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आवास और आजीविका के विस्थापन के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन

प्रदर्शनकारियों ने कहा कि इन जबरन विस्थापनों के रूप में इस आधुनिक गुलामी को रोकने के लिए विस्थापन से पहले पूर्ण पुनर्वास प्रदान करने और जिन्हें बेदखल किया जाना है उन्हें पर्याप्त नोटिस प्रदान करने के लिए प्रधान मंत्री और शहरी गरीब मंत्री को अपनी  मांगों के साथ ज्ञापन दिया गया।
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आज सरकार  हमारा मकान  तोड़ कर पार्क बना रही है, किसी और के लिए तो पार्क बनाने के लिए हमारे सिर से छत छीनी जा रही है। आखिर क्यों? क्योंकि हम गरीब हैं। जब हम पूछते हैं हम कहाँ जाएंगे तो वो सीधे कहते हैं कि तुम्हारे बाप की ज़मीन नहीं है।  ये बात रानी ने न्यूज़क्लिक से कहीं कि जो पिछले कई दशकों से ग्यासपुर कि बस्ती में रहती आई हैं, जिसे पिछले महीने दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA)  ने अतिक्रमण बताते हुए तोड़ दिया था। तब से वो वहीं टूटे मकान के मलवे के पास सड़कों पर रह रही हैं। उन्होंने न्यूजक्लिक से बात करते हुए कहा कि आज हम खुले आसमान के नीचे हैं और ईंट के चूल्हे पर ही खाना बनाते हैं और मोमबत्ती जलाकर रह रहे हैं। लेकिन हमारी  कोई  सुध लेने वाला नहीं है। जब चुनाव आता है तो नेता बोलते हैं जहां झुग्गी, वहां मकान। लेकिन मकान छोड़िए ये अब हमारी झुग्गी भी तोड़कर हमें सड़कों पर रहने के लिए मजबूर कर रहे हैं।  
       
ये अकले किसी एक रानी कि कहानी नहीं है बल्कि दिल्ली और देशभर मे सरकारों ने एक तरीके से गरीब के खिलाफ जंग का एलान कर दिया है, जिसमें वो अतिक्रमण के नाम पर इनके आशियाने तोड़ रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक कोरोना काल से अभी तक कुल छह लाख घरों को अलग सरकारी विभाग ने अतिक्रमण के नाम पर उजाड़ दिया है। लेकिन किसी का भी पुनर्वास नहीं किया है। इसके खिलाफ आज 6 सितंबर को बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली सहित हरियाणा और आसपास के बेघर किए गए मज़दूर परिवार दिल्ली के जंतर मंतर पर पहुंचे थे।


इस विरोध प्रदर्शन का आयोजन मज़दूर आवास संघर्ष समिति, वामदल भकपा माले , वर्किंग पीपल चार्टर और की अन्य जनसंगठन ने किया था । इस प्रदर्शन में  ग्यासपुर बस्ती, खोरी गांव फरीदाबाद, हरियाणा, गाजियाबाद, आगरा, धोबी घाट कैंप, कस्तूरबा नगर, बेला घाट आदि के लोग धरने में इकट्ठा हुए हैं, जिन्होंने कुछ मामलों में दिल्ली उच्च न्यायालय के स्टे ऑर्डर के बावजूद जबरन बेदखली और विध्वंस का सामना किया है। इन विध्वंसों/बेदखलों ने कई "वैकल्पिक आश्रय" प्रावधानों का उल्लंघन किया है, जो कार्यपालिका और न्यायपालिका द्वारा शहरी गरीबों को गारंटी दी है और प्रभावित लोगों के जीवन, आजीविका और सम्मान के अधिकारों के साथ असंगत है।
         
विरोध में विभिन्न उत्साही नारे और गवाहियों को उठाया गया: "बुलडोजर राज बंद करो", "शहरी गरीबो को अधिकार देना होगा", "बिना पुनर्वास विस्थापन बंद करो", "जिस जमीन पर बसें हैं, जो जमीन सरकारी है, वो जमीन हमारी है!”
       
