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जनता की राय : फ्री राशन से बेहतर है महंगाई घटाकर रोज़गार दिया जाए

"हमें राशन मिल रहा है फ्री, मैं ये नहीं कह रही कि नहीं मिल रहा, ज़रूर मिल रहा है लेकिन तेल, नमक, दूध सबका तो दाम बढ़ा दिया गया है। हमारा कान इधर से ना काट कर उधर से काट लेते हैं, बात तो बराबर है।"
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प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

अमृत काल का पहला बजट आ चुका है, जिसमें 'सप्तर्षि' का ज़िक्र है और 'अमृत पीढ़ी' के लिए कुछ वादे हैं। लेकिन इस बजट में वित्त मंत्री ने एक बेहद अहम घोषणा की है कि ग़रीबों को मुफ़्त राशन बांटने की योजना को एक साल और (2024 तक) जारी रखा जाएगा।

2023 के बजट को क़रीब से देखने से ये एहसास हो जाता है कि 2024 में चुनाव हैं। वैसे तो बजट में बहुत से ऐसे ऐलान थे जो साफ़ तौर पर 2024 के चुनाव की तैयारी लग सकते हैं, लेकिन वित्त मंत्री द्वारा ग़रीबों को मुफ़्त राशन बांटने की योजना को एक साल और (2024 तक) जारी रखने की घोषणा बहुत कुछ कहती है।

क्या वाक़ई ये ग़रीबों की मदद है? या फिर मदद के नाम पर वोट बटोरने की योजना? इस बात को समझने के लिए हमनें आंकड़ों की पेचीदगी से ज़रा हटकर उन आम लोगों से बात की जो इस योजना के लाभार्थी हैं।

उत्तर प्रदेश के लाभार्थी

''मैं मेहनत मज़दूरी करता हूं, परिवार में हम चार-पांच लोग हैं, हमें बहुत ख़ुशी है कि फ्री राशन की योजना को बढ़ा दिया गया है, राशन के चक्कर में हम BJP को ही वोट देते आए हैं। इतनी महंगाई है, हम दिन के पांच सौ रुपये कमाते हैं, ऐसे में पूरा नहीं पड़ता, फिर बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और कपड़े....बहुत मुश्किल होती है, लेकिन राशन मिलने से परिवार चलाने में कुछ मदद मिल जाती है।"

एक और लाभार्थी बताते हैं कि-

''हम तो पक्के BJP वाले बन गए।  2024 में भी BJP को ही वोट देंगे राशन की वजह से''

सवाल : लेकिन अगर सरकार फ्री राशन बंद करके महंगाई घटा दें और रोज़गार उपलब्ध कराए तो दोनों में से कौन सी बात आपको ग़रीबों के लिए ज़्यादा बेहतर लगती है?

जवाब : महंगाई घटा कर रोज़गार मिल जाए तो बढ़िया रहेगा।

यूपी के इन लाभार्थियों की बात सुनकर समझा जा सकता है कि ग़रीबों के लिए बढ़ाई गई फ्री राशन की योजना 2024 में वोटों को साधने की कोशिश लगती है।

जहां यूपी के लाभार्थियों के लिए फ्री राशन वोट देने की वजह बन सकती है वहीं दिल्ली के लाभार्थी कुछ अलग दिखें।  हमनें कुछ ऐसी महिलाओं से बात की जो सरकार की फ्री राशन योजना के तहत गेहूं और चावल लेती हैं।

दिल्ली के लाभार्थी :

दिल्ली की एक महिला लाभार्थी ने बताया, ''पहले तो वक़्त पर राशन मिल जाता था लेकिन पिछले सात-आठ महीनों से इस महीने का राशन उस महीने तक टालते रहते हैं। 10 तारीख़ तक मिलने वाला राशन अब 25 तारीख़ तक मिलता है, बहुत परेशानी उठानी पड़ती है।''

''मेरे पति 400 से 500 रुपये कमाते हैं, चलो, हमें राशन मिल रहा है फ्री, मैं ये नहीं कह रही कि नहीं मिल रहा, ज़रूर मिल रहा है लेकिन तेल, नमक, दूध सबका तो दाम बढ़ा दिया गया है। हमारा कान इधर से ना काट कर उधर से काट लेते हैं, बात तो बराबर है। क्या चीज़ फ्री है?  महंगाई देखिए, नमक की थैली 25 रुपये की हो गई, दूध महंगा हो गया है, हमें बस एक लालच देकर दिखावा किया जा रहा है। कोई फायदा नहीं है, आप मुझ से 10 रुपये लेकर मेरी जेब से 100 रुपये निकाल लो तो क्या फायदा होगा? मदद होकर भी मदद नहीं है, महंगाई कम कर दें तो वो ज़्यादा राहत होगी। पहले हमारे बच्चे 5 रुपये में स्कूल चले जाते थे लेकिन अब 20 रुपये लगते  हैं।"

