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उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में संशोधन वेतनभोगी कर्मचारियों के साथ बड़ा धोखा

सरकार ने औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार वर्ष 2011 में बदलाव करते हुए इसे 2016 कर दिया है। इसका असर 3 करोड़ औद्योगिक श्रमिकों, 48 लाख केंद्रीय सरकार कर्मचारियों, 1 करोड़ 85 लाख राज्य कर्मचारियों और 68 लाख पेंशनभोगियों पर पड़ेगा।
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21 अक्टूबर 2020 को सरकार ने औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW) को संशोधित किया है, जिसके लिए पुराने आधार वर्ष (base year) 2001 की जगह 2016 को लिया गया है। इसका असर 3 करोड़ औद्योगिक श्रमिकों, 48 लाख केंद्रीय सरकार कर्मचारियों, 1 करोड़ 85 लाख राज्य कर्मचारियों और 68 लाख पेंशनभोगियों की आय और आजीविका पर पड़ेगा।

2016-17 में केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन पर व्यय था 2,83,400 करोड़ रुपये और पेंशन पर व्यय था 1,76,300 करोड़ रुपये। CPI-IW के आधार पर इन सभी कर्मचारियों की महंगाई भत्ते (DA) की गणना की गयी तो यह अक्टूबर 2019 में सरकारी कर्मचारियों के मूल वेतन या बेसिक पे का 17 प्रतिशत निकला। महंगाई भत्ते की गणना में कुछ भी छेड़छाड़ 6 करोड़ वेतनभोगी कर्मचारियों को प्रभावित करेगी।

CPI-IW आखिरी बार 2006 में संशोधित किया गया और इसमें 1982 की जगह 2001 को नया आधार वर्ष लिया गया। 14 वर्ष के लंबे अंतराल में सभी आने वाली सरकारों ने आधार वर्ष को अपडेट करने से लगातार कोताही की। यहां तक कि पुराने सीरीज़ के अनुसार CPI-IW की भी ट्रेड यूनियनों ने काफी आलोचना की थी क्योंकि उनके अनुसार उसकी गणना जिस प्रकार की गई थी, उससे महंगाई के असर को पूरी तरह निष्प्रभावी नहीं बनाया जा सका था।

सरकार ने इस आलोचना को जरा भी तवज्जो नहीं दिया। अंत में उन्होंने CPI-IW की गणना को संशोधित किया और 21 अक्टूबर 2020 को एक नई सीरीज़ (New Series) पेश की जिसका आधार वर्ष 2016 था। पर जब उन्होंने यह संशोधन किया, इस तरह बिना किसी पारदर्शिता के, दांवपेंच के साथ किया, कि जो महंगाई भत्ता कमचारियों को मिलने वाला था उससे वह काफी कम हो गया। आप यूं समझें कि CPI-IW के माध्यम से कर्मचारियों व श्रमिकों के साथ बड़ा धोखा किया गया।

यदि कर्मचारियों का नकदी वेतन वही रहे जो पहले था, फिर भी उनका वास्तविक वेतन महंगाई के कारण घट जाता है। CPI-IW महंगाई को पाॅइंट्स के आधार पर बढ़ाता है और हर महीने नवीनतम सूचकांक अंक जारी करता है। कर्मचारियों को CPI-IW के आधार पर गणना किये गए महंगाई भत्ते से कम्पेनसेट किया जाता है। 2009 के रिविज़न ऑफ पे ऐण्ड अलावेंसेस (Revision of Pay and Allowances) या रोपा रूल (ROPA Rule) के तहत उन्हें कानूनी हक दिया जाता है।

समय-समय पर मूल वेतन का संशोधन उसे डीए के साथ मर्ज करके किया जाता है। क्योंकि किराया भत्ता, यातायात भत्ता आदि को बेसिक पे के एक निश्चित प्रतिशत के रूप में दिया जाता है और बोनस, ग्रैचुइटी, पेंशन आदि का भुगतान बेसिक पे के आधार पर ही किया जाता है, महंगाई भत्ते में बदलाव से इन सब पर प्रभाव पड़ेगा। CPI-IW के गलत गणना की वजह से यदि डीए में 1 प्रतिशत की कमी भी आए तो इसके व्यापक असर से कर्मचारियों व श्रमिकों का भारी नुकसान होगा।