अपने एक सांझा बयान में कहा कि आज जब हम 75वें स्वतंत्रता दिवस और आज़ादी का अमृत महोत्सव को मना रहे हैं, उसी समय झुग्गियों, बस्ती कॉलोनियों में रहने वाले और असंगठित क्षेत्र के हजारों श्रमिकों को उनके घरों से बेदखल कर दिया गया है, जिन्हें बिना किसी पुनर्वास के अपनी आजीविका से वंचित भी कर दिया गया है, वे "बुलडोजर राज" के खिलाफ़ जंतर-मंतर पर अपनी आवाज उठाने के लिए एकत्र हुए हैं। सरकार देश भर से गरीब दलितों और आदिवासियों की जमीन जबरन छीन कर मुट्ठी भर पूंजीपतियों को बेच रही है और तूफान की तरह बुलडोजर से बस्तियों में तोड़फोड़ कर रही है। एक तरफ सरकार गरीबों और मजदूरों की हितैषी होने का दिखावा कर रही है तो दूसरी तरफ रोज़ी-रोटी और मकान की तबाही का जश्न मना रही है। दिल्ली में नफरत का माहौल बनाकर सरकार सांप्रदायिक एजेंडे को हवा देते हुए तोड़फोड़/बेदखली के इन अभियानों को आगे बढ़ा रही है और इस तरह मजदूर वर्ग की एकता को भी तोड़ने का प्रयास कर रही है।    
41 वर्षीय मज़दूर  सरोज पासवान  जो खोरी गाँव मे रहते थे । जिसे बाकी दस हज़ार मकानों के साथ उनका भी घर तोड़ दिया गया था तबसे वो बेघर ही हैं। उन्होंने बताया कि वो दिहाड़ी मज़दूर हैं और दशकों से खोरी में रहते हैं, लेकिन सरकार जंगल की जमीन बताकर हमें बेदखल कर दिया है।
   
इसी तरह कस्तूरबा नगर  से भी बड़ी संख्या में लोग आए थे। जो एक अगस्त से अपने इलाके में  प्रदर्शन कर है थे क्योंकि डीडीए ने उनके इलाके में 18 अगस्त को घर तोड़ने का नोटिस लगा दिया गया था । परंतु कोर्ट ने 17 को कोर्ट ने स्टे दे दिया। सुरजीत कौर जिनकी उम्र लगभग 55 साल की है, उन्होंने हमें बताया उनका परिवार देश के बंटवारे के समय दिल्ली आया था और तब से ही वो उस जगह पर रह रहे हैं। लेकिन आज अचानक डीडीए कह रहा है कि यह जमीन इनकी है ।  
 
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि  इन जबरन विस्थापनों के रूप में इस आधुनिक गुलामी को रोकने के लिए, विस्थापन से पहले पूर्ण पुनर्वास प्रदान करने और जिन्हें बेदखल किया जाना है, उन्हें पर्याप्त नोटिस प्रदान करने के लिए प्रधान मंत्री और शहरी गरीब मंत्री को निम्नलिखित मांगों के साथ ज्ञापन दिया गया।

1. जबरन विस्थापन (बेदखली) पर तत्काल रोक लगाए।
2. पूर्ण पुनर्वास से पहले विस्थापन नहीं।
3. वंचित बस्तियों का सर्वेक्षण कर पुनर्वास के लिए सुनिश्चित करें।
4. जबरन बेदखली करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए।
5. हर राज्य की एक पुनर्वास नीति होनी चाहिए जिसकी कट ऑफ डेट 2021 की जाए।
6. स्ट्रीट वेंडर हॉकर्स आदि का सर्वे तत्काल कर सीओवी दें और सीओवी का सम्मान करें।
7. असंगठित श्रमिकों को नियमित करें और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना।
8. 20-30% शहरी क्षेत्र श्रमिकों के लिए आरक्षित होना चाहिए।

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