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चंपारण से बनारस पहुंची सत्याग्रह यात्रा, पंचायत में बोले प्रशांत भूषण- किसानों की सुनामी में बह जाएगी भाजपा 

"किसानों की हुंकार बता रही है कि मोदी-योगी सरकार को अपना अहंकार तोड़ना होगा। अगर तीनों कृषि कानून लागू हो गए तो देश की मंडियां अंबानी और अडानी के हाथ में चली जाएंगी। तब किसानों को अपनी जमीन पर गुलामों की तरह खेती करनी होगा। गरीबों को मुफ्त में सस्ता अनाज भी नहीं मिल पाएगा।”
Prashant

बिहार के चंपारण से सड़कों को रौंदते हुए छलनी हो चुके पैर, पसीने से तर-बतर और थकान से चूर किसानों की सत्याग्रह पदयात्रा मंगलवार को बनारस पहुंच गई। करीब 350 किमी लंबे सफर के बावजूद किसानों के हौसले काफी मजबूत नजर आए। उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के चौबेपुर कस्बे में पदयात्रा पहुंची तो किसानों के बुलंद हौसलों ने यह बता दिया कि यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी, जब तक मोदी सरकार उनके हितों खिलाफ लाए गए तीनों कृषि कानूनों का वापस नहीं करेगी। पदयात्रा में शामिल किसानों का हौसला बढ़ाने पहुंचे देश के जाने-माने अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा, "किसानों की सुनामी में भाजपा बह जाएगी। किसानों की हुंकार बता रही है कि मोदी-योगी सरकार को अपना अहंकार तोड़ना होगा। अगर तीनों कृषि कानून लागू हो गए तो देश की मंडियां अंबानी और अडानी के हाथ में चली जाएंगी। तब किसानों को अपनी जमीन पर ही गुलामों की तरह खेती करनी होगी। गरीबों को मुफ्त में सस्ता अनाज भी नहीं मिल पाएगा।"

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील प्रशांत भूषण को अपने बीच पाकर किसान गदगद थे। प्रशांत देश के पूर्व कानून मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के वकील रह चुके शांति भूषण के बेटे हैं। इलाहाबाद में रहकर उन्होंने कानून की पढ़ाई की है। प्रशांत भूषण ने पूर्वांचल के किसानों की बुनियादी समस्याओं को उठाया और कहा, "यूपी में सिर्फ किसानों को ही नहीं, इंसान, इंसानियत, लोकतंत्र, संविधान और सभ्यता को कुचला जा रहा है। देश को बचाने के लिए किसानों को संगठित होकर खड़ा होना पड़ेगा। सत्ता में काबिज सरकारें चाहे लाख कोशिश करें, उनके आंदोलन को नहीं कुचल पाएंगी। लखीमपुर खीरी में किसानों को बेरहमी के साथ कुचल दिया गया। इससे पहले किसान आंदोलन को कमजोर करने के लिए तमाम कुचक्र रचे गए, लेकिन मोदी सरकार आंदोलनकारी किसानों का हौसला नहीं डिगा पाई।"

कॉर्पोरेट राज के मुखौटे हैं मोदी 

बिहार के चंपारण से बनारस तक निकाली गई किसान सत्याग्रह यात्रा महात्मा गांधी के सत्याग्रह और अहिंसा के रास्ते पर चलते दोपहर में अन्नदाताओं की शक्ति अर्जित करते हुए चौबेपुर पहुंची। बिहार और उत्तर प्रदेश के 35 इलाकों से गुजरने वाली किसान सत्याग्रह यात्रा में शामिल किसानों ने प्रधानमंत्री से दस सवालों पर जवाब मांगा और दुनिया भर को संदेश दिया कि नरेंद्र मोदी किसानों के नहीं, सिर्फ कारपोरेट घरानों से हितैषी हैं। किसानों के सवाल भाजपा का पीछा करते रहेंगे, क्योंकि सवाल कभी मरते नहीं, जवाब मिलने तक जिंदा रहते हैं। 