जबकि एक और लाभार्थी ने बताया कि :

 ''देखिए जिनका हक़ है उनको तो राशन मिल ही नहीं रहा उनके तो कार्ड भी नहीं बन रहे हैं और जो फिर भी किसी तरह से गुज़ारा कर सकते हैं उन्हें राशन मिल रहा है। पहले एक किलो चावल मिलता था और चार किलो गेहूं पर अब एक किलो गेहूं हो गया है जबकि चार किलो चावल।''

फ्री राशन के लाभार्थी इस बात से इनकार नहीं कर रहे कि सरकार की तरफ़ से फ्री राशन एक मदद है लेकिन साथ ही उनका ये भी मानना है कि अब बस ऐसा लगता है कि जिंदगी दो जून की रोटी के जुगाड़ में ही कटती जा रही है।

बजट में वित्त मंत्री ने क्या कहा था?
 
बुधवार को वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा था कि केंद्र सरकार ने कोविड- 19 महामारी के वक्त 28 महीने तक 80 करोड़ ग़रीब लोगों को फ्री अनाज दे कर ये सुनिश्चित किया था कि देश में कोई भी भूखा ना सोए। उन्होंने आगे कहा कि सरकार प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण अन्न योजना( PMGKAY) के तहत अगले एक साल तक ग़रीब लोगों को फ्री अनाज उपलब्ध कराएगी। इसपर दो लाख करोड़ रूपये का खर्च आएगा जिसे केंद्र सरकार उठाएगी।

इस योजना के तहत क्या-क्या, कितना और कैसे मिलता है?

इस योजना के तहत ग़रीबों को एक किलो चावल और चार किलो गेंहू मिलता है जबकि कई बार नमक और तेल भी मिलता है। लोगों ने बताया कि परिवार में जितने लोग होते हैं उतने यूनिट अनाज मिलता है जैसे एक सदस्य को एक यूनिट अनाज मिलता है जिसमें-पाँच किलो अनाज होता है। इसको कुछ यूं समझते हैं :

1 यूनिट मतलब 5 किलो अनाज।

अगर परिवार में चार लोग हैं तो 20 किलो अनाज मिलेगा।

वैसे तो ये योजना ग़रीब लोगों के लिए है लेकिन इस सिलसिले में बातचीत के दौरान पता चला कि कई ऐसे परिवार हैं जो ज़रूरतमंद हैं लेकिन उन्हें इस योजना का लाभ नहीं मिलता।

चुनावी साल में इस योजना का मकसद क्या वोट है?

 प्रधानमंत्री ने अपने एक भाषण में कहा था कि, ''आजकल हमारे देश में मुफ़्त की रेवड़ी बांटकर वोट बटोरने की कोशिश की जा रही है। ये रेवड़ी कल्चर देश के विकास के लिए बहुत घातक है।''

2024 के चुनाव से पहले इस योजना को आगे बढ़ाने का मकसद क्या वही है जो बताया जा रहा है या फिर कुछ और? इस सवाल का जवाब कौन देगा? 2024 में चुनाव है लेकिन इस साल भी (2023) 9 राज्यों में चुनाव होने हैं। ऐसे में हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान BJP की प्रदेश में दोबारा सरकार बनी तो उसमें मुफ़्त राशन योजना को काफ़ी हद तक श्रेय दिया गया था।

फ्री राशन को 2022 में ही ख़त्म होना था लेकिन अब इसे 2024 तक के लिए बढ़ा दिया गया तो सवाल यही है कि क्या ये योजना एक लोकलुभावन वादा साबित हो रही है जिसका चुनाव में फायदा होता नज़र आ रहा है।

इस फ़ैसले को और अच्छे से समझने के लिए हमनें वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश जी से बात की। उनका कहना है, ''मोदी सरकार आमतौर पर इस तरह के प्रावधान करती है जिसमें उसकी नज़र इसपर नहीं रहती कि समाज की ज़रूरत क्या है, वो ये नहीं सोचते कि उत्पादकता को कितना बढ़ाना है, लोगों के रहन सहन, पढ़ाई-लिखाई, हेल्थ पर कितना ध्यान देना है, बल्कि वो लोगों को लुभाकर वोट मशीन में तब्दील करने की कोशिश करते हैं। फ्री राशन की कुछ जगहों पर ज़रूरत है लेकिन कोरोना काल में इस योजना को लाया गया, फिर UP चुनाव के दौरान इसे बढ़ा दिया, और अब इसे फिर 2024 के चुनाव से पहले बढ़ा दिया गया तो ऐसा लगता है कि ऐसी योजनाओं का मज़ाक़ उड़ाया जाता है।

