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रिलायंस जियो : वॉइस कॉल पर 6 पैसे प्रति मिनट मांगने का मतलब?

रिलायंस जियो ने घोषणा की कि जियो से दूसरे नेटवक पर कॉल करने पर आउटगोइंग वॉइस कॉल पर वह 6 पैसा प्रति मिनट चार्ज करेगी। आखिर ऐसा क्यों हुआ? इसका मतलब क्या है?
reliance jio
Image courtesy:Pragativadi

रिलायंस जियो अपने वादे से मुकर चुकी है। वादा यह था कि रिलायंस जियो से दूसरे नेटवर्क पर आउट गोइंग कॉल आजीवन फ्री होगी। लेकिन पिछले हफ्ते रिलायंस जियो ने यह घोषणा की कि जियो से दूसरे नेटवक पर कॉल करने पर आउटगोइंग वॉइस कॉल पर वह 6 पैसा प्रति मिनट चार्ज करेगी।

आखिर ऐसा क्यों हुआ? इसका मतलब क्या है? इस पर बात करने से पहले बहुत संक्षिप्त में टेलीकॉम बाजार के इतिहास को समझ लेते हैं।

दस साल पहले टेलीकॉम सेक्टर में 16 टेलीकॉम ऑपरेटर हुआ करते थे। उसके बाद टेलीकॉम बाजार फायदे और नुकसान को देखकर इकठ्ठा होने लगा। टेलीकॉम ऑपरेटरों ने एक-दूसरे के साथ मर्जर करना शुरू कर दिया। और बहुत सारे टेलीकॉम ऑपेरटरों का दिवालिया निकल गया। जैसे कि हच को वोडाफोन ग्रुप ने खरीद लिया। एयरसेल का दिवालिया निकल गया। दूसरे मोबाइल ऑपेरटरों का भी यही हाल रहा। या तो उनका मर्जर हो गया या उनका दिवाला निकल गया।

टेलीकॉम बाजार के साथ ऐसा क्यों हुआ? इसके बहुत सारे कारण हैं लेकिन मोटे तौर पर समझा जाए तो कुछ कारण उभर कर सामने आते हैं। जैसे कि एक टेलीकॉम ऑपरेटर को अपना कारोबार चलाने के लिए तीन तरह की परेशानियों से जूझना पड़ता है। पहला देश भर में अपना नेटवर्क फ़ैलाने के लिए हर जगह टावर लगाने के खर्च से जुड़ी परेशानी, नेटवर्क के लिए महंगे स्पेक्ट्रम खरीदने से जुड़ी परेशानी और मोबाइल फोन की कीमत से कम मासिक आमदनी वाले भारतीय लोगों के बीच अपना ग्राहक जुटाने से जुड़ी जिम्मेदारी।

इन परेशानियों से जूझने के लिए जरूरी है कि मोटा पैसा हो, पैसे के साथ राजनीतिक रसूख हो और लम्बे समय नुकसान झेलते हुए बाजार में बने रहने का इरादा हो। जिन ऑपरटरों के पास इनकी कमी थी तो वह टूट गए।

रिलायंस जियो के पास यह सबकुछ था। साल 2016 में रिलायंस जियो ने भारत के टेलीकॉम बाजार में प्रवेश किया। भारत के सबसे धनिक व्यक्ति मुकेश अंबानी के इरादे शुरू से ही पूरे बाजार पर अपना पकड़ बनाने वाले थे। जैसे कि रिलायंस यूजर को सब सेवाएं मुफ्त में दिए जाने का वायदा किया गया। डाटा मुफ्त करने की सेवाएं, आउटगोइंग कॉल की मुफ्त सेवाएं। मुफ्त सेवाओं की ऐसी कम्पनी के पीछे लोग बाढ़ की तरह आए। जियो सिम खरीदने के लिए लोगों की लाइन लगने लगी। पहले से इस्तेमाल में आने वाली टेलीकॉम ऑपरटरों को छोड़कर लोग रिलायंस जियों की सेवा के ग्राहक बनने लगे।

बेतहाशा पैसे के दम पर पूरे बाजार को अपने तरफ कर लेना ही बाजार के नियमों में भ्रष्टाचार करने की तरह होता है। इसलिए यह समझना जरूरी है कि टेलीकॉम सेक्टर को रेगुलेट करने वाले टेलीकॉम रेगुलेशन अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया ने रिलायंस जियो के साथ कैसी भूमिका निभाई।

