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सितम के मारे हैं फिर भी सितमगर पर भरोसा है...

‘इतवार की कविता’ में पढ़ते हैं मशहूर शायर ओम प्रकाश नदीम की ताज़ा ग़ज़ल। जो हालात-ए-हाज़रा का बख़ूबी बयान करती है।
Sunday poem
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : सोशल मीडिया

ग़ज़ल

 

सितम के मारे हैं फिर भी सितमगर पर भरोसा है

कि चकनाचूर शीशों को भी पत्थर पर भरोसा है

 

वो आमादा हैं बहुरंगी को यकरंगी बनाने पर

मगर हमको विरासत की धरोहर पर भरोसा है

 

वो आँधी है मगर फिर भी उसे इस बात का डर है

कि हमको फूस के छोटे से छप्पर पर भरोसा है

 

मोहब्बत की जगह क़ायम हुआ है ख़ून का रिश्ता

इसे तिरशूल पर है उसको ख़ंजर पर भरोसा है

 

समुन्दर लील जाता है वजूद उनका मगर फिर भी

अजब नदियाँ हैं उनको ऐसे अजगर पर भरोसा है

-    ओम प्रकाश नदीम

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