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सेबी की ओर से किये गये एक नियम में बदलाव से कैसे रिलायंस को 53,000 करोड़ रुपये जुटाने में मदद मिली

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड द्वारा शेयरों के हाल ही में संपन्न राइट्स इश्यू का जारी करना संभव नहीं होता, अगर मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली कंपनी द्वारा उसके शेयरों के लिए 53,000 करोड़ रुपये से अधिक जुटाने के लिए देश के अबतक के सबसे बड़े राइट्स इश्यू लाने की घोषणा से कुछ दिन पहले ही भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड द्वारा एक अहम नियम में छूट नहीं मिली होती। यह भारत के सबसे बड़े निजी समूह पर एक श्रृंखला का छठा लेख है।
SEBI rule change helped Reliance to raise Rs 53000 crore

मुंबई / गुरुग्राम: भारत के सबसे अमीर शख़्स मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (आरआईएल) के शेयर की क़ीमत सोमवार 22 जून को उछलकर 1,804 रुपये से ज़्यादा की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गयी। इस प्रकार, आरआईएल 150 बिलियन डॉलर या क़रीब 11,44,00,00,000,000 रुपये से ज़्यादा बाज़ार पूंजीकरण वाला पहला भारतीय समूह बन गया।

(बाज़ार पूंजीकरण वह राशि होती है,जिसे समय के एक ख़ास बिंदु पर किसी कंपनी के शेयर की क़ीमत को उसके कुल शेयरों से गुणा करके हासिल किया जाता है।)

ब्लूमबर्ग के मुताबिक़, आरआईएल के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, मुकेश अंबानी की कुल संपत्ति 64.5 बिलियन डॉलर की हो गयी है, जिससे वह दुनिया के 10 सबसे अमीर शख़्सियतों में एकमात्र एशियाई बन गये हैं।

20 मई से 3 जून के बीच आरआईएल ने अपने शेयरों का राइट्स इश्यू जारी किया। (राइट्स इश्यू में कंपनी अपने मौजूदा शेयरधारकों को कभी-कभी रियायती दर पर अपना शेयर देकर फ़ंड जुटाती है।) आरआईएल द्वारा जारी राइट्स इश्यू से 53,125 करोड़ रुपये जुटायेगा,जो किसी भी भारतीय कंपनी द्वारा इस तरह की क़वायद से जुटायी गयी अबतक की सबसे बड़ी राशि है।

न्यूज़क्लिक में प्रकाशित पिछले पांच लेखों में से दो लेखों में हमने आरआईएल के मूल्यांकन और सरकारी नियमों और मानदंडों में किये गये उन बदलाव को देखते हुए इस राइट्स इश्यू की विस्तार से जांच-पड़ताल की है, जिन बदलावों ने उन्हें सुगम बना दिया और इस तरह के कैपिटल इश्यू के संचालन को भी आसान कर दिया।

इस लेख में हम एक और नियम में हुए बड़े अहम बदलाव पर नज़र डाल रहे हैं, जिसने आरआईएल को अपने ही तरीक़े से राइट्स इश्यू को संचालित करने की पात्रता दे दी। भारत के शेयर बाज़ारों और वित्तीय क्षेत्र के नियामक, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा जारी नियमों के एक समूह में अगर बारीक़ी से एक अहम बदलाव नहीं लाया गया होता, तो फ़ंड जुटाने की यह पूरी क़वायद मुमकिन नहीं होती।

21 अप्रैल को जारी एक अधिसूचना में सेबी ने कुछ ऐसे नियमों को शिथिल कर दिया, जो किसी कंपनी को उस तरह "फास्ट ट्रैक" मोड में शेयरों के राइट्स इश्यू की मांग करने से रोक देते हैं,जिस तरह से आरआईएल ने किया था और वह भी तब,जब कंपनी के ख़िलाफ़ ऐसे मामले चल रहे हों, जिनमें सेबी ने आरोप लगाया हो कि प्रतिभूतियों के व्यापार से सम्बन्धित क़ानूनों का उल्लंघन किया गया है।

