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लोकसभा चुनावों से पहले किया था रेलवे भर्ती का ऐलान, ढाई साल बाद भी एग्ज़ाम का अता-पता नहीं

रेलवे की एक भर्ती जिसका रजिस्ट्रेशन हुए 2.5 साल से भी अधिक का वक़्त को चुका है, आज तक उस भर्ती के लिए प्रथम चरण की परीक्षा भी नही कराई जा सकी है।
Railway recruitment

दुनिया में सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश भारत है। लेकिन इस युवा आबादी के भविष्य के साथ किस तरह से खिलवाड़ किया जा रहा है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि रेलवे की एक भर्ती जिसका रजिस्ट्रेशन हुए 2.5 साल से भी अधिक का वक़्त को चुका है, आज तक उस भर्ती के लिए प्रथम चरण की परीक्षा भी नही कराई जा सकी है।

ध्यान रहे कि लोकसभा 2019 का चुनाव 11 अप्रैल से 19 मई के बीच सात चरणों मे पूरा हुआ था और इसी चुनाव से ठीक पहले रेलवे में बम्पर भर्ती का ऐलान किया गया, जिसके तहत रेलवे ग्रुप-डी की भर्ती के लिए 12 मार्च 2019 से रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू की गई। रजिस्ट्रेशन से लेकर आज तक 2.5 साल से ज़्यादा हो चुके हैं, लेकिन अब तक परीक्षा का कोई अता-पता नही। सूरत-ए-हाल ये है कि प्रारंभिक परीक्षा भी अब तक नही हो पायी है, फिर मुख्य परीक्षा और जॉइनिंग के क्या ही कहने!

क्या है पूरा मामला?

साल 2019 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड(आरआरबी) की तरफ से रेलवे में एक लाख से अधिक पदों के वायदे के साथ बंपर भर्ती की घोषणा की गई, जिसके बाद हज़ारों-लाखों बेरोज़गार युवाओं को अपने भविष्य को लेकर एक उम्मीद की किरण दिखाई दी, क्योंकि घनघोर बेरोज़गारी के दौर में इस तरह का ऐलान अपने आप मे ही उम्मीदों का एक बड़ा पुलिंदा था।

रेलवे की अधिसूचना जिस वक़्त जारी की गई थी उस वक़्त देश मे रोज़गार के हालात की बात करें तो सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, फरवरी 2019 में देश मे बेरोज़गारी दर 7.2 फीसदी रही थी। इसके अलावा सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 में क़रीब एक करोड़ 10 लाख लोगों ने अपनी नौकरियां खो दीं।

उपरोक्त सभी हालातों के बाद रेलवे ने एनटीपीसी और ग्रुप-डी की भर्ती के लिए 1 मार्च 2019 और 12 मार्च 2019 को रजिस्ट्रेशन चालू किए, जिसके बाद करीब 1.4 लाख पदों के लिए 2.4 करोड़ से भी अधिक आवेदन प्राप्त किए गए, जो हिंदुस्तान में रोज़गार और नौकरी के सूरत-ऐ-हाल को बखूबी बयां करता है।

प्राइवेट सेक्टर से बेरोज़गार हो चुके हज़ारों-लाखों युवाओं को भी इन 1.4 लाख पदों में अपने लिए एक पद दिखाई दिया और उन्होंने भी एक बेहतर और सुरक्षित भविष्य की आशा और उम्मीद में इन पदों के लिए आवेदन किया और इन परीक्षाओं की तैयारियों में जुट गए। लेकिन रेलवे परीक्षा के इन लाखों प्रतिभागियों के लिए आवेदन के बाद से जो संघर्ष शुरू हुआ वो आज तक बदस्तूर जारी है।

क्योंकि पिछले कुछ सालों से प्रतियोगी परीक्षाओं का ये हाल हो चुका है कि अगर कोई भर्ती एक तय समयावधि में पूरी हो जाए तो इसे अजूबा ही समझो। कुछ यही हाल रेलवे की परीक्षा के साथ भी हुआ। लोकसभा के चुनाव से पहले परीक्षा की अधिसूचना जारी हुई थी। मतदान भी हो गए, चुनाव भी हो गए, सत्ता की अभिलाषा रखने वालों को सत्ता भी मिल गयी, नई सरकार का आधा कार्यकाल भी पूरा होने को है लेकिन 2019 का वो बेरोज़गार युवा आज तक बेरोज़गार है क्योंकि उसे पिछले 2.5 साल से परीक्षा का इंतजार है।

