्ष्य रखा गया है। कागजों पर भले ही कई लक्ष्य इस योजना ने पूरे भी कर लिए हों लेकिन क्या ये वाकई ग्रामीण महिलाओं को मिट्टी के चूल्ले से गैस चूल्ले तक लाने में कामयाब हो पाई, फिलहाल तो ऐसा लगता नहीं।

आपको बता दें कि क्रिसिल ने अपनी रिपोर्ट में गैस कनेक्शन और सिलेंडर का महंगा होना तथा लोगों और गैस एजेंसियों के बीच दूरी को मुख्य कारण बताया था लेकिन सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और योजना के लागू होते ही धांधली की खबरें भी सामने आने लगी। आलम ये है कि आज इस योजना के तहत मिले गैस चूल्हे या तो धूल फांक रहे है या इमरजेंसी के नाम पर सजा के रख दिये गए हैं। ग्रामीण महिलाओं के जीवन में न तो धुएं की समस्या खत्म हुई और न ही कुछ बदला।

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार उज्ज्वला गैस योजना को गरीब महिलाओं के लिए मुफ्त दी गई बड़ी परिवर्तनकारी योजना बताती है। प्रधानमंत्री खुद कई मौकों पर सार्वजनिक मंच से इस योजना की तारीफ कर चुकें हैं मगर सच्चाई इसके उलट है। सिस्टम की लाचारी और देश के ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति जाने बगैर इस योजना का क्रियान्वयन ही इस योजना की विफलता का कारण है।

इस योजना को सफल बनाने के लिए सरकार को इसमें पैसों का निवेश बढ़ाना होगा। गैस सब्सिडी बढ़ानी होगी जिससे ग्रामिणों की पहुंच इस तक बन सके। खुशहाल जीवन पर सबका हक़ है और इसके लिए कल्याणकारी योजनाओं की दरकार भी है लेकिन लोकहित के नाम पर चुनाव हित साधना आम जनता के हित में कतई नहीं है।

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