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पंजाब: कांग्रेस के दांव से बीजेपी भौंचक्की

राहुल गांधी ने अपने एक ही फ़ैसले से भाजपा की बाज़ी पलट दी है। पंजाब में दलित मुख्यमंत्री देकर राहुल गांधी ने मोदी और योगी को बुरी तरह घेर लिया है।
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पंजाब में कांग्रेस की कलह में भाजपा चुप रहती तो उसके लिए बेहतर रहता, लेकिन वह कैप्टन अमरिंदर के साथ ऐसे सहानुभूति दिखाने लगी जैसे कैप्टन उसकी ही पार्टी के हों। नतीजा यह हुआ कि राहुल गांधी के दाँव से अमरिंदर तो अपनी लाज बचा ले गए लेकिन भाजपा के लिए अब उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल निकालना मुश्किल हो गया है।

राहुल गांधी ने अपने एक ही फ़ैसले से भाजपा की बाज़ी पलट दी है। पंजाब में दलित मुख्यमंत्री देकर राहुल गांधी ने मोदी और योगी को बुरी तरह घेर लिया है। ये तीनों राज्य पंजाब के क़रीब हैं और इनमें विधानसभा चुनाव तभी होने हैं, जब पंजाब के होंगे। इनमें भी दलितों की आबादी ख़ासी है। अब या तो भाजपा भी कांग्रेस की राह पर चल कर किसी एक में दलित मुख्यमंत्री के रास्ता बनाए अथवा अपनी पराजय की आशंका में घिरी रहे।

यह सच है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का कुछ भी दाँव पर नहीं है लेकिन वहाँ बीजेपी का पूरा भविष्य है। उत्तर प्रदेश विधानसभा में जीत का मतलब होता है 2024 की जीत के आसार लेकिन यदि यूपी हारे तो केंद्र भी गया। उत्तर प्रदेश में दलित आबादी भी खूब है, लगभग 22 प्रतिशत। इसलिए यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या भाजपा का केंद्रीय नेतृत्त्व यूपी में मुख्यमंत्री बदलेगा? इसी के साथ एक और सवाल खड़ा होता है कि क्या केंद्र की मोदी सरकार के पास उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बदलने का साहस है? ज़ाहिर है, एकदम नहीं। तब फिर किसकी हाई कमान कमजोर हुई? सच बात तो यह है कि भाजपा एक फूला हुआ ग़ुब्बारा है और अगर सुई की नोक बराबर छेद हुआ तो सारी हवा फुस्स! बीजेपी की सारी ताक़त इसमें ज़ाया जाती है कि कैसे वह कांग्रेस तथा अन्य विरोधी दलों की अंदरूनी कलह को बढ़वाए। किसी के फटे में पैर अड़ाने का जो हश्र होता है, वही आज बीजेपी के साथ घट रहा है। 

कांग्रेस ने पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना कर दूर की राजनीति भी खेली है। इस नाम की घोषणा होते ही बीजेपी के हाथ के तोते उड़ गए। फ़ौरन ‘मी-टू’ का दाँव चला गया कि कैप्टन की सरकार में मंत्री रहते हुए चन्नी पर एक महिला आईएएस अफ़सर के साथ दुर्व्यवहार का मामला उठा था और कैप्टन ने उसका नोटिस भी लिया था। दरअसल 2018 में एक महिला आईएएस अधिकारी ने शिकायत की थी कि मंत्री चरण जीत सिंह चन्नी ने उन्हें अश्लील मैसेज भेजे हैं। किंतु ख़ुद बीजेपी के दामन पर इतने दाग हैं कि इसके परवान चढ़ने के पहले ही जवाब आ गया कि विधायक कुलदीप सेंगर और स्वामी चिन्मयानंद पर तो बलात्कार के आरोप हैं, इन्हें कौन संरक्षण दिए हुए है। इसलिए यह मामला सिरे चढ़ा नहीं और 20 सितंबर को चन्नी ने मुख्यमंत्री की शपथ ले ली। चन्नी के शपथ लेते ही पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल के दलितों के चेहरे खिल गए। इससे उनमें यह उम्मीद जगी है कि अब राष्ट्रीय दल भी उनके महत्त्व को समझने लगे हैं।

