राज्यसभा मनोनयन: समाज नहीं पार्टी में योगदान का महत्व!
जम्मू कश्मीर में आरएसएस के सक्रिय सदस्य और बीजेपी के नेता गुलाम अली खटाना को राज्यसभा के लिए राष्ट्रपति द्वारा नामित किया जाना कई सवालों को जन्म दे रहा है। संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक राष्ट्रपति 12 ऐसे सदस्यों को नामित करते हैं जो कला, साहित्य, विज्ञान, खेल, संस्कृति, ज्ञान और सामाजिक क्षेत्रों में विशिष्ट योगदान रखते हैं। इसके लिए संविधान में स्पष्ट दिशा निर्देश दिए गए हैं। लेकिन जिस तरह से गुलाम अली खटाना का चयन किया गया है उससे लगता है कि इन विशिष्ट सांसदों का चयन भी बीजेपी ही करती है। अब सवाल है कि क्या राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की इच्छा भी यही है? और अगर महामहिम की भी यही इच्छा है तो फिर उस संवैधानिक प्रावधानों का क्या अर्थ है जिसमे नामित सदस्यों के लिए नियम बनाये गए हैं।
नामित सदस्यों के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 80 का खंड (3) राज्यसभा के सदस्यों के नामांकन के लिए मानदंड निर्धारित करता है। अनुच्छेद 80 के खंड (1) के उप खंड (ए) के तहत राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जाने वाले सदस्यों में साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्ति शामिल होते हैं। संविधान के अनुच्छेद 80 के खंड (1) में प्रावधान है कि 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा खंड (3) के प्रावधानों के अनुसार नामित किया जाएगा। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 80 राज्यसभा के गठन का प्रावधान करता है। इसके मुताबित राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है जो कि वर्तमान में 245 है। इनमें से 233 सदस्यों को विधानसभा सदस्यों द्वारा चुना जाता है। वहीं 12 सदस्यों राष्ट्रपति द्वारा निर्वाचित किया जाता है। राज्यसभा के लिए नामित सदस्य किसी राज्य का नहीं देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में वोट नहीं दे सकते। संविधान के इन प्रावधानों को पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि खटाना के नामांकन में संविधान की भावना और प्रावधानों का खुले तौर पर उल्लंघन किया गया है।
महामहिम राष्ट्रपति को इस पर जरूर गौर करना चाहिए।
खटाना की एकमात्र योग्यता यह है कि वह भाजपा के स्थानीय नेता है और संघ के सदस्य। जम्मू संभाग से आने वाले खटाना की पढ़ाई इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की है और उनकी राजनीतिक यात्रा छात्र नेता के रूप में होती दिखती है। छात्र नेता के बाद उनकी राजनीति की शुरुआत पैंथर पार्टी से होती है और इसके बाद वे 2008 में संघ से जुड़ जाते हैं और फिर 2010 से बीजेपी की राजनीति शुरू करते हैं। इसी सबके तहत दलित ,आदिवासी और अल्पसंख्यकों के विकास के लिए खटाना ने कुछ काम किए हैं। शायद इसी को उनके चयन का आधार बनाया गया हो।
हालांकि सब जानते हैं कि जम्मू कश्मीर में बहुत जल्द ही विधानसभा चुनाव होने हैं और बीजेपी चाहती है कि चुनाव में उसकी जीत हो और उसकी सरकार बने और इसके लिए एक गुलाम नबी (आज़ाद) के साथ दूसरे गुलाम अली (खटाना) उनके काम आएं!
