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ग्राउंड रिपोर्ट: यूपी में किसानों से लिए आफ़त बने आवारा और छुट्टा पशु, चुनाव में बढ़ सकती हैं भाजपा की मुश्किलें

यूपी के किसान पहले से ही बेहाल थे और अब आवारा पशुओं के चलते इनकी बदहाली कोढ़ में खाज सरीखी हो गई है। गोवंश संरक्षण के दिखावे के चलते किसानों को ऐसी अंधेरी खाईं में ढकेल दिया गया है, जहां से निकलने का कोई रास्ता है ही नहीं। यूपी में अगर भाजपा के हाथ से सत्ता छिनेगी तो उसकी एक बड़ी वजह ये आवारा और छुट्टा पशु ही बनेंगे।
stray cattle
वाराणसी-लखनऊ मार्ग पर विचरण करते निराश्रित पशु

उत्तर प्रदेश में वाराणसी जिले के बाबतपुर गांव की पत्ती देवी (55) अपने खेत के पास उदास खड़ी हैं। बाजरे की उनकी फसल छुट्टा और आवारा पशु चर गए हैं। उनका परिवार इस हालत में नहीं है कि खेत की तारबंदी करा सके। विजय नारायण मिश्र, संतोष और बेचई प्रजापति ने अबकी खरीफ सीजन में हिम्मत करके बाजरे की खेती की, लेकिन वो अपने खेतों में बाजरे का ठूंठ भी नहीं बचा सके। बाबतपुर गांव में खेती का कुल रकबा 1292 बीघा है। इनमें से सिर्फ 15 बीघे में ही खेती हो सकी है, वह भी तब, जब किसानों ने झटका मशीन लगवाई। दूर तक फैले खाली खेतों को दिखाते हुए राजकुमार प्रजापति कहते हैं, "जब से योगी सरकार आई है तब से छुट्टा और आवारा पशुओं की पलटन बेलगाम हो गई है। हम कंटीले तार-बाड़ भी नहीं लगा सकते क्योंकि ऐसा करने पर पशु क्रूरता अधिनियम के अंतर्गत हमारी गिरफ्तारी हो सकती है। हमारे पास अब सिर्फ एक ही विकल्प बचा है कि हमेशा के लिए अपने खेतों को परती छोड़ दें।" 

बाबतपुर के पास है रजला और कुरौली गांव। इन गांवों में भी 99 फीसदी खेत परती (खाली) हैं। थोड़ी बहुत खेती वही लोग कर पा रहे हैं, जिनके खेत घरों के करीब हैं। रजला के हरिनारायण सिंह (65) अपनी व्यथा सुनाते हुए रो पड़े। बोले, "किसके यहां गुहार लगाएं? कहने को हमारे पास 12 बीघा जमीन है, लेकिन ऐसी जमीन का क्या मतलब कि हम एक किलो अनाज भी पैदा नहीं कर सकते। मंहगे खाद-बीज और जुताई पर हजारों रुपये खर्च होते हैं, लेकिन छुट्टा और आवारा पशु सारी फसल चर जाते हैं।" हरिनारायण के पास खड़े इनके पुत्र संजय सिंह कहते हैं, "गांवों में गोशालाएं खोलना कोई ऑप्शन नहीं है। योगी बाबा मवेशियों को कहीं भी बेचने की आजादी दें। तभी किसान जिंदा रह पाएंगे और मवेशी भी।" 

रजला गांव की उर्मिला देवी (40) ने भी खेती-किसानी छोड़ दी है। वह बंटाई की खेती से अपने परिवार की आजीविका चलाया करती थीं। अब इनके समक्ष भुखमरी जैसे हालात हैं। उर्मिला कहती हैं, "ऐसी सरकार का क्या मतलब, जब किसानों के सामने भूखों मरने की नौबत आ जाए।"  

हांका लगाते किसान बेहाल

यूपी में मवेशियों को खरीदने और बेचने का धंधा बंद हो गया है। बछड़ों और दूध न देने वाली गायों को लोग लावारिश छोड़ दे रहे हैं। अनुपयोगी मवेशियों को लेकर लोग रात में घर से निकलते हैं और कहीं दूर इलाके में छोड़ आते हैं। ऐसे निराश्रित पशु जहां-तहां झुंड बनाकर रहने लगते हैं। पूर्वांचल के बनारस, जौनपुर, चंदौली, गाजीपुर, मऊ, आजमगढ़, बलिया में स्थिति काफी चिंताजनक है। जौनपुर जिले के बक्शा, सिकरारा, सिरकोनी, जलालपुर, बदलापुर, केराकत, महराजगंज, मछलीशहर समेत अन्य इलाकों में किसान करीब 50 से अधिक विद्यालयों में छुट्टा पशुओं को बंद कर चुके हैं।

