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राजस्थान कांग्रेस संकट: क्या 'जादूगर' रोक रहे हैं 'पायलट' की सियासी उड़ान!

राजस्थान में कांग्रेस की स्थिर सरकार अस्थिर होती दिखने लगी है और इस अस्थिर करने में कोई और नहीं बल्कि खुद कांग्रेस के नेता शामिल हैं।
ashok gehlot and sachin
फाइल फ़ोटो।

राजस्थान जहां कांग्रेस की स्थिर सरकार है। वो रविवार रात अचानक अस्थिर होती दिखी। इसे अस्थिर करने में कोई और नहीं बल्कि खुद कांग्रेस के नेता शामिल थे। राजस्थान में नाटकीय घटनाक्रम में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के वफादार माने जाने वाले विधायक अपने इस्तीफे सौंपने के लिए रविवार रात विधानसभा अध्यक्ष सी पी जोशी के निवास पहुंच गये।

विधायक दल की बैठक में गहलोत का उत्तराधिकारी चुनने की संभावनाओं के बीच यह घटनाक्रम हुआ है। इस स्थिति से मुख्यमंत्री और सचिन पायलट के बीच सत्ता को लेकर संघर्ष गहराने का संकेत मिल रहा है। गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे, इसलिए उनका उत्तराधिकारी चुने जाने की संभावना है। लेकिन रात होते होते ऐसा तो कुछ नहीं हुआ बल्कि गहलोत ने एकबार फिर अपना शक्ति प्रदर्शन किया।

कई मीडिया और राजनैतिक हल्कों में अशोक गहलोत को इन्हीं कारणों से जादूगर भी कहा जाता है । क्योंकि 2018 के विधानसभा चुनावों में भी ऐसा लग रहा था कि अगर कांग्रेस को बहुमत मिला तो सचिन पायलट ही मुख्यमंत्री बनेंगे लेकिन बहुमत मिलने के बाद कांग्रेस आलाकमान ने गहलोत के नाम पर मुहर लगा दी।

जबकि चुनाव से पहले राज्य का नेतृत्व सचिन पायलट को दिया गया और उन्होंने पूरे राज्य में मेहनत की और उनके नेतृत्व में ही कांग्रेस सत्ता में आ पाई थी लेकिन फिर भी उन्हें उप मुख्यमंत्री के पद से संतोष करना पड़ा।

दूसरी तरफ अपने बेटे को भी चुनाव न जिता पाने वाले गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया गया। तब एकबार फिर कहा गया कि गहलोत ने अपना जादू दिखा दिया। इससे पहले भी कई मौकों पर उन्होंने अपने राजनैतिक कौशल का इस्तेमाल कर अपने हक़ में माहौल बनाया है, लोगों इसे ही उनका जादू और उन्हें जादूगर कहा।

जबकि सचिन पायलट ने जब - जब राजनैतिक उड़ान भरने की कोशिश की तब- तब अशोक गहलोत उनकी उड़ान को रोकते दिखे। 2020 में जब पायलट का सब्र का बांधा टूटा और उन्होंने बगावत करने का निर्णय लिया। लेकिन वो इस खेल में कच्चे खिलाड़ी साबित हुए और वो बिना किसी राजनैतिक फायदे के गहलोत के आगे हारते दिखे। इस बगावत से उन्हें क्या मिला था वो तो पायलट ही बता सकते हैं लेकिन बाहर से देखे तो वो उस समय प्रदेश अध्यक्ष थे और सरकार में भी नंबर दो यानी उप मुख्यमंत्री थे। लेकिन इस घटना के बाद से वो एक सामान्य विधायक ही रह गए।

खैर अभी के हालत देखे तो गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष तो बनना चाहते है लेकिन राज्य की बागडोर भी अपने हाथ में चाहते है या राज्य की सत्ता अपने किसी करीबी को ही सौंपना चाह रहे हैं। वो किसी भी हाल में सत्ता की चाबी पायलट को नहीं देना चाहते हैं। जबकि आलाकमान ने साफ कर दिया है कि एक आदमी एक ही पद रख सकता है । ऐसे में अगर उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाना है तो मुख्यमंत्री पद छोड़ना होगा। ये स्पष्ट है और शायद गहलोत भी समझ रहे है। इसलिए वो समय रहते अपनी राजनैतिक गोटिया सेट करने में लगे हैं। दूसरी तरफ़ पायलट इस बार किसी भी हाल में ये मौका अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहते हैं। इसलिए वो लगातार जयपुर से दिल्ली और केरल तक दौड़ लगाए हुए हैं। अगर सूत्रों की माने तो पार्टी आलाकमान की पहली पसंद भी पायलट ही है। राहुल गांधी ने तो मंच से पायलट के सब्र और धैर्य की तारीफ़ कर चुके है।

जबकि उनके समर्थक खुलकर बोल रहे है। कांग्रेस नेता लक्ष्मण चौधरी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि ‘‘पायलट के अलावा और कोई नहीं है जिसे अशोक गहलोत के बाद मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। यह लोगों के बीच धारणा है। पायलट न केवल गुर्जरों बल्कि सभी ‘36 कौम’ में स्वीकार्य हैं।’’

नाम न बताने की शर्त पर एक अन्य नेता ने कहा कि पायलट समर्थकों को भरोसा है कि वह राज्य के अगले मुख्यमंत्री होंगे, लेकिन वे रणनीतिक रूप से चुप हैं।