नियमों में दी गयी यह छूट आरआईएल के लिए पूरी तरह अनुकूल है, क्योंकि इस समय कंपनी पर सेबी की तरफ़ से लगाये गये अनधिकृत कारोबार के आरोपों से सम्बन्धित एक क़ाननी कार्यवाही चल रही है और इसलिए, कंपनी को एक फास्ट-ट्रैक राइट्स इश्यू के संचालन से रोक दिया गया है। आरआईएल के बोर्ड ने 30 अप्रैल को सेबी की अधिसूचना के नौ दिन बाद इस राइट्स इश्यू को मंज़ूरी दे दी।

रिलायंस की कर्ज़ मुक्त होने की योजना  

20 जून को अंबानी ने यह ऐलान कर दिया कि अप्रैल की शुरुआत से 1.68 लाख करोड़ रुपये जुटाने के बाद आरआईएल अब "ऋण-मुक्त" हो गया है। यह अगस्त 2019 में प्रस्तावित एक योजना की पराकाष्ठा के रूप में सामने आया, जब आरआईएल की वार्षिक आम बैठक में अंबानी ने इस बात का ऐलान किया कि कंपनी अपने उस कर्ज़ के बोझ को कम करने के लिए कई सौदों की योजना बना रही है,जो कि 31 मार्च, 2019 के अंत तक 1.54 लाख करोड़ रुपये का था।

जैसा कि हमारे पहले के लेखों में इस बात का ज़िक़्र है कि सऊदी अरब के अरामको की तरफ़ से आरआईएल के पेट्रोलियम रिफ़ाइनिंग और पेट्रोकेमिकल व्यवसायों में 15 बिलियन डॉलर के नियोजित निवेश, जो कि अंबानी द्वारा घोषित पूंजी जुटाने की योजना का एक बड़ा हिस्सा था, उसकी नाकामी के बाद कंपनी ने धन जुटाने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग की तलाश की।

अप्रैल के बाद से आरआईएल की एक सहायक कंपनी, जियो प्लेटफॉर्म्स लिमिटेड ने हिस्सेदारी की बिक्री के ज़रिये फ़ंड जुटाने की होड़ में लगी रही। अब तक घोषित 11 निवेश सौदों में इस कंपनी ने अपनी स्वामित्व हिस्सेदारी का पांचवां हिस्सा बेचकर लगभग 1.1 लाख करोड़ रुपये जुटा लिये हैं।

जियो प्लेटफ़ॉर्म्स रिलायंस जियो इन्फ़ोकॉम लिमिटेड सहित आरआईएल की विभिन्न डिजिटल और दूरसंचार कंपनियों की मूल कंपनी है, यही कंपनी आरजिओ की इंटरनेट, मोबाइल, डेटा और टेलीविज़न सेवाओं, और जियो सावन, जियो सिनेमा और हैप्टिक सहित अन्य कंपनियों के पीछे खड़ी है।

अमेरिकन सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनी, फ़ेसबुक इंक के अलावे, बाकी निवेशक निजी इक्विटी फ़ंड केंद्रित अमेरिकी आधारित प्रौद्योगिकी की पकड़ वाले रहे हैं, जो आम तौर पर सॉफ़्टवेयर और तकनीकी स्टार्ट-अप्स में निवेश करते हैं, जबकि तीन अन्य उभरती हुई निवेशक ऐसी कंपनियां हैं,जो अबू धाबी और सऊदी अरब से बाहर स्थित संप्रभु नियंत्रित निवेश फ़ंड कंपनी हैं।

30 अप्रैल को घोषित आरआईएल का राइट्स इश्यू न सिर्फ़ भारत का सबसे बड़ा राइट्स इश्यू था, बल्कि तीन दशकों में कंपनी के लिए भी अपनी ही तरह का यह पहला मामला था। आरआईएल के शेयरधारक 20 मई से 3 जून के बीच,यानी दो सप्ताहों के लिए रियायती दर पर इस नये आरआईएल शेयर ख़रीदने के हक़दार माने गये।

किसी शेयरधारक द्वारा रखे गये प्रत्येक 15 शेयरों के लिए 30 अप्रैल को स्टॉक के समापन मूल्य पर एक शेयर की पेशकश 14% छूट के साथ की गयी थी। 3 जून को जब यह राइट्स इश्यू बंद हुआ, तो बताया गया कि इसके 53,125 करोड़ रुपये के घोषित मूल्य से 1.59 गुना अधिक "सब्सक्राइब" किया गया है।

सेबी द्वारा महत्वपूर्ण परिवर्तन

अब सवाल उठता है कि सेबी द्वारा नियम में किया गया बदलाव आख़िर क्या था, जिसने आरआईएल के लिए मुमकिन बना दिया कि उसके राइट्स इश्यू की यह क़वायद पहले पायदान पर पहुंच गया?