गुलाम अली खटाना बीजेपी के नेता हैं और वे अनुसूचित जनजाति से जुड़े गुर्जर बकरवाल मुस्लिम समुदाय से आते हैं। जम्मू कश्मीर के गुर्जर बकरवाला समुदाय में खटाना की ख़ास पैठ है। बीजेपी को लगता है कि खटाना को राज्य सभा में लेकर बकरवाल समुदाय को साधा जा सकता है। संभव है कि इसका लाभ बीजेपी को मिले भी। इसी सामाजिक समीकरणों के तहत खटाना पर बीजेपी ने यह दाव खेला है।
खटाना को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया, 'भारत के संविधान के अनुच्छेद 80 के खंड (एक) के उप-खंड (ए) से मिली शक्तियों का प्रयोग करते हुए, जो उसी अनुच्छेद के खंड (3) में शामिल है, राष्ट्रपति एक मनोनीत सदस्य के सेवानिवृत्त होने से रिक्त हुई जगह को भरने के लिए गुलाम अली को राज्यसभा के लिए नामित करती है।'
यहां तक तो सब ठीक है। लेकिन खटाना किस ज्ञान, कला और खेल के पुजारी है इस पर सरकार मौन हो जाती है। जम्मू कश्मीर कांग्रेस ने खटाना के नामित होने पर संविधानिक प्रावधानों का घोर उलंघन कहा है। प्रदेश कांग्रेस के नेता रविंदर शर्मा ने एक बयान में कहा है कि खटाना के खिलाफ कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है, लेकिन यह संविधान के दुरुपयोग और उल्लंघन का सवाल है। वह संविधान के अनुसार नामांकन के लिए आवश्यक योग्यता को पूरा नहीं करते हैं। शर्मा आगे कहते हैं कि निहित राजनीतिक हितों के लिए संविधान के प्रावधानों का दुरुपयोग करना भाजपा का नियमित मामला बन गया है।
मौजूदा समय में राष्ट्रपति द्वारा नामित सदस्यों की सूची पर गौर करें तो भी साफ़ हो जाता है कि भले अधिकतर नामित सदस्य बीजेपी से सम्बन्ध और सरोकार रखते हैं लेकिन उनकी अपनी अपनी ख़ास पहचान भी है। रघुनाथ पात्रा और सोनल मान सिंह कला से जुड़े सदस्य हैं तो सदस्य राम सकल बीजेपी के होते हुए भी बेहतरीन सामाजिक कार्यकर्ता माने जाते हैं। राकेश सिन्हा साहित्य से जुड़े हैं तो रूपा गांगुली कलाकार रही हैं। सुरेश गोपी, सुब्रमण्यम स्वामी अब नामित सदस्य से निवृत हो गए हैं लेकिन ज्ञान और कला के क्षेत्र में उनकी ख्याति रही है। नरेंद्र जाधव और मैरीकॉम की उपलब्धि को कौन नहीं जनता !हालांकि ये सब सदस्यता से निवृत हो चुके हैं।
पिछले महीने उड़नपरी के नाम से मशहूर भारत की सर्वकालिक महान महिला एथलीट पीटी ऊषा राज्यसभा सांसद बनी। 58 वर्षीय पीटी ऊषा को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्यसभा सदस्य के रूप में मनोनीत किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व ओलंपिक ट्रैक एंड फील्ड एथलीट पीटी उषा को राज्यसभा के लिए मनोनीत होने पर बधाई देते हुए ट्वीट कर कहा था कि पीटी ऊषा जी हर भारतीय के लिए एक प्रेरणा हैं। खेलों में उनकी उपलब्धियों को सभी जानते हैं और उसकी सराहना करते हैं। लेकिन पिछले कई वर्षों से वो देश के नवोदित एथलीटों का मार्गदर्शन कर रही हैं उनका यह काम उतना ही सराहनीय है। उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किए जाने पर बधाई। क्या ऐसी उपलब्धियों के लिए प्रधानमंत्री मोदी खटाना को बधाई दे सकेंगे।
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस सरकार के दौरान नामित सदस्यों को लेकर खेल नहीं होते थे। पार्टी के प्रति वफादार लोगों को नामित सदस्य बनाने से कांग्रेस भी नहीं चूकती थी। लेकिन कांग्रेस सरकार में उन्ही लोगों को ही नामित सदस्य बनाया जाता था जिनका जीवन उपलब्धियों से भरा था। एक से बढ़कर एक विद्वान, कलाकार, वैज्ञानिक और समाजसेवी संसद की गरिमा बढ़ाते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं रहा। अब राज्य सभा में वही लोग नामित हो रहे हैं जिनकी व्यक्तिगत उपलब्धि हो या न हो, पार्टी के साथ जुड़ाव और पार्टी के समीकरण में अगर आप फिट बैठते हैं तो संसद पहुँच सकते हैं। मौजूदा दौर में खटाना को एक बानगी के रूप में आप देख सकते हैं।
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