चन्नी को मुख्यमंत्री बना कर कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह दोनों ख़ेमों की नाखुशी को भी बहुत हद तक मैनेज कर लिया है। भले चन्नी कैप्टन विरोधी ख़ेमे के हों किंतु सिद्धू का रास्ता ब्लॉक हुआ, इससे कैप्टन खुश हुए। कैप्टन और सिद्धू दोनों ने चरणजीत सिंह चन्नी के नाम पर प्रसन्नता जतायी है। यह कांग्रेस हाई कमान की बहुत बड़ी जीत है। उसने बीजेपी के समक्ष एक चुनौती भी पेश कर दी है कि है तुम्हारी झोली में इस दाँव की काट? यद्यपि पंजाब में बीजेपी का कुछ भी दाँव पर नहीं है लेकिन यूपी, उत्तराखंड व हिमाचल में तो उसी की सरकार है। उसके पास कोई दलित चेहरा तक नहीं है। पंजाब में दलित हिंदू और सिख दोनों हैं। चन्नी पंजाब के दलित सिख समाज से आते हैं, जिन्हें रामदासिया सिख कहा जाता है। लेकिन उनके मुख्यमंत्री बनाने से हिंदू दलित भी खूब खुश है। यूँ भी पंजाब में सिख आबादी बहुसंख्यक है, इसलिए किसी हिंदू का पंजाब में मुख्यमंत्री बनना असंभव सा है। लेकिन दोनों समुदायों के रीति-रिवाजों और धार्मिक मान्यताओं में काफ़ी साम्य है इसलिए वहाँ पर समुदाय से अधिक महत्त्वपूर्ण जाति बन जाती है। अक्सर लड़ाई जट-सिख, मज़हबी सिख (ओबीसी समुदाय) और रामदासिया सिखों के बीच बंट जाती है। हिंदू भी इसी आधार पर विभाजित हो जाते हैं।

बीजेपी चुनाव में मुसलमानों को माइनस ही नहीं करती बल्कि उनके समक्ष हिंदू समुदाय की संख्या को रख देती है। ज़ाहिर है, इससे उसका पक्ष वोट की नज़र से बड़ा हो जाता है। इससे समाज में समरसता नष्ट होती है और समुदायों के बीच परस्पर द्वेष बढ़ता है। वह यह समझ नहीं पाती कि मुस्लिम समाज को माइनस कर देने से उसका वोट कम भी होता है। उसके हिस्से में सिर्फ़ 80 प्रतिशत मतदाता आते हैं, जबकि उसके विरोधियों के बीच 100 प्रतिशत मत बटते हैं। हिंदू समुदाय में असंख्य विभेद हैं, जातियाँ हैं उन्हें ज़बरिया नहीं हाँका जा सकता। इसलिए हर जाति से सत्ता के प्रति चाहत बढ़नी स्वाभाविक है।

दलित और पिछड़े भी सत्ता में बँटवारा चाहते हैं। बीजेपी ने जितने भी राज्य में अपनी सत्ता स्थापित की, उनमें से अधिकांश में सिर्फ़ एक ही जाति के मुख्यमंत्री हैं। यूपी, उत्तराखंड और हिमाचल इसके उदाहरण हैं। उत्तराखंड में तो उसने भी मुख्यमंत्री बदलने के प्रयोग किए, लेकिन तीनों बार मुख्यमंत्री आए एक ही जाति से। ऐसे में अन्य जातियों में विद्रोह स्वाभाविक है। काठ की हांडी एक ही बार चढ़ाई जा सकती है। लेकिन बीजेपी इस कड़वी सच्चाई से आँखें मूँदे है। यही कारण है कि कांग्रेस की हर चाल पर वह प्रहार अवश्य करती है। उसे लगता है, कि कांग्रेस की कोई भी सधी हुई चाल उसके सपनों की दुनिया को ध्वस्त कर सकती है।

कैप्टन अमरिंदर सिंह उम्रदराज हो चुके हैं, पूर्व पटियाला रियासत के महाराजा रहे हैं इसलिए उनकी सोच सामंती है। वे मुख्यमंत्री तो रहे लेकिन पब्लिक की दुःख-तकलीफ़ों से वे दूर रहे। इसके अलावा वे आलाकमान की हर बात काटते रहे। राहुल गांधी जब भी कोई बयान देते फ़ौरन कैप्टन मोदी के सहायक की तरह मोदी का बचाव करने को कूद पड़ते। अभी 28 अगस्त को तो उन्होंने हद कर दी। केंद्र सरकार द्वारा जलियाँवाला बाग़ के जीर्णोद्धार पर राहुल गांधी ने आपत्ति करते हुए ट्वीट किया फ़ौरन कैप्टन ने केंद्र सरकार का बचाव करते हुए ट्वीट कर दिया, कि इसमें आपत्तिजनक तो कुछ भी नहीं है। ऐसी कई बातें थीं, जिनके कारण उनकी रवानगी तय थी।

लेकिन बड़ा सवाल यह था कि उनके बाद कौन?

और इस कौन का ऐसा जवाब कांग्रेस ने दिया है कि 2022 में पंजाब पर दोबारा जीत को काफ़ी हद तक पुख़्ता कर लिया है। साथ ही उसने बीजेपी को घेर लिया है। दरअसल कांग्रेस 2022 जीतने के लिए नहीं बल्कि 2024 को जीतने की रणनीति पर काम कर रही है। बीजेपी भी इस बात को समझ रही है, इसलिए उसकी बेचैनी स्वाभाविक लगती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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