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बनारस के पिंडरा इलाके के कई गांवों के किसानों ने निराश्रित पशुओं को पकड़कर सरकारी स्कूलों के अहाते में बंद किया। बाद में प्रशासन को दख़ल देना पड़ा तब इन पशुओं को आज़ाद कराया जा सका। अब ये पशु फिर से खेतों में हैं और फ़सल चर रहे हैं।

भिंडी के खेत में घुसा सांड, बर्बाद कर रहा खेती

उत्तर प्रदेश का कोई ऐसा गांव नहीं है जहां के किसानों की मुश्किलें आवारा गायों और सांडों ने न बढ़ाई हों। सरकार की दोषपूर्ण नीतियों के चलते लाखों किसानों के सामने इतने दुश्मन खड़े हो गए हैं, जिन्हें खदेड़ते-खदेड़ते लोग बेहाल हैं। बनारस के नियारडीह के प्रगतिशील किसान बेचन सिंह ने छुट्टा और आवारा पशुओं की समस्या के समाधान के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराई तो सरकारी नुमाइंदों ने फर्जी रिपोर्ट लगा दी कि समस्या का समाधान हो गया। बेचन बताते हैं, "मुख्यमंत्री के शिकायत प्रकोष्ठ वाले फोन से अक्सर पूछताछ करते हैं और बाद में यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि शिकायत आगे अग्रसारित कर रहा हूं। समय देने के लिए धन्यवाद।"

बनारस के नियारडीह में घूमते आवारा और छुट्टा पशु

नियारडीह के बेचन सिंह तीन भाई हैं। इनके पास कुल सात बीघा जमीन है। लाख कोशिश के बावजूद खेती नहीं कर पा रहे हैं। तार और जाली लगाकर अबकी सिर्फ डेढ़ बीघे जमीन में धान की फसल लगाई है। वह बताते हैं, "हमने छुट्टा और आवारा पशुओं के बंध्याकरण की मांग उठाई थी, जिस पर अफसरों ने हामी भी भरी, लेकिन बात आई-गई हो गई। नियारडीह में तमाम किसानों की जमीनें परती (खाली) हैं। खेती-किसानी का काम ठप होने से योगी सरकार की किरकिरी हो रही है। आवारा पशुओं से बर्बाद हो रही खेती के चलते छटपटाते किसान कतई चुप नहीं बैठेंगे। लोगों को पता है कि अगर भाजपा सरकार दोबारा सत्ता में आ गई तो किसान आगे भी कंगाली के दौर से गुजरेंगे।"

नियारडीह गांव में वनस्पति देवी मंदिर परिसर में घूम रहे छुट्टा पशुओं का जखेड़ा दिखाते हुए बेचन सिंह ने कहा, "अगले विधानसभा चुनाव में ये आवारा पशु ही सबसे बड़ा मुद्दा होंगे। मुख्यमंत्री योगी का गो-सेवा प्रेम किसानों पर अब भारी पड़ रहा है। इस समस्या के निदान के लिए भाजपा सरकार के पास समय नहीं है। लोग अपने अनुपयोगी पशुओं को चुपके से गांवों में छोड़ रहे हैं, जिसके चलते समस्या दिन प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है।"

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बनारस के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा. वीरेंद्र बहादुर सिंह ने न्यूज क्लिक से कहा, "छुट्टा पशुओं की समस्या का समाधान खोजना प्रशासन की प्राथमिकता है। जिले की 111 ग्राम सभाओं में गो-आश्रय स्थल बनवाएं गए हैं। इनके अलावा सेवापुरी प्रखंड के भिटकुरी और बड़ागांव के मधुमक्खियां में दो-दो सौ पशुओं के लिए बड़ी गोशालाएं भी बनवाई गई हैं। काशी विद्यापीठ प्रखंड के बंदेपुर में 1.20 करोड़ की लागत से एक और गोशाला बनवाई जाएगी। प्रत्येक गोशालाओँ पर 1.20 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। प्रशासन अब उन लोगों पर भी कार्रवाई कर रहा है जो लोग अपने गोवंशीय जानवरों को खेतों में छोड़ रहे हैं।"

