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राजस्थान: महिला डॉक्टर की आत्महत्या के पीछे पुलिस-प्रशासन और बीजेपी नेताओं की मिलीभगत!

डॉक्टर अर्चना शर्मा आत्महत्या मामले में उनके पति डॉक्टर सुनीत उपाध्याय ने आरोप लगाया है कि कुछ बीजेपी नेताओं के दबाव में पुलिस ने उनकी पत्नी के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया, जिसके चलते उनकी पत्नी डर गई और उन्होंने आत्महत्या जैसा बड़ा कदम उठा लिया।
doctor suicide
फ़ोटो साभार: आजतक

राजस्थान के लालसोट में एक महिला डॉक्टर की आत्महत्या के बाद राजस्थान सहित अन्य कई राज्यों के डॉक्टरों में रोष है। राजधानी जयपुर, दिल्ली और रांची में बड़ी संख्या में डॉक्टरों ने इस मामले पर विरोध प्रदर्शन किया, 24 घंटे का कार्य बहिष्कार किया और दोषियों पर जल्द कार्रवाई नहीं होने पर आंदोलन की चेतावनी दी है। इस मामले में एक ओर जहां पुलिस प्रशासन की बड़ी लापरवाही सामने आ रही है, तो वहीं दूसरी ओर बीजेपी पहले जहां फ्रंटफुट पर आकर गहलोत सरकार को घेर रही थी वो अब अपने नेता जितेंद्र गोठवाल की गिरफ्तारी के बाद बैकफुट पर आ गई है।

बता दें कि इस पूरे मामले राजनीति का बेहद घिनौना रूप देखने को मिला है। मृतक डॉक्टर के पति ने आरोप लगाया है कि कुछ बीजेपी नेताओं के दबाव में पुलिस ने उनकी पत्नी के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया, जिसके चलते उनकी पत्नी डर गई और उन्होंने आत्महत्या जैसा बड़ा कदम उठा लिया। फिलहाल इस केस में गहलोत सरकार ने एक्शन लेते हुए दौसा के एसपी को हटा दिया है और पूर्व बीजेपी विधायक जितेंद्र गोठवाल को भी गिरफ्तार कर लिया गया है। गोठवाल पर पुलिस ने धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत मामला दर्ज कर किया है।

क्या है पूरा मामला?

जानकारी के मुताबिक राजस्थान के दौसा ज़िले के लालसोट में मंगलवार, 29 मार्च को एक महिला डॉक्टर की आत्महत्या का मामला सामने आया। मृतक डॉक्टर अर्चना शर्मा का लालसोट में एक निजी अस्पताल है, जिसे दोनों पति-पत्नी मिलकर चला रहे थे। सोमवार, 28 मार्च को डिलीवरी के दौरान एक महिला की मौत हो गई थी, जिसके बाद परिजनों ने हंगामा किया और डॉक्टर अर्चना के खिलाफ़ थाने में हत्या का मामला दर्ज करवाया।

बताया जा रहा है कि मामला दर्ज होने के बाद से ही महिला डॉक्टर तनाव में थीं और मंगलवार सुबह क़रीब 11 बजे उनका शव बरामद हुआ। मृतका डॉक्टर का एक कथित सुसाइड नोट भी सामने आया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि पीपीएच (Post Partum Hemorrhage ) यानी प्रसव के बाद होने वाली ब्लीडिंग एक जानीमानी कॉम्पीकेशन है, इसके लिए डॉक्टर को इतना प्रताड़ित करना बंद करो। इसके बाद उन्होंने कहा- Don’t Harass Innocent Doctors. Please.