राइट्स इश्यू के संचालन के लिए क़ानूनी और वैधानिक ज़रूरतें सेबी इश्यूज़ कैपिटल एंड डिस्क्लोज़र रिक्वायरमेंट्स (ICDR) रेग्यूलेशन द्वारा नियंत्रित होती हैं। सेबी के 21 अप्रैल के सर्कुलर में आईसीडीआर विनियमों में निर्धारित कई नियमों में परिवर्तन को अधिसूचित किया गया।

यह कहते हुए कि "कोविड-19 महामारी से सम्बन्धित घटनाक्रमों के मद्देनजर प्रतिभूति बाज़ार से धन जुटाने से सम्बन्धित शर्तों में ढील के लिए उद्योग निकायों और बाजार सहभागियों की तरफ़  से सेबी को कई सुझाव मिले हुए हैं" इस सर्कुलर में फ़ंड जुटाने की चाह रखने वाली कंपनियों के लिए अनुपालन बोझ कम करने की मांग की गयी है।

उन कंपनियों को आईसीडीआर विनियमन से सम्बन्धित विशेष छूट दी गयी है,जो भारतीय प्रतिभूति क़ानूनों के उल्लंघन के आरोपों का सामना कर रही है। आईसीडीआर नियम के उप-नियम 99, इन कंपनियों के लिए फ़ास्ट-ट्रैक मोड में राइट्स इश्यू का संचालन करने के लिए पात्रता शर्तों को नियंत्रित करते हैं। आईसीडीआर नियमों के उप-नियम 99 (एच) में निर्दिष्ट किया गया है कि सिर्फ़ उन कंपनियों को,जिनके ख़िलाफ़ "कोई कारण बताओ नोटिस जारी नहीं किया गया है या बोर्ड की तरफ़ से अभियोजन की कार्यवाही शुरू नहीं की गयी है और संदर्भ तिथि पर जारीकर्ता या इसके प्रवर्तकों या पूर्णकालिक निदेशकों के खिलाफ मामला लंबित हैं", उन्हें ही शेयरों के फ़ास्ट-ट्रैक राइट्स इश्यू जारी करने की अनुमति है।

आईसीडीआर विनियमों के संशोधित नियम 99 (एच) को 21 अप्रैल के इस सर्कुलर में निम्नानुसार बताया गया है:

“चल रहे अधिनिर्णय कार्यवाही को छोड़कर, बोर्ड द्वारा कोई कारण बताओ नोटिस जारी नहीं किया गया है और संदर्भ तिथि पर जारीकर्ता या उसके प्रवर्तकों या पूर्णकालिक निदेशकों के ख़िलाफ़ मामला लंबित है; “ऐसे मामलों में, जहां जारीकर्ता या इसके प्रवर्तकों / निदेशकों / समूह कंपनियों के ख़िलाफ़,

“i) किसी अधिनिर्णय कार्यवाही में बोर्ड की तरफ़ से कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है या

“ii) बोर्ड की तरफ़ से अभियोजन की कार्यवाही शुरू की गयी है;

“इस तरह की कार्रवाई (कार्रवाइयों) के सम्बन्ध में जारीकर्ता पर इसके संभावित प्रतिकूल प्रभाव के ज़रूरी ख़ुलासे इस प्रस्ताव पत्र में किये जायेंगे।”

इस छूट ने उन कंपनियों को भी अनुमति दे दी,जिनके ख़िलाफ़ राइट्स इश्यू की घोषणा करते हुए उनके प्रस्ताव पत्र में इन कार्यवाहियों का खुलासा किया गया था कि उनके ख़िलाफ़ अधिनिर्णयन चल रहा है और अभियोजन की कार्यवाही चल रही है, जबकि इस विनियमन के पहले संस्करण के तहत ऐसी कंपनियों को इस मुद्दे पर आगे बढ़ने से रोक दिया गया होता।

जैसा कि इस समय जो मामला चल रहा है और शायद यह संयोग भी नहीं है कि आरआईएल इस तरह की कार्यवाही का सामना कर रही है, जो कि एक दशक से ज़्यादा पहले की अनधिकृत कारोबार के आरोप से सम्बन्धित है। असल में नियम में दी जाने वाली वह छूट ही थी, जिसने आरआईएल के लिए अपने राइट्स इश्यू के संचालन को मुमकिन कर दिखाया।

रिलायंस के ख़िलाफ़ अनिधिकृत कारोबार के आरोप

"आउटस्टैंडिंग लिटिगेशन एंड डिफ़ॉल्ट्स" शीर्षक के तहत अपने राइट्स इश्यू के प्रस्ताव पत्र में आरआईएल ने निम्नलिखित खुलासे किये हैं:

“16 दिसंबर, 2010 को सेबी ने हमारी कंपनी और पूर्ववर्ती पाइपलाइन इन्फ्रास्ट्रक्चर (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड (हमारी कंपनी के प्रमोटर और प्रमोटर समूह से संबंधित एक इकाई, सिक्का पोर्ट्स एंड टर्मिनल्स लिमिटेड के साथ विलय के बाद) एससीएन [कारण बताओ नोटिस], जारी किया था। यह कारण बताओ नोटिस हमारी कंपनी की तत्कालीन सहायक कंपनी रिलायंस पेट्रोलियम लिमिटेड के शेयरों में हमारी उस कंपनी के कारोबार के सम्बन्ध में था, जिसका हमारी कंपनी के साथ विलय हो चुका है।

“2011 में सेबी के सामने इन नोटिस द्वारा सहमति (निपटान) आवेदन पत्र दाखिल किये गये थे, जिन्हें नामंज़ूर कर दिया गया था। इसी बीच, इस कारण बताओ नोटिस के सिलसिले में सेबी के पूर्णकालिक सदस्य ("डब्ल्यूटीएम") के समक्ष सुनवाई हुई। 24 मार्च, 2017 के एक आदेश में सेबी के तत्कालीन पूर्णकालिक सदस्यों ने ये निर्देश पारित किये थे: (i) अन्य बातों के साथ-साथ,इस आदेश की तिथि से एक वर्ष की अवधि के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्टॉक एक्सचेंजों के ‘फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस ’ सेगमेंट में इक्विटी डेरिवेटिव के सौदों के लिए इन नोटिस पर रोक , और (ii) उन कंपनी को भुगतान की तारीख़ के बाद,29 नवंबर, 2007 से 12% प्रति वर्ष की दर के ब्याज़ के साथ-साथ 7 447.27 करोड़ की राशि वापस करना।

“मई 2017 में इस नोटिस के अलावे इस आदेश के ख़िलाफ़ प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण ("SAT") के सामने अपील की गयी। सैट ने इस अपील के निस्तारण तक रक़म की वापसी को लेकर दिशा-निर्देश पर रोक लगा दी थी। सैट ने इस अपील की सुनवाई की है और अपने  आदेशों को सुरक्षित रख लिया है। 23 मार्च, 2018 को ‘फ़्यूचर्स एंड ऑप्शंस’ सेगमेंट के इक्विटी डेरिवेटिव्स में सौदा करने से रोक लगा दी है। यह मामला फ़िलहाल लंबित है।

“इसके अलावे,आगे चलकर 21 नवंबर, 2017 को सेबी ने वर्ष 2007 में हमारी कंपनी द्वारा रिलायंस पेट्रोलियम लिमिटेड के शेयरों में ट्रेडिंग  से सम्बन्धित इसी मामले में हमारी कंपनी और इसके अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक से पूछते हुए सेबी ने हमारी कंपनी और इसके अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक को कारण बताओ नाटिस जारी कर दिया,जिसमें कहा गया कि सेबी (अधिनिर्णय अधिकारी द्वारा जांच कराने और दंड लगाने की प्रक्रिया) के नियम, 1995 के सिलसिले में जांच-पड़ताल क्यों नहीं होनी चाहिए और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के तहत जुर्माना क्यों नहीं लगाया जाना चाहिए।

“हमारी कंपनी और इसके अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक ने इस कारण बताओ नोटिस के जवाब में 15 जून, 2018, 12 सितंबर, 2018 और 20 सितंबर, 2019 को अनुपालन का लिखित निवेदन प्रस्तुत किये थे। 11 सितंबर, 2018, 24 जनवरी, 2020 और 12 मार्च, 2020 को अधिनस्थ अधिकारी के समक्ष सुनवाई तो हुई,लेकिन इस मामले की पूरी सुनवाई नहीं हो पायी। यह मामला, जिसमें अधिनिर्णयन की कार्यवाही शुरू की गयी है, इस समय लंबित है। इस कार्यवाही के किसी भी प्रतिकूल नतीजे का हमारी कंपनी की प्रतिष्ठा पर असर पड़ सकता है।”

यह मामला रिलायंस पेट्रोलियम लिमिटेड के शेयरों में अनधिकृत कारोबार के आरोपों से सम्बन्धित है। सेबी के एक पूर्णकालिक सदस्य,जी.महालिंगम ने अपने पारित अधिनिर्णयन आदेश में इस बात का ऐलान किया था कि नवंबर 2007 में आरआईएल और इसके "अग्रिम" कंपनियों के रूप में कार्य करने वाली 12 अन्य कंपनियों ने एक "सुनियोजित, धोखाधड़ी और हेरफेर कारोबारी योजना का संचालन किया,जिसका मक़सद भारी सट्टा मुनाफ़ा कमाना था।"

महालिंगम द्वारा दिये गये मार्च 2017 के आदेश में इस बात को स्वीकार किया गया था कि आरआईएल ने 447.27 करोड़ रुपये का अवैध मुनाफ़ा कमाया है, और तदनुसार कंपनी को उस राशि को वापस कर  देने(Disgorge) का आदेश दिया गया था, और जुर्माना के रूप में आरआईएल को एक साल के लिए इक्विटी डेरिवेटिव ब़ाजार में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया था। (डिस्गॉर्ज यानी ‘राशि की वापसी’ एक ऐसा शब्द है,जिसका इस्तेमाल किसी प्रतिष्ठान द्वारा उसकी इच्छा के ख़िलाफ़ भुगतान किये जाने के लिए किया जाता है)

जैसा कि आरआईएल ने अपने प्रस्ताव पत्र में इस बात का ख़ुलासा किया था कि हालांकि कंपनी इस समय प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (सैट) के समक्ष मार्च 2017 के आदेश की अपील कर रही है, उसी मामले में एक और कारण बताओ नोटिस नवंबर 2017 में सेबी द्वारा जारी किया गया था, जिसके बारे में सुनवाई अभी भी जारी है ।

यह साफ़ है कि 21 अप्रैल के उस सर्कुलर के ज़रिये सेबी की आईसीडीआर विनियमों से छूट नहीं मिलती, तो आरआईएल अपने उस रिकॉर्डतोड़ राइट इश्यू का संचालन करने में सक्षम नहीं होता, जिसने इसे 53,000 करोड़ रुपये से अधिक जुटाने में उसे सक्षम बनाया।

प्रस्ताव पत्र के दाखिल मसौदे नामंज़ूर

सेबी के 21 अप्रैल की अधिसूचना द्वारा लाये गये आईसीडीआर विनियमों में एक और बदलाव ने आरआईएल को अपने राइट्स इश्यू को तेज़ी से संचालित करने में सक्षम बनाया।

पहले के आईसीडीआर नियमों के तहत 10 करोड़ रुपये से अधिक का राइट्स इश्यू जारी करने की मांग करने वाली कंपनी को पहले सेबी के साथ अपने प्रस्ताव पत्र के मसौदा को दाखिल करना होता था। नियामक को टिप्पणियों और आपत्तियों के साथ जवाब देने और प्रस्ताव पत्र के मसौदे में किसी भी बदलाव को निर्देशित करने के लिए एक महीने का समय दिया जाता था, जिसके बाद कंपनी को सेबी के निर्देशों का अनुपालन करते हुए एक नया मसौदा पत्र दाखिल करने की ज़रूरत होती थी। इन अनिवार्यताओं को आईसीडीआर विनियमों के नियम 71 के अनुभागों (1), (2), (4) और (5) में रखा गया था।

सेबी के 21 अप्रैल के सर्कुलर ने इन अनिवार्यताओं को पूरी तरह से हटा दिया। इसमें कहा गया है कि  विनियमन 71 के “उप-विनियमों (1), (2), (4) और (5) में निहित वह कोई प्रावधान लागू नहीं होगा, यदि जारीकर्ता आईसीडीआर विनियमों के विनियमन 99 के तहत उल्लिखित शर्तों को फ़ास्ट ट्रैक रूट के ज़रिये राइट्स इश्यू लाने के लिए संतुष्ट करता है।

सेबी द्वारा दी गयी इस छूट का सीधा नतीजा यही निकला कि इस घोषणा के 20 दिनों के भीतर अपने राइट इश्यू का संचालन करने में आरआईएल सक्षम था।

क्या सेबी की तरफ़ से इस नियम में किया गया बदलाव तर्कसंगत था?

शेयर बाज़ार पर राइट्स इश्यू का संचालन करके पूंजी जुटाने से उन प्रतिभूति कानूनों के उल्लंघन का आरोपित कंपनियों की नामंज़ूरी का सिद्धांत तो यही है कि अपने शेयरधारकों से धोखाधड़ी का आरोप झेल रही इकाई को उसी शेयरधारकों से धन जुटाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।  इस लेख के लेखकों का स्पष्ट रूप से मानना है कि किस तरह कोविड-19 महामारी और इसके चलते पैदा होने वाली आर्थिक मंदी इस सिद्धांत की प्रतिबद्धता को समाप्त कर रही है।

22 जून की सुबह इस लेख के लेखकों में से एक लेखक ने सेबी के अध्यक्ष,अजय त्यागी और आधिकारिक रूप से बोर्ड में संचार विभाग के प्रमुख को ईमेल के ज़रिये एक प्रश्नावली भेजी। इस लेख के प्रकाशित होने के समय तक उनकी तरफ़ से उस प्रश्नावली में पूछे गये किसी सवाल का कोई जवाब नहीं मिला। जैसे ही जवाब मिलेगा,इस लेख में जवाब से मिली सूचना शामिल कर ली जायेगी

सेबी के अध्यक्ष से पूछे गये सवाल थे:

1.  21 अप्रैल, 2020 को राइट्स इश्यू पर आसीडीआर नियमों को शिथिल करने के अपने प्रस्ताव से पहले किन कंपनियों और / या उद्योग निकायों और / या बाज़ार सहभागियों के प्रतिनिधि सेबी से मिले थे ?

2.  21 अप्रैल, 2020 की छूट के बाद से किन कंपनियों ने इन छूट की शर्तों के तहत राइट्स इश्यू के ज़रिये फ़ंड जुटाने की कवायद की है ?

3.  यह दावा किया जाता है कि सेबी की छूट से केवल एक कंपनी (Reliance Industries Limited या RIL) को फ़ायदा हुआ है। क्या ये सही है ? अगर हां, तो आपसे अनुरोध है कि आप अपनी टिप्पणी उपलब्ध करायें।

4.  24 मार्च, 2017 को सेबी के पूर्णकालिक सदस्य जी महालिंगम के आदेश में आरआईएल को एक "सुव्यवस्थित योजनाबद्ध, कपटपूर्ण और चालाकी से चलने वाली व्यापारिक योजना...भारी सट्टा लाभ अर्जित करने के मक़सद" से चलने वाली वाली कंपनी घोषित की गयी थी। उस आदेश में आरआईएल को नवंबर 2007 में रिलायंस पेट्रोलियम लिमिटेड के शेयरों के अनधिकृत कारोबार के ज़रिये उसके द्वारा अर्जित 447.27 करोड़ रुपये के अवैध लाभ को वापस किये जाने का आदेश दिया गया था, और कंपनी को शेयर बाजारों के "फ़्यूचर्स एंड ऑप्शन्स" सेगमेंट के इक्विटी डेरिवेटिव में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सौदा करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। 21 नवंबर, 2017 को सेबी द्वारा आरआईएल को इसी मामले में कारण बताओ नोटिस (एससीएन) जारी कर दिया गया था और उस कारण बताओ नोटिस पर अधिनिर्णयन कार्यवाही इस समय भी चल रही है। सेबी द्वारा आरआईएल पर प्रतिभूति क़ानून के उल्लंघन का वह आरोप आज भी है, जिसमें इन उल्लंघनों के शिकार उसके ही शेयरहोल्डर हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि कोविड-19 महामारी के संकट के समय अपने शेयरधारकों के ख़िलाफ़ प्रतिभूति कानून के उल्लंघन के आरोप झेल रही इस कंपनी को उसी शेयरधारकों से राइट्स इश्यू के ज़रिये धन जुटाने की अनुमति आख़िर कैसे दे दी गयी ?

