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राहुल गांधी ने कभी ओबीसी का मज़ाक़ नहीं उड़ाया, बीजेपी सिर्फ़ उन्हें बदनाम करना चाहती है

कोरी बयानबाज़ी राजनीति का बड़ा हिस्सा बन गया है, लेकिन सत्ता पक्ष इसे प्रतिद्वंद्वियों के मामले में अस्वीकार करता है।
Rahul Gandhi
फोटो साभार : पीटीआई

इतिहास के अमेरिकी प्रोफेसर टिमोथी स्नाइडर ने अपनी 2017 की किताब, ऑन टाइरनी: ट्वेंटी लेसन्स फ्रॉम द ट्वेंटिएथ सेंचुरी में लिखा था कि, “अत्याचारी किसी ऐसे फंदे की तलाश करते हैं जिस पर आपको लटकाया जा सके। कोशिश करें कि आप उनका फंदा न बने। ठीक उसी तरह कांग्रेस नेता राहुल गांधी को फंदे पर लटकाने के लिए भारतीय जनता पार्टी हमेशा से मुस्तैद रहती है। इसलिए भाजपा नेता गांधी को फंदे पर टांगने के लिए हमेशा उनके द्वारा की जाने वाली गलती की लगातार खोज में रहते हैं। 2019 में उनके खिलाफ दायर मानहानि के मुक़दमें पर सूरत के एक मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा दी गई सजा, स्पष्ट रूप से उनके लिए सावधानी से चुना गया एक फंदा था। लेकिन दोषसिद्धि के बाद भी सत्ताधारी पार्टी का अभियान समाप्त नहीं हुआ है। अब यह 2019 के उसी भाषण के आधार पर गांधी को पिछड़े वर्गों के विरोधी के रूप में चित्रित कर रही है।

गांधी के खिलाफ किसे फंदे की भाजपा की खोज उनके लोकसभा भाषण के बाद काफी तेज हो गई थी, जिसमें उन्होंने कॉरपोरेट दिग्गज अदानी समूह के साथ कथित सांठगांठ के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछताछ की थी। हालांकि इस भाषण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा लोकसभा रिकॉर्ड से हटा दिया गया था, गांधी ने हाल ही में यूनाइटेड किंगडम के दौरे पर भारतीय लोकतंत्र के प्रति खतरों को भी चिह्नित किया था। उन्होंने लंदन में एक भाषण में कहा कि भारत अपनी समस्याओं का समाधान खुद करेगा, जिसके लिए भाजपा के मंत्री संसद में उनसे माफी की मांग करने लगे। उन्होंने कहा कि गांधी चाहते थे कि अन्य देश भारतीय मामलों में हस्तक्षेप करें, हालांकि उन्होंने लंदन में ऐसा कुछ नहीं कहा था।

पहली बार, सत्ताधारी दल के सदस्यों ने गांधी के खिलाफ लगाए आरोपों के मद्देनजर सदन को बार-बार परेशान किया और संसद में कार्यवाही नहीं चलने दी। गांधी, सदन में भाजपा के आरोपों का जवाब देना चाहते थे लेकिन कई अनुरोधों के बावजूद लोकसभा अध्यक्ष ने गांधी को समय नहीं दिया।

जिस पल गांधी को 2019 के भाषण के मामले (गुजरात भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी द्वारा दायर) में दोषी ठहराया गया, पार्टी ने उन पर अन्य पिछड़ा वर्ग या ओबीसी का अपमान करने का आरोप लगाना शुरू कर दिया। कर्नाटक में 2019 के भाषण में, गांधी ने कहा था: “इन सभी चोरों के नाम में मोदी, मोदी, मोदी क्यों लगा हैं? नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी। और अगर हम और खोजेंगे तो ऐसे कई मोदी सामने आएंगे। इस टिप्पणी पर गांधी को दोषी पाया गया, और दो साल के कारावास की सजा सुनाई गई - आपराधिक मानहानि के लिए यह अधिकतम सजा है - और 15,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया। अंत में, यह भाजपा का बहुप्रतीक्षित फंदा था, जिसने गांधी को उनकी लोकसभा सदस्यता से भी अयोग्य घोषित कर दिया।

राजनीतिक मामलों से उत्पन्न होने वाली मानहानि पर गांधी

फ्रांसीसी राजनीतिक वैज्ञानिक क्रिस्टोफ़ जाफ़रलॉट ने हाल ही में लिखा था कि गांधी की अयोग्यता भारतीय राजनीति में एक बड़ा "मोड़" ला सकती है। उनके मुताबिक, "उदार लोकतंत्रों में विपक्षी नेताओं को इस तरह के छोटे अपराधों के लिए जेल की सजा नहीं दी जाती है।" इसलिए भारत 'लोकतंत्र की जननी' और 'विश्व का गुरु' होने के अपने दावे को खुद ही कमजोर कर रहा है।'