उन लोगों को भी राशन मिल रहा है जिनको इसकी ज़रुरत नहीं है (उत्तराखंड के रामगढ़ का एक उदाहरण देते हुए वे कहते हैं-मैंने राशन की लाइन में लोगों को खड़ा देखा जो ग़रीब नहीं बल्कि मध्यम वर्ग के लग रहे थे जब उनसे पूछा कि आप तो ग़रीब नहीं लग रहे तो उन्होंने जवाब दिया कि जब स्कीम के तहत मिल रहा है तो ले रहे हैं, हम लेकर बेच देते हैं) तो मुझे लगता है कि इस तरह की स्कीम का सिर्फ़ एक ही मकसद है-लोगों को लुभाना। ज़रूरतमंद लोगों को लाभ न मिलना और गैर ज़रूरतमंद लोगों को मिलना, ये तो ठीक नहीं है। और ये एक बिज़नेस मॉडल दिखता है क्योंकि आमतौर पर जो इन सब में लगे हैं-राशन दिलवाने में, बिचौलिए वो RSS और BJP से जुड़े लोग होते हैं तो पूरे देश में एक ये भी खेल चल रहा है।

एक तरफ़ तो फ्री राशन को बढ़ाया गया है वहीं दूसरी तरफ़ मनरेगा में एक-तिहाई की कटौती हो गई है जो कि बड़ी कटौती है जबकि मनरेगा और मिड-डे मील योजना बहुत ही अहम योजना है। वहीं राशन की योजना पहले भी लोगों को मिलती थी ऐसा नहीं है कि राशन नहीं मिलता था लेकिन ये जो स्कीम है ये लोगों को ख़ुश करने के लिए रिश्वत लगती है, इसमें बहुत से ग़ैर ज़रूरतमंद लोग भी हैं।"

उर्मिलेश जी ने एक बहुत अहम बात कही कि ये योजना लोगों को ख़ुश करने के लिए एक रिश्वत लगती है लेकिन साथ ही एक सवाल ये भी खड़ा होता है कि राइट टू फूड (भोजन के अधिकार) के तहत सबको भोजन मिलना चाहिए लेकिन जब इस अधिकार के लिए ग़रीबों को इस तरह से चुनावी मोहरा बनना पड़े तो क्या ये सही है?

ऐसे कुछ और भी सवाल हैं जैसे इस तरह की योजना का चुनाव में तो फायदा उठाया जाता है लेकिन जब हंगर इंडेक्स में 121 देशों की लिस्ट में भारत 107वें स्थान पर आता है तो कोई जवाब नहीं देता कि ऐसा क्यों है?

इस मुद्दे पर हमनें आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह से भी बात की

सवाल : फ्री राशन की योजना को बढ़ाया गया है इसको आप कैसे देखते हैं?

जवाब : एक तरफ तो मोदी जी कहते हैं कि हमें आत्मनिर्भर भारत बनाना है और पिछले आठ सालों से मोदी जी ने ग़रीबों की संख्या बढ़ाई है इसलिए 80 करोड़ लोगों को दो वक़्त की रोटी के लिए राशन की ज़रूरत पड़ रही है। अच्छी अर्थव्यवस्था क्या है? अच्छी अर्थव्यवस्था वो है जहां लोग आत्मनिर्भर बनें, उन्हें रोज़गार मिले और उन्हें सरकार के राशन की तरफ़ ना देखना  पड़े। राशन की योजना को बढ़ाया गया है ये अच्छी बात है लेकिन कहीं ना कहीं आप ये ख़ुद मानते हैं कि 80 करोड़ लोगों को दो वक़्त के खाने के लिए सरकारी राशन की ज़रूरत है। मनरेगा में आपने 16 से 18 प्रतिशत बजट कम कर दिया।

सबसे बड़ी बात ये है कि सरकार ये मानती है कि लोगों की जिंदगी दो वक़्त के राशन तक ही उलझी रहे उससे आगे न बढ़ पाए। आपने कहा था की दो करोड़ नौकरियां हर साल देंगें, क्या किया, अब तक तो 16 करोड़ नौकरियां मिल जानी चाहिए थीं लेकिन क्या नौकरी मिली? 22 करोड़ नौकरी मांगी है और मात्र 7 लाख लोगों को सरकार ने नौकरी दी है।"

रोजग़ार और महंगाई शायद ये दो लफ्ज़ हैं जो संसद में बजट की फाइलों में जैसे दिखते हैं असल जिंदगी में वैसे महसूस नहीं होते। साल दर साल आंकड़ों से भरे बजट में युवा नौकरी के लिए परेशान और आम आदमी महंगाई के बोझ तले दबता जा रहा है।

हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और अगर ग़रीबों की मदद के लिए उन्हें फ्री राशन मुहैया करवाया जाए तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए लेकिन फिर उन तमाम दावों के बारे में क्या कहें जिसमें एक तरफ तो दुनिया की बेहतरीन अर्थव्यवस्था का दम भरा जाता है लेकिन दूसरी तरफ़ देश के 80 करोड़ लोगों को अपनी दो जून की रोटी के लिए फ्री के राशन की राह देखनी पड़ती है। 

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