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एसकेएम के नेताओं ने की 'किसान आंदोलन के भविष्य' पर चर्चा

सोमवार को दिल्ली में किसान आंदोलन से जुड़े बड़े नेता एकत्रित हुए। आइटीओ स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में किसान नेताओं के साथ खेत मज़दूर और मज़दूर नेता भी जुटे थे। सभी नेताओं ने ऐतिहासिक आंदोलन के संघर्षों और विजय को तो याद किया ही साथ ही इन्होंने किसान आंदोलन के भविष्य को लेकर भी चर्चा की।
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आज सोमवार सेंट्रल दिल्ली में किसान आंदोलन से जुड़े बड़े नेता एकत्रित हुए। आइटीओ स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में किसान नेताओं के साथ खेत मज़दूर और मज़दूर नेता भी जुटे थे। सभी नेताओं ने ऐतिहासिक आंदोलन के संघर्षों और विजय को तो याद किया ही साथ ही इन्होंने किसान आंदोलन के भविष्य को लेकर भी चर्चा की। इस संगोष्ठी का शीर्षक ही था 'द फ्यूचर ऑफ द फार्मर्स मूवमेंट'। ये संगोष्ठी देशभर मे किसान आंदोलन के अहम शिल्पकार और अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) के अध्यक्ष डॉ अशोक धावले की पुस्तक व्हेन फार्मर्स स्टूड अप पर एक चर्चा के लिए आयोजित गई गई थी। इस किताब को इस साल की शुरुआत में केरल के कन्नूर में लॉन्च किया गया था।

पी सुंदरय्या मेमोरियल ट्रस्ट और लेफ्टवर्ड बुक्स द्वारा आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता एआईकेएस के महासचिव हन्नान मौल्ला और संचालन संयुक्त सचिव विजू कृष्णन ने किया। जबकि वित्त सचिव पी कृष्णप्रसाद ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

इस संगोष्ठी मे संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम ) के प्रमुख सदस्य और अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) के महासचिव हन्नान मौल्ला व देशभर में किसान आंदोलन के शिल्पकार और एआईकेएस के अध्यक्ष डॉ अशोक धाववले, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रमुख किसान नेता राकेश टिकैत , क्रांतिकारी किसान संघ (केकेयू) के नेता डॉ दर्शन पाल और स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव जैसे एसकेएम के प्रमुख नेताओं ने संगोष्ठी मे अपनी बात रखी।

इसके साथ ही केन्द्रीय मज़दूर संगठन सेंटर ऑफ इंडियन यूनियन के सीटू नेता तपन सेन और अखिल भारतीय खेत मज़दूर यूनियन के महासचिव बी वेंकट ने भी संबोधित किया । ,

इस संगोष्ठी मे शामिल होने के लिए दिल्ली और आसपास के इलाकों से प्रगतिशील बुद्धिजीवियों के साथ ही मेहनतकश वर्ग भी बड़ी संख्या मे शामिल हुआ था । चर्चा से पहले जन नाट्य मंच द्वारा एक संगीत प्रस्तुत किया गया, जिसके बाद, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में प्रोफेसर अर्चना प्रसाद द्वारा पुस्तक का परिचय सबके बीच रखा गया गया।

प्रसाद ने किताब का परिचय देते हुए कहा कि "यह आवश्यक है कि यह किताब सभी तक पहुंचे, क्योंकि यह फासीवाद के संघर्ष के खिलाफ आशा देती है। ये किताब भले डॉ धावले द्वारा लिखी गई है, लेकिन वास्तव में, इसके माध्यम से आंदोलन में भाग लेने वाले सभी श्रमिकों और किसानों की आवाजें सुनाई देती हैं।”

प्रसाद ने इस बात पर जोर दिया कि यह किसान आंदोलन सितंबर 2020 से शुरू हुआ था लेकिन किसानों के संघर्ष का इतिहास पुराना है। किसानों ने एनडीए- I की सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण विधेयक के खिलाफ भी संघर्ष किया और जीता था। उन्होंने कहा "यह पुस्तक इस तथ्य को भी रेखांकित करती है कि आंदोलन केवल 500 संगठनों द्वारा नहीं बनाया गया था, बल्कि 2014 के बाद से एक लंबे संघर्ष के माध्यम से ये आंदोलन तैयार हुआ था।"

