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श्रम कानूनों को कमज़ोर करने के ख़िलाफ़ सात राजनीतिक दलों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा

इस पत्र में कहा गया है कि कामगारों के साथ गुलामों की तरह व्यवहार किया जा रहा है ऐसे में श्रम कानून में बदलाव न केवल संविधान का उल्लंघन है बल्कि उसे निष्प्रभावी बनाना भी है।
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फोटो साभार: अमर उजाला

दिल्ली: देश के सात राजनीतिक दलों ने सरकार पर श्रम कानूनों को कमजोर करने का आरोप लगाते हुए शुक्रवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखा और इस मुद्दे पर अपना विरोध दर्ज कराया। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा महासचिव डी राजा, भाकपा (माले) महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य, ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक के महासचिव देबव्रत विश्वास, आरसपी के महासचिव मनोज भट्टाचार्य, राजद सांसद मनोज झा और वीसीके (तमिलनाडु का दल) के अध्यक्ष थोल तिरूवमवलवन ने इस पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं।

क्या कहा गया है पत्र में?

इन नेताओं ने पत्र में कहा कि श्रम कानूनों को इस तरह से कमजोर करना संविधान का उल्लंघन है। साथ ही कामगारों के साथ गुलामों की तरह व्यवहार किया जा रहा है। ऐसे में श्रम कानूनों में बदलाव करना न केवल संविधान का उल्लंघन है बल्कि निष्प्रभावी बनाना भी है। पत्र में कहा गया है कि इन कानूनों के लागू होने के बाद भारत एक आधुनिक लोकतांत्रिक गणराज्य के बजाय मध्ययुगीन दासता की तरफ बढ़ रहा है।

गौरतलब है कि गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और पंजाब ने फैक्ट्री अधिनियम में संशोधन किए बगैर काम के घंटे को आठ से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया है। पार्टियों ने अन्य राज्यों के भी इस राह पर आने की आशंका जताई है। इन्होंने कहा कि कोरोना वायरस महामारी के आने से पहले भारत की अर्थव्यवस्था मंदी की तरफ बढ़ रही थी।

उत्तर प्रदेश ने फैक्ट्री, बिजनेस, प्रतिष्ठान और उद्योगों को श्रम कानून के तीन प्रावधानों और एक अन्य कानून को छोड़कर सभी प्रावधानों से तीन साल के लिए छूट दे दी है। मध्य प्रदेश सरकार ने सभी प्रतिष्ठानों को सभी श्रम कानूनों से एक हजार दिवस के लिए सभी जवाबदेही से मुक्त कर दिया है।

इन राजनीतिक दलों ने अपने पत्र में यह भी कहा कि जिन्होंने अपनी आजीविक खोई है, सरकार ने उनकी मदद के लिए बहुत कम प्रयास किया है। जबसे लॉकडाउन की शुरुआत हुई है, 14 करोड़ लोग अपना रोजगार खो चुके हैं।

पत्र में कहा गया है कि स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाकर और हमारे डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों और लोगों की जरूरतों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, यह महामारी, श्रम अधिकारों को कमजोर करने के लिए आपकी केंद्र और कुछ राज्यों की सरकारों का तर्क बन गई है।

पत्र में राष्ट्रपति से अपील की गई है कि इस मामले में हस्तक्षेप करें और मजदूरों को गुलाम बनाने वाले कानूनों पर रोक लगाएं।

मजदूर संगठनों ने भी जताया था विरोध

गौरतलब है कि श्रम कानूनों में बदलाव का विरोध सीटू समेत दूसरे मजदूर संगठन भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि कंपनियां इसका इस्तेमाल अपने फायदे और मजदूरों का शोषण करने के लिए करेंगी।

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों ने श्रम कानूनों में बड़े बदलाव की घोषणा की है। तो वहीं हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान जैसे राज्यों ने दैनिक कामकाज का समय 12 घंटे तक बढ़ाने की अधिसूचना जारी की है। बताया जा रहा है कि महाराष्ट्र व त्रिपुरा की सरकारें भी कथित तौर पर उसी दिशा में आगे बढ़ रही है।

आपको यह भी बता दें कि भारत के संविधान के तहत श्रम समवर्ती सूची (कन्करेंट लिस्ट) का विषय है, इसलिए राज्य को कानून बनाने से पहले केंद्र की मंजूरी लेनी पड़ती है। ऐसे में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी के बाद ही ये कानून बन पाएगा।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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