रिलायंस जियो का टेलीकॉम सेक्टर में शुरूआत ही बहुत अधिक विवादों भरा रहा है। साल 2010 में टेलीकॉम सेक्टर में वोडाफोन और एयरटेल 2G स्पेक्ट्रम की नीलामी में फंसे हुए थे और लड़ रहे थे। इसी समय एक कम्पनी इंफोटेल लिमिटेड आती है और अपनी हैसियत से 5000 गुना से अधिक की बोली लगाकर देशभर में ब्रॉडबैंड सेवाओं यानी इंटरनेट सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम खरीद लेती है। एक दिन के बाद इस कम्पनी को रिलायंस ने खरीद लिया। इसलिए कहा जाता है कि इस कम्पनी ने रिलायंस की तरफ से बोली लगाई थी।

स्पेक्ट्रम लाइसेंस मुहैया कराने के नियमों के तहत इंफोटेल को केवल इंटरनेट सेवाएं मुहैया कराने के लिए लाइसेंस दिया गया था। लेकिन रिलायंस में शामिल हो जाने के तीन साल बाद सरकार ने जियो नाम से चल रही रिलायंस के इस फर्म को इंटरनेट सेवाओं के साथ सभी तरह के सेल्युलर सेवाओं के लाइसेंस दे दिया।

कम्पट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया ने टेलीकॉम सेक्टर को सलाह दी कि रिलायंस जियो का लाइसेंस रद्द कर दिया जाए। रिलायंस ने हेराफेरी कर स्पेक्ट्रम लिया है। इससे उसे तकरीबन 22 हजार करोड़ का फायदा हुआ है। इस बात को रिलायंस ने खारिज कर दिया। सरकार में मौजूद लोगों ने ख़ारिज कर दिया लेकिन सबसे जरूरी बात है कि टेलीकॉम रेगुलेटरी ऑथोरिटी ने भी इसे नकार दिया। यानी जिस संस्था को इसे रेगुलेट करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी, उसने भी इस पर ध्यान नहीं दिया।

रिलायंस जियो की शुरुआत के समय रिलायंस के पास जीरो नहीं बल्कि 20 लाख ग्राहक थे। रिलायंस ने शुरुआत से पहले अपने सेवाओं की टेस्टिंग के लिए अपने सेवाओं को जनता के बीच जारी कर दिया था। नियमों के तहत इस टेस्टिंग की इजाजत केवल 90 दिनों की होती है लेकिन रिलायंस जियो ने 200 दिनों से अधिक दिनों तक टेस्टिंग की। लेकिन इस पर की गयी शिकायत को रिलायंस ने स्वीकार करने से मना कर दिया और टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ने भी इस पर कोई कार्रवाई नहीं की।

आगे बढ़ने से पहले पॉइंट ऑफ़ इंटरकनेक्ट के बारे में समझ लेते हैं। जब एक टेलीकॉम ऑपरेटर से दूसरे टेलीकॉम ऑपरेटर पर कॉल कर बात करने के लिए दोनों नेटवर्क को आपस में जोड़ना पड़ता है। इसे ही पॉइंट ऑफ़ इंटरकनेक्ट कहा जाता है। जैसे कि एयरटेल को वोडफोन से जोड़ना ताकि इन दोनों के उपभोक्ता एक-दूसरे से बात कर पाए।

नियमों के तहत दो नेटवर्कों को आपस में जोड़ने पर कॉल ड्राप 0.5 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता है। लेकिन रिलायंस जियो के उपभोक्ताओं का दूसरे नेटवर्क पर किये जाना वाले कॉल पर कॉल ड्राप टेस्टिंग के समय ही तकरीबन 50- 80 फीसदी गया। जब रिलायंस ने शिकायत की तो दूसरी कंपनियों ने कहा कि जियो टेस्टिंग नहीं बल्कि कमर्शियल काम कर रही है। इसलिए कॉल ड्राप नियम से तो अधिक ही होगा। लेकिन ट्राई ने दूसरों टेलिकॉम ऑपरेटरों को नहीं सुना और उनपर तक़रीबन 3 हजार करोड़ रूपये का जुर्माना लगा दिया।

पॉइंट ऑफ़ इंटरकनेक्ट का एक दूसरा पहलू भी है। जब एक नेटवर्क से दूसरे नेटवर्क पर कॉल किया जाता है, तो जिस नेटवर्क से कॉल किया जाता है उसे दूसरे नेटवर्क को प्रति मिनट कॉल की दर से भुगतान करना पड़ता है। इस दर को ट्राई तय करता है। इसे इंटरकनेक्ट यूसेज चार्ज कहा जाता है। सैद्धांतिक तौर पर यह सही तरीका है क्योंकि दूसरे नेटवर्क को भी कॉल करने वाले नेटवर्क की पहुँच तक अपनी सुविधाएँ पहुंचानी पड़ती है। इसका खर्चा भी आता है। इस खर्चे की भरपाई कॉल करने वाला नेटवर्क करे यह सही है। रिलायंस जियो के आने से पहले इस पर कभी कोई विवाद  नहीं हुआ। लेकिन जियो की मुफ्त सेवाओं से जियो से की जाने वाली आउटगोइंग कॉल की संख्या बहुत बढ़ गयी। लोग दूसरे नेटवर्क पर मिस्ड कॉल करके बात करने लगे।