डॉक्टर अर्चना शर्मा के पति डॉक्टर सुनीत उपाध्याय ने भी लालसोट थाने में एक एफआईआर दर्ज कराई है, जिसके मुताबिक अस्पताल में एक महिला मरीज की मौत पर कुछ लोगों ने अस्पताल का घेराव किया और हत्या का मुकदमा दर्ज कराने के लिए प्रशासन पर दबाव बनाने की घिनौनी राजनीति की। मृतक के परिवार को मुआवजे का लालच देकर उनकी पत्नी के खिलाफ झूठा हत्या का केस करवाया।

पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में

इस मामले में पुलिस ने प्रसूता आशा बैरवा की मौत को लेकर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स को दरकिनार करते हुए डॉक्टर के खिलाफ हत्या का केस दर्ज किया है और सबसे ज्यादा हैरानी वाली बात ये है कि जिस शिकायत के दबाव में आकर डॉक्टर अर्चना शर्मा ने आत्महत्या की, उस शिकायत के बारे में मृतक प्रसूता के पति को कोई जानकारी ही नहीं है। मृतक के पति का कहना है कि वह मजदूर है, पढ़ना लिखना नहीं जानता, एफआईआर में क्या लिखा गया ये उसे नहीं पता है।

इस मामले में दैनिक भास्कर ने मृत प्रसूता के पति लालूराम बैरवा के हवाले से लिखा है कि उन्होंने डॉक्टर के खिलाफ कोई शिकायत नहीं दी। कुछ लोगों ने उनसे एक कागज पर हस्ताक्षर करवाए थे... लेकिन क्या लिखा था, यह नहीं पढ़ा। लालूराम ने अखबार से बातचीत में आरोप लगाया है कि उसे किसी ने मुकदमे की कॉपी भी नहीं दी। जिन लोगों ने ये शिकायत लिखी थी, उन्होंने इसमें धारा 302 का जिक्र किया था। पुलिस ने भी डॉक्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करते हुए उसमें धारा 302 (हत्या) लगा दी।

लालूराम ने बातचीत में कहा, “डॉ अर्चना शर्मा के कहने पर मैंने पत्नी को भर्ती करवा दिया, ऑपरेशन के बाद पत्नी की ब्लीडिंग बंद नहीं हुई और मौत हो गई। तभी भीड़ इकट्‌ठी हो गई। मैं उनमें से किसी को नहीं जानता। मैंने शिकायत नहीं दी, मैं मजदूर आदमी हूं, शिकायत लिखना क्या जानूं।”

बीजेपी नेताओं की कथित सियासत

मृतक डॉक्टर अर्चना शर्मा के पति डॉ सुनीत उपाध्याय का कहना है कि इस पूरी घटना के पीछे स्थानीय बीजेपी नेता शिवशंकर बल्या जोशी का हाथ है। डॉ. सुनीत का कहना है कि शिवशंकर जोशी के ही दबाव में आकर पुलिस ने उनकी पत्नी के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया और जब ये खबर अखबारों में छपी तो उनकी पत्नी डर गई और आत्महत्या का कदम उठा लिया।

डॉ. सुनीत उपाध्याय ने दैनिक भास्कर से कहा, “सोमवार को डिलीवरी हुई थी, दो घंटे बाद मैसिव अटॉनिक पीपीएच हुआ यानी ज्यादा ब्लीडिंग हुई, हम जूझते रहे, पर बचा न सके। परिजनों ने ये सब देखा तो हाथ जोड़ते हुए कहा कि साहब आपने तो पूरी कोशिश की थी बचाने की, हमारी तकदीर खराब थी। फिर हमने फ्री में एंबुलेंस से उन्हें घर भी भिजवाया। अंत्येष्टि की तैयारी चल रही थी। शिव शंकर उन्हें मुआवजा दिलाने की बात कहकर ले आया।”

सुनीत उपाध्याय ने आगे कहते हैं, “100- 200 लोगों ने अस्पताल के बाहर शव रखकर प्रदर्शन किया। शिवशंकर ने ही बीजेपी के हरकेश मटलाना, जितेंद्र गोठवाल को भी बुला लिया। शिवशंकर फिरौती, ब्लैकमेलिंग की कोशिश करता रहा है। हमने रिपोर्ट करना चाहा पर पुलिस ने किरोड़ीलाल मीना के दबाव में आकर केस दर्ज नहीं किया। वह (शिवशंकर) हिस्ट्रीशीटर भी है, पुलिसवालों का सिर फोड़ चुका लेकिन हर बार किरोड़ी उसे बचा लेते हैं।”