वाराणसी के बड़ागांव इलाके के खेत में घुसे सांड को खदेड़ता किसान

निराश्रित पशुओं का कोई नहीं अपना

उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में आवारा और छुट्टा जानवरों की संख्या अचानक बढ़ी है? बेलवां के जयप्रकाश कहते हैं, "बीते कुछ सालों में जानवर ज़्यादा हो गए हैं। जब गाय दूध देना बंद कर देती है तो लोग उसे खुला छोड़ देते हैं। योगी सरकार ने गायों को लेकर सख़्ती बरती है जिसकी वजह से बाज़ार में उनकी बिक्री भी नहीं पा रही हैं। पुलिसिया खौफ की वजह से लोग अपने खेतों में कटीले तार भी नहीं लगा रहे हैं। साथ ही सरकार के खिलाफ कोई बोलने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहा है।"

कैथउली के धर्मराज पाठक कहते हैं, "क़रीब 50 से ज्यादा आवारा और छुट्टा पशु उनके गांव के इर्द-गिर्द विचरण करते हैं। शाम होते ही ये समूह बनाकर खेतों में निकलते हैं। जिस खेत में घुसते हैं उसे बर्बाद कर देते हैं। इन पशुओं से फसलों को बचाने के लिए किसानों को खेतों की तारबंदी का ख़र्च भी उठाना पड़ रहा है, लेकिन ये कंटीले तार भी पूरी तरह कारगर नहीं हैं।"

यूपी के जाने-माने बागवान शैलेंद्र सिंह रघुवंशी कहते हैं, "जानवर तो जानवर हैं, ऊपरवाले ने पेट लगा दिया है उसे वो भरेंगे ही। पेट भरने के लिए तार-बाड़ पार कर खेत में घुसने की कोशिश करते हैं, जिससे उन्हें चोट पहुंचती है। उन्हें चोटिल देखकर हमें भी दुख पहुंचता हैं, लेकिन क्या करें, हमें अपनी फ़सल भी बचानी है और बाग-बगीचे भी।"

शैलेंद्र कहते हैं, "इन आवारा पशुओं की वजह से किसानों को रात-रात भर खेतों पर रहना पड़ रहा है। पूरी रात वो इन्हें भगाते रहते हैं। इधर से भगा दिए उधर पहुंच गए। उधर से भगा दिए इधर पहुंच गए। रात भर यही चलता रहता है। पहले लावारिस समझकर इन पशुओं को लोग ले जाया करते थे। अब कोई इन्हें हाथ भी नहीं लगाता। हिंदुओं में ऐसी धारणा है कि हम गाय को नहीं मारेंगे, लेकिन जब ज़्यादा नुक़सान करते हैं तो कुछ लोग इन्हें डंडे से मार भी देते हैं। साथ ही घायल होने पर इनका इलाज भी कराते हैं।"

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आवारा और छुट्टा जानवर कहां से आते हैं? इस सवाल पर शैलेंद्र कहते हैं, "जब तक गायें दूध देती हैं किसान इन्हें घर में रखते हैं। जब वह बांझ हो जाती हैं अथवा बच्चे और दूध नहीं देती, तो लोग बाहर छोड़ आते हैं। गाय पालने वाले ज़्यादातर किसान ऐसा ही करते हैं, क्योंकि उनके सामने भी आर्थिक मजबूरी होती है। लॉकडाउन के बाद से किसानों की स्थिति दयनीय है। तभी से गो-वंश पर भी मुश्किलें बढ़ी हैं। किसान चाहते हैं कि अपने पालतू पशुओं को लावारिस हाल में कतई न छोड़ें, मगर आर्थिक दबाव के चलते लोगों को कुछ भी नहीं सूझ रहा है।"

सरकार की कथनी-करनी में अंतर

उत्तर प्रदेश में गायों के प्रति योगी सरकार की संवेदनशीलता का नतीजा है कि सत्ता में आने के बाद गो-वंश की सुरक्षा, स्वास्थ्य और उनकी देखभाल के लिए कई फ़ैसले लिए गए। सूबे में बड़े पैमाने पर गोशालाएं बनवाई गईं। इस बाबत अलग से बजट का प्रावधान किया गया। दुर्योग देखिए, यूपी में कोई ऐसा इलाका नहीं है जहां भूख के चलते आए दिन गाय-बछड़ों के हमलों से लोगों के मरने की खबरें न आती हों। पत्रकार ओमप्रकाश दुबे कहते हैं, " योगी सरकार ने ग्रामीण और शहरी इलाकों में पक्के गो-आश्रय स्थल बनवाने के निर्देश दिए थे, लेकिन ज्यादातर आश्रय स्थलों पर गाय-बछड़े चारा और पानी के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। दरअसल, एक स्वस्थ पशु को रोजाना कम से कम 10 किग्रा पुआल अथवा गेहूं का भूसा और 15 किग्रा हरा चारा चाहिए। मेंटिनेंस के लिए एक किग्रा ऐसा राशन चाहिए जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और मिनरल तीनों हों। एक पशु का पेट भरने के लिए किसान को रोजाना 125 से 150 रुपये चाहिए। आखिर वो कहां से लाएंगे? पकड़े गए आवारा और छुट्टा पशुओं को खिलाने के लिए सरकार सिर्फ 30 रुपये देती है। क्या इतने से जानवरों का पेट भर जाएगा? शायद इसलिए आश्रय स्थलों में जानवरों की मौत हो रही हैं। सरकार की ओर से जब बजट देर से आता है तो आश्रय स्थल के कर्ताधर्ता खुद जानवरों को आजाद छोड़ देते हैं। बजट के सवाल पर न तो पशुपालन विभाग बोलता है और न ही प्रशासनिक अधिकारी।"

