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बाबा साहेब की राह पर चल देश को नफ़रती उन्माद से बचाने का संकल्प

आंबेडकर जयंती पर संसद मार्ग पर लगे जनता मेले में लोग फ़ासीवादी ताक़तों और उनके नफ़रती उन्माद की चर्चा करते नज़र आए। वर्तमान व्यवस्था  पर लोग आक्रोशित नज़र आए और ये संकल्प ले रहे थे कि इस नफ़रती उन्माद से हम संविधान और देश को बचाएंगे।
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14 अप्रैल 2022 को यह लेखक राजधानी दिल्ली के संसद मार्ग पर आंबेडकर जयंती के मौके पर लगे जनता मेले में शामिल हुआ। यहां जो देखा, समझा, सुना वह आपके साथ साझा कर रहा हूं।

कोरोना काल में दो साल बाद कल, 14 अप्रैल को जिस तरह से दिल्ली का संसद मार्ग  बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के अनुयायियों से गुलजार हुआ – वह काफी सुखद रहा। वहां हज़ारों की संख्या में लोग अपने संगी-साथियों और परिवारों के साथ पहुंचे। ये लोग चलते-फिरते, नाचते-गाते, बाबा साहेब के नारे लगाते, भंडारा खाते, किताबें खरीदते नजर आए। कुछ लोग गौतम बुद्ध, ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले, रमाबाई आंबेडकर और बाबा साहेब की झांकी लेकर आए।

संसद मार्ग पर चहल-पहल के बीच लोग फासीवादी ताकतों और उनके नफरती उन्माद की चर्चा करते नजर आए। वर्तमान व्यवस्था  पर लोग आक्रोशित नजर आए और ये संकल्प ले रहे थे कि इस नफरती उन्माद से हम संविधान और  देश को बचाएंगे। संसद मार्ग के इस मेले में बच्चे-बूढ़े-युवा महिलाएं-लड़कियां सब शामिल थे। कड़ी धूप के बावजूद  सब में जोश और उत्साह था।  

हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली के  जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में रामनवमी के अवसर पर मांसाहार को लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) और अन्य छात्रों के बीच जिस तरह का टकराव और संघर्ष हुआ इस पर लोग चर्चा के दौरान कह रहे थे कि यह दुखद और चिंताजनक है। पर यह अचानक हुआ कोई हादसा नहीं है। इस बार रामनवमी के दौरान दिल्ली में मीट की दुकाने भी बंद रखवाई  गईं। और ये सब एक धर्म विशेष के नाम पर हुआ। देश को उसकी सम्पूर्णता में न देखकर उसे हिन्दू धार्मिक राष्ट्र के रूप में देखा जा रहा है। आज के समय में जिस तरह हिन्दुत्ववादी धार्मिक संत-महंत मठाधीश दलितों और अल्पसंख्यकों (मुसलमानों) के प्रति नफरत भरी बयानबाजी  कर रहे हैं। उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार करने के लिए उकसा रहे हैं। दलितों की गोकशी के नाम पर हत्या कर रहे हैं यह निश्चय ही लोकतंत्र के लिए खतरा है। संविधान के लिए खतरा है।

बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर ने कहा था अंध राष्ट्र और धार्मिक राष्ट्र लोकतंत्र के लिए खतरनाक हैं।

“जय श्री राम” के नारे लगाने वाले कट्टर हिन्दुत्ववादी यह चाहते हैं कि मुसलामानों और दलितों को वोट देने के अधिकार से ही वंचित कर दिया जाए। इस मानसिकता का मुकाबला हम “जय भीम” के नारे से करेंगे। और लोकतंत्र को जिन्दा रखेंगे।