CPI-IW नई सीरीज़ में इतनी त्रुटि है कि महंगाई भत्ते में 10 प्रतिशत की कमी आएगी। ईलंगावन रामलिंगम, जो सीटू के वरिष्ठ नेता हैं और सीटू-सम्बद्ध रेलवे कर्मचारी ऐसोसिएशन के प्रमुख नेता हैं, ने कहा कि ‘‘CPI-IW नई सीरीज़ की सांकेतिक गणना (ominal Calculation) भी गलत है। पहले आधार वर्ष 2001 को लिया गया था और उस वर्ष का सूचकांक लिया गया था 100 अंक। अब जनवरी 2016 तक गणना किये गये महंगाई भत्ते को बेसिक पे के साथ विलय कर दिया गया और 2016 के मूल्य सूचकांक को लेकर नए सीरीज़ की गणना की गई; और 2016 का फिगर 100 अंक लिया गया है। इस नए आधार वर्ष को लेते हुए, सरकार के अनुसार CPI-IW 118 पर टिक गया। दूसरे शब्दों में जनवरी 2016 की तुलना में, सितम्बर 2020 तक 18 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई है।’’

परन्तु ईलंगोवन का कहना है,‘‘यदि हम 2001 को आधार वर्ष मानकर बढ़त की गणना करें, जनवरी 2020 तक बढ़त 21 प्रतिशत होती है। पर 2016 को आधार वर्ष मानकर सूचकांक में केवल 10 प्रतिशत बढ़त होती है। जुलाई 2020 आते-आते 2001 को आधार वर्ष मानकर सूचकांक 4 प्रतिशत और बढ़ा तथा जुलाई के बाद भी कम से कम 3 प्रतिशत और बढ़ा होगा। यानि जनवरी 2021 तक यह बढ़त 27 प्रतिशत हो जाती। यदि 2016 को आधार वर्ष मानकर सूचकांक निकालें तो जूलाई 2019 तक बढ़त 17 प्रतिशत ही होती, और वह महंगाई भत्ते की बढ़त पर फ्रीज़ के चलते इसी अंक पर टिका रहा है। इसके मायने हैं कि कर्मचारियों व श्रमिकों को 10 प्रतिशत कम डीए मिलेगा।’’

वे आगे कहते हैं, ‘‘यदि कोई सरकारी कर्मचारी 50,000 बेसिक पे पाता था तो उसे 5000 रु प्रति माह का घाटा लगेगा। उसके पूरे सेवाकाल के दौरान यह नुकसान संचयी होगा। सरकार के सबसे न्यूनतम स्तर के अधिकारी का नुकसान 10,000 रु प्रति माह होगा, यानि 1,20,000 रु प्रति वर्ष! यदि उसकी सेवा के 10 साल बचे हैं तो उसे 17,85,760 रु का घाटा होगा। यदि किसी कर्मचारी के 30 साल सेवा के बचे हैं, घाटा तीन गुना से भी अधिक होगा, यदि चक्रवृद्धि ब्याज की गणना भी की जाए; यानि उसे तकरीबन 60 लाख रुपयों का घाटा होगा!’’

ईलंगोवन कहते हैं, ‘‘इस प्रकार हेरा-फेरी करके कटौती तभी की जा सकती है जब सूचकांक की गणना के लिए विवादास्पद और गैर-पारदर्शी फाॅरमूला अपनाया जाए। यही नहीं, कर्मचारियों को बताया भी नहीं जाए कि गणना के समय कर्मचारियों के उपयाग की वस्तुओं के टोकरे में से कुछ को छोड़ दिया गया है, और जिन्हें जोड़ा गया है उनका क्या मूल्य लगाया गया है। यह हैरत की बात है कि 5 करोड़ कर्मचारियों के लिए सबसे अधिक महत्व के मुद्दे पर सरकार पारदर्शी नहीं है बल्कि हेरा-फेरी में जुटी हुई है।’’