रिलायंस ने उस समय रिकॉर्ड तोड़ी है,जब अर्थव्यवस्था में मंदी है

आरआईएल ने पिछले कुछ दिनों में अपनी दूरसंचार और मोबाइल इंटरनेट डेटा सेवा शाखा, रिलायंस जियो के साथ शेयरों के राइट्स इश्यू की शानदार कामयाबी के कई रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं। दिलचस्प बात यह है कि 22 जून को हुए कारोबार की समाप्ति तक आरआईएल के शेयर की क़ीमत में 16% से ज़्यादा की वृद्धि हुई थी, जबकि बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के बेंचमार्क संवेदनशील सूचकांक में इसी अवधि में क़रीब-क़रीब समान अनुपात में गिरावट आयी थी।

व्यापार समर्थक इकोनॉमिक टाइम्स ने 22 जून को देश के सबसे अमीर व्यक्ति के बारे में निम्नलिखित टिप्पणियां कीं:

“भारत में आयी अबतक की सबसे बुरी मंदी में भी भारत के इस 63 वर्षींय शख़्स का उभार देश के उस गहरे आर्थिक विभाजन की याद दिलाता है,जिसमें शीर्ष 10% लोगों के हाथों में कुल धन का तीन-चौथाई से अधिक हिस्सा है, और जहां सबसे नये भाग्य निर्माण की ताक़त सबसे अमीर लोगों के हाथों में है,जिनकी संख्या महज 1% है।”

अंबानी मुंबई में एक 27 मंजिला हवेली में रहते हैं, जिसे एंटिला के नाम से जाना जाता है, जिसकी छत पर तीन हेलीपैड, 168 कारों की पार्किंग, 50 सीटों वाली मूवी थियेटर, क्रिस्टल झाड़-फ़ानूस के साथ घूमने वाला एक भव्य कमरा, बेबिलोन से प्रेरित हैंगिंग गार्डन की तीन मंज़िलें, योग स्टूडियो, और एक स्वास्थ्य स्पा और फिटनेस सेंटर हैं।

हमने आरआईएल के राइट्स इश्यू को लेकर सेबी के 21 अप्रैल के सर्कुलर के निहितार्थ पर दो विश्लेषकों से बात की। दोनों ही विश्लेषक इस शर्त पर बोलने के लिए सहमत हुए कि उनके नामों का ख़ुलासा नहीं किया जायेगा।

एक विश्लेषक ने कहा कि नियामक की भूमिका यह सुनिश्चित करना होता है कि बाज़ार निष्पक्ष हों और खेल का मैदान एक बराबर हों। उन्होंने कहा, "ऐसा लगता नहीं है कि इस मामले में ऐसा है," उन्होंने आगे कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका का बाज़ार नियामक, प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग या एसईसी "इस सम्बन्ध में कहीं ज़्यादा सख़्त रूख़ अपनाया होता।"

एक अन्य विश्लेषक की टिप्पणी थी कि जिस तरह सरकार और नियामक अधिकारियों ने देश के सबसे अमीर आदमी के नेतृत्व वाली भारत की सबसे बड़ी कंपनी को फ़ायदा पहुंचाने के लिए नियमों और विनियमों में संशोधन किया है, वह उन्हें एक बार फिर इस बात से हैरान करता है कि क्या मुकेश अंबानी और उनके समूह भारत सरकार की तुलना में "ज़्यादा प्रभावशाली" तो नहीं हैं।

(आगे भी जारी )

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

How a Change in a Rule by SEBI Helped Reliance Raise Rs 53,000 crore

यह इस श्रृंखला का छठा लेख है। पहले पांच लेखों के लिंक नीचे दिये गये हैं: 

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