लेकिन बहुत पहले, 27 नवंबर 1909 को, महात्मा गांधी ने, द डेली एक्सप्रेस के खिलाफ लाला लाजपत राय द्वारा किए मानहानि के मुक़दमे पर टिप्पणी की थी, क्योंकि अखबार ने लाला पर कुछ आरोपों लगाए थे। अदालत ने राय को 50 पाउंड और लागत भरने का जुर्माना लगाया था, और न्यायाधीश ने कहा कि चूंकि राय को [लॉर्ड [जॉन] बड़े कद के किसी व्यक्ति] द्वारा भगा दिया गया था, "इसका जरूर कोई कारण होगा"। इसने महात्मा गांधी को यह टिप्पणी करने के लिए प्रेरित किया कि: "इस मामले में न्यायाधीश की कुछ टिप्पणियों से पता चलता है कि किसी राजनीतिक मामले में, अदालत से न्याय पाना बेहद मुश्किल है।"

क्या यह कहना उचित है कि जबकि राय को औपनिवेशिक काल में एक ब्रिटिश अदालत ने न्याय से वंचित कर दिया था, आज एक भाजपा विधायक, बयानबाजी के खिलाफ किसी को भी सजा दिला सकता है क्योंकि वह सत्ता में है?

खुशबू ने 2018 में मोदी सरनेम की तुलना भ्रष्टाचार से की थी

इसका सीधा सा मतलब है कि खुशबू का ट्वीट मानहानि के लायक नहीं माना गया क्योंकि उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी और भाजपा में शामिल हो गईं थी, जबकि गांधी को मोटे तौर पर समान शब्दों का इस्तेमाल करने के लिए संसद से अयोग्यता का सामना करना पड़ा। यह केवल यह साबित करता है कि भाजपा का समर्थन करने वालों के लिए एक मानक है, और उसके प्रतिद्वंद्वियों के लिए अलग मानक है।

मोदी का उपनाम समधर्मी है

भाजपा जानबूझकर यह भूल जाती है कि मोदी उपनाम कोई अखंड नहीं है। कोई एक जाति, धर्म या समुदाय विशेष रूप से इसका दावा नहीं करता है, इसलिए ओबीसी को चोट पहुंचाने का सवाल ही नहीं उठता है। हिंदू, पारसी और मुसलमान इस पारिवारिक नाम को साझा करते हैं, और कुछ मारवाड़ी व्यापारिक समुदाय हैं, जो निश्चित रूप से पिछड़ी श्रेणी में नहीं आते हैं। जैसा कि श्यामलाल यादव, कमल सैयद और गोपाल कटेशिया ने हाल ही में द इंडियन एक्सप्रेस में बताया, "... नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण के लिए ओबीसी की केंद्रीय सूची में 'मोदी' नाम से कोई समुदाय या जाति नहीं आती है"। एचपी मोदी, 1949 से 1952 तक उत्तर प्रदेश के राज्यपाल थे, वे पारसी थे, जैसे पीलू मोदी, एक प्रमुख लोकसभा सदस्य और तत्कालीन स्वतंत्र पार्टी के अध्यक्ष थे, टाटा समूह के रूसी मोदी, और प्रसिद्ध फिल्म निर्माता, अभिनेता और डायरेक्टर सोहराब मोदी ललित मोदी, जिनका गांधी ने अपने 2019 के भाषण में उल्लेख किया था, भारत से भाग गए हैं और पिछड़े वर्गों के बीच भारत में वर्गीकृत एक जाति समूह से संबंधित नहीं हैं। उद्योगपति गुजरमल मोदी पिछड़े समुदाय से नहीं थे, न ही नीरव मोदी, जो भारत छोड़ चुके हैं। राष्ट्रीय स्तर के बैडमिंटन खिलाड़ी दिवंगत सैयद मोदी मुस्लिम थे।

यही कारण है कि भाजपा का यह दावा करना कि गांधी ने मोदी उपनाम पर अपनी टिप्पणी से ओबीसी को बदनाम किया है, पूरी तरह से निराधार है। यह केवल पहचान-आधारित बयानबाजी को बढ़ावा देता है और पूर्वव्यापी रूप से गांधी के दृढ़ विश्वास को सही ठहराता है। यह उस काल्पनिक कथा का ही हिस्सा है कि गांधी ने भारतीय धरती पर विदेशी हस्तक्षेप की मांग की थी। दोनों झूठ हैं, लेकिन ये झूठ कब तक टिकेंगे यह बड़ा सवाल है। इसका मुकाबला करने के लिए जनमत तैयार करना ही एकमात्र रास्ता है। झूठे आख्यानों/कहानियों का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस अभियान और विपक्षी दलों और जनता के बुद्धिजीवियों के प्रयास भारतीय लोकतंत्र के लिए कुछ आशा प्रदान करते हैं।

लेखक, भारत के राष्ट्रपति केआर नारायणन के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटि थे। विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

Rahul Gandhi Never Offended OBCs, BJP Only Wants a Hook in him

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