CPI-IW की नई सीरीज़ पर लेबर ब्यूरो की 143 पृष्ठ लंबी रिपोर्ट ने इन तथ्यों का खुलासा नहीं किया है। CPI-IW की नई सीरीज़ में और भी कुछ गड़बड़ियां हैं।

उदाहरण के लिए, CPI-IW में संशोधन के लिए हर बार लेबर ब्यूरो के द्वारा ‘फैमिली लिविंग सर्वेज़’(fanily living surveys) के आधार पर देश के प्रमुख शहरी और औद्योगिक केंद्रो में गणना की जाती है। श्रमिकों द्वारा जिन वस्तुओं का उपभोग किया जाता है, उन्हें खपत की टोकरी (consumption basket) में शामिल किया जाता है और टोकरी का मूल्य उन वस्तुओं के बाज़ार भाव के आधार पर आंका जाता है; डीए बढ़त की गणना इसी के आधार पर की जाती है।

आधार वर्ष 2016 के CPI-IW के लिए टोकरी में इस बार वस्तुओं को बढ़ाकर 463 कर दिया गया है, जबकि आधार वर्ष 2001 की सीरीज़ के लिए ये 392 वस्तुएं थीं। 21 अक्टूबर 2020 को जारी लेबर ब्यूरो की रिपोर्ट में वस्तुओं की जो सूचि दी गई है, उसमें 6 खपत-श्रेणियां हैंः

1.  खाद्य व पेय पदार्थ

2.  पान, सुपारी, तम्बाकू और नशीले पदार्थ

3.  वस्त्र व जूते-चप्पल

4.  आवास

5.  ईंधन और प्रकाश

6. अन्यान्य

मूल्य सूचकांक की गणना में हर श्रेणी को भारिता (weightage) दी गई है पर वस्तुओं के मूल्यों के बारे में कुछ नहीं कहा गया। इस सूचना के अभाव में, श्रम संगठनों के लिए यह जांचना असंभव है कि गणना के लिए प्रयोग किये गए मूल्य इन वस्तुओं के बाज़ार मूल्य से मेल खाते हैं या नहीं। यह संभव है कि सूचकांक को गिराने के लिए लेबर ब्यूरो ने वस्तुओं के मूल्यों को बाज़ार मूल्य से काफी कम रखा हो। इससे श्रमिकों के लिए महंगाई भत्ता काफी कम हो जाएगा। रिपोर्ट के ऐनेक्सचर में खाली तालिकाएं प्रस्तुत करने की जगह सही अंकों की तालिकाएं दी जा सकती थीं। ईलंगोवन पूछते हैं,‘‘आखिर इन अंकों को छिपाने के पीछे रहस्य क्या है?’’

इतना ही नहीं, पिछली बार 78 केंद्रों को कवर किया गया था, जो इस बार बढ़ाकर 88 कर दिया गया। 13 पुराने केंद्रों को छोड़कर उनकी जगह 23 नए केंद्रों को ले लिया गया। और यह भी शातिराना तरीके से ऐसे किया गया कि समग्र सूचकांक को कम कर दिया जाए। उदाहरण के लिए तमिलनाडु में ट्रिची जैसे प्रमुख शहर को छोड़ दिया गया है, पर तिरुनलवेली और विरुधुनगर जैसे अपेक्षाकृत छोटे शहरों को शामिल किया गया है। ईलंगोवन कहते हैं,‘‘ट्रिची में जीवन यापन खर्च इन दो छोटे शहरों की अपेक्षा काफी अधिक होता। जाहिर है कि इससे सूचकांक घट जाएगा और वर्करों का नुकसान होगा।’’

वस्तुओं के चयन में भी समस्या है। मोदी साकार ने आरोग्य सेतु ऐप को सरकारी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य बना दिया, इसलिए स्मार्टफोन रखना अनिवार्य हो गया। और, औद्योगिक मजदूरों तथा सरकारी कर्मचारियों के बच्चों की पढ़ाई की खातिर कम्प्यूटर या स्मार्टफोन अनिवार्य हो गया है। पर वस्तुओं की सूची में केवल मोबाईल फोन शामिल किया गया है। ऐसे बहुत सारे गंभीर घपले हैं।