प्रशांत भूषण ने कहा, "सत्याग्रही पदयात्रियों ने यूपी और पूर्वांचल के किसानों के बीच ठीक उसी तरह का संदेश पहुंचाने में कामयाबी हासिल की है, जैसा संदेश अंग्रेजों के खिलाफ साल 1917 में चंपारण से पहुंचा था। किसानों की इस पदयात्रा ने जो सवाल खड़ा किया है वह किसान विरोधी राज को हर हाल में उखाड़ फेंकेगी। किसानों के आंदोलन की चुनौती का मुकाबला कर पाना कॉर्पोरेट राज के मुखौटे बने मोदी-योगी के वश में कतई नहीं है। किसानों का सवाल ही साल 2022 में यूपी में योगी आदित्यनाथ और साल 2024 में मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने वाला बैरोमीटर साबित होगा। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के किले को भी ढहाकर रहेगा।" 

पूर्वांचल के किसान घरों में हाउस अरेस्ट

चौबेपुर की सभा में पूर्वांचल के किसान नेता अपने समर्थकों के साथ नहीं पहुंच पाए थे। पूर्वांचल में तेजी से फैल रहे किसान आंदोलन को कमजोर करने के लिए उन सभी नेताओं के घरों को होम अरेस्ट कर लिया गया है, जिनके बल पर आंदोलन को नई धार मिल सकती थी। बनारस, चंदौली, गाजीपुर, जौनपुर, भदोही, मिर्जापुर, सोनभद्र, मऊ, बलिया, देवरिया के किसानों को पदयात्रियों का हौसला बढ़ाने के लिए 20 अक्टूबर को बनारस पहुंचना है। 

किसानों के खौफ से परेशान योगी सरकार ने पदयात्रियों को बनारस में सभा करने की अनुमति तक नहीं दी है। किसान सत्याग्रह पदयात्रियों की मुहिम को धार देने पहुंचे प्रशांत भूषण ने अन्नदाताओं की मुश्किलों को रेखांकित किया। कहा, "बेमौसम की बारिश और सूखे की मार झेल रहे किसानों की आंखों में आंसुओं की धुंध मोदी-योगी सरकार को नहीं दिख रही है। भाजपा चाहे जितनी कोशिश कर ले, वह संविधान और लोकतंत्र को नहीं कुचल पाएगी। किसान आंदोलन को तोड़ने के लिए सरकार के साथ गोदी मीडिया ने बहुत कोशिश की। झूठ फैलाया और किसानों के साथ सड़कों पर मारपीट तक की गई। भाजपा के आईटी सेल के नुमाइंदे उन भेड़ियों की तरह हैं जिनका काम सिर्फ गाली देना, झूठ फैलाना और धमकियां देना है। ये लोग पूरे हिन्दुस्तान को बर्बाद कर रहे हैं। देश को लूटने और सरकारी संस्थाओं को नीलाम करने का खेल ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाएगा। अंग्रेजी हुकूमत और मोदीराज में कोई खास अंतर नहीं है। आजादी के आंदोलन के समय जिस तरह अंग्रेज किसानों की गाढ़ी कमाई लूट रहे थे, वैसे ही मोदी राज में अडानी-अंबानी की कॉरपोरेट कंपनियां किसानों की मेहनत डकार रही हैं। अंग्रेजी हुकूमत की तरह ही भारत के किसान इस समय कॉरपोरेट्स की दया पर निर्भर होते जा रहे हैं। हम किसानों की दुर्दशा को समझते हुए जनता को बता देना चाहते हैं कि लूटने वालों को हर हाल में जाना होगा।" चंपारण से निकली सत्याग्रह पदयात्रा में उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, बंगाल, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा समेत देश भर के करीब दो हजार किसान शामिल हैं। सत्याग्रही किसानों का नेतृत्व संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) से जुड़े संगठन कर रहे हैं। 

किसानों के कद्दावर नेता डा. सुनीलम भी बनारस पहुंचे और उन्होंने किसान पदयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, "आंदोलन में अब तक 650 से अधिक किसान शहीद हो चुके हैं। शहादत देने वाले किसानों को सलाम करना चाहिए। अपने अधिकारों के लिए देश का किसान देश का घर नहीं बैठा है। वह सड़क पर उतर कर सरकार के खिलाफ लड़ रहा है। आंदोलन को कमजोर करने के लिए बहुत कोशिशें की गईं, लेकिन इंसानियत की लड़ाई तनिक भी कमजोर नहीं हो सकी है।" 