आज के दौर में सरकारों की बेशर्मी और लापरवाही के कारण प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के जीवन का दूसरा नाम ही संघर्ष हो गया है। प्रतिकूल परिस्थितियों में तैयारी का संघर्ष, अधिसूचना जारी होने के बाद परीक्षा तारीखों के लिए संघर्ष, परीक्षा हो जाने के बाद परिणामों के लिए संघर्ष, फिर जॉइनिंग के लिए संघर्ष और ना जाने कितने ही ऐसे संघर्ष। संघर्ष की इसी कड़ी में छात्रों ने एक 'डिजिटल आंदोलन' किया था, जिसके बाद रेलवे NTPC परीक्षा की तारीखों का तो ऐलान हो गया लेकिन ग्रुप-डी की परीक्षा का अब तक कुछ पता नही।

परीक्षा-दर-परीक्षा में हो रही देरी से परेशान हो चुके कर्मचारी चयन आयोग(SSC) और रेलवे के छात्रों ने संयुक्त रूप से एक डिजिटल आंदोलन चलाया जिसके तहत आक्रोशित छात्रों ने सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर अपना गुस्सा व विरोध जताया। प्रधानमंत्री से लेकर सरकार के प्रवक्ताओं और अन्य नुमाइंदों के भाषणों और कार्यक्रमों को भारी संख्या में डिस्लाइक किया गया। छात्रों ने #SpeakUpForSSCRailwayStudents के नाम से ट्विटर पर हैशटैग चलाया जो सिर्फ भारत में नहीं बल्कि दुनियाभर में टॉप ट्रेंडिंग में रहा। इसके बाद 5 सितंबर 2020 को रेलवे ने NTPC के पहले चरण की परीक्षा तारीखों का ऐलान कर दिया।

NTPC के लिए छात्रों ने संघर्ष किया जिसके बाद उन्हें परीक्षा की तारीख मिली, लेकिन ग्रुप-डी की परीक्षा तारीखों के लिए भी छात्र अभी भी संघर्ष कर रहे हैं। हाल ही में 17 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन के मौके पर लाखों युवाओं और छात्रों ने इस दिन को 'राष्ट्रीय बेरोज़गारी दिवस' के रूप में मनाया। इस डिजिटल आक्रोश में रेलवे के छात्रों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और रेलवे ग्रुप-डी की परीक्षा तारीखों के ऐलान की मांग की। रेलवे अभ्यर्थी लगातार ट्विटर कैम्पेन कर रहे हैं, तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अपनी आवाज़ उठा रहे हैं और विरोध दर्ज करा रहे हैं। लेकिन सवाल यही है कि क्या अब इस देश में छात्रों को अधिसूचना से लेकर परीक्षा तारीखों और उसके बाद परिणाम से लेकर जॉइनिंग के लिए आंदोलन करने पड़ेंगे? क्या हिंदुस्तान के ये युवा छात्र समयबद्ध और निष्पक्ष परीक्षा के हकदार नही हैं?

कांग्रेसी नेता शशि थरूर ने भी रेलवे अभ्यर्थियों के समर्थन में एक ट्वीट किया, जिसमें वे रेलवे NTPC परीक्षा प्रक्रिया में हो रही देरी पर सवाल उठाते हुए लिखते हैं, "आरआरबी एनटीपीसी के लिए अधिसूचना 2019 की शुरुआत में आई थी, फिर भी सीबीटी-1 दिसंबर 2020 में शुरू हुआ, जबकि अंतिम चरण जुलाई 2021 में पूरा हुआ, और परिणाम अभी तक घोषित नहीं हुए हैं। रेलवे के उम्मीदवार 2 साल से अधिक समय से इस विशेष परीक्षा की तैयारी कर रहे थे, लेकिन आरआरबी निर्धारित शेड्यूल से पीछे चल रहा है।"

हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार देश मे एक साल में बेरोज़गारी दर 2.4 प्रतिशत बढ़कर 10.3 प्रतिशत हो गई। शहरी इलाकों में सभी उम्र के लिए, भारत की बेरोज़गारी दर अक्टूबर-दिसंबर 2020 में बढ़कर 10.3 प्रतिशत हो गई, जबकि एक साल पहले 2019 में इन्हीं महीनों में ये दर 7.8 प्रतिशत थी। बेरोज़गारी के इन आंकड़ों के बीच सरकारी भर्तियों में इस तरह की लापरवाही और अनदेखी छात्रों के लिए यकीनन दर्दनाक है।

