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निजी ट्रेनें चलने से पहले पार्किंग और किराए में छूट जैसी समस्याएं बढ़ने लगी हैं!

रेलवे का निजीकरण गरीब और मध्यम वर्ग की जेब पर वजन लादने जैसा है। क्योंकि यही वर्ग व्यवसाय और आवाजाही के लिए सबसे ज्यादा रेलवे पर आश्रित है।
privatization of railways

भारतीय रेलवे दुनिया की चौथी सबसे बड़ी रेलवे और आठवीं सबसे बड़ी व्यवसायिक इकाई है। जिसके तहत 13 हजार ट्रेनें चलती है। जिसमें 13 लाख कर्मचारी कार्यरत हैं। इन ट्रेनों में रोज़ाना क़रीब 2 करोड़ यात्री सफ़र करते है और 33 लाख टन माल की आवाजाही होती है। जबकि देश में रेलवे रोजगार का भी सबसे बड़ा माध्यम है। लेकिन निजीकरण के इस दौर में देश की विमान सेवा से लेकर जंगलोें तक का निजीकरण किया जा रहा है। जिसमें रेलवे भी शामिल है। रेलवे का कहना है कि वह 35 सालों के लिए रेल परियोजनाएं निजी कंपनियों को देगी। ऐसे में सरकार को रेलवे निजीकरण के लिए 15 कंपनियों के 12 समूहों से 120 एप्लीकेशन प्राप्त हुए थे। जिसके अंतर्गत 30 हजार करोड़ का मेगा प्लान है। जिसमें मुंबई-2, दिल्ली-1 और दिल्ली-2 के लिए 7200 करोड़ की बोली मिली है।

ऐसे में रेलवे बोर्ड चेयरमैन का कहना है कि अप्रैल 2023 तक 151 निजी ट्रेनें शुरू हो जायेगीं। लेकिन रेलवे के निजीकरण ने हमारे सम्मुख रोजगार, यात्री किराया, सुविधाओं लेकर अन्य कई सवाल खड़े कर दिए है। जिनके  लिए सरकार ने अभी तक कोई विशेष फ़रमान जारी नहीं किया है। जिसकी एक वजह निजी ट्रेनें चलने में बाकी समय भी  है।

लेेेकिन रेलवे के निजीकरण का हानिकारक असर अभी से नजर आने लगा हैै। जब हमने राष्टीय राजधानी दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन का सूरत-ए-हाल जाना। तब पता चला कि निजी ट्रेनें चलने के पूर्व ही रेल व्यवस्था चरमराने लगी है। यहां के टिकट घर में 13 काउंटर बने है। जिनमें 12 काउंटर के कर्मचारी नदारद मिले। एक काउंटर पर महिला कर्मचारी ही नज़र आयी। जब हमने महिला कर्मचारी से सवाल किया कि इन काउंटर के कर्मचारी कहां गए है? तब वह कहती मुझे मालूम नहीं है। फिर हमने रेलवे के निजीकरण के विषय में प्रश्न किया? तब वह कहती हैं कि मुझे नहीं पता कि रेलवे का निजीकरण हो रहा है।

आगे हम स्टेशन के प्लेटफार्म 7 पर एक रेलवे अधिकारी से मिले। जिन्होनें अपना नाम बताने से इनकार किया है। उनसे हमने सवाल किया कि आप रेलवे के निजीकरण को किस तरह देख रहे है? तब वह बताते है कि रेलवे का निजीकरण गरीब और मध्यम वर्ग की जेब पर वजन लादने जैसा है। क्योंकि सबसे ज्यादा यही वर्ग व्यवसाय और आवाजाही के लिए रेलवे पर आश्रित है। आगे  उदाहरण के तौर पर वह कहते है कि सरकारी संस्था के मुकाबले निजी संस्था की सुविधाएं लेने के लिए तगड़ा भुगतान करना पड़ता है। ऐसा ही रेलवे के निजी होने से होगा। इसके आगे उन्होंने कहा कि निजी रेलवे में प्लेटफार्म पर मुुफ्त पानी तक मिलना यात्रियों को नसीब नहीं होगा।

इसके उपरांत हमने सवाल किया कि सरकार रेलवे को निजी क्यों कर रही है? तब वह अधिकारी बताते है कि रेलवे व्यवस्था में जो भ्रष्टाचार और खामियां बढ़ती जा रही है। उसे रोकनें में सरकार नाकाम है। इसलिए उसने निजीकरण का रास्ता अपनाया है। लेकिन इससे रेलवे में भ्रष्टाचार बढ़ने के और अधिक आसार है।

आगे वह कहते है कि आज सामन्यतः रेलवे कर्मचारियों का वेतन 25 से 40 हजार है। जबकि रेलवे के निजी हाथों में जाने से वेतन में कटौती की भी भारी संभावना है। 

जब हमने रेलवे यात्रियों से रेलवे के निजीकरण को लेकर बात की। तब हम एम. एस. खान से मिले। जो पेशे से डॉक्टर है और दिल्ली से बिहार जा रहे थे। उनसे हमने सवाल किया कि सरकार द्वारा  रेलवे को निजी करने से देश पर क्या असर पड़ेगा? तब वह जवाब देते हुए कहते है कि रेलवे देश की रीड़ की हड्डी है। जिसकी कमाई से पूरा मुल्क़ खाता है और सरकार भी चलती है। लेकिन अब सरकार का मक़सद महज़ पैसा कमाना हो गया है। जिससे वह सरकारी संस्थाओें को निजी कर रही है और इन संस्थाओं से पैसा निकालकर पूंजीपति विदेश पलायन कर रहे है।

