Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

रोहित वेमुला की याद में छात्रों ने मनाया 'शहादत दिवस'

रोहित वेमुला को दुनिया से गए चार साल हो गए, लेकिन आज भी रोहित की यादें, उनका संघर्ष छात्रों की प्रेरणा का स्रोत है। रोहित वेमुला की याद में आज छात्र देश के अलग-अलग विश्वविद्यालयों में शहादत दिवस मना रहे हैं।
Rohit Vemula

'इस पूरे समय में मेरे जैसे लोगों के लिए जीवन अभिशाप ही रहा, मेरा जन्म एक भयंकर हादसा था...'

ये शब्द हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला के अंतिम खत के हैं। रोहित वेमुला ने 17जनवरी 2016 को यूनिवर्सिटी के हॉस्टल के एक कमरे में फांसी लगाकर अपनी जान दे दी थी। इसके बाद इसे लेकर सड़क से संसद तक खूब प्रतिरोध और हंगामा हुआ। देश भर में छात्रों का बड़ा आंदोलन देखा गया। कई लोगों ने इस आत्ममहत्या को 'संस्थागत हत्या' और 'अकादमिक समुदाय की क्रूर कायरता' करार दिया तो वहीं सरकारी रिपोर्ट नेे रोहित के निजी कारणों को उसकी आत्महत्या के लिए जिम्मेदार माना।

26 वर्षीय रोहित वेमुला, हैदराबाद विश्वविद्यालय में पीएचडी के छात्र थे। वे प्रशासन के खिलाफ लड़ रहे थे, वे हमेशा यूनिवर्सिटी कैंपस में दलित छात्रों के अधिकार और न्याय की बात करते थे। वे कथित तौर पर राजनीतिक घटना का शिकार हो गए और उन्होंने अपनी जान दे दी।

रोहित ने अपनी मौत से पहले एक अंतिम पत्र भी लिखा। जिसमें उन्होंने कहा था

Rohit

'मुझे विज्ञान से प्यार था, सितारों से प्यार था, प्रकृति से प्यार था... लेकिन मैंने लोगों से प्यार किया और ये नहीं जान पाया कि वो कब के प्रकृति को तलाक़ दे चुके हैं। हमारी भावनाएं दोयम दर्जे की हो गई हैं. हमारा प्रेम बनावटी है। हमारी मान्यताएं झूठी हैं। हमारी मौलिकता वैध है बस कृत्रिम कला के ज़रिए। यह बेहद कठिन हो गया है कि हम प्रेम करें और दुखी न हों। ...इस पूरे समय में मेरे जैसे लोगों के लिए जीवन अभिशाप ही रहा, मेरा जन्म एक भयंकर हादसा था...।'

हालांकि रोहित ने अपने इस पत्र में अपनी मौत के लिए किसी को सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं बताया था लेकिन इसे पढ़कर आसानी से उनके जीवन और संघर्ष के मर्म को समझा जा सकता है।

आज 2020 में रोहित वेमुला को दुनिया से गए चार साल हो गए, लेकिन आज भी रोहित की यादें, उनका संघर्ष छात्रों की प्रेरणा का स्रोत है। रोहित वेमुला की याद में आज छात्र देश के अलग-अलग विश्वविद्यालयों में शहादत दिवस मना रहे हैं, सरकार की नीयत और नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं तो वहीं ट्विटर पर रोहित वेमुला शहादत दिवस टॉप ट्रेंड कर रहा है। जाहिर है रोहित इस दुनिया से जा चुके हैं लेकिन आज भी उनका विरोध सरकार का पीछा नहीं छोड़ रहा।

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रोंं ने रोहित वेमुला की याद में एक फोटो प्रदर्शनी का आयोजन किया। क्रांतिकारी युवा संगठन द्वारा आयोजित इस प्रदर्शनी में छात्रों ने रोहित के जीवन और संघर्ष से जुड़े पोस्टर्स प्रदर्शित किए। इस दौरान छात्रों ने कैंपस में जातिगत भेदभाव, असमानता और मौजूदा राजनीति घटनाक्रम पर चर्चा भी की।

rohit

मैत्री कॉलेज की छात्रा काजल ने न्यूज़क्लिक को बताया, ‘रोहित वेमुला हमेशा कमजोर लोगों की आवाज बनने की कोशिश करते थे। उन्होंने प्रशासन के अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई तो हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के अधिकारियों ने उन्हें और उनके साथियों को हॉस्टल से निकाल दिया। उन पर मार-पीट के झूठे आरोप लगाए,जिसे बाद में यूनिवर्सिटी की जांच में बेबुनियाद पाया गया। लेकिन फिर नए कुलपति आए और बिना कोई नई वजह बताए,बिना किसी नई जांच के रोहित और उनके मित्रों के लिए हॉस्टल और अन्य सार्वजनिक जगहें प्रतिबंधित कर दी गईं। ये प्रशासन का अत्याचार नहीं तो क्या है!'

