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"ग़रीबी हटाओ- ग़रीबी छुपाओ?" जी-20 बैठक के बीच बनारस की झोपड़ियों को ढंकने पर उठे गंभीर सवाल

"भारत के अंदर जिस तरह से घृणा की राजनीति की जा रही है वह वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा के ख़िलाफ़ है। यूक्रेन और रूस की लड़ाई को रोक पाने में जी-20 के देश कोई गंभीर पहल करते नज़र नहीं आ रहे हैं। यह सम्मेलन तो सिर्फ़ कास्टमेटिक सम्मेलन बनकर रह गया है।"
G-20

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में जी-20 समिट को लेकर शहर के कई इलाकों में जर्रे-जर्रे को सजाया-संवारा गया है। 19 अप्रैल, जी-20 की बैठकों का आखिरी दिन है और प्रशासनिक अमला इस कोशिश में जुटा है कि दुनिया भर से आने वाले मेहमानों को आनंद की अनुभूति कराई जा सके। जी-20 समिट में शामिल हो वाले मेहमानों की जमकर खातिरदारी चल रही है। मेहमानों को जिन रास्तों से गुजरना है उन इलाकों को खूबसूरत बनाने के लिए गजब की कास्टमेटिक सर्जरी की गई है। सर्किट हाउस, गोलघर कचहरी, वरुणापुल से लगायत राजघाट तक के इलाके में जबर्दस्त रंग-रोगन  और सजावट की गई है। ऊबड़-खाबड़ सड़कों के दिन बहुर गए हैं। पुलों के बदरंग पिलर और डिवाइडर चमचमा उठे हैं। नगर निगम के कर्मचारी सड़कों पर तैनात हैं।

भदऊ चुंगी के पास यहां था कूड़े का ढेर, पर अब वहां जी 20 की सजावट

बनारस के स्लम इलाकों में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाली एक बड़ी आबादी अब यह सवाल उठा रहा है कि अचनाक हो रही सफाई उनके इलाकों में रोज-रोज क्यों नहीं होती हैतस्वीरों के जरिये देखा जा सकता है कि बनारस शहर को किस तरह से खूबसूरत बनाने की कोशिश की गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ का निर्देश आया है कि बनारस को खूबसूरत बनाया जाए। इसके चलते पुलों और पेंड़ों तक को पेंट कर दिया गया है। झुग्गी झोपड़ियों को हरे पर्दे और जी-20 बोर्ड से ढंकने की कोशिश की गई है। जगह-जगह फसाड लाइटें, पुलों और सार्वजनिक इमारतों की दीवारों पर पेंटिंग और पर्दे लगाए गए हैं, जो चर्चा में हैं। वो इलाके सर्वाधिक चर्चा में हैं जहां झुग्गी-झोपड़ियां हुआ करती थीं। जी-20 के बोर्ड और हरे पर्दों के पीछे से भूखे-नंगे बिलबिलाते बच्चों के रोने की आवाजें अभी भी सुनाई देती हैं। दीगर बात है कि पर्दों के पीछे सड़कों के किनारे जीवन गुजर-बसर करने वालों की झोपड़ियों को पूरी तरह से छिपा दिया गया है। बनारस का दो-तिहाई इलाका स्लम और झोपड़ियों वाला है। चाहे वह बजबजाता बजरजीहा हो या फिर कोनिया-सरैया। इन इलाकों में रहने वाले लोग सवाल पूछ रहे हैं कि जब नेता उनके पास आते हैं तो वादा करते हैं कि गरीबी हटाएंगे, लेकिन अब तो गरीबी छिपाने की कोशिश हो रही है। आखिर बनारस के सुंदरीकरण में हम इन हरे पर्दों के पीछे क्यों बसे हुए हैं?

सरकार क्यों छिपाना चाहती है गरीबी?

गंदगी छिपाने की कवायद/ बनारस शहर में झुग्गियों को नीले पर्दों से यूं ढंक दिया गया है।

न्यूजक्लिक ने शहर के कई इलाकों का दौरा किया। झोपड़ियों में रहने वाले लोग बस एक ही सवाल उठा रहे हैं कि क्या हरे रंग के पर्दों के पीछे सच्चाई छिपाने की कोशिश हो रही है। शहर में जी-20 बैठकें चल रही हैं। मेहमानों के आवभगत के बीच राजघाट, चौकाघाट, नदेसर, कचहरी से लगायत सारनाथ तक जहां-जहां नजर उठाकर देखेंगे हरे पर्दों अथवा जी-20 के बोर्ड से बदहाली और बजबजाती वरुणा से उठते सड़ांध को ढंकने की कोशिश की गई है। यहां रहने वाले लोग यह भी पूछ रहे हैं कि शहर में इतनी सफाई कभी पहले क्यों नहीं हुई? बनारस की सरकार विदेशी मेहमानों को शहर की गंदगी के साथ यहां रहने वालों की गरीबी आखिर क्यों छिपाना चाहती है?