ट्राई के आंकड़ों के मुताबिक रिलायंस के आने से पहले वोडाफोन और एयरटेल के कुल कॉल मिनट में 60 फीसदी कॉल इनकमिंग होते थे और 40 फीसदी कॉल आउटगोइंग हुआ करते थे। लेकिन रिलायंस के आने के बाद यह पूरी तरह बदल गया। रिलायंस जियो में अप्रैल 2017 तकरीबन 10 फीसदी इनकमिंग कॉल होते थे और 80 फीसदी से अधिक आउटगोइंग कॉल होते थे। जून 2019 में यह आंकड़ा कुछ कम होकर 25 फीसदी और 75 फीसदी तक पहुँच गया। यह भी इसलिए क्योंकि दूसरे टेलीकॉम ऑपरेटरों ने अपने कॉल दर सस्ते कर दिए।

अब आउटगोइंग कॉलों की संख्या की बढ़ोतरी होने पर वोडाफोन और एयरटेल की खूब अच्छी खासी कमाई हुई। क्योंकि रिलायंस जियों को दूसरे नेटवर्क को भुगतान करना पड़ता था। ट्राई के आंकड़ों के मुताबिक पिछले तीन सालों में रिलायंस जियो ने एयरटेल और वोडाफोन को तकरीबन 13500 करोड़ रूपये का भुगतान किया। साल 2017 तक इंटरकनेक्ट यूसेज चार्ज की दर ट्राई 14 पैसे प्रति मिनट लेती थी। लेकिन 2017 में ट्राई ने इस दर को 6 पैसे तय कर दिया था। और ट्राई ने इस तरफ भी इशारा किया कि वह आने वाले समय में इंटरकनेक्ट यूसेज चार्ज लेना बंद कर देगी। इस पर एयरटेल और वोडाफोन ने विरोध जाहिर किया।

विरोध जाहिर करने की वजहें साफ़ थी कि पहले से ही जियो से जूझते हुए एयरटेल और वोडाफोन की स्थिति बहुत खराब हो चुकी हैं। ऐसे में अगर उनसे इंटरकनेक्ट यूसेज चार्ज से होने वाली कमाई भी छिन जायेगी तो उनका पूरा कारोबार ढह जाएगा। इसलिए ट्राई की तरफ से एक सलाह पत्र जारी किया गया कि क्या इंटरकनेक्ट यूसेज चार्ज को खत्म करने की योजना साल 2020 के बाद बनाई जा सकती है। इसपर रिलायंस का जवाब कुछ ऐसा था अगर आप अपने वायदे को आगे बढ़ा रहे हैं तो हम अपने ग्राहकों से आउटगोइंग कॉल पर चार्ज करना शुरू कर देते हैं।
 
कुल मिलाजुलाकर टेलीकॉम सेक्टर की स्थिति यह है कि दस साल पहले मौजूद 16 कपंनिया घटकर अब 4 पर आ गयी हैं। बीएसनएल डूबने के कागार पर है।  वोडाफोन और आइडिया का पहले ही मर्जर हो चुका था, अब आइडिया और एयरटेल  भी आपस में मिलने जा रहे हैं। ऐसे में टेलीकॉम सेक्टर में केवल दो ही कंपनियां बचेंगी। उसमें भी अभी हाल फिलहाल जियो का टेलिकॉम बाजार और कमाई सबसे बड़ा हो चुकी है। यानी टेलीकॉम सेक्टर में दो खिलाडी बचे हैं।

जब भारत जैसे देश में टेलीकॉम सेक्टर में दो कंपनियां बच जाएंगी तो जैसा वह चाहेंगी वैसा ही होगा न कि वैसा जैसा सरकार चाहेगी। अगर यह कहेंगे कि टैक्स कम किया जाए तो सरकार इनका टैक्स कम कर देगी। अगर ये कहेंगे कि सस्ती सेवाओं के लिए सब्सिडी दी जाए तो सब्सिडी मिल जाएगी। सरकार इनकी बात मानने के लिए मजबूर होगी। स्पेक्ट्रम की नीलामी भी वैसे ही होगी जैसा ये कहेंगे। मतलब ये कि सरकार का नियंत्रण घटता जाएगा और टेलीकॉम बाजार में इन कंपनियों का एकाधिकार हो जाएगा। 

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