केकेयू के नेता और पंजाब मे किसान आंदोलन को एकजुट करने वाले डॉ दर्शन पाल ने धावले को आंदोलन के दौरान की घटनाओं को एकत्रित करने के लिए बधाई दी। अपने संबोधन में पाल ने आंदोलन के विभिन्न उतार-चढ़ावों पर व्यक्तिगत अनुभव भी साँझा किए । 26 नवंबर, 2020 को एसकेएम द्वारा दिए गए 'दिल्ली चलो' कॉल पर पाल ने कहा: "सच कहूं, तो हमारे सामने कई विकल्प थे। पंजाब-हरियाणा सीमा पर पहुंचने के बाद हमारा लंबा काफिला वहीं रुक सकता था, जहां पुलिस ने अपने बैरियर लगाए थे ।लेकिन हम में से कुछ ने सोचा कि हमें आगे बढ़ना चाहिए। विशेष रूप से पंजाब की इच्छा थी कि हम दिल्ली कि तरफ बढ़ें, उसने ही हमें रास्ता दिखाया।”

पाल ने आंदोलन को याद करते हुए कहा कि “जब तक हम सिंघू बॉर्डर पर पहुँचे, एसकेएम वास्तव में आंदोलन का चेहरा बन चुका था। यहां तक कि जिन संगठनों ने पहले हमारे प्रयासों को नज़रअंदाज़ किया था। उन्होंने अब खुशी-खुशी इस सांझे मंच के तहत आने का विकल्प चुना।” उन्होंने सालभर चलने वाले आंदोलन में बनाए गए एकता पर भी जोर दिया। "उत्तर प्रदेश के मुसलमानों, जाटों और राजस्थान के गुर्जर-मीनाओं को इस संघर्ष में एक साथ लाया गया और उनके बीच धार्मिक विभाजन को कम किया गया।"

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आंदोलन के एक प्रमुख चेहरे राकेश टिकैत, जिन्होंने 26 जनवरी की घटना के बाद कमजोर पड़ते आंदोलन को पुनः अपने अंशुओं से जिंदा और बुलंद किया था, ने पहले हन्ना मौल्ला, डॉ धावले और अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) के अन्य लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया, जिन्होंने कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के शुरुआती दिनों में बिखरे और संकीर्ण आंदोलनों को एकजुट किया। उन्होंने पंजाब के किसानों के साहस और संघर्ष को याद करते हुए कहा कि टिकैत साहब (महेन्द्र टिकैत) एक बात कहते थे कि पंजाब का किसान जाग गया तो दिल्ली फतेह होगी। इसबार तो उनके साथ हरियाणा ने भी खूब साथ दिया। इसके साथ ही खाप ने भी अहम भूमिका निभाई है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि आज दिल्ली के आस-पास के किसान मजदूरों को भी एक साथ आने की जरूरत है।

इसके साथ ही उन्होंने सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया और कहा कि सरकार ने आंदोलन खत्म करवाते समय कहा था कि वे बिजली संशोधन विधेयक किसानों के साथ चर्चा के बाद ही लाएगी लेकिन बिना किसी चर्चा के उसने इस बार उसे सदन मे पेश कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों के अपने हाल के दौरों के बारे में बात की, जहां उन्हें यह स्पष्ट हो गया है कि एक नए किसान आंदोलन की आवश्यकता है।

टिकैत ने दावा किया, "मैं कुछ हफ्ते पहले बिहार में था: वहां, एपीएमसी (कृषि उपज बाजार समिति) अधिनियमों को 15 साल पहले हटा दिया गया था। अब जहां मंडी थी, वहां बड़ी कंपनियों के एजेंट बैठते हैं। यहां की जमीनें बेच दी गई हैं। बिहार में जो लोग हैं, उनके पास हमसे ज्यादा जमीन है, लेकिन वो दिल्ली में मज़दूर बनकर रह रहे हैं। लेकिन उन्हें कृषि छोड़ने के लिए मजबूर किया गया है क्योंकि उन्हें अब पर्याप्त मूल्य नहीं मिल रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वहाँ एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) नहीं मिल रहा है ।

टिकैत ने आगे कहा कि हमने बिहार मे कहा है कि अगला आंदोलन बिहार से शुरू होगा और वो मंडी बहाली का आंदोलन होगा। देशभर के किसानों की आस एसकेएम से है। उन्होंने कहा, "यही कारण है कि एसकेएम का कहना है कि हमारा आंदोलन केवल निलंबित है, समाप्त नहीं हुआ है। बिजली संशोधन बिल के खिलाफ और एमएसपी व फसल बीमा और किसानों के लिए पेंशन के लिए हमारी लड़ाई जारी है।”

उन्होंने कहा कि यह देश का दुर्भगय है कि आजतक कृषि मंत्रालय नहीं बना है। 18 मंत्रालय मिलकर किसानी को देखते हैं। भारत सरकार बाकी क्षेत्रों की तरह ही किसानों की ज़मीन पर कब्जे करना चाहती है।