राजघाट की 26 वर्षीय गुड़िया ऐसे इलाके में रहती हैं, जहां बजबजाती नालियों में गंदा पानी हर समय बहता रहता है। वहां अपरंपार गंदगी भी है। वह कहती हैं, "सरकार कहती है कि जहां झुग्गी-वहीं निर्माण, लेकिन बनारस में स्थिति यह हो गई है कि जहां झुग्गी वहीं बुल्डोजर। बनारस को देखेंगे तो हर जगह जी-20 के बैनर-पोस्टर दिख जाएंगे। विदेशी मेहमान आ रहे हैं तो उसके लिए सफाई जरूरी है। इन्हें न तो गरीबी दिखानी है, न गरीबों को दिखना है। औरतें, बच्चे, बूढ़े सब परेशान है। रोजी-रोटी के लाले पड़े हैं। दो वक्त का अन्न जुटाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है और वो चाहते हैं कि गरीब दिखें ही नहीं। हमारी झुग्गी-झोपड़ियां भी उन्हें न दिखें।"

जी 20 पर सवाल उठातीं राजघाट की गुड़िया

बनारस के नए कलेवर और चमक-दमक से हैरान रिजवाना कहती हैं"मेरी शादी के दस साल गुजर गए हैं। सड़कों के किनारे इतनी सफाई तो पहले कभी नहीं दिखी। अब से पहले भाजपा के लोग सिर्फ वोट लेने आते थे। अबकी हमारे इलाके में बंपर साफ-सफाई हुई। फिर रातो-रात हरे पर्दे लगा दिए गए। जहां उजाड़ खंड था, जहां गंदगी थी, जहां कूड़े के ढेर हुआ करते थे, वहां अब हर-भरे लान बन गए हैं। जी-20 की सजावट की गई है। कृत्रिम ऊंट, घोड़े, हाथी, मोर, तितली तक खड़े कर दिए गए हैं।” 

अचरज में है हर कोई

राजघाट के समीप रहने वाले अजय गोंड जी-20 की चमक-दमक से अचरज में हैं। इनकी रातों की नींद उड़ गई है, क्योंकि वह स्लम एरिया की उस किला कोहना बस्ती में रहते हैं जिसे उजाड़ने के लिए उत्तर रेलवे ने नोटिस जारी की है। अजय कहते हैं, "अगर हमें उजाड़ा गया तो हमारी दुनिया ही उजड़ जाएगी। नोटिस मिल रहे हैं। हम परेशान हैं। हम सालों से पानी-बिजली के अलावा हाउस टैक्स भी दे रहे हैं। आधार कार्ड, राशन कार्ड सब कुछ है हमारे पास। जी-20 के चक्कर में सरकार गरीबों को उजाड़ रही है। बाहर से आने वालों को चकाचक दिखाने के लिए हमें हटाया जा रहा है। हम तो नमक रोटी खाकर गुजारा कर रहे हैं। मैं सरकार से अपील करता हूं कि वो हमें न उजाड़ें। आखिर हम कहां जाएंगे चुनाव के समय सत्तारूढ़ दल के नेता आते हैं और वोट लेने के बाद लापता हो जाते हैं। जब तक हमें मकान नहीं देंगे, हम हिलेंगे नहीं, क्योंकि बच्चों की पढ़ाई-लिखाई बर्बाद हो जाएगी। हमारे पास कोई नौकरी, कोई काम नहीं। हमारे लिए डबल इंजन की सरकार कुछ सोचती ही नहीं है। वो कभी-कभी राशन दे देती है। क्या उससे पेट भर जाएगा। हमारा तो जीना दूभर हो गया है। हमें मार ही दिया जाए तो अच्छा होगा।"