ध्यान रहे कि पुलिस ने इस केस में जिस पूर्व विधायक और बीजेपी के प्रदेश मंत्री जितेंद्र गोठवाल को अरेस्ट किया है। उन्होंने ही डॉक्टर अर्चना शर्मा के खिलाफ प्रदर्शन का आयोजन किया था। गोठवाल ने सोशल मीडिया पर इस प्रदर्शन की तस्वीरे भी पोस्ट की थी।

गोठवाल ने ट्वीट कर लिखा था, “लालसोट निवासी आशा बैरवा की ऑपरेशन डिलीवरी के समय चिकित्सा विभाग की लापरवाही के कारण मौके पर ही मौत हो जाने की सूचना प्राप्त होते ही उसके परिवार को न्याय दिलाने के लिए लालसोट पहुंचा व दो घंटे गांव के लोगों के साथ धरने पर बैठकर मृतक परिवार को न्याय दिलाया व 10 लाख की आर्थिक सहायता की।”

मुकदमा 302 में दर्ज नहीं होता तो शायद डॉक्टर अर्चना शर्मा की जान नहीं जाती!

गौरतलब है कि लालसोट राज्य के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा का विधानसभा क्षेत्र है। उन्होंने इस घटना पर दुख व्यक्त करते हुए मीडिया से कहा कि जो भी घटना घटी है वह नहीं होनी चाहिए थी। इसमें कहीं ना कहीं प्रशासन की लापरवाही रही है। उसकी डिवीजनल कमिश्नर जांच कर रहे हैं और जो भी इसमें कमियां पाई जाएंगी उनके खिलाफ कार्रवाई होगी।

प्रसादी लाल मीणा ने आगे कहा, "महिला डॉक्टर के खिलाफ धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज नहीं होना चाहिए था। यह पुलिस अधिकारियों की नासमझी है। नासमझी के चलते महिला डॉक्टर की जान गई है। बहुत दुखद है, अगर यह मुकदमा 302 में दर्ज नहीं होता तो शायद डॉक्टर अर्चना शर्मा की जान नहीं जाती।"

इस पूरे मामले में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट करते हुए लिखा , "दौसा में डॉ अर्चना शर्मा की आत्महत्या की घटना बेहद दुखद है। हर डॉक्टर मरीज की जान बचाने के लिए अपना पूरा प्रयास करता है परन्तु कोई भी दुर्भाग्यपूर्ण घटना होते ही डॉक्टर पर आरोप लगाना न्यायोचित नहीं है। अगर इस तरह डॉक्टरों को डराया जाएगा तो वे निश्चिन्त होकर अपना काम कैसे कर पाएंगे। इस पूरे मामले की गंभीरता से जांच की जा रही है एवं दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।"

बहरहाल, इस पूरे घटनाक्रम के बाद देश में राजनीति और पुलिस प्रशासन की मिलीभगत के मामले ने एक बार फिर तूल पकड़ लिया है। पुलिस कैसे राजनेताओं के दबाव में कोर्ट के आदेश की भी अनदेखी कर देती है, ये बात भी स्पष्ट रूप से सामने आ रही है। मामले के तूल पकड़ने के बाद पुलिस ने मृतक डॉक्टर के खिलाफ शिकायत से हत्या की धारा 302 हटा दी, जबकि पुलिस ने पहले आनन फानन में इसी के तहत मुकदमा दर्ज किया था। सालों पहले सुप्रीम कोर्ट ने मैथ्यू वर्सेज पंजाब स्टेट मामले में साफ तौर पर कहा था कि किसी भी डॉक्टर पर कोई भी क्रिमिनल धारा, खासकर 302 लगाने से पहले मेडिकल काउंसिल की ओर से या किसी भी डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की ओर से बनाई गई मेडिकल एक्सपर्ट कमेटी की राय जरूरी है। जाहिर है इस पूरे मामले में पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया है।

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