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले से आए एक सज्जन चर्चा के दौरान अपने अनुभव साझा करते हुए कह रहे थे- ट्रेन के सफ़र के दौरान मुझे ऐसी बातें सुनने मिलीं  जिनमे इन हिन्दुत्ववादियों को मुसलमान और दलितों से शिकायत थी कि ये अपनी औकात भूल गए हैं। इनको सही जगह पर लाने के लिए जरूरी है कि वोट देने के अधिकार से इन्हें वंचित कर दिया जाए। दूसरा इनको शिक्षा से दूर रखा जाए। इनको इतना गरीब बना दिया जाए कि ये अपने पुश्तैनी कामों में उलझे रहें। इसके लिए शिक्षा को मंहगा कर दिया जाए। ताकि शिक्षा इनकी पहुँच से दूर रहे। दूसरी बात इनके गली मोहल्लों में शराब के ठेके खुलवा दिए  जाएं ताकि ये शराब के नशे में मस्त रहें और अपना दिमाग ना चला सकें। इसके साथ थी इन्हें अपने गली-मुहल्लों में आंबेडकर की प्रतिमा ना लगाने दी जाए कि क्योंकि आंबेडकर इनमे चेतना के वाहक हैं। आंबेडकर को अपनाने से ये हमारी-आपकी पहुँच से बाहर निकल जाएंगे। अपने बच्चों को ऊंची से ऊंची शिक्षा दिलाएंगे। फिर इनको अपने कंट्रोल में रखना मुश्किल होगा। इसलिए शुरू से ही इन्हें शिक्षा और आंबेडकर से दूर रखा जाए।

लेकिन हम बाबा साहेब के सच्चे अनुयायी हैं ऐसी रुकावटों से रुकेंगे नहीं बल्कि आगे बढ़कर शिक्षित होकर, जागरूक बनकर संविधान और देश को बचायेंगे।

संसद मार्ग में लगे आंबेडकर मेले में कई प्रकाशक भी आए थे। इनमें सम्यक प्रकाशन के कपिल से हुई बातचीत में उन्होंने बताया – “बाबा साहेब ने जो शिक्षित होने की बात कही है वह शिक्षा ही हमारे लिए सबसे जरूरी है जो हमें पाखंडवाद से मुक्त कराती है। समाज के लिए सही दिशा दिखाती है।“ उन्होंने कहा कि –“ किताबें सबसे जरूरी हैं। पहले तो हमें हमारा साहित्य मिलता ही नहीं था। अब आप देख रहे हैं कि लोग पढ़ रहे हैं और उनमें जागरूकता भी आ रही है। ...मनुवाद की काट के लिए बाबा साहेब की विचारधारा ही काम आएगी। बस लोग उसे समझें और आचरण में लाएं।”

इसी प्रकार गौतम प्रकाशन के एसएस गौतम कहते हैं कि –“आज के समय में सिर्फ शिक्षित होना ही काफी नहीं है। बल्कि लोगों में चेतना और जागरूकता भी जरूरी है।"

भारत समाज निर्माण संघ (बीएसएनएस) के प्रमुख बीर सिंह बहोत कहते हैं –“आज के समय में बाबा साहब की विचारधारा ही हमारा उद्धार कर सकती है। आरएसएस की विचारधारा तो बहुजन समाज के लोगों को बांटने वाली और आपस में लड़ाने वाली है। वह चंद  लोगों के लाभ के लिए है। महात्मा फुले और बाबा साहेब  आंबेडकर की जो विचारधारा है वह इस देश के  लोगों की विचारधारा है यहाँ के मूल निवासियों की विचारधारा है। और पूरे बहुजन समाज को जोड़ने वाली विचारधारा है। लेकिन अभी सत्ता आरएसएस और बीजेपी वालों के हाथ में है। फुल टाइमर उनके पास हैं। मीडिया उनके पास है।  पैसा उनके पास है। इसलिए वे अपनी विचारधारा को फैला रहे हैं। लेकिन भविष्य में आप देखेंगे कि बहुजनों का शासन आएगा। फुले और आंबेडकर की विचारधारा जीतेगी। भारत समाज निर्माण संघ समाज को तैयार कर रहा है।”