आवारा और छुट्टा पशुओं को लेकर किसानों की मुश्किलों को सोनू दुबे विस्तार से रेखांकित करते हैं। वह कहते हैं, "यूपी में पहले घड़रोजों के चलते किसान परेशान थे, मगर पहले परेशानी उतनी नहीं थी, जितनी आज है। पशुओं में बाझपन की समस्या बढ़ रही है और इसे रोकने के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं भी बाझपन की शिकार हो गई हैं। आखिर अपने मवेशियों को कोई कितने दिन तक बांधकर खिलाएगा। ग्रामीण इलाकों के चरागाहों पर कब्जे हो गए हैं अथवा सरकारी मशीनरी ने ग्राम समाज की जमीनों को खुर्द-बुर्द कर दिया है। किसानों की जोतें भी छोटी हो गई हैं। असली मुसीबत की जड़ किसान नहीं, डेयरी वाले हैं जो सिर्फ मुनाफे का धंधा करते हैं। गांवों में जो छुट्टा पशु हैं उनमें किसानों के कम, डेयरी वालों के ज्यादा हैं। यूपी सरकार ने कहा था कि गोर्वधन योजना शुरू की जाएगी। गोबर से गमले-दीए बनाए जाएंगे। सीएनजी और रसोई गैसों का उत्पादन होगा। लेकिन क्या जमीन पर ये योजनाएं उतर सकीं? योगी सरकार की मनमोहक बातें सुनकर किसान पहले बहुत खुश होते थे, अब उतना ही अधिक दुखी हैं।"

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उपाध्यायपुर गांव के शशिभूषण पांडेय का दर्द भी दूसरे किसानों की तरह है। जब खेती ही नहीं रहेगी तो किसानों की आय कैसे दोगुनी होगी? इस सवाल पर शशिभूषण कहते हैं, "जैसे ही धान की फसल में बालियां निकलेंगी, निराश्रित छुट्टा और आवारा जानवर उसे चट कर जाएंगे। बड़ी संख्या में किसानों ने अरहर, गन्ना और सब्जियों की खेती भी छोड़ दी है। ऐसे में किसानों की आय दोगुनी करने की बात दूर की कौड़ी है। सरकार सिंचाई पर अनुदान तो दे रही है, लेकिन खेतों में जाली लगाने पर नहीं। किसान अगर खेती नहीं करेगा तो आत्महत्या करेगा। पारिवारिक कलह में इजाफा होगा। गांवों का हाल यह है कि बड़े-बड़े किसानों के बच्चे शहरों मे जाकर पांच-सात हजार की नौकरियां तलाश रहे हैं।"  

क्या हैं ज़मीनी हालात

भदोही जिले के कठौता गांव (गोपीगंज) के रविंद्र प्रताप सिंह कहते हैं, "पशुओं को हांकते-हांकते समूचे यूपी के किसान समुदाय बेहाल हैं। बुंदेलखंड इलाक़े में स्थिति ज्यादा विस्फोटक है। आवारा पशु किसानों के लिए पहले ही गंभीर समस्या बने हुए थे, लेकिन अब स्थिति और भी अधिक भयावह हो गई है। गोवंश आश्रय स्थलों के निर्माण के लिए जब योगी सरकार ने घोषणा की थी तो सबसे पहले इसकी शुरुआत बुंदेलखंड इलाक़े से हुई। यहां किसी भी गो-स्थल को देखेंगे तो शायद ही कोई ऐसा स्थल होगा, जहां गाय-बछड़े रखे गए हों और वो स्वस्थ हों। जिन गो-स्थलों पर दो-चार गायें होती हैं वहां भी पीने का साफ पानी और हरे चारे का प्रबंध नजर नहीं आता। सरकार जब तक पैसे देती है तब तक छुट्टा पशुओं को चारा मिलता है। बजट बंद होते ही ये जानवर दोबारा खेतों में घूम रहे होते हैं। कम से कम वहां मरते तो नहीं।"