लेबर ब्यरो ने घरेलू खपत की गणना इस आधार पर की है कि 48 प्रतिशत वर्करों के घर एकल-सदस्य परिवार हैं, जिसकी वजह से प्रवासी मजदूरों के परिवार के अन्य सदस्यों को, जो गांव में रह जाते हैं, को छोड़ दिया गया। यह एक गड़बड़ी है, क्योंकि कई प्रवासी मजदूर काम के लिए अकेले ही बाहर चले जाते हैं। इस तरह मजदूरों के उपभोग मूल्य को घटाने का रास्ता निकाल लिया गया है।

मोदी सरकार ने मार्च 2020 से ‘डीए फ्रीज़’ की घोषणा कर दी और यह जून तक के लिए था। यह महामारी के बहाने किया गया और सरकार ने खुद स्वीकारा कि इससे खजाने में 37,530 करोड़ रुपये की बचत हुई। राज्य सरकारें भी 82,000 करोड़ बचाईं। तब इतनी ही पूंजी का नुक्सान सरकारी कर्मचारियों को होगा। समस्त सरकारी कर्मचारियों व औद्योगिक मजदूरों के लिए अनन्त काल के वास्ते 10 प्रतिशत के कट को देखें तो यह बहुत भारी रकम है।

इसके अलावा लेबर ब्यूरो ने राष्ट्रीय ट्रेड यूनियनों से इस बारे में कोई सलाह मशविरा नहीं किया कि सूचकांक की गणना की पद्धति क्या हो, खासकर श्रमिकों के उपभोग की वस्तुओं के चयन के मामले में। लेबर ब्यूरो ने जिन वस्तुओं और शहरों का चयन किया है, उसके पीछे क्या तर्क है यह भी स्पष्ट नहीं किया गया। यानि सबकुछ मनमाने ढंग से किया गया है।

23 अक्टूबर 2020 की एक प्रेस विज्ञप्ति में सीटू के अध्यक्ष और महासचिव के. हेमलता और तपन सेन ने यह कहते हुए नई सीरीज़ की तीखी आलोचना की कि सरकार ने ‘‘समस्त ट्रेड यूनियनों द्वारा अपने 25 अगस्त 2020 के  संयुक्त पत्र में उठाए सभी प्रश्नों को नज़रंदाज़ कर दिया है।’’

इससे भी महत्वपूर्ण बात जो नेताओं ने पूछी वह है कि ‘‘गलत मंशा से सरकार द्वारा हेरा-फेरी यहीं खत्म नहीं होती। बल्कि 2016 के अंकों को 2001 सीरीज़ के समकक्ष बनाकर वास्तविक मूल्य वृद्धि को छिपाने के लिए जो अंकों को परिवर्तित करने वाले श्रृंखला घटक या लिंकिंग फैक्टर (linking factor) का प्रयोग किया जाता है, उसमें भी हेरा-फेरी की गई। पहले भी आधार वर्ष में परिवर्तन हुए हैं पर लिंकिंग फैक्टर उस समय (22 वर्ष की अवधि-1960-1982) 4.93 था, और इसके बाद (19 वर्ष की अवधि-1982-2001) में 4.63 था; पर अब 16 वर्ष की अवधि में लिंकिंग फैक्टर 2.88 है, जो 3 साल के अंतर के लिए 62 प्रतिशत कम है!’’ श्रमिक सही ही प्रश्न करते हैं कि इससे बढ़कर कोई धांधली हो सकती है क्या?

डीए में 10 प्रतिशत की हेरा-फेरी छोटी बात लग सकती है पर यदि इसे ऐब्सोल्यूट अंकों (absolute numbers)में देखें तो यह श्रमिकों व कर्मचारियों के लिए हज़ारों करोड़ रुपयों का घाटा है। और उनका यह घाटा निश्चित ही मालिकों और सरकारों के लिए भारी मुनाफा है। 

 

(लेखक आर्थिक और श्रम मामलों के जानकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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