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एमएसएमई क्षेत्र को पुनर्जीवित किये बिना अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार संभव नहीं

आर्थिक विकास पिछले तीन वर्षों में सुस्त रहा है, बजाय इसके मोदी जी अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार करते, उनकी सरकार ने उसे लम्बी मंदी के दौर से अब रिसेशन की ओर धकेल दिया है।
MSME
फोटो साभार: India Today

केंद्रीय बजट 2020-21 ने आने वाले वित्तीय वर्ष के लिए 7.5 प्रतिशत की मामूली विकास दर प्रक्षेपित की है (मुद्रास्फीति का समायोजन किये बिना)। दिसम्बर 2019 में, खुदरा मूल्य सूचकांक के अनुसार मुद्रास्फीति की दर 7.4 थी। यदि 2020-21 के पूरे वर्ष के लिए मुद्रास्फीति की दर को इस स्तर पर प्रक्षेपित किया जाता है, तो मुद्रास्फीति का समायोजन करने पर, अर्थव्यवस्था की असल विकास दर 2020-21 में दयनीय होगी, मात्र 0.1 प्रतिशत! यदि मौद्रिक नीति के एक आशावादी अनुमान को सही मानें, तो भी जीडीपी वृद्धि 4 प्रतिशत से कम ही होगा। यद्यपि आर्थिक विकास पिछले तीन वर्षों में सुस्त रहा है, बजाय इसके मोदी जी अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार करते, उनकी सरकार ने उसे लम्बी मंदी के दौर से अब अपगमन ( रिसेशन ) की ओर धकेल दिया है।

2019-20 में औद्योगिक विकास मात्र 0.1 प्रतिशत था। मैनुफैक्चरिंग में विकास 2 प्रतिशत था। यानी, अर्थव्यवस्था आईसीयू में पड़ी है। वित्तमंत्री के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती थी अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार करने की। पर किया क्या गया? 20 सितम्बर 2019 को वित्तमंत्री ने काॅरपोरेट टैक्स में 1,45,000 करोड़ की कटौती की। काॅरपोरेट टैक्स दर को 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत करना और नए मैनुफैक्चरिंग इकाइयों के लिए उसे 25 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत करना बड़ा फैसला है। आर्थिक सर्वे 2019-20 ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया था, कि ये सारी छूट केवल उन 4698 काॅरपोरेटों ने हथिया ली थी, जिनका टर्न ओवर 400 करोड़ (प्रति कम्पनी) से अधिक था (यानी समस्त पंजीकृत कंपनियों में से 0.91 प्रतिशत कम्पनियां)। पर, पिछले 4 महीनों में कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला कि बड़े काॅरपोरेटों को जो प्रोत्साहन पैकेज दिया गया, उससे जमीनी स्तर पर कुछ भी सकारात्मक फल मिला।

इस छूट के अलावा, यदि हम रेवन्यू बजट एनेक्सी तालिका 5 देखें तो अन्य टैक्स छूटों के आंकड़े मिलते हैं, मसलन एसईज़ेड्स वाली कम्पनियों को टैक्स छूट और तेल, गैस व पावर कम्पनियों को विशेष टैक्स छूट आदि। ये 2019-20 में कुल 1,06,918.77 करोड़ रुपये होते हैं। इसके मायने यह हैं कि भारत के बड़े काॅरपोरेट क्षेत्र को 2.5 लाख करोड़ की टैक्स रिलीफ मिल गई!

लेकिन भारत के औद्योगिक क्षेत्र की रीढ़ है एमएसएमई (MSME) क्षेत्र, यानी माइक्रो, स्माल ऐण्ड मीडियम एन्टरप्राइज़ेस क्षेत्र, पर इसे बजट में न के बराबर प्रोत्साहन दिया गया। कान्फेडरेशन ऑफ इण्डियन इंडस्ट्री (सीआईआई) के सर्वे के अनुसार 2019 में भारत के एमएसएमई क्षेत्र, जिसकी देश भर में 6 करोड़ 34 लाख इकाइयां हैं, ने 10 करोड़ लोगों को रोज़गार दिया था और इसका जीडीपी में 30 प्रतिशत योगदान है; यह मैनुफैक्चरिंग आउटपुट का 45 प्रतिशत और देश के निर्यात का 49 प्रतिशत हिस्सा देता है। इसलिए, बिना एमएसएमई क्षेत्र को पुनर्जीवित किये, भारत की अर्थव्यवस्था में जान फूंकना असंभव है। पर हम देखते हैं कि एमएसएमई मंत्रालय के तहत एमएसएमई योजनाओं के लिए मात्र 7572 करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं।

सरकारी परिभाषा के अनुसार माइक्रो उद्योग वे हैं जिन्होंने 25 लाख तक का निवेश किया है, स्माॅल इंडस्ट्रीज़ वे हैं जिनका निवेश 25 लाख से 5 करोड़ के बीच है और मीडियम उद्योग वे हैं जिन्होंने 5 से 10 करोड़ का निवेश किया है। एमएसएमई मंत्रालय के अंतरगत ढेरों स्कीम हैं-शायद 30 से अधिक, पर सभी सांकेतिक किस्म के और एक भी स्कीम को बजट में 1000 करोड़ रुपये से अधिक नहीं मिले। 6 करोड़ इकाइयों से अधिक के लिए मात्र 7500 करोड़ रुपये और 5000 बड़े काॅरपोरेट घरानों के लिए 2,50,000 करोड़ रुपये? जब मोदी सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को दुरुसत करने के लिए ऐसा भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया जाएगा, तो आश्चर्य नहीं कि स्थितियां बद से बदतर होती जाएंगी।