आश्रय स्थलों की हकीकत बयां करते हुए ग्रामीण बताते हैं कि जब भी कोई जांच करने आता है तो गांव से लाकर गायें खड़ी कर दी जाती हैं। बाद में उन्हें फिर छोड़ दिया जाता है। सूखे की मार झेलते रहे पूर्वांचल और बुंदेलखंड में जानवरों के लिए चारा बड़ी समस्या रही है। जब गायें दूध देना बंद कर देती हैं तो किसान उन्होंने आजाद कर देते हैं। यूपी का हाल यह है कि हर साल सैकड़ों गायें भूख-प्यास से ही दम तोड़ देती हैं। मई और जून महीने में जब भीषण गर्मी पड़ती है तब गोशालाओं में बदइंतज़ामी बढ़ जाती है। पिछले साल आगरा, मथुरा, कन्नौज, कानपुर, बांदा, हमीरपुर, महोबा के अलावा पूर्वांचल के सभी जिलों की गोशालाओं में गाय-बछड़ों के मौतों की खबरें आईं थीं। यूपी में ज्यादातर गोशालाएं ऐसी जगहों पर बनाई गई हैं जहां पेड़ तक नहीं हैं। गर्मी के दिनों में टीन शेड वाली गोशालाओं में जानवरों का रहना मुश्किल होता है। यूपी के पशुपालन विभाग के मुताबिक़ राज्या में करीब साढ़े सात लाख आवारा और छुट्टा पशु हैं। इन्हें अन्ना पशु के नाम से भी जाना जाता है। इनमें से एक चौथाई छुट्टा पशु आश्रय स्थलों में नजर नहीं आते।

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पशुपालन विभाग के एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कुछ जगहों पर प्रशासनिक सख़्ती के बाद आश्रय स्थलों में पशु तो पहुंचा दिए गए। भीषण गर्मी में चारे-पानी की जब कोई व्यवस्था नहीं हुई तो गोशालाओं के संचालकों ने भी गर्मी में मरने की बजाय इन्हें खुला ही छोड़ दिया।"

बेअसर साबित हुईं योजनाएं

गोवंश पर लगे प्रतिबंध और गांव में खुले घूमने वाले आवारा पशुओं से परेशान किसानों ने सरकार को घेरना शुरू किया तो यूपी के कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही और पशुपालन मंत्री एसपी सिंह बघेला ने नया जुमला फेंका। कृत्रिम गर्भाधान की नई तकनीक ‘सेक्स सोर्टिड सीमन’ के जरिए पशुपालक अपनी इच्छा के अनुसार गाय से केवल बछिया पैदा करा सकेंगे। तब किसान उन्हें खुला नहीं छोड़ेंगे और गोवंश किसी की परेशानी का सबब भी नहीं बनेगा। यूपी में सेक्स सोर्टेड सीमन योजना शुरू तो की गई, लेकिन वह असर नहीं दिखा सकी।

साल 2021 के शुरुआत में यूपी सरकार ने बजट में गोशालाओं के निर्माण और रख-रखाव के लिए 248 करोड़ आवंटित किए थे। वाराणसी समेत राज्य के 16 नगर निगमों को कान्हा उपवन खोलने और चारे के लिए 10-10 करोड़ रुपये आवंटित किए गए। पिछले साल 69 शहरी निकायों में गोशालाओं के निर्माण के लिए 10 से 30 लाख रुपये की धनराशि जारी की गई, लेकिन समूची धनराशि का उपयोग नहीं हो सका। अलबत्ता योगी सरकार ने शराब पर सेस लगाकर 165 करोड़ रुपये वसूलने का इंतज़ाम जरूर कर लिया। फिर भी सूबे की ज्यादातर गोशालाएं बदइंतज़ामी की शिकार हैं और चारा-पानी के अभाव में निराश्रित गाय-बछड़े मर रहे हैं। पिछले साल मीरजापुर जिले की गोशालाओं में कई गायों के मरने की खबरें आई थीं। बाद में गोशाला के संचालकों ने सफाई देनी शुरू कर दी कि उनकी मौतें भूख और कुव्यवस्था से नहीं, आकाशीय बिजली से हुईं हैं।

आवारा पशुओं से परेशान हैं राहगीर 

हादसे के सबब बन रहे छुट्टा पशु

उत्तर प्रदेश के किसानों में डर सिर्फ पशुओं के फसल चरने का ही नहीं है। डर यह भी है कि इनमें से कुछ जानवर हमलावर हो गए हैं। इन पशुओं ने कई लोगों पर जानलेवा हमले किए हैं। बड़ागांव के इलाके में 20 वर्षीय रमेश हाल ही में बिस्तर से उठे हैं। कुछ दिन पहले वह अपने खेत में जानवरों को भगाने गए थे। एक साड़ हमलावर हो गया और उन्हें अपने सींगों से उठाकर पटक दिया। उन्हें कई दिन बनारस के एक प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराना पड़ा।

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रमेश कहते हैं, "अपनी तिलहन की फसल को बचाने के लिए मैं छुट्टा पशुओं को भगाने गया था। इसी बीच एक सांड ने मुझे दौड़ा लिया। डर के मारे मैं गिर पड़ा तो उसने मेरे पीछे सींग घुसेड़ दिया। बाद में सींगों पर उठाकर मुझे पटक दिया। महीने भर इलाज कराने के बाद अब चलने-फिरने लायक हो सका हूं। अब तो मुझे खेतों पर जाने से भी डर लगता है।"

जक्खिनी इलाके के आंचलिक पत्रकार संजय सिंह बनारस से अपनी बाइक से घर लौट रहे थे। राजातालाब के पास रास्ते में कोई जानवर उनकी बाइक पर कूद गया और इस हादसे में उनकी मौत हो गई। ओमप्रकाश बताते हैं, "सड़कों पर बड़ी संख्या में घूम रहे आवारा साड़ों की लड़ाई में आए दिन लोगों की मौत की खबरें अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं। यूपी में छुट्टा जानवरों की वजह से हर साल बड़ी संख्या में लोग मर जाते हैं।"

सिर्फ बनारस ही नहीं, यूपी के सभी जिलों में सड़कों पर छुट्टा पशु कूड़ा खाते, डिवाइडर पर बैठे या फिर राजमार्गों पर घूमते झुंड में नजर आते हैं। इन जानवरों की वजह से बनारस से लखनऊ, इलाहबाद, आजगमढ़, गाजीपुर, सोनभद्र और चंदौली जाने वाले राजमार्गों पर दुघर्टनाओं में काफी इजाफा हुआ है।

बनारसियों को याद है कि तत्कालीन डीएम योगेश्वर राम मिश्र की गाड़ी एक साड़ के हमले के बाद जौनपुर के बदलापुर के पास पलट गई थी, जिसमें वो बाल-बाल बच पाए थे। पत्रकार राजीव कुमार सिंह बताते हैं, "बनारस शहर के लक्सा इलाके में एक मरकहा सांड से निजात पाने के लिए इलाकाई लोगों ने विधिवत थाने में तहरीर देकर रिपोर्ट दर्ज कराने की कोशिश की थी। यह सांड किसी को मुंह बांधे हुए, साड़ी पहने हुए, खटिया लेकर जाते लोगों के अलावा बैंड बाजा देखते ही भड़क जाता था। इस साड़ के हमले से कई लोग चोटिल हो गए थे। एक अन्य मरकाहा सांड़ के हमले से बीएचयू के शिक्षा संकाय की छात्रा निधि यादव की मौत हो गई थी। डीएलडब्ल्यू के जानकीनगर कॉलोनी की रहने वाली निधि एटीएम जाने के लिए स्कूटी से निकली थी। मोहल्ले में सड़क पर दो सांड आपस में लड़ रहे थे। निधि जैसे ही स्कूटी खड़ी कर किनारे हुई, एक सांड ने उस पर हमला बोल दिया। घायल छात्रा की बीएचयू के ट्रामा सेंटर में मौत हो गई।"

राजमार्गों पर सांडों का जखेड़ा

बनारस के बेलवां गांव के पूर्व प्रधान राजेंद्र त्रिपाठी कहते हैं, "बनारस-बाबातपुर राजमार्गों पर छुट्टा पशुओं के चलते हादसे अब आम हो गए हैं। जिन गांवों में गो-आश्रय स्थल खोले गए हैं, वहां रख-रखाव की स्थिति काफी दयनीय है। बड़ी संख्या में खुले छोड़े गए इन जानवरों को किसी गोशाला में भी नहीं रखा जा सकता, क्योंकि इनके लिए चारा-पानी और रखने की जगह नहीं है। जो आवारा जानवर गोशालाओं में हैं, वो लचर प्रबंधन और मूलभूत सुविधाओं के अभाव के चलते मर जाते हैं।"

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यूपी में योगी सरकार ने एक झटके में बूचड़खाने तो बंद कर दिए, लेकिन गाय-बैल और सांडों के लिए कोई पुख्ता वैकल्पिक व्यवस्था नहीं दी। लावारिश घूम रहे हजारों गोवंश अब लोगों की जान के दुश्मन बनते जा रहे हैं। आए दिन हो रही दुर्घटनाओं के लिए शहरों और हाई-वे पर घूम रहे आवारा गोवंश भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं। राजमार्गों पर होने वाले हादसों का सरकार के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है। पिछले 14 वर्षों से सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए काम कर रही संस्था एराइव सेफ के अध्यक्ष हरमन सिंह सिद्दू बताते हैं “हाईवे पर सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं छुट्टा जानवरों को बचाने या उनके अचानक बीच में आ जाने के कारण होती हैं। आवारा जानवरों की वजह से होने वाले हादसों का रिकार्ड बनाना बहुत जरूरी है।"

कार को रोकने के लिए मुश्तैद खड़ा मरकहा सांड 

बनारस में साड़ों को ज्यादा आजादी

धार्मिक मान्यताओं और आडंबरों के चलते बनारस में छुट्टा पशुओं और सांड़ों को कुछ ज्यादा ही आजादी मिली हुई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के कड़े निर्देश के बावजूद यहां शहर में बड़ी तादाद में जानवर विचरण करते नजर आते हैं। इन्हें पकड़ने के लिए नगर निगम ने जो दस्ते तैनात किए गए हैं उनका जोर सिर्फ दुधारू पशुओं को पकड़ने पर रहता है, ताकि उनके जरिये वो मोटा सुविधा शुल्क वसूल सकें। हालांकि नगर स्वास्थ्य अधिकारी डा. एनपी सिंह कहते हैं, "बनारस की सड़कों पर हादसों को रोकने के लिए नगर निगम लगातार धर-पकड़ अभियान चला रहा है। हाल में सैंकड़ों जानवरों को पकड़कर शाहंशाहपुर स्थित गोशाला में पहुंचाया गया है।"

छुट्टा पशुओं के धर-पकड़ का प्रबंधन ठीक न होने की वजह से यूपी के सभी राज्यमार्गों पर छुट्टा और आवारा पशुओं की खतारनाक ढंग से मौत हो रही हैं। चोलापुर इलाके में आजमगढ़ मार्ग पर चंदापुर,  इमिलिया, अल्लोपुर, गोसाईपुर, मोहाव, चोलापुर, तराव आदि‍ जगहों पर पशुओं की तड़प-तड़प कर मौत हो रहीं हैं। इन इलाकों में कहीं भी आवारा पशुओं का झुंड देखा जा सकता है।

पीलीभीत, लखीमपुरखीरी, लखनऊ, बाराबंकी, इलाहाबाद सहित कई जिलों में आवारा और छुट्टे पशुओं की समस्या ज्यादा गंभीर है। लोगों को याद है कि बाराबंकी में हाईवे पर एक गाय को बचाने के चक्कर में पूरी गाड़ी ही नहर में गिर पड़ी और पांच लड़कों की मौत हो गई थी। पीलीभीत में सांड ने मोटरसाइकिल सवार को अपनी सींगों से पटक दिया, जिससे एक शख्स की मौत हो गई, जबकि दूसरा गंभीर रूप से जख्मी हो गया।

सांडों की लड़ाई में घायल हो जाते हैं राहगीर

सपने में भी दिखता है हमलावर सांड

बनारस के गोसाईंपुर गांव की सोना देवी अपने पति के साथ अपना खेत देखने गईं थीं, जब एक सांड ने उन पर हमला किया। उस दिन को याद करके वो आज भी सिहर जाती हैं। सोना देवी बताती हैं, "मैं और मेरे पति मिट्ठू मौर्या (70) ) पंपिंग सेट के समीप स्थित खेत में खड़े सांड को भगाने का प्रयास कर रहे थे, इसी दौरान सांड ने उन पर हमला कर दिया। मेरी जान बचाने के लिए पति मिट्ठू खेत की तरफ दौड़े। तभी सांड ने उन पर हमला बोल दिया। सांड ने पेट, कमर और कई जगह सींग घुसा दिए और उठाकर पटक दिया। अस्पताल  पहुंचने पर डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।"

सोना देवी बताती हैं कि पति की मौत के बाद घर से बाहर निकलने से भी डर लगता है और उन्हें सपने में भी वह हमलावर सांड दिखाई देता है। चोलापुर इलाके में कई ऐसे भाग्यशाली लोग हैं जो इन आवारा पशुओं के हमले से बाल-बाल बचे हैं। सोना देवी की तरह तमाम महिलाओं में सांडों का डर उनके दिल में इस कदर बैठ गया है कि अब उन्होंने अकेले खेतों की ओर जाना छोड़ दिया है। रघुनाथपुर के शंकर लाल और बेलवां के जयप्रकाश ने “न्यूज क्लिक” से कहा कि बनारस में घुमंतु पशु, जिनमें अधिकतर बछड़े और सांड हैं, अब एक बड़ी समस्या बन गए हैं जिसका तुरंत हल निकाले जाने की जरुरत है।

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सड़कों पर चोटिल हो रहे आवारा पशुओं को बेहतर चिकित्सीय सुविधा देने पर काम कर रही चेन्नई की संस्था ब्लू क्रॉस ऑफ इंडिया के अनुसार, "भारत में हर साल लाखों की संख्या में छुट्टा जानवरों की वजह से लोग चोटिल होते हैं और कई मामलों में तो जानवरों से टकराकर गाड़ियां गहरे गड्ढ़ों में गिर जाती हैं। इसमें से 75 फीसदी मामले में जानवरों की मौत हो जाती है।"

बनारस में आवारा पशुओं का इस तरह लगता है जमघट

घिरने लगी योगी सरकार

छुट्टा पशुओं के मुद्दे पर यूपी के सभी विपक्षी दल योगी सरकार को घेरने लगे हैं। योगी सरकार पर हमला करते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कहते हैं, "सूबे के किसान छुट्टा/अवारा पशुओं द्वारा बर्बाद की जा रही फसलों से त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। फसलों की बर्बादी की वजह से बाह (आगरा), महोबा, कौशाम्बी, इलाहाबाद, गोरखपुर, महराजगज, लखीमपुरखीरी, अमरोहा सहित विभिन्न जनपदों में पिछले एक से डेढ़ माह में दर्जनों किसान आत्महत्या कर चुके हैं। सांडों के हमले से बहुतों किसानों की जान चली गई और कई बुरी तरह घायल हो चुके हैं। यूपी का किसान बहुत ही निराश और हताश महसूस कर रहा है।"

लल्लू कहते हैं, "साल 2014 के बाद किसानों की आत्महत्या की दर 45 प्रतिशत बढ़ी है। सरकारी आंकड़े के हिसाब से प्रतिदिन 35 किसान आत्महत्या कर रहे हैं। देश और प्रदेश में सबसे ज्यादा किसानों की आत्महत्या 2014 के बाद हुई, जिसकी तादाद प्रथम तीन वर्ष में लगभग 12 हजार से अधिक है। सरकार गोवंश संरक्षण के नाम पर खानापूर्ति कर किसानों की फसलें बर्बाद कर देने पर तुली है। परेशान किसान सरकारी स्कूलों और कार्यालयों के भवनों में छुट्टा जानवरों को कैद कर धरना-प्रदर्शन करने पर मजबूर हैं, क्योंकि सरकार छुट्टा जानवरों से अपनी फसलों को बचाने के लिए तार के बाड़ लगाने की अनुमति नहीं दे रही है। जो गोशालाएं बनवाई गई हैं वह भ्रष्टाचार की शिकार हैं। चारा और चिकित्सा के अभाव में गाय-बछड़े अकाल मौत के शिकार हो रहे हैं।"

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वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार कहते हैं, "पूर्वांचल में बुजुर्गों के निधन होने पर ब्राह्मणों को बछिया दान की परंपरा रही है। पहले वो गोदान के लिए अड़ जाते थे। पशुधन की बिक्री बंद होने की वजह से अब ब्राह्मण भी बछिया लेने से कतराने लगे हैं। किसानों के बारे में सोचने के लिए न अफसरों के पास समय है और न ही सत्तारूढ़ दल के नेताओं के पास। 

पशुओं की सेवा कागजों पर ज्यादा है, धरातल पर बिल्कुल नहीं। ठोस रणनीति बनाकर आवारा और छुट्टा पशुओं से मुक्ति नहीं दिलाई गई तो यूपी में भाजपा सरकार शायद ही दोबारा सत्ता में आ सकेगी। खेती से निराश हो चुके किसान कतई नहीं चाहेंगे कि कोई ऐसी सरकार दोबारा सत्ता में आए, जिससे किसानों को अगले पांच सालों तक खेतों को परती छोड़ना पड़े।"

(विजय विनीत बनारस के रहने वाले स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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