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अब तारीख़ भी बता दी, अब तो दे दो वोट!

त्रिपुरा से शुरू हो गया, मंदिर-मंदिर का जाप। पूरे साल चुनावों में मंदिर के उद्घाटन की तारीख दिखाएंगे, बगुला भगत बनकर रामनाम का जाप करेंगे, वोटों की जितनी मछलियां फंस गयीं, उदरस्थ कर जाएंगे।
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कार्टून सतीश आचार्य के ट्विटर हैंडल से साभार।

कटाक्ष: अरे, अरे, अरे, ये तो गलत बात है। ऐसी-वैसी गलत बात नहीं, बहुत ही गलत बात। गलत बात भी क्या चोरी है साहब चोरी। बल्कि दिन दहाड़े डाका ही कहिए। बताइए, मोदी जी का राम मंदिर अभी बनकर तैयार भी नहीं हुआ है, पर अभी से उसके बनाने के श्रेय में बंटवारे की मांग करने वाले आ गए। कोई छत्तीसगढ़ कर के सूबा है, मार-तमाम जंगल ही जंगल; उसके सूबेदार को न जाने क्या सूझी पट्ठे ने घुमा-फिरा के हिस्सेदारी की मांग का दावा ठोक दिया है। कहता है कि अयोध्या में मंदिर बनवाने का मोदी जी का दावा ही झूठा है। मंदिर तो अदालत के आदेश से बन रहा है। उसकी बनाई कमेटी बनवा रही है। मंदिर बनाने का श्रेय किसी को देना ही है तो अदालत को दिया जाना चाहिए। और अदालत का फैसला, देश का फैसला मानना हो, तो मंदिर पूरा देश बनवा रहा है और देश में तो छत्तीसगढ़ भी आता है। अब क्या अयोध्या वाले मंदिर पर, इन जंगलवालों का भी दावा मानना पड़ेगा!

और यह तो तब है जबकि अमित शाह जी ने मंदिर के उद्घाटन की तारीख का एलान भर किया है--1 जनवरी 2024। यानी अभी तो उद्घाटन में भी, करीब-करीब एक साल पड़ा हुआ है। अब शाह जी ने उद्घाटन के लिए एक साल आगे की तारीख आखिर कुछ सोच-समझ कर ही तय की होगी? रामलला को तंबू में और साल भर वेट कोई इसलिए तो कराया नहीं जा रहा होगा कि मोदी जी उद्घाटन के लिए टाइम ही नहीं निकाल पा रहे हैं। यह तो सही है कि जिन मोदी जी के प्रधान सेवक रहते हुए, कोई नई रेलगाड़ी तक, भले ही गाड़ी पुरानी ही हो और उसका रंग-रोगन ही नया हो, किसी और के हरी झंडी दिखाने से चलने के लिए तैयार नहीं होती है, उनके होते हुए राम मंदिर किसी और के चलाए कैसे चालू हो जाएगा। पर मोदी जी एक दिन में काम के घंटे अठारह से बढ़ाकर बीस करने के बाद भी, रामलला के लिए साल भर में चार घंटे का भी टैम नहीं निकाल पाएं, यह तो मानने वाली बात नहीं है। मोदी जी की रामभक्ति को कोई हल्के में नहीं ले।

जरूर मंदिर के बनने में ही डिले हो रहा होगा। मोदी जी के प्रधानमंत्री अवतार से पहले के सत्तर साल में इस देश में अटकाने, लटकाने, भटकाने का जो कल्चर चल पड़ा है, उससे अमृतकाल वाले इंडिया को आजादी दिलाने के लिए, लगाता है कि मोदी जी को नोटबंदी टाइप की एक और सर्जिकल स्ट्राइक करनी पड़ेगी--सरकारबंदी। न रहेगा बांस, न बजे की बांसुरी। जब सरकार कुछ करेगी ही नहीं, जो करेंगे सो अडानी भाई, अंबानी भाई वगैरह करेंगे, तो अटकाने, भटकाने, लटकाने का सवाल ही नहीं उठेगा। पर उसका लाभ तो अमृत काल के आने वाले सालों में मिलेगा। पर अमित शाह ने भी कह दिया तो कह दिया--रामलला को बस अगली सर्दी तक ही तंबू में वेट करना पड़ेगा। बल्कि सिर्फ 2023 की आखिरी तारीख तक। नए साल का कैलेंडर बदला नहीं, कि रामलला का टेंटवास मिटा नहीं।

