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रुपये की हालत पतली, अपने रिकॉर्ड निचले स्तर को छुआ

आज सोमवार को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 36 पैसे गिरकर 78.29 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया | जबकि शुक्रवार को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 19 पैसे गिरकर 77.93 के स्तर पर बंद हुआ था |
rupee

पिछले कुछ समय से रुपये की कीमत में लगातार गिरावट देखी जा रही है | रुपये की कीमत आज पहली बार अब तक के अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गयी | आज सोमवार को बाज़ार खुलने पर रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 36 पैसे गिरकर 78.29 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया| जबकि इंटरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 78.20 पर खुला था, फिर ख़रीदारी शुरू होने के बाद से गिरकर 78.29 पर आ गया था | वहीं शुक्रवार को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 19 पैसे गिरकर 77.93 के स्तर पर बंद हुआ था |

रुपये की गिरती कीमत को सुनते ही लोगों के मन में कई तरह के सवाल घूमने लगते हैं | सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि रुपये की क़ीमत गिरने से देश की अर्थव्यवस्था और आम लोगों की जेब पर क्या प्रभाव पढ़ने वाला है |

बड़े-बड़े अर्थशास्त्रियों का मानना है कि रुपये की कीमत गिरने में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियां दोनों जिम्मेदार होती हैं | जैसे मौजूदा समय में रूस-यूक्रेन युद्ध, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें, अमेरिका में बढ़ती महंगाई आदि कई कारणों से रुपये की कीमत में गिरावट आ रही है |

हम राजनीतिक दलों की बात करें तो, राजनीतिक दल विपक्ष में रहते हुए रुपये की गिरती कीमत को लेकर बड़ा मुद्दा बनाते हैं लेकिन खुद सत्ता में आते ही इसे भूल जाते हैं| जैसे 2014 से पहले नरेंद्र मोदी और भाजपा, यूपीए सरकार पर रुपये की गिरती कीमत को लेकर हमला बोलते रहते थे | और रुपये की कीमतों को काबू करने को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करते रहते थे | और अब ये देखने वाली बात है कि रुपये की सबसे बुरी हालत मोदी जी के कार्यकाल में ही हुई है। इससे भी बड़ी बात यह है कि सत्ता में आने बाद से मोदी जी लगातार पतले होते रुपये को लेकर न तो चिंतित दिखाई देते हैं, न ही कभी इस पर चर्चा करते हैं| आख़िर क्या कारण है की सरकार और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) इसको काबू कर पाने में असमर्थ दिखाई दे रहे हैं, इस मुद्दे पर बात करने से पहले हम बात कर लेते हैं कि रुपये की गिरती कीमतों से आम लोग कितने प्रभावित होते हैं|

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रुपये की कीमत गिरने के जो भी कारण रहे हों लेकिन एक आम आदमी की जेब पर इसका क्यों और कितना असर पढ़ने वाला है इसका सीधा उत्तर है कि हम अपनी जरूरतों का बड़ा हिस्सा विदेशों से आयात करते है| किसी भी देश से वस्तुओं का आयात डॉलर में किया जाता है, यानी डॉलर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वस्तुओं को बेचने और ख़रीदने में इस्तेमाल की जाने वाली मुद्रा है, हालांकि देश के भीतर आम लोगों को उन वस्तुओं को खरीदने के लिए रुपये में ही भुगतान करना होता है | इसलिए जब भी हम बाहर देश से खरीदारी करेंगे तो हमें सौ डालर की चीज़ के लिए अपने ज़्यादा भारतीय रुपये ख़र्च करने होंगे।

अगर डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत कमज़ोर होगी तो हमारी स्थिति कमज़ोर होती जाएगी। हमें ज्यादा मुद्रा देकर वस्तुओं का आयात करना पड़ेगा, जिसके कारण आयात की गयी वस्तुओं के दाम भी बढ़ जाएंगे जिसका सीधा असर लोगों की जेब पर पड़ेगा|

वहीं अगर आप शिक्षा या स्वास्थ्य सुविघाओं के लिए विदेशों में जाना चाहते हैं तो, रुपये की कीमत गिरने के कारण आपको शिक्षा या स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए भी ज्यादा रकम चुकानी पड़ेगी |

हालांकि सरकार और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया कुछ उपाय अपनाकर रुपये की कीमत को एक हद तक काबू कर सकते हैं| जैसे आयात पर पाबंदियां, आयात शुल्क बढ़ाना, उससे भी रुपये की कीमत को काबू किया जा सकता है | लेकिन देश के भीतर इसके काफ़ी दुष्परिणाम हो सकते हैं | वहीं रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया भी ब्याज़ दरों में वृद्धि कर दे तो लोगों के क्रेडिट लेने की क्षमता कम हो जाएगी, जिसके कारण लोग कम ख़रीदारी करेंगे| लेकिन यह रास्ता बहुत ज्यादा नुकसान दायक हो सकता है | इसके अलावा कुछ देशों से अपनी ही मुद्रा में व्यापार करके भी अपने रुपये की कीमत और अर्थव्यवस्था को कुछ हद तक संभाला जा सकता है।

बीबीसी में दिए गए अपने इंटरव्यू में वरिष्ठ अर्थशास्त्री इला पटनायक कहती हैं कि लोगों को ये उम्मीद करनी चाहिए कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया कोई पैनिक बटन इस्तेमाल न करे | क्योंकि अगर रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया दबाव में आकर ब्याज़ दरों में वृद्धि करने लगे तो जिस तरह 2013 में ब्याज़ दरें बढ़ाने से अर्थव्यवस्था में और गिरावट देखी गई थी | निवेश कम हुआ था, क्रेडिट ग्रोथ कम हुई थी, रोजगार की दर भी कम हो गयी थी और फिर से वही सारी चीज़ें दोबारा होंगी जिससे आम आदमी को इससे ज़्यादा नुकसान पहुंचेगा |

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