आगे हमने उनसे सवाल किया कि निजी ट्रेनें चलने से यात्री किराए में क्या अंतर आ सकता है? तब वह कहते है अभी रूस और यूक्रेन युध्द मेें यूक्रेन मेेें हमारे भारतीय फंसे हुए है। जहां का सरकारी किराया 20 हजार रुपए है। जबकि निजी संस्थाएं 1 लाख रुपए तक किराया वसूल रही है। ऐसे में सरकारी किराए और निजी किराए में अंतर समझा जा सकता है।

इसी सवाल के जवाब में एक वरिष्ठ यात्री रामशेखर का कहना है कि पहले वरिष्ठ पुरुष यात्रियों के लिए किराए में 40% और महिला यात्रियों के लिए 50% की छूट मिलती थी। लेकिन अब सरकार ने वह समाप्त कर दी है। यह सब निजीकरण की ही देन है।

आगे वहीं मौजूद रितिका से हमने सवाल किया कि सरकार रेलवे को निजी कर रही है, आपको क्या लगता है कोई इतनी बड़ी कंपनी है जो रेलवे को ठीक तरह संभाल सके? तब वह कहती है कि किसी भी निजी कंपनी द्वारा रेलवे को संभालना चुनौतीपूर्ण है। क्योंकि निजी कंपनियों में संवैधानिक नियम-क़ायदों का नामात्र का पालन होता है। लेकिन रेलवे के निजी होने से उसकी सुरक्षा और रखरखाव की व्यस्था ठीक होगी।

फिर हमने स्टेशन पर मौजूद कुछ कुली से बात की। जिनमें 12 वीं से लेकर एमए पास तक कुली शामिल थे। जब उनसे सवाल किया कि आपका काम कैसा चल रहा है? तब वह कहते है कि जब से स्वचलित सीढ़िया, लिफ्ट और पहिए लगे बैग आए है। तब से हमारा काम हौले-हौले सीमित हो गया है। मगर आज भी हम पूर्णतः रेलवे पर आश्रित है।

जब आगे हमने प्रश्न किया कि यदि रेलवे निजी होने से आपके रोजगार में बाधा आती है, तब आप क्या करेगें? तब गिरराज जो 50 कुली के लीडर है। वह कहते है कि यदि रेलवे के निजीकरण से हमारा काम चौपट होता है, तब सरकार एक आंदोलन झेलने के लिए तैयार रहे।

सरकार को निजी ट्रेनें चलाने से पहले इस बात की लिखित गारंटी देनी होगी की रेलवे के निजी होने से हमारा रोजगार बरकरार रहेगा।

आगे (एम.ए पास कुली) राधे बताते है कि प्लेटफार्म पर सामान ढोने वाले 50 प्रतिशत कुली पढ़े लिखे है। जिन्हें रेलवे में नौकरी की भी उम्मीद है। लेकिन निजीकरण होने से कुछ कहा नहीं जा सकता।

आगे हम रेलवे स्टेशन के बाहर निजी वाहन चालकों से मिले। उनसे हमने सवाल किया कि रेलवे के निजी होने से आपको क्या परेशानियां नज़र आ रही है? तब वहां मौजूद ओला चालक राजिन्दर ने बाताया कि निजी ट्रेनें चलने से पहले ही हमारे लिए समस्याएं खड़ी हो गयी है। अब स्टेशन पर वाहन प्रवेश फीस 30 रुपए लग रही है। जबकि 15 मिनट से ज्यादा पार्किंग के 200 रुपए तक देने पड़ रहे है। ऐसे मेें कमाई की आधी रक़म पार्किंग मेें चली जा रही है। उन्होनेें बताया इतनी फीस 2 माह पहले से देनी पड़ रही है।

आगे आटो चालक धर्मेश बताते है कि रेलवे स्टेशन के पास ट्रैफिक की समस्या भी और तेजी से बढ़ रही है। यहां 2 घंटे ट्रैफिक लगना तो जैसे आम हो गया है। ऐसे में वाहन चालक इस परेशानी से घिरे हुए है। जिसका हल न प्रशासन निकाल पा रहा और न सरकार।

ध्यातव्य है कि रेलवे के पास आज 4.81 लाख हेक्टेयर ज़मीन है। 12,729 लोकोमोटिव, 29,3077 मालवाहक और 7,6608 यात्री कोच है। इसके अलावा रेलवे अस्पताल, स्कूल, संग्रहालय भी चलाती है। जिसके तहत एक डिग्री कॉलेज, 87 केन्द्रीय विद्यालय  और 99 स्कूल रेलवे की ज़मीन पर बने हुए। जिससे यह स्पष्ट है कि रेलवे जनजीवन से जुड़ी एक ऐसी सीढ़ी है। जिसके सहारे लोगोें का काम-धंधा सधा हुआ। लेकिन रेलवे के निजीकरण से आम-जनजीवन काफी प्रभावित होगा। जिसकी शुरुआत रेलवे पार्किंग के शुल्क बढ़ने, विकलांग बोगियां हटाने, वरिष्ठ यात्री किराया छूट समाप्त किये जाने के रूप में हो चुकी है। ऐसे में सरकार द्वारा रेलवे को निजी करने का यह प्रयास कितना फायदेमंद या नुकसानदायक प्रमाणित होगा, यह आने वाला वक्त बताएगा।

(सतीश भारतीय एक स्वतंत्र पत्रकार है) 

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