एमएसएमई क्षेत्र को 2019 में दो और कन्सेशन दिये गए थे। एक तो था ब्याज सबवेंशन स्कीम, जिसके तहत एमएसएमई के द्वारा बैंक से ऋण लेने पर ब्याज दर 2 प्रतिशत घटाया गया था। दूसरा था आर बी आई की ऋण पुनरावृत्ति योजना (डेट रीकास्ट स्कीम), जिसके तहत बकाया चुकाने का समय मार्च 2020 तक, यानी 9 माह बढ़ाया गया। बजट में वित्त मंत्री ने दावा किया है कि इससे 5 लाख एमएसएमईज़ को लाभ मिला है, तो आरबीआई इसे एक और साल, यानी मार्च 2021 तक बढ़ा दे।

इन कदमों से एमएसएमइज़ के विकास पर क्या असर पड़ा है? पहले तो यह क्षेत्र 10 प्रतिशत से अधिक की दर से विकास कर रहा था, पर आज इस सेक्टर के विशाल हिस्सा नकारात्मक वृद्धि दर्शा रहा हैं। उदाहरण के लिए रेडिमेड गारमेंट्स सेक्टर ने 2018 में 24 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि प्रदर्शित की। इस बार के बजट में वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि एमएसएमई अकाउंट के ऑडिट के लिए पहले 1 करोड़ टर्न ओवर की जो सीमा थी, उसे बढ़ाकर 5 करोड़ कर दिया गया है। लेकिन इसमें भी शर्त रख दी गई कि 95 प्रतिशत बिक्री डिजिटल माध्यम से ही होनी चाहिये।

आर बी आई ने एमएसएमइज़़ के लिए नकदी या लिक्विडिटी बढ़ाने संबंधी कुछ निर्णय लिये हैं। पर एमएसएमईज़ पहले से ऋण के बोझ तले दबे हुए हैं। 2013 के बाद से पांच साल के अंतराल में इस क्षेत्र के कुल ऋण में नाॅन परफाॅर्मिंग असेट्स का हिस्सा 7.3 से बढ़़कर 9 प्रतिशत हो गया है। फिर, एमएसएमई क्षेत्र के लिए क्रेडिट वृद्धि 2017-18 में 5.1 प्रतिशत तक गिर गई।यानी, -ऋण लेने के लिए कोई तैयार ही नहीं हैं।

छोटे उद्यमियों की असल समस्याओं और अपेक्षाओं को जमीनी स्तर पर समझने के लिए न्यूज़क्लिक ने कुछ एमएसएमई एसोसिएशन नेताओं से बात की। श्री रवीन्द्रन मुथुराज, जो कोइम्बाटूर कम्प्रेसर इंडस्ट्री ऐसोसिएशन के अध्यक्ष हैं और कोइम्बटूर जिले के स्माॅल इंडस्ट्रीज़ ऐसोसिएशन के कार्यकारिणी सदस्य हैं, बताते हैं, ‘‘ बजट में जो कन्सेशन एमएसएमई क्षेत्र के लिए दिये गए हैं वे एकदम सामान्य और नगण्य हैं। इनके लिए ऐसा कोई भी उल्लेखनीय कदम नहीं उठाया गया, जो काॅरपोरेट्स के लिए डिविडेंड डिस्ट्रिब्यूशन टैक्स के उन्मूलन जैसा हो।

ऐसे दीर्घकालीन संकट की स्थिति में केवल 2 प्रतिशत ब्याज सबवेंशन से आखिर कितना लाभ होगा? वर्तमान समय में हम लोन पर 9.5-10 प्रतिशत ब्याज दे रहे हैं। हमारे पास कोई ऑर्डर नहीं आ रहे। यदि सरकार ऑटोमोबाइल उद्योग को कुछ उल्लेखनीय कन्सेशन देती, तो हमें अधिक ऑर्डर मिलते। ब्याज में 2 प्रतिशत छूट से क्या फर्क पड़ेगा? ये बिज़नेस के लिए असाधारण समय है और इस क्षेत्र में विकास को प्रत्साहित करने के लिए सरकार को लोन वापस करने हेतु 5 साल का मोराटोरियम घोषित करना चाहिये। इससे जबर्दस्त असर पड़ेगा, मैक्रो इकनाॅमिक स्तर पर भी।’’

‘‘डायरेक्ट टैक्स कन्सेशन का एसएमइज़ पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि उनके लाभ का मार्जिन बहुत कम होता है और वे भारी घाटे में चलते हैं। काॅरपोरेट आय कर छूट से केवल बड़े बिज़नेस घरानों को फायदा हो सकता है। वित्त मंत्री को चाहिये था कि वे एमएसएमइज़ के लिए जीएसटी में कमी लातीं। एसएमई अधिकतर जाॅब आर्डर पर काम करते हैं और सरकार ने जाॅब आर्डरों पर जीएसटी 18 से 12 प्रतिशत कर दिया था, पर इस बार उसे और भी कम करके 5 प्रतिशत तक लाना चाहिये था। वित्त मंत्री ने जीएसटी घटाने के मामले को ज़रा भी तवज्जो नहीं दिया’’ उन्होंने कहा।

तो हम कह सकते हैं कि यह अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने वाला बजट नहीं है, और शायद अगले बजट को अपगमन (रिसेशन) का मुकाबला करना पड़ेगा।

(लेखक श्रम मामलों के जानकार हैं।)

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