एसकेएम की भविष्य की योजना का संकेत देते हुए, टिकैत ने कहा: “हम अब मिशन 2024 की योजना बना रहे हैं और हम इस बार विपक्षी दलों के साथ काम करेंगे। आखिर उन्हें भी हमारी जरूरत है: किसान देश के लोकतांत्रिक आंदोलन की रीढ़ हैं।"

संगोष्ठी में औद्योगिक और ग्रामीण मजदूर वर्ग के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। सीटू के महासचिव तपन सेन ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे किसान आंदोलन ने एसकेएम और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा संयुक्त रूप से बुलाए गए तीन बैक-टू-बैक आम हड़तालें देखीं। सेन ने कहा “मजदूरों को किसानों के समर्थन ने हमें अत्यधिक आत्मविश्वास दिया और श्रम संहिता के खिलाफ जुझारू रूप से संघर्ष करने के लिए प्रोत्साहित किया। आंदोलन समाप्त होने के बाद भी, एसकेएम ने इस साल 28-29 मार्च को हुई दो दिवसीय राष्ट्रीय हड़ताल को पूरा समर्थन दिया।”

सेन ने कहा, "आज देश पर कॉरपोरेट-फासीवादी गठजोड़ शासन कर रहा है। आंदोलन का सबसे बड़ा प्रभाव यह रहा है कि भारत के प्रमुख उत्पादक वर्ग एकजुट हो गए हैं और अपने दुश्मन की सही पहचान कर ली है।"

खेत मज़दूर नेता बी वेंकट ने भी डॉ धावले को बधाई दी और किसान आंदोलन में दलितों और आदिवासियों की भागीदारी के बारे में बताया।

डॉ अशोक धवले ने अपनी इस किताब के लिए लोकलहार के संपादक राजेन्द्र शर्मा का आभार व्यक्त किया और कहा कि उन्होंने हर सप्ताह मुझे किसी भी हाल मे एक रिर्पोट देने को कहा था। उनके कारण ही मैं आंदोलन में साप्ताहिक घटनाओं को एकत्रित कर पाया।

दूसरा उन्होंने लेफ्ट वर्ड लेफ्टवर्ड बुक्स के मैजिंग एडिटर सुधन्वा देशपांडे को भी धन्यवाद दिया । उन्होंने कहा कि देशपांडे ने 9 दिसंबर, 2021 को संघर्ष समाप्त होने के तुरंत बाद मुझसे जल्द से जल्द किसान संघर्ष पर एक किताब लिखने का आग्रह किया और प्रोत्साहित भी किया। इसके लिए उन्होंने मुझे महज दो महीने का समय दिया था।

डॉ धावले ने कहा "आज़ादी के 75 साल और अंग्रेजी हुकूमत में भी इतना बड़ा किसानों का कोई आंदोलन नहीं हुआ।आगे और कहूँ तो दुनिया में भी इतना बड़ा और इतना लंबा भी कोई आंदोलन नहीं हुआ है। ये आंदोलन इसलिए कामयाब हुआ क्योंकि 500 से ज्यादा किसान संगठन एक साथ आए। सभी ने अपनी विचारधारा को एक तरफ अलग बाजू में रख दी थी। इस आंदोलन में खेत मज़दूर और गरीब किसान अमीर किसान सब एक साथ आए। पूरा ग्रामीण तबका एक हुआ और सभी कॉर्परेट और सांप्रदायिक सरकार के खिलाफ़ एक साथ आए।

आगे उन्होंने बताया कि इसके आलावा केंद्रीय मज़दूर संगठन ने आंदोलन का साथ दिया। 26 नवंबर को किसान के दिल्ली चलो के साथ मज़दूरों ने भी देशव्यापी हड़ताल किया। एक साल से अधिक चले किसान आंदोलन के दौरान तीन बार सफल भारत बंद हुए। इस दौरान हर बार चक्का जाम भी हुए। देशभर में आम जनता ने एसकेम पर विश्वास रखा और पूर्ण सहयोग किया ।

डॉ धावले ने कहा "ये आंदोलन सिर्फ़ दिल्ली में नहीं था बल्कि दिल्ली बस एक मुख्य केंद्र सेंटर था । इसका दायरा कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से गुवाहाटी तक फैला हुआ था। मुझे याद है कि कैसे राकेश टिकैत जी और मैं विशाखापत्तनम गए थे, वहां विजाग स्टील प्लांट को बचाने के लिए हड़ताल कर रहे लगभग 30,000 श्रमिकों ने अपने आंदोलन के साथ ही किसान आंदोलन के साथ भी अपनी एकजुटता जाहिर करने के लिए महापंचायत की थी।”

(सभी तस्वीरें शुभोजीत डे द्वारा ली गई थीं।)

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