पर विरोधियों को तो विरोध करने से मतलब। अमित शाह जी और उनके भगवा परिवार वाले जब तक तरीख नहीं बता रहे थे और मंदिर वहीं बनाएंगे ही बता रहे थे, तब तक विरोधी उन पर इल्जाम लगा रहे थे कि ये तरीख नहीं बताएंगे! समझ लीजिए, ये हिमाकत तो तब थी जबकि इन्होंने तीस साल पहले ही जो कहा, सो कर के भी दिखा दिया था--चार सौ साल पुरानी मस्जिद को, मंदिर वहीं बनाने के लिए गिरा दिया था। और अब, जबकि अमित शाह ने पूर्वोत्तर में नये साल का अपना चुनावी दौरा शुुरू करते हुए, त्रिपुरा में 1 जनवरी 2024 की तारीख बता दी, तो पट्ठे इसकी अटकलें लगाने लगे कि इसी समय तारीख क्यों बता रहे हैं? कहते हैं, यह सब चुनाव के लिए ही हो रहा है। 2023 के साल में तो चुनाव ही चुनाव हैं। सब ठीक-ठाक रहा तो ज्यादा नहीं तो आठ-नौ राज्यों में तो चुनाव होने ही हैं। पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में साल के शुरू में ही चुनाव होने हैं। सो त्रिपुरा से शुरू हो गया, मंदिर-मंदिर का जाप। पूरे साल चुनावों में मंदिर के उद्घाटन की तारीख दिखाएंगे, बगुला भगत बनकर रामनाम का जाप करेंगे, वोटों की जितनी मछलियां फंस गयीं, उदरस्थ कर जाएंगे।

और तो और कर्नाटक के भगवा पार्टी के अध्यक्ष के एक भाषण को, विरोधी खुद उसकी पार्टी वालों से भी ज्यादा ध्यान से सुन और सुना रहे हैं। लेकिन, उस बिचारे ने तो अपनी पार्टी वालों को सिर्फ जगाया है कि नाली, सडक़, पानी वगैरह जैसी मामूली चीजों में पब्लिक का ध्यान बेकार न भटकने दें। बेकारी, महंगाई वगैरह की तरफ से पब्लिक का ध्यान हटाएं और हिंदुओं को अयोध्या मंदिर पर ही ध्यान एकाग्र करने की साधना सिखाएं। पब्लिक को असली चीज की फिक्र करना सिखाएं--जैसे अयोध्या में गगनचुम्बी मंदिर। पेट तो जानवर भी भर ही लेते हैं। (जानवर की इस संज्ञा में गोमाता शामिल नहीं है, यह दूसरी बात है कि वह भी अन्य आवारा जानवरों की तरह मजबूरी में बहुत बार पॉलिथीन आदि से अपना पेट भर ही लेती है।) अब बताइए, सिर्फ इसलिए कि इस साल यहां भी चुनाव होने हैं, क्या भगवा पार्टी पब्लिक को जानवर बनने से बचाना और मानवता के उच्च आदर्शों का पाठ पढ़ाना भी छोड़ दे!

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और मान लीजिए कि वाकई अमित शाह ने 1 जनवरी 2024 की तारीख, चुनाव के लिए ही बतायी है, तब अगले साल की पहली जनवरी की तारीख ही क्यों? आठ-नौ राज्यों के चुनाव तो 2023 में ही हो जाने हैं। राम मंदिर को दुहना ही होता तो, इसी साल में क्यों नहीं? मंदिर भी दुह लिया जाता और रामलला को भी जल्दी गर्मी-बारिश-सर्दी की परेशानियों से छुटकारा मिल जाता। पर साहब, होने को तो इनके पास इसका भी जवाब है। कहते हैं कि अगली पहली जनवरी इसलिए कि अगले साल के शुरू में, संसद वाले चुनाव होने हैं। पहली जनवरी को मोदी जी मंदिर का घंटा बजाएंगे और सीधे वहीं से प्रचार यात्रा पर निकल जाएंगे--मैंने राम मंदिर बनाया, वोट मुझी को देना! पर हम पूछते हैं कि पहली जनवरी से पहले क्यों नहीं? बनने के एक साल पहले राम मंदिर वोट दिला सकता है, तो क्या एक साल बाद वोट नहीं दिला सकता है? फिर शाह जी-मोदी जी भी कौन से सिर्फ एक अयोध्या के मंदिर के ही आसरे हैं। आगे बनवाने के लिए मथुरा, बनारस के मस्जिद वाले मंदिर भी तो हैं। फिर ईदगाह वाले, गिरजा वाले मंदिर। फिर कुछ और। राम मंदिर मैं हिस्सा मांगनेवाले उनमें किस मुंह से हिस्सा मांगेंगे!

अब कोई कुछ भी कहे, अमित शाह की बात पत्थर की लकीर है--मोदी जी 1 जनवरी 2024 को रामलला के मंदिर का घंटा बजाएंगे! कोई रोक सकता है तो रोक ले, उन्हें राममंदिर का घंटा बजाते हुए पीएम की तस्वीर पर वोट लेने से! किसी आयोग-वायोग की बात तो सोचना भी मत।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)

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