पायलट के एक वफादार राजेश मेहता का विचार है कि राजस्थान में सरकार के शीर्ष पद पर पायलट को होना चाहिए।

हालांकि, गहलोत के गृहनगर जोधपुर शहर में भी पायलट को मुख्यमंत्री के रूप में देखने से जुड़े होर्डिंग्स लगे हैं।

एक अन्य पूर्व पीसीसी सदस्य करण सिंह ने कहा कि राज्य की बागडोर एक युवा और गतिशील नेता के पास जानी चाहिए और वह हैं सचिन पायलट।

लेकिन सवाल वही है क्या पायलट इस सांत्वना से संतुष्ट होकर बैठ जाएंगे। ऐसा लगता तो नहीं है। या कही कांग्रेस आलकमान पंजाब वाला फार्मूला अपना कर किसी चन्नी की तलाश कर दोनों को न्यूट्रल करने का प्रयास करेगा। हालंकि पंजाब में जो हाल हुआ उसे देखकर लगता नहीं पार्टी ऐसा करेगी। बाक़ी राजनीति में सब कुछ संभव है तो देखते है क्या होता है। हो सकता है गहलोत खुद पायलट की ताज़ापोशी करे या पहले की तरह उनकी हर राजनैतिक उड़ान को रोकने में सफल हो। बाक़ी कांग्रेस के इस अंतर्कलह का बीजेपी मज़ा ले रही है । हालांकि राजस्थान बीजेपी में भी अंतर्कलह की कमी नहीं है।

रविवार रात को गहलोत के वफादार विधायकों में से एक ने दावा किया कि निर्दलीय सहित 80 से अधिक विधायक बस से विधानसभा अध्यक्ष सी पी जोशी के निवास पहुंच गए हैं और उन्हें अपना इस्तीफा सौंप देंगे। हालांकि, विधायकों की संख्या की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो सकी है।

राज्य की 200-सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 108 सदस्य हैं। पार्टी को 13 निर्दलीय उम्मीदवारों का भी समर्थन प्राप्त है।

इससे पहले, विधायकों के समूह ने मंत्री शांति धारीवाल के आवास पर एक बैठक की, जिसे सचिन पायलट के अगले मुख्यमंत्री बनने की संभावना को विफल करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।

राज्य के मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हम बस से विधानसभा अध्यक्ष के निवास जा रहे हैं और (उन्हें) अपना इस्तीफा सौंपेंगे।’’

कांग्रेस पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन, मुख्यमंत्री गहलोत के साथ उनके निवास पहुंचे, जहां शाम में कांग्रेस विधायक दल की बैठक होने वाली थी। पायलट भी वहां पहुंचे। हालांकि बाद में इस बैठक को टाल दिया गया।

गहलोत के वफादार माने जाने वाले कुछ विधायकों ने परोक्ष रूप से पायलट का हवाला देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री का उत्तराधिकारी कोई ऐसा होना चाहिए, जिन्होंने 2020 में राजनीतिक संकट के दौरान सरकार को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, न कि कोई ऐसा जो इसे गिराने के प्रयास में शामिल था।

पार्टी के एक अन्य नेता गोविंद राम मेघवाल ने कहा कि गहलोत मुख्यमंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष दोनों की भूमिका निभा सकते हैं। उन्होंने कहा कि अगर गहलोत मुख्यमंत्री नहीं रहते हैं, तो पार्टी को अगला विधानसभा चुनाव जीतने में बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ेगा।

निर्दलीय विधायक और मुख्यमंत्री के सलाहकार संयम लोढ़ा ने कहा कि अगर विधायकों की भावना के अनुरूप निर्णय नहीं होगा तो सरकार गिरने का खतरा पैदा हो जायेगा।

दिसंबर 2018 में कांग्रेस के विधानसभा चुनाव जीतने के ठीक बाद मुख्यमंत्री पद के लिए गहलोत और पायलट का टकराव हुआ। पार्टी आलाकमान ने गहलोत को तीसरी बार मुख्यमंत्री चुना, जबकि पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। जुलाई 2020 में, पायलट ने 18 पार्टी विधायकों के साथ गहलोत के नेतृत्व के खिलाफ बगावत कर दी थी।

इससे पहले दिन में, गहलोत ने कहा था कि विधायक दल की बैठक के दौरान एक लाइन का प्रस्ताव पारित किये जाने की संभावना है, जिसमें लिखा होगा, कांग्रेस के सभी विधायकों को पार्टी अध्यक्ष के फैसले पर पूरा भरोसा है।

गहलोत ने जैसलमेर में संवाददाताओं से कहा, ‘‘कांग्रेस में शुरू से ही यह परंपरा रही है कि चुनाव के समय या मुख्यमंत्री के चयन के लिए जब भी विधायक दल की बैठक होती है, तो कांग्रेस अध्यक्ष को सभी अधिकार देने के लिए एक लाइन का प्रस्ताव जरूर पारित किया जाता है, मैं समझता हूं कि आज भी यही होगा।’’

मुख्यमंत्री ने जैसलमेर के दौरे के दौरान तनोट माता मंदिर में दर्शन के लिए जाते समय संवाददाताओं से कहा, ‘‘सभी कांग्रेसी एकमत से कांग्रेस अध्यक्ष पर विश्वास रखते हैं और आज भी इसकी एक झलक आपको देखने को मिलेगी। आपको किंतु-परंतु के बारे में नहीं सोचना चाहिए।’’

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)

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