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कैदियों की रिहाई को लेकर SC ने चिंता जताई, राष्ट्रपति भी हो चुकी हैं भावुक, खुलेगा लाखों कैदियों की रिहाई का रास्ता?

"सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों से ऐसे विचाराधीन कैदियों की सूची मांगी है जिन्हें जमानत तो मिल गई है लेकिन वे बेल बॉन्ड नहीं भर पाने के कारण अभी भी जेलों में बंद हैं। राष्ट्रपति की भावुक अपील के बाद शीर्ष अदालत के निर्णय से देश की जेलों में बंद लाखों कैदियों की रिहाई का रास्ता खुलता दिख रहा है।"
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विचाराधीन कैदियों की शीघ्र रिहाई सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ऐसे कैदियों पर डेटा एकत्र करने का निर्देश दिया, जिन्हें जमानत मिल गई है, लेकिन वे इसकी शर्तों का पालन करने में असमर्थता के कारण जेल से बाहर नहीं आ सकते हैं। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एएस ओका की बेंच ने मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि राज्य ऐसे कैदियों का डेटा 15 दिन के भीतर कोर्ट को दे। इससे देश की जेलों में बंद लाखों कैदियों की रिहाई का रास्ता खुला है।

गृह मंत्रालय द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट "प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2021" के अनुसार 2016-2021 के बीच जेलों में बंदियों की संख्या में 9.5 प्रतिशत की कमी आई है जबकि विचाराधीन कैदियों की संख्या में 45.8% की वृद्धि हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक चार में से तीन कैदी विचाराधीन हैं। 31 दिसंबर 2021 तक लगभग 80 प्रतिशत कैदियों को एक वर्ष तक की अवधि के लिए जेलों में बंद रखा गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में रिहा किए गए 95 प्रतिशत विचाराधीन कैदियों को अदालतों ने जमानत दे दी थी, जबकि अदालत द्वारा बरी किए जाने पर केवल 1.6% को रिहा किया गया था।

खास है कि 26 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में अपने पहले संविधान दिवस पर संबोधन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने गरीब आदिवासियों के जेलों में बंद रहने का मुद्दा उठाया था। उन्होंने आदिवासी इलाकों में उनकी दुर्दशा पर रोशनी डालते हुए कहा था कि जमानत राशि भरने के लिए पैसे की कमी के कारण वे जमानत मिलने के बावजूद जेलों में बंद हैं। राष्ट्रपति ने न्यायपालिका से गरीब आदिवासियों के लिए कुछ करने का आग्रह किया था। मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने राज्य सरकारों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि 15 दिनों की अवधि के भीतर जेल अधिकारियों द्वारा, कैदियों के नाम, अपराध का स्वरूप, जमानत की तारीख, जमानत की शर्तें जो पूरी नहीं हुईं और जमानत दिए जाने की अवधि और जमानत आदेश की तिथि आदि विवरण सहित जरूरी जानकारी उन्हें उपलब्ध कराई जाए। इसके बाद एक सप्ताह के भीतर राज्य सरकारों को नालसा को डेटा भेजना है। कोर्ट ने कहा, "नालसा तब इस मुद्दे पर आवश्यक विचार-विमर्श करेगा और स्पष्ट रूप से आवश्यक सहायता प्रदान करेगा।"

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस कौल ने माना कि ऐसे कई मामले हैं जहां जमानत दिए जाने के बाद भी कैदी सिर्फ इसलिए जेलों में सड़ रहे हैं क्योंकि वे जमानत की शर्तें पूरी नहीं कर पाए हैं। जस्टिस कौल ने कहा, "समस्या उन राज्यों में अधिक है जहां वित्त साधन एक चुनौती है।" जस्टिस कौल ने पिछले शुक्रवार को नालसा के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला है। उन्होंने पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट में संविधान दिवस समारोह में बोलते हुए विचाराधीन कैदियों की समस्याओं के बारे में बात की थी।

सुप्रीम कोर्ट: लोकतंत्र पुलिस तंत्र जैसा नहीं लगना चाहिए

मंगलवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस कौल ने कहा, "हम जानते हैं कि लंबे समय तक जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की एक बड़ी समस्या है और यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर हमें तत्काल ध्यान देना चाहिए।" वहीं जस्टिस एएस ओका ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस मुद्दे को हल करने का एकमात्र तरीका जमानत की शर्तों में संशोधन की मांग करना हो सकता है, जो कैदियों द्वारा पूरी नहीं की जा सकती हैं। उन्होंने संकेत दिया कि प्रत्येक मामले में इस तरह के संशोधन के लिए एक आवेदन दायर करना होगा। इसलिए, ऐसे मामलों की संख्या का डेटा संग्रह महत्वपूर्ण है।