कब वापस होंगे काले कानून 

पदयात्रा में शामिल किसानों ने मोदी सरकार से पूछा है कि सैकड़ों किसानों की शहादत के बावजूद आपकी संवेदना क्यों नहीं जगी? तीनों काले कानून कब तक वापस होंगे?  कंपनियों और कारपोरेटरों का खरबों रुपये माफ वाली वाली सरकार का एमएसपी पर कानूनी गारंटी देने में सांसें क्यों उखड़ रही हैं? देश के नौजवानों के रोजगार पर फैसला कब होगा? महिलाओं और परिवार को महंगाई से राहत क्यों नहीं? कोरोना के संकटकाल में जनता का उपचार करने वाला देश का सिस्टम फेल हो गया और अनगिनत लोग मर गए। आखिर इन मौतों की जिम्मेदारी कौन लेगा?"

पदयात्री महिला किसानों के पैरों में पड़े छाले, फिर भी नहीं टूटा हौसला

सत्याग्रही किसानों ने प्रधानमंत्री के सामने यह सवाल भी खड़ा किया है कि पढ़ाई, दवाई, कमाई, महंगाई, उचित मूल्य जैसे जरूरी सवाल सत्ता में आने के इतने साल बाद भी आपके एजेंडे में क्यों नहीं? मजदूरों के पलायन और बढ़ती अमीरी-गरीबी असमानता का जिम्मेदार कौन? कॉर्पोरेट और विदेशी कंपनियों के हाथ की कठपुतली सरकार कब तक बनी रहेगी और इन्हें  प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध लूट की छूट कब तक मिलती रहेगी?

पदयात्रा के संयोजक हिमांशु तिवारी ने कहा है, "सत्याग्रही किसानों को लोगों ने भरपूर सहयोग दिया। पदयात्री जिन रास्तों से होकर गुजरे, किसानों को अच्छी तरह समझ में आ गया कि मोदी सरकार के ये तीनों कृषि कानून क्यों और कैसे उनके लिए खतरनाक हैं। केंद्रीय गृहराज्य मंत्री अजय मिश्रा बर्खास्ती बर्खास्तगी के मामले में मोदी सरकार की चुप्पी यह साबित करती है कि लखीमपुर की घटना पूर्व नियोजित थी।"

किसान नेता अक्षय कुमार ने कहा, "भाजपा सरकार चाहे जितनी मुश्किलें खड़ी करे, पर आंदोलन रुकने वाला नहीं है। दुनिया की कोई ताकत हमें परास्त नहीं कर पाएगी। यह लड़ाई हम जीतकर रहेंगे।" चौबेपुर में आयोजित किसान पंचायत में राम धीरज, अमरनाथ, रामाश्रय, लता, शेष देवनंदा, निमय राय, उमाकांत भारत के अलावा कर्नाटक के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष बीआर पाटिल ने मांग उठाई कि मोदी सरकार को अपने अलोकतांत्रिक फैसलों तत्काल वापस ले, अन्यथा सरकार के खिलाफ आंदोलन थमने वाला नहीं है।
                   
कृषि क़ानूनों के खिलाफ़ किसानों को आंदोलन करते हुए महीनों गुजर गए। इस बीच कई पर्व और त्योहार आए और चले गए। हाल के दिनों में बेमौसम की बारिश ने तापमान भले ही कम कर दिया है, लेकिन किसानों का हौसला बरकरार है। किसान आंदोलन की तैयारियों में जुटे अधिवक्ता प्रेम प्रकाश यादव कहते हैं, "हमें बाढ़ और सूखे की चिंता नहीं है। चिंता तो इस बात की है कि जिस सरकार को हमने वोट देकर दिल्ली में बैठाया है, उसे हमारी ये मुसीबत नहीं दिख रही है। खेती-किसानी से जुड़े किसी एक भी आदमी से यदि सरकार ने यह क़ानून बनाने में सलाह ली होती तो ऐसे क़ानून की सलाह वह कभी नहीं देता। यह काला क़ानून किसानों को बर्बाद ही नहीं करेगा, उन्हें किसान भी नहीं बने रहने देगा।"

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