बीएसएनएस के ही राजेश पंवार कहते हैं  कि –“आरएसएस की विचारधारा रेत के ढेर पर टिकी हुई विचारधारा है। इसलिए वह टिकाऊ नहीं है। आंबेडकर की विचार धारा सच्चाई पर आधारित है। फुले और आंबेडकर की विचारधारा का ही भविष्य में वर्चस्व होगा।” इसी संगठन से जुडी आशा पंवार कहती हैं कि –“आज अगर 15 प्रतिशत लोगों  का 85 प्रतिशत लोगों पर शासन चल रहा है तो इसका प्रमुख कारण यह है कि उनका प्रचार-प्रसार बहुत बड़े स्तर पर हो रहा है। उनके पास प्रचार के साधन हैं। सत्ता उनकी है। पैसा उनके पास है। मीडिया उनकी है। अगर ऐसे साधन हमारे पास हो जाएँ तो हम दो महीने में ही अपनी विचारधारा को देश में ला सकते हैं। उन्होंने समाज को जातियों में बाँट रखा है और प्रत्येक जाति खुद को समाज कहती है। यह मनुवादी और ब्राह्मणवादी साजिश है। हमारे महापुरुषों की जो विचारधारा है उसे हम आगे तक नहीं ले जा पाते। क्योंकि अभी हमारी पास ऐसे प्लेटफोर्म नहीं हैं। इसीलिए हम जमीनी स्तर पर धीरे-धीरे काम कर रहे हैं। लेकिन भविष्य में हमारी मेहनत रंग लाएगी और महात्मा फुले सावित्री बाई और बाबा साहेब जैसे विचारकों की विचारधारा स्थापित होगी।”

क्रांतिकारी युवा संगठन की मुदिता कहती हैं –“आज डॉ. भीमराव आंबेडकर जन्मदिवस के अवसर पर जातिवाद खत्म करने का संकल्प लो। जातिवाद और पूंजी मुक्त भारत के लिए संघर्ष करो। जातीय हिंसा और शोषण के खिलाफ आन्दोलन  तेज करो। सामाजिक न्याय, समानता, इज्जतदार रोजगार के अधिकार और शोषणमुक्त समाज बनाने के इस संघर्ष में शामिल हों।” उन्होंने कहा –“भारतीय समाज को सदियों से जातिवाद ने अपने शिकंजे में जकड़ा हुआ है। समाज को जातियों में बाँट कर प्रभुत्वशाली हिस्से ने मेहनतकश आबादी को “शूद्र” तथा “नीची जाति” की श्रेणी में बाँट दिया और कामगार आबादी की मेहनत पर बैठकर अय्याशी करने के लिए खुद को “ऊंची जाति” का तमगा दिया। इस शोषणकारी व्यवस्था को मनवाने के लिए ब्राह्मणवादी धर्मग्रंथों का सहारा लिया। इन सब का एक ही उद्देश्य था – समाज की सबसे मेहनतकश आबादी का शोषण कर उनकी मेहनत पर मुफ्त की अय्याशी करना। इतना ही नहीं “नीची जाति” के लोगों को उनकी जाति के नाम अपमानित करना उनसे गुलामी करवाना भी “ऊंची जाति” वालों ने अपना अधिकार समझ लिया। इसलिए आज बाबा साहेब के जन्मदिन पर हम संकल्प लें कि इस शोषणकारी व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाएंगे और अपने हक़ लेकर रहेंगे।”

आंबेडकर जयंती पर लगे इस जनता मेले में अधिकांश लोगों और  संगठनो की चिंता का विषय यही था कि देश में जिस तरह से सांप्रदायिक उन्माद और जातिगत अत्याचारों की घटनाएं घट रही हैं वे बेहद चिंताजनक हैं। इनसे देश और कौम को बचाना तथा आंबेडकरी विचारधारा को फैलाना जरूरी है। क्योंकि आंबेडकरी विचारधारा मानवतावादी विचारधारा है। समता, समानता. स्वतंत्रता,  बंधुत्व और न्याय की विचारधारा है। इसलिए हम बाबा साहेब के जन्मदिन पर इस विचारधारा को  अपनाने, इसका प्रचार-प्रसार करने का संकल्प लें।

(लेखक सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं।)

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