बेंच ने अपने आदेश में ये भी कहा कि NALSA जमानत आदेशों के निष्पादन को प्रभावी बनाने के लिए TISS की सहायता ले सकता है। सुनवाई के दौरान एमिकस ने प्रस्तुत किया कि कर्नाटक कानूनी सेवा प्राधिकरण ने सूचित किया था कि कर्नाटक में सभी 52 जेलों में ई-जेल मॉड्यूल लागू किया गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि क्या अन्य राज्यों द्वारा भी इसे लागू किया जा सकता है। उनके सुझाव पर विचार करते हुए बेंच ने कहा कानूनी सहायता सूचना मॉड्यूल कर्नाटक जेल में सक्षम नहीं था। NALSA के साथ हुई बैठक का परिणाम सामने आया है। कुछ महत्वपूर्ण विशेषताओं वाले ई-जेल मॉड्यूल प्रभावी निगरानी को सक्षम करेगा। एमिकस का समाधान यह है कि ई-जेल मॉड्यूल एसएएलएसए और जेल अधिकारियों के बीच समन्वय के साथ पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए। दो महीने की अवधि के भीतर पूरा किया जाना चाहिए। खंडपीठ ने यह सुझाव भी दर्ज किया कि ई-जेल मॉड्यूल को कुछ महत्वपूर्ण अदालत-डेटा जैसे जमानत देने के आदेश, जमानत आदेशों के कार्यान्वयन की स्थिति आदि को दर्शाने के लिए संशोधित किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि सुझावों में से एक यह है कि ई-जेल मॉड्यूल को जमानत देने के आदेशों के संबंध में डेटा अपलोड करने के लिए संशोधित किया जा सकता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा था...

यही नहीं, इसी साल जुलाई माह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली अखिल भारतीय जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की बैठक के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा था, "कई कैदी ऐसे हैं जो वर्षों से जेलों में कानूनी सहायता के इंतजार में पड़े हैं। हमारे जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण इन कैदियों को कानूनी सहायता प्रदान करने की जिम्मेदारी ले सकते हैं।" मोदी ने अप्रैल में राज्यों के मुख्यमंत्रियों और हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन के उद्घाटन में भी विचाराधीन कैदियों का मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा था, "आज देश में करीब साढ़े तीन लाख कैदी ऐसे हैं जो विचाराधीन हैं और जेल में हैं। इनमें से अधिकांश लोग गरीब या सामान्य परिवारों से हैं। प्रत्येक जिले में जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति होती है, ताकि इन मामलों की समीक्षा की जा सके और जहां भी संभव हो ऐसे कैदियों को जमानत पर रिहा किया जा सकता है।" उन्होंने कहा था, "मैं सभी मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से मानवीय संवेदनशीलता और कानून के आधार पर इन मामलों को प्राथमिकता देने की अपील करूंगा।"

राष्ट्रपति ने की थी भावुक अपील

खास है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्म ने संविधान दिवस पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित अहम चर्चा में हिंदी में बोलते हुए न्यायपालिका से गरीब आदिवासियों के लिए कुछ करने का आग्रह किया था। उन्होंने कहा था कि गंभीर अपराधों के आरोपी मुक्त हो जाते हैं, लेकिन गरीब कैदियों जो हो सकता है किसी को थप्पड़ मारने के लिए जेल गए हों, को रिहा होने से पहले वर्षों जेल में बिताने पड़ते हैं। राष्ट्रपति जिस समय ये बातें कह रहीं थीं उस समय न्यायमूर्ति एसके कौल प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के साथ मंच पर बैठे थे जब राष्ट्रपति ने अपने ओडिशा में विधायक के रूप में और बाद में झारखंड की राज्यपाल के रूप में कई विचाराधीन कैदियों से मिलने का अपना अनुभव बताया। राष्ट्रपति ने कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका से लोगों की समस्याओं को कम करने के लिए एक प्रभावी विवाद समाधान तंत्र विकसित करने का आग्रह करते हुए कहा था कि न्याय प्राप्त करने की प्रक्रिया को सस्ती बनाने की जिम्मेदारी हम सभी पर है।

अंग्रेजी में अपने लिखित भाषण से हटकर द्रौपदी मुर्मू ने हिंदी में बोलते हुए न्यायपालिका से गरीब आदिवासियों के लिए कुछ करने का आग्रह किया था। उन्होंने कहा था कि गंभीर अपराधों के आरोपी मुक्त हो जाते हैं लेकिन इन गरीब कैदियों, जो हो सकता है किसी को थप्पड़ मारने के लिए जेल गए हों, को रिहा होने से पहले वर्षों जेल में बिताने पड़ते हैं।

मुर्मू ने मामूली अपराधों के लिए वर्षों से जेलों में बंद गरीब लोगों की मदद करके वहां कैदियों की संख्या कम करने का सुझाव दिया था। उन्होंने कहा था, “कहा जाता है कि जेलों में कैदियों की भीड़ बढ़ती जा रही है और और जेलों की स्थापना की जरूरत है। क्या हम विकास की ओर बढ़ रहे हैं? और जेल बनाने की क्या जरूरत है? हमें उनकी संख्या कम करने की जरूरत है।”

राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा था कि जेलों में बंद इन गरीब लोगों के लिए कुछ करने की जरूरत है। उन्होंने कहा था, “आपको इन लोगों के लिए कुछ करने की जरूरत है। कौन हैं ये लोग जो जेल में हैं? वे मौलिक अधिकारों, प्रस्तावना या मौलिक कर्तव्यों को नहीं जानते हैं। हमारा काम लोगों (जेल में बंद गरीब विचाराधीन कैदियों) के बारे में सोचना है। हम सभी को सोचना होगा और कोई न कोई रास्ता निकालना होगा… मैं यह सब आप पर छोड़ रही हूं।”

साभार : सबरंग 

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