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं"मौजूदा व्यवस्था में झोपड़ियों की तादाद बढ़ रही है। आम आदमी की माली हालत जब खराब हो रही है तो ऐसे हालात पैदा होंगे ही। झोपड़ियां न बढ़े, इसके लिए सरकार के पास न कोई नीति है, न नीयत है। ऐसे में झोपड़ियों को छिपाने की हर संभव कोशिश जारी है। दुनिया के इंडेक्स में गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी में भारत लगातार पिछड़ता जा रहा है। हालात को सुधारने के बजाय उस पर पर्दा डालाने की कोशिश की जा रही है। वो गरीबी के बजाय गरीबों को ही मिटा देना चाहते हैं। जी-20 के मेहमानों को आप सब कुछ सुंदर दिखाना चाहते हैं। गौर करने की बात यह है कि आखिर देश के किस शहर में झुग्गी-झोपड़ियां नहीं हैंसिर्फ पैबंद लगाकर झूठी शान बघारने से सच्चाई नहीं छुप सकती है। जिन देशों के प्रतिनिधि आए हैं वो पढ़े-लिखे हैं और दुनिया के हालात से वाकिफ हैं। आप उन्हें अपने विकास की गाथा सुनाकर भ्रमित नहीं कर सकते हैं। यह अलग बात है कि मेहमान बनकर आया व्यक्ति शिष्टाचार के नाते मेजबान की तारीफ जरूर कर देता है, लेकिन इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि वो आपके विकास माडल और क्षमता से प्रभावित है।"

"जी-20 की बैठक में कृषि, स्वास्थ्य, अनुसंधान पर चर्चा तो हो रही है, लेकिन धरातल पर जो सच्चाई कुछ और है। हमें अपने मुंह मिया मिट्ठू बनने की आदत छोड़ देनी चाहिए। हमारी यही आदत हालात को सुधारने के बजाय हालात को छिपाने की ओर प्रेरित करती हैं। जी-20 के आयोजन पर बनारस में जितनी धनराशि खर्च की गई उससे हजारों झोपड़ियों को पक्के मकान की शक्ल दी जा सकती थी, लेकिन ऐसा करने की जगह हमने झोपड़ियों को ही रौंद दिया। पटरियों पर रेहड़ी और ठेला लगाने वालों के धंधों को भी पूरी तरह से बंद कर दिया है। बनारस के नागरिक अपने ही शहर में बेगाने नजर आने लगे हैं। सच यह है कि यह आयोजन सिर्फ सियासी मकसद साधने का एक जरिया बना दिया गया है। यह मुद्दों पर विमर्श व मंथन से ज्यादा इवेंट और तमाशा बनकर रह गया है।"

समाजवादी चिंतक रामधीरज

जाने-माने गांधीवादी नेता एवं सर्व धर्म संघ के संचालक रामधीरज कहते हैं"जी-20 का स्वागत है और शहर के सुंदरीकरण का भी स्वागत है, लेकिन जिस तरह से धन खर्च किया गया उसमें पारदर्शिता नहीं है। बनारस में बड़ी तादाद में लोग झुग्गी-झोपड़ियों में रह रहे हैं। आप छुपाने की बात कर रहे हैं, लेकिन साफ-सफाई और सुंदरीकरण सिर्फ उन्हीं इलाकों में किया जा रहा, जहां डेलीगेट जाने वाले हैं। आप पूरे बनारस में वैसी ही साफ-सफाई कराइए नाशायद वो चाहते हैं कि गरीब उनके साथ न रहें। वो गरीबी के बजाय गरीबों को ही मिटा देना चाहते हैं। दलित, महिलाएं, मुसलमान, आदिवासी सम्मान के साथ जिंदगी जिएं, उन्हें यह पसंद नहीं हैं। बीजेपी के मसीहा गोड़से और सावरकर हैं, जिन्होंने देश को आजाद कराने में कोई योगदान दिया ही नहीं। बीजेपी के नेता पुराना इतिहास मिटाकर अपना नया इतिहास लिखना चाहते हैं।"

रामधीरज यह भी कहते हैं"महात्मा गांधी के विचारों को दुनिया भर में पहुंचाने के लिए बनारस में सर्व धर्म संघ की स्थापना की गई थी। वाराणसी जिला प्रशासन ने हमारी चार एकड़ जमीन जबरिया घेर ली है और बाकी जमीनों पर भी उनकी नजर गड़ी हुई है। जी-20 की आड़ में सर्व सेवा संघ की जमीनें कब्जाने की कोशिशें शुरू हो गई है। वो हमारे आरटीआई तक का जवाब नहीं दे रहे हैं। हमारी अर्जियों को कूड़े में फेंक देते हैं। कोई जवाब देना मुनासिब नहीं समझते। मौजूदा हुक्मरान यह भूल गए हैं कि सर्व सेवा संघ पुरातन धरोहर है। ऐसी जीवंत धरोहर जहां समाजवादी चिंतक जयप्रकाश नारायण, विनोवा भावे, सोमाकर, शंकर राव देव, सुंदरलाल बहुगुणा, आचार्य राममूर्ति, निर्मलादेश पांडेय, रामेंद्र उपाध्याय, राधा कृष्ण बजाज, आजादी के पुरोधा रहे कृष्ण राज मेहता, विमला ठकार, नारायण देशाई जैसी हस्तियों ने इस संस्था को सींचा है और खाद-पानी दिया है। यह संस्थान आज भी गांधी के विचारों को पुस्तकों का रूप देकर दुनिया भर में प्रचार-प्रसार कर रहा है। यहां कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण भी दिया जाता है। हम समाज को बदलने का काम करते हैं और वो ढकोसले में भरोसा करते हैं।"

कमल पर बवाल

जी 20 के इसी लोगो पर खड़ा हुआ विवाद

बनारस शहर के हर इलाके में जी-20 का लोगो लगाया गया है उसमें जो कमल लगा है उस पर विपक्षी दलों ने तीखे आरोप लागाए हैं। जी-20 के भारत की अध्यक्षता के लिए लोगोथीम और वेबसाइट का अनावरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2022 को किया था। भारत की अध्यक्षता के लोगो में कमल के साथ जी-20 लिखा गया हैसाथ ही इसकी थीम 'वसुधैव कुटुम्बकम-वन अर्थवन फैमिली और वन फ्यूचररखी गई हैजो भारत के दुनिया के लिए प्राथमिकताओं वाले संदेश को दर्शाता है। जी-20 लोगो का अनावरण करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था"यह केवल एक प्रतीक चिह्न नहीं है। ये एक संदेश है। ये एक भावना हैजो हमारी रगों में है। ये एक संकल्प हैजो हमारी सोच में शामिल रहा है।" हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने उसी समय ट्विट कर पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा था कि बीजेपी का निशान अब जी-20 का आधिकारिक लोगो बन गया है।

बनारस में चल रहे जी-20 सम्मेलन पर कांग्रेस ने एक बार फिर हमला बोला है। पार्टी के प्रांतीय अध्यक्ष अजय राय कहते हैं"मुझे लगता है कि गिनीज बुक में ऐसा रिकार्ड बनाना होता कि पार्टी की ब्रांडिंग की कीजिए, सरकार का दुरुपयोग कीजिए, मार्केटिंग कीजिए तो बीजेपी अव्वल आती। सरकार और देश में बहुत फर्क होता है। जी-20 के जरिये बीजेपी आगामी दिनों में अपने सिंबल को प्रमोट करेगी। मोदी जी एक दिन भी छुट्टी नहीं लेते, सारा दिन बीजेपी का प्रचार करते रहते हैं। हर दिन अपने सिंबल को प्रमोट करते रहते हैं। कमल हमारा राष्ट्रीय फूल है और चुनाव आयोग ने इसे एक राजनीतिक दल के राजनीतिक प्रतीक के रूप में दिया है। वे कमल की जगह कुछ और या राष्ट्रीय प्रतीक जैसे बाघमोर का इस्तेमाल कर सकते थे। मेरा मानना है कि देश, पार्टियों से ऊपर है। बीजेपी का नैरेटिव रहा है कि वो बहुत चालाकी से शटल मैसेजिंग कर देती है। चुपके से अपनी राजनीति को चिह्नों के जरिये घुसा देती है।"

"हमारे वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने लोगो के लोकार्पण से पहले कहा था कि 70 साल पहले नेहरू ने कांग्रेस के झंडे को भारत का झंडा बनाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। अब बीजेपी का चुनाव चिह्न भारत का आधिकारिक लोगो बन गया है। हम अब तक जानते हैं कि मोदी और बीजेपी खुद के प्रचार का कोई अवसर नहीं खोएंगे। इनकी मनमानी के खिलाफ हम चुनाव आयोग को लिखेंगे। यूपी में निकाय चुनाव चल रहा है और ऐसे में कमल चिह्न का प्रचार किया जाना कहां तक उचित है? बीजेपी को सोचना चाहिए कि बनारसियों के लिए देश हित सर्वोपरि है, पार्टी की ब्रांडिंग नहीं। यह बात भी गौर करने की है कि जी-20 से पहले शहर के सभी भिखारी लापता हो गए। उन्हें न जाने कहां छिपा दिया गया है। यह भी संभव है कि बनारस से खदेड़े जाने के बाद पेट पालने के लिए वो दूसरे शहरों में चले गए गए होंगे।"

 कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय राय ने बीजेपी के खिलाफ कई और भी गंभीर सवाल उठाते हैं। वह कहते हैं"बीजेपी का सिंबल कमल है। क्या बीजेपी हिन्दुस्तान से बड़ी हो गई है। कैपेनिंग की कोई सीमा होनी चाहिए। उन्हें हर चीज में मार्केटिंग और ब्रांडिंग करने की आदत हो गई है। इन्हें पता ही नहीं है कि सरकार कैसे चलानी है। जितना फोकस मार्केटिंग और ब्रांडिंग पर लगाते हैं उसका थोड़ा हिस्सा भी देश की गरीबी मिटाने पर लगाते तो भारत की एक बड़ी आबादी को रोटी के लिए जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती। चुनाव होता है तो वो गुफा में चले जाते हैं। वहां से लाइव शुरू कर देते हैं। इसे एक इवेंट के तौर पर पूरे देश में चलाया जा रहा है। इससे आगामी चुनाव को साधना है और दुनिया को यह बताना है कि हमारा देश बहुत संपन्न हो गया है। इस शहर का माई-बाप ऐसा हो गया है कि वो जो चाहता है खेल शुरू कर देता है। जाहिर है कि गरीबों की झुग्गियों को ढंकने में ही लाखो-करोड़ों का वारा-न्यारा किया गया होगा। बीजेपी नेताओं को सोचना चाहिए कि भारत जी-20 का प्रतिनिधित्व करने जा रहा है, उनकी पार्टी की ब्रांडिंग करने नहीं जा रहा है। वह हर चीज को बदलने में जुटी है, चाहे शहरों का नाम बदलना हो या फिर पुस्तकों से इतिहास मिटाना हो। उसे सोचना चाहिए कि यह देश बीजेपी से बड़ा है।"

कांग्रेस के आरोपों को बीजेपी राष्ट्रीय फूल का अपमान मानती है। बनारस में बीजेपी किसान मोर्चा काशी क्षेत्र के क्षेत्रीय महामंत्री जयनाथ मिश्र (एडवोकेट) कहते हैं" लक्ष्मी जी जिस फूल पर बैठी हैं उस पर भी अब कांग्रेस को आपत्ति होने लगेगी तो इसे कोई क्या कहेगा? विपक्षी दल भारत की छवि को बंटाधार करने में लगे हैं, क्योंकि दुनिया भर में हमारे देश की इमेज बेहतर बन रही है। आजादी के बाद वर्ष 1957 में रोटी और खिलता हुआ कमल चिह्न जारी किया गया था। पासपोर्ट पर सुरक्षा फीचर के तौर पर कमल को लगाया गया था। कमल राष्ट्रीयता का प्रतीक है। यह राजनीति और संप्रदाय से ऊपर है। अशोक स्तंभ पर भी कमल है, उस पर भी आपत्ति होने लगेगी तो यह सियासत की जाएगी। यह देश और आम नागरिकों का अपमान है। विपक्षी दलों को इस पर चिंतन करने की जरूरत है। हर चीज में राजनीति खंगाली जाएगी तो बहुत दिक्कतें आएंगी।"

जी-20 क्या है?

भारत देश भर में कई स्थानों पर 32 विभिन्न क्षेत्रों में लगभग दो सौ बैठकें करेगा। सितंबर 2023 में जी-20 का शिखर सम्मेलन दिल्ली में आयोजित किया जाएगा जो भारत में आयोजित होने वाले सबसे हाई-प्रोफाइल अंतरराष्ट्रीय समारोहों में से एक होगा। जी-20 दुनिया के ताकतवर देशों का समूह है। अस्सी फीसदी जीडीपी इन्हीं देशों की है। यह समूह दुनिया की प्रमुख विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं का एक अंतर-सरकारी मंच है। इसमें अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया गणराज्य, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ शामिल हैं। इसके साथ ही भारत ने अपनी अध्यक्षता के दौरान बांग्लादेश, मिस्र, मॉरीशस, नीदरलैंड, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, स्पेन और संयुक्त अरब अमीरात को अतिथि देशों के रूप में शामिल किया है।

भारत उस समय जी-20 ट्रोइका समूह में भी शामिल हुआ थाजब इंडोनेशिया ने इसकी अध्यक्षता ग्रहण की थी। जी-20 का ट्रोइका उन तीन देशों का समूह हैजिसमें पिछले सालवर्तमान और आने वाले साल के अध्यक्ष देश शामिल होते हैं। अध्यक्ष देश ट्रोइका देशों के साथ समन्वय स्थापित करता है। वर्तमान में ट्रोइका में इंडोनेशियाभारत और इटली शामिल हैं। भारत की अगुवाई में हो रहे जी-20 सम्मेलन के तहत कृषि वैज्ञानिकों की 100वीं बैठक वाराणसी में चल रही है। पहली बैठक एक दिसंबर2022 को हुई थी। गोवा और हैदराबाद में भी जी-20 के तहत अलग-अलग बैठकें आयोजित हो चुकी हैं।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के मुताबिक, देश के 28 राज्यों के 41 शहरों में अभी तक सौ बैठकें हो चुकी हैं। इसमें कुल 110 देशों के 12,800 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया है। इसमें जी-20 के सदस्य 20 देशों के अलावा नौ विशेष तौर पर आमंत्रित देश और 14 वैश्विक संस्थान भी शामिल हैं। भारत को पिछले वर्ष इंडोनेशिया में हुए जी-20 सम्मेलन में वर्ष 2023 के लिए अध्यक्षता करने का दायित्व सौंपा गया था। हर सदस्य देश को एक के बाद एक अध्यक्षता करने का मौका मिलता है। जी-20 के 20 देशों के पास दुनिया की कुल इकोनॉमी का 85 फीसदी हिस्सा है।

बेकार मंच है जी-20

जी 20 के प्रचार में गंगा घाट पर जुटे लोग

आयरलैड, वार्सलोना और लंदन के विश्वविद्यालयों में लोकतंत्र और मानवाधिकार पर कई मर्तबा व्याख्यान दे चुके बनारस के एक्टविस्ट डा.लेनिन कहते हैं, "जब यूक्रेन और रूस का युद्ध हो रहा हो और उसे रोकने में जी-20 कोई प्रभावी कदम नहीं उठा पा रहा है तो ऐसे सम्मेलन की आखिर उपयोगिता ही क्या है?  भारत सरकार ने जी-20 की रोटेशन से मिली मेजबानी को भले ही देश की जनता के सामने अपनी एक बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश किया है, जबकि इंडोनेशिया के बाली में हुए जी-20 के पिछले शिखर सम्मेलन में ही यह साफ हो गया था कि इस मंच से अब कुछ हासिल नहीं हो सकता है। जी-20 की मेजबानी को लेकर भारत में सनसनी पैदा करने की कोशिश की जा रही है और ऐसे माहौल को लगातार बनाए रखा जा रहा हैतो उसके पीछे कारण भारत की घरेलू राजनीति में इसके इस्तेमाल की संभावना है। सच यह है कि जब देश में अगले आम चुनाव का माहौल बनने लगा हैतब विश्व भर के नेताओं की भारत में उपस्थिति को प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व की सफलता के रूप में पेश कर उसका चुनावी फायदा उठाने की रणनीति अपनाई गई है।"

डॉ.लेनिन यह भी कहते हैं"जी-20 का सम्मेलन रोटेशन में मिला है। हैरानी की बात यह है कि भारतीय मीडिया सच पर परदा डालने की कोशिश करता नजर आ रहा है। फरवरी के आखिरी हफ्ते में बंगलुरू में जी-20 के वित्त मंत्रियों की बैठक हुई थी, जहां ऋण गोलमेज सम्मेलन का भी आयोजन किया गया था। इसका  मकसद कर्ज संकट से जूझ रहे विकासशील देशों को राहत देने के उपायों पर विचार-विमर्श करना था। मजे की बात यह है कि बंगलुरू में हुई बैठकें कोई भी सार्थक उपाय ढूंढ पाने में सिरे से नाकाम रहीं। जी-20 के वित्त मंत्री किसी साझा बयान पर राजी नहीं हो सके। हमें लगता है कि जी-20 की उम्र अब पूरी हो चुकी है। विश्व की अर्थव्यवस्था के संचालन के लिए जिस संस्था का गठन किया गया था,  उसका स्वरूप अब बुनियादी रूप से बदल गया है। भारत के अंदर जिस तरह से घृणा की राजनीति की जा रही है वह वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा के खिलाफ है। यूक्रेन और रूस की लड़ाई को रोक पाने में जी-20 के देश कोई गंभीर पहल करते नजर नहीं आ रहे हैं। यह सम्मेलन तो सिर्फ कास्टमेटिक सम्मेलन बनकर रह गया है।

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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