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के रहने वाले सोनू जो एक प्राइवेट सेक्टर में काम करते हैं उन्होंने भी एक लाख से अधिक पदों पर भर्ती के सरकारी ऐलान के बाद एक स्थायी और सुरक्षित नौकरी की उम्मीद में इसके लिए आवेदन किया और तैयारी शुरू की। उनका कहना है, "क्या छात्रों और युवाओं की कोई अहमियत नही है? ऐसा क्यों होता है कि चुनावों का एलान तय समय पर हो जाता है। मतदान और चुनाव का रिज़ल्ट भी एक तय समय पर आ जाता है और नेता जी को कुर्सी भी मिल जाती है लेकिन सरकारी भर्तियों की कोई समय-सीमा नही। इस देश में चुनावी शेड्यूल तो निश्चित हैं लेकिन सरकारी नौकरी की भर्तियां और हमारा भविष्य सब अनिश्चित है।"

इसी इलाके में लोकल लेवल पर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले एक कोचिंग सेंटर के अध्यापक विकास का कहना है, "क्लासरूम में पढ़ाते वक्त निराश चेहरों को देखना हमारे लिए भी काफी तकलीफदेह है। सिस्टम की मार से निराश हो चुके छात्रों को पढ़ाना भी अपने आप में एक बड़ी चुनौती होती है। और सरकारी भर्ती में होने वाली इन लापरवाहियों का असर केवल छात्रों पर नही पड़ता बल्कि हमारे जैसे लोकल स्तर पर पढ़ाने वाले अध्यापकों पर भी पड़ता है। क्योंकि छात्रों को भी लगता है कि पता नही कब एग्जाम होगा, कब रिज़ल्ट आएगा और न जाने कब तक जॉइनिंग आएगी और इसी निराशा में छात्र या तो पढ़ने नही आते, और पढ़ने वाले छात्र भी बीच में ही तैयारी छोड़कर चले जाते हैं। इसका बुरा असर हमारे जैसे अध्यापकों के रोज़गार पर भी पड़ता है। आज सरकार पर भरोसा खो चुके इन छात्रों को वापस से भरोसा दिलाने की ज़रूरत है।"

सरकारी दावों से परे मोदी दौर में रिकॉर्ड बेरोज़गारी एक जगजाहिर फैक्ट है, जिस बात से खुद मोदी समर्थक भी खुलकर इंकार नही कर पाते हैं। ऐसे में सवाल यही है कि युवा शक्ति और युवा जोश की बातें क्या नेता जी के लच्छेदार भाषणों के लिए महज़ अलंकार बनकर रह गयी हैं या असल जिंदगी में भी इसके कोई मायने हैं? क्योंकि एक ओर तो युवाओं के बारे में बड़ी-बड़ी बातें कही जाती हैं वहीं दूसरी ओर इन्ही युवाओं को 3-3 साल की भर्ती प्रक्रिया में झोंक कर उनका कीमती वक़्त जो देश के काम आ सकता था उसे बर्बाद किया जाता है।

रेलवे ग्रुप-डी की अधिसूचना मार्च 2019 में आई थी तब से लेकर आज तक 2.5 साल से ज़्यादा का वक़्त पूरा हो चुका है लेकिन अब तक पहले चरण की प्रक्रिया की भी शुरुआत नही हुई। और फर्ज़ कीजिए अगर आज की तारीख से ही परीक्षा आयोजित करायी जाए, तब भी पहले चरण से लेकर जॉइनिंग तक कम-से-कम 2.5 साल का वक़्त इसमें और जोड़ लें तो अधिसूचना जारी होने से फाइनल जॉइनिंग तक 5 साल या इससे ज़्यादा का समय हो जाएगा।

अगर एक भर्ती प्रक्रिया में 3-3 साल का वक़्त लग रहा है तो ये सोचने की बात है कि ऑनलाइन परीक्षा प्रणाली के क्या मायने हैं? डिजिटल इंडिया के क्या मायने हैं? क्यों एक भर्ती की प्रक्रिया एक साल की साईकल में पूरी नही की जा सकती? ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब और समाधान सरकार को तलाशने होंगे और गम्भीरता से इस पर संज्ञान लेना होगा, क्योंकि युवाओं के कीमती वक़्त और उत्साह को यू हीं ज़ाया नही किया जा सकता।

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