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्याल के छात्रों ने भी रोहित वेमुला की याद में साबरमती ढाबे पर पर एक सभा का आयोजन किया है। जिसमें भेदभाव मिटाना, जातिवाद को खत्म करना और मनुवाद को हराना जैसे मुद्दे शामिल हैं।

वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के छात्रों ने विश्वविद्यालय के मधुबन पार्क में रोहित वेमुला को श्रद्धांजलि देते हुए दो मिनट का मौन रखा। साथ ही नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में संविधान के प्रस्तावना का सामूहिक पाठ किया।

BHU

इस दौरान प्रदर्शनकारी छात्रों ने कहा कि रोहित वेमुला की हत्या ने देश को झकझोर करके रख दिया था। उच्च शिक्षण संस्थानों में हो रही जातिगत हिंसा को समाज के सामने उजागर किया था। रोहित ने हमेशा दलित और शोषित समाज के लोगों के लिए आवाज उठाई लेकिन आज उसकी हत्या के चार साल बाद भी सरकार के दमनकारी रवैये में कोई बदलाव नहीं आया है।

बीएचयू के छात्र राज अभिषेक ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, ‘रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या न पहली थी न आख़री,यह कई सालों से चली आ रही वंचितों के दमन की एक कड़ी थी। रोहित की आत्महत्या को शहादत का तमगा देना इसलिए जरूरी है क्योंकि उन्होंने पूरे देश में छात्र आंदोलन को एक धार देने का काम किया। उनकी चिठ्ठी ने हर एक इंसान को झकझोर कर रख दिया।'

राज अभिषेक ने आगे कहा कि दलित, अल्पसंख्यक, वंचित और गरीबों की दमन की यह प्रक्रिया आज के समय में सीएए और एनपीआर के रूप में हमारे देश के सामने हैं, जहां एक बार फिर देश में फैले हुए बेरोजगारी, अशिक्षा व महंगाई से ध्यान भटका कर सभी को पुनः अपनी नागरिकता साबित करने के लिए पंक्तियों में खड़ा कर दिया है। सीएए संविधान की मूल भावना के साथ खिलवाड़ है। एनआरसी और एनपीआर लाकर गांधी, अम्बेडकर के इस देश में फिर से एक बार विभाजनकारी नीतियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। ऐसे में हम छात्र समुदाय के लिए यह जरूरी हो गया है कि हम अपनी कक्षाओं से निकल कर सरकार की इस विभाजनकारी नीतियों की मुखालिफ़त करें और देश में एक बार फिर से अमन एवं मोहब्बत का वातावरण तैयार करें।'

jadhav pur

पश्चिम बंगाल की जादवपुर यूनिवर्सिटी में भी छात्रों ने Student’s Against Fascism’ नाम से एक गोष्ठी का आयोजन किया। इसमें हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के अध्यक्ष अभिषेक कुमार, जेएनयू के प्रोफेसर प्रभात पटनायक भी शामिल हुए। इस दौरान सभी प्रवक्ताओं ने समाज के सभी तबके के लोगों के लिए समान शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य और न्याय पर जोर दिया।

विश्वविद्यालय की छात्रा देबाश्री ने कहा, ‘रोहित वेमुला आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका संघर्ष हमें आगे बढ़ाना है। यहां सभी जानते हैं कि आखिर उन्हें किस अपराध की सज़ा मिली है। क्यों भारतीय जनता पार्टी के नेता और केंद्र सरकार में श्रम-रोज़गार राज्य मंत्री रहे बंडारू दत्तात्रेय ने मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को खत लिखकर कहा कि यूनिवर्सिटी राष्ट्र विरोधियों का अड्डा बन गई है। क्योंकि रोहित और उनके साथी सरकार के खिलाफ,अत्याचार के खिलाफ खड़े हुए।'

इसी कड़ी में पुणे के भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान के छात्रों ने दीपा धनराज द्वारा निर्देशित रोहित वेमुला के संघर्ष की बनी डॉक्यूमेंट्री 'We Have Not Come Here To Die’ प्रदर्शित की। छात्रों ने इस दौरान रोहित के अंतिम पत्र के माध्यम से उनके जीवन की व्यथा को समझने की कोशिश की।

rohit

एफटीआईआई पुणे के छात्र अनिरूद्ध ने न्यूज़क्लिक को बताया, ‘रोहित वेमुला खुद को केवल दलित मानने से इनकार करते रहे, वे विज्ञान-लेखक बनना चाहते थे। लेकिन प्रशासन और सरकार उनके तेवरों से डर गई। इसमें कोई शक नहीं है कि रोहित की मौत के लिए रोहित नहीं बल्कि अकादमिक समुदाय की क्रूर कायरता ज़िम्मेदार है। आज रोहित जिंदा होता अगर हैदराबाद विश्वविद्यालय के नए कुलपति और उनकी कार्यपरिषद ने ‘राष्ट्रवादी’ दबाव के आगे घुटने नहीं टेके होते।'

गौरतलब है कि रोहित वेमुला के आत्महत्या मामले में सरकार द्वारा गठित आयोग की रिपोर्ट के अनुसार रोहित व्यक्तिगत कारणों के चलते दबाव में था लेकिन रोहित के अंतिम खत की कहनी उनके जीवन की कड़वी सच्चाई को बयां करती है। रोहित ने लिखा था...

'एक आदमी की क़ीमत उसकी तात्कालिक पहचान और नज़दीकी संभावना तक सीमित कर दी गई है, एक वोट तक। आदमी एक आंकड़ा बन कर रह गया है, मात्र एक वस्तु। कभी भी एक आदमी को उसके दिमाग